प्राचीन चीनी सभ्यता का इतिहास | China Ki Sabhyata In Hindi

चीनी सभ्यता का इतिहास China Ki Sabhyata In Hindi History ancient Chinese civilization प्राचीन चीनी सभ्यता ह्वान्हों और चांग जियांग (याग्टीसीक्यांग) नदियों की घाटियों में विकसित हुई थी. चीनी लिपि आरम्भ में चित्रात्मक थी.

धीरे धीरे इसकी स्वयं की वर्णमाला का निर्माण हुआ. मंगोल जाति के लोगों ने चीनी सभ्यता को जन्म दिया और विकास में सहयोग दिया.

उपलब्ध ऐतिहासिक तथ्यों के वैज्ञानिक विश्लेषण के आधार पर चीन का व्यवस्थित राजनैतिक इतिहास ईसा पूर्व 2852 से फूसी नामक शासक से प्रारम्भ होता है. चीन के शासकों के राजवंशों में शांग वंश, चाऊ वंश, हान वंश, सुई वंश, तांग वंश, शुंग वंश प्रमुख थे.

प्राचीन चीनी सभ्यता का इतिहास | China Ki Sabhyata In Hindi

चीन की सभ्यता भारतीय, सुमेरियन और मिस्र की सभ्यताओं जितनी प्राचीन नहीं हैं. यहाँ कास्ययुगीन साक्षर नागरिक सभ्यता का उदय दूसरी सहस्राब्दी ई पू के मध्य हुआ. पर्वतों, रेगिस्तानों व पहाड़ों से घिरा होने के कारण इसकी सभ्यता का मौलिक रूप से विकास हुआ.

प्राचीन चीनी संस्कृति में बौद्ध धर्म के अतिरिक्त अन्य कोई विदेशी तत्व नहीं हैं. प्राकृतिक साधनों की दृष्टि से आत्मनिर्भर होने तथा अन्य सभ्य जातियों से अपरिचित होने के कारण चीनी स्वभाव से बहुत गर्वीले रहे.

वे अपने अतिरिक्त किसी अन्य जाति को सभ्य नहीं मानते थे. इसी श्रेष्ठता की भावना के कारण अपने देश को बर्बर जातियों से घिरा हुआ मध्य राज्य, दुनिया के मध्य स्थित फूल अथवा स्वर्ग के नीचे स्थित गौरवशाली राज्य कहते थे.

देश का नाम चीन सम्भवतः तीसरी शताब्दी ई पू में राज्य करने वाले चिन वंश के नाम पर विदेशियों द्वारा दिया गया था. चीन को पूर्वी एशिया का गुरु माना जाता हैं.

जापानी लोग चीन को महान थांग नाम से पुकारते हैं. क्योंकि थांग युग की चीनी सभ्यता से वे बहुत प्रभावित हुए थे. इस काल में अपने जापानी विद्यार्थी विद्याध्ययन के लिए चीन आए जिनमें खुंग हाइ या कउ पउ ता षी विशेष प्रसिद्ध हैं.

इसने वहां पच्चीस वर्ष तक रहकर चीनी शब्दों को जापानी उच्चारण में लिखने के लिए एक वर्णमाला बनाई जो खाना नाम से प्रसिद्ध हुई. इस कारण उसे जापानी साहित्य का जनक माना जाता हैं.

सभ्यता के साथ जापान में बौद्ध धर्म का प्रसार भी इसी काल में हुआ. मध्य युग में चीन अपने से पश्चिम देशों में खिताई नाम से प्रसिद्ध हुआ था. रूस में यह नाम आज भी प्रचलित हैं. मार्कोपोलो ने अपने विवरण में चीन का नाम के थे लिखा हैं.

चीन की सभ्यता के बारे में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मिस्र, मेसोपोटामिया और यूनान की सभ्यताओं की भांति अनेक जातियों और नस्लों के लोगों के स्थान पर ही जाति के लोगों की सभ्यता हैं. चीन से करीब पांच लाख वर्ष पहले की आदिम अवस्था के मनुष्य के प्रमाण मिले हैं जिसे पेकिंग मानव का नाम दिया गया हैं.

भारतीय सभ्यता की भांति चीन की सभ्यता के विकास में क्रम भंग नहीं मिलता. यह सभ्यता तीन हजार वर्षों से अबाध गति से जीवित रही हैं, जिसका मुख्य कारण सुरक्षित भौगोलिक स्थिति रही हैं.

इस सभ्यता का उदय चीन में ह्वांग हो के निचले बेसिन में हुआ. पास के स्थानीय पीले रंग के निवासियों व मिट्टी के कारण इस नदी का नाम यह पड़ा.

वर्षा के दिनों में बाढ़ से भयंकर बर्बादी के कारण इसे चीन का शोक भी कहा जाता हैं. चीन में सभ्यता का विकास ह्वांग हो व इसकी सहायक नदियों के किनारे ही हुआ. इस कारण इसे चीन का वरदान भी कहा जाता हैं.

चीन की दूसरी सबसे बड़ी नदी यांग्त्सी तथा तीसरी बड़ी नदी सी क्यांग हैं, जो अपनी सहायक नदियों के साथ एक सम्पूर्ण नदी घाटी का निर्माण करती हैं.

चीन की सभ्यता का प्रारंभिक काल (Early Period Of Chinese Civilization In Hindi)

मिथकों के अनुसार चीनी राज्य का जन्मदाता, संस्थापक या आदि पुरुष पान कू नामक शासक था. कहा जाता है कि पान कू दो रहस्यमयी शक्तियों के संयोग से पैदा हुआ था.

उसने अठारह हजार वर्षों तक परिश्रम कर रुखानी और मुंगडे ठोक ठोक कर अंतरिक्ष में उड़ते हुए ग्रेनाईट के पत्थरों को चन्द्र, पृथ्वी और तारों का रूप दिया.

मृत्यु के बाद पान कू का सिर पहाड़ों के रूप में परिवर्तित हो गया, उसकी छाती बादल और हवा के रूप में तथा आवाज बिजली तथा मेघो के गर्जना के रूप में परिवर्तित हो गई. उसकी धमनियों ने नदियों का रूप धारण कर लिया तथा नसें छोटी छोटी पहाड़ियाँ व घाटियाँ बन गई.

उसका मांस खेतों में बदल गया तो चमड़े व बालों ने पेड़ पौधों का रूप धारण कर लिया. उसका पसीना वर्ष के जल में परिवर्तित हो गया अंत में जो कीड़े उसके शरीर की ओर आकृष्ट हुए उन्होंने मानव जाति का रूप धारण कर लिया.

इस प्रकार पान कू ने विश्व की रचना की. उसके बाद तीन पौराणिक सम्राटों थिएन ह्वांग, ति ह्वांग और रन ह्वांग का उल्लेख मिलता हैं.

यउ छाव ने सबसे पहले मकान का आविष्कार कर लोगों को सुरक्षित रूप से रहना सिखाया. स्वइ रन ने लकड़ी घिस कर अग्नि का आविष्कार किया और लोगों को भोजन पकाना सिखाया.

चीनी इतिहासकारों ने चीनी राष्ट्र की स्थापना का वर्ष 2852 ई पू अर्थात राजा फू शी के शासनकाल से प्रारम्भ माना हैं. फू शी ने पशु जगत पर विजय प्राप्त कर चीनी सभ्यता की नींव डाली.

उसने परिवार का निर्माण कर सामूहिक निवास की आधारशिला रखी और लोगों को आपस में सहयोग करना सिखाया. उसने विवाह के नियम बनाएं और मानव समाज में सर्वप्रथम विवाह की प्रथा प्रारम्भ की.

उसी ने चीनी लोगों को घर बनाना, शिकार, पशुपालन, मछली पकड़ना, फंदा डालकर जानवर पकड़ना और सितार बजाकर गाना सिखाया. उसने आठ रेखाचित्रों का आविष्कार किया जिनसे आगे चलकर चीनी अक्षरों का निर्माण हुआ.

उसी ने नापने की विधि खोज निकाली जो पंचाग की आधार बनी. फू शी के बाद दूसरे प्रसिद्ध चीनी शासक के रूप में षन नुंग की गणना की जाती हैं.

उसने कुदाल और हल का आविष्कार कर दलदली जमीन पर खेती करने लायक बनाया तथा चीनियों को खानाबदोश जीवन छोड़कर कृषक के रूप में गाँवों में रहना सिखाया.

इस कारण इसे कृषि के देवता के रूप में याद किया जाता हैं. उसने एक तरह का बाजार कायम कर लोगों को क्रय विक्रय करना सिखाया और अनेक जड़ी बूटियों की परीक्षा कर चिकित्सा विज्ञान की नींव डाली.

षनु नुंग को कृषि, व्यापार और आयुर्वेद शास्त्र का जनक माना जाता हैं. चीन के प्रारम्भिक शासकों में सम्राट हुआंग टी सबसे प्रसिद्ध हैं. चीन के ऐतिहासिक संवत् का प्रारम्भ इसके राजत्वकाल के प्रथम वर्ष से माना जाता हैं.

चीनी आख्यानों में उसे चीनी जाति का पिता और नागरिक समाज का संस्थापक कहा जाता हैं. उसकी पत्नी ली त्जू के लोगों को रेशम के कीड़े पालना सिखाया. हुआंग टी के समय चीन में अनेक चीजों का आविष्कार हुआ. वेशभूषा, टोपी, गाड़ी, ओखली, मूसल, चूना पकाना, तीर कमान, कम्पास, मुद्रा, मौसम विज्ञानं आदि.

उसकी रानी रेशम के धंधे की जननी मानी जाती हैं. हुआंग टी के इतिहास मंत्री छांग च्ये ने राजकीय आज्ञा से लिपि का निर्माण कर इतिहास लिखवाया. एक इतिहास मंत्री सिंहासन के बाई तरफ रहता था.

जो सम्राट द्वारा दी गई आज्ञाओं व मंत्रियों प्रार्थियों के व्यक्तव्यों को लिखता था. दाहिनी तरफ रहने वाला मंत्री तारीखवार घटनाओं को दर्ज करता था. कालान्तर में इतिहास तीसरी शताब्दी ई पू के मध्य में चीन के सम्राट शि हुआंग टी के आदेश पर जला दिया गया.

चीन के लम्बे इतिहास के प्रथम राजवंश की स्थापना यू द्वारा की गई. यू द्वारा स्थापित राजवंश को सिया कहा जाता हैं. भयंकर बाढ़ से होने वाली क्षति से देश को बचाने के लिए यू ने चीन की नौ बड़ी नदियों का मुहं चौड़ा करवाकर उनके बहाव को समुद्र की तरफ मोड़ दिया.

इस वंश का अठाहरवां शासक बहुत दुष्ट और पापी था. टांग नामक राजकुमार ने सिया वंश के अंतिम शासक को पराजित कर शांग राजवंश की नींव डाली.

चीन का राजनीतिक इतिहास धुंधले रूप में इसी वंश के काल से प्राप्त होता हैं. शांग राजवंश के काल में इतिहास की जानकारी का प्रमुख स्रोत होनान प्रान्त से खुदाई से मिली दस हजार दैवी संवाद हड्डियाँ हैं.

ये हड्डियाँ बैल के कंधों की अथवा कछुओं की कठोर पीठ हैं. इन हड्डियों को देववाणी से सम्बद्ध माना जाता था या भविष्य जानने के लिए इन पर खुदाई की जाती थी. इसलिए इन्हें आरकेन बोन कहा जाता हैं. इन हड्डियों पर वे प्रश्न खुदे रहते थे जिनके उत्तर उस समय के लोग अपने पूर्वजों या देवताओं से पूछना चाहते थे.

लोगों का विश्वास था कि इन प्रश्नों का उत्तर स्वप्नों के सहारे देवता उन्हें दिया करते थे, इस प्रकार चीन की प्राचीन सभ्यता में प्रतीकों और अंधविश्वासों की प्रधानता रही हैं. चीनी लिपि का सबसे पुराना प्रमाण इन्ही ओरेकल हड्डियों से मिला हैं.

शांग वंश के काल में पानकेंग नामक राजा ने ह्वांग हो नदी के पास अन्यांग नामक शहर को अपनी राजधानी बनाया. शांग लोगों के महानगर के नाम से प्रसिद्ध अन्यांग राजधानी की दृष्टि से काफी उपयुक्त था.

तीन दिशाओं में नदी बहने के कारण जहाँ यह सुरक्षित था, वहीँ नदी की उर्वर घाटी के मध्य बसा होने के कारण खेती की दृष्टि से भी काफी उपजाऊ था.

शांग वंश के लोग ईंटों का प्रयोग नहीं जानते थे. इसलिए उनके मकान मिट्टी के बने होते थे जिनकी छते घास फूस की होती थी. दासों और नौकरों के लिए घर जमीन के अंदर गड्डे खोदकर बनाएं जाते थे. जबकि धनी लोग अच्छे घरों में निवास करते थे जो जमीन के ऊपर बने होते थे. दास प्रथा का प्रचलन था, दासियों के लिए ची शब्द का प्रयोग किया जाता था.

ची का अर्थ रखैल या उपपत्नी होता हैं. प्राचीन मिस्र की भांति मृत राजाओं के साथ उनकी पत्नी या नौकरों को दफनाने की प्रथा चीन में लम्बे समय तक रही. शांग वंश के बाद इस नर बलि की प्रथा में कमी आ गई.

परम्पराओं के अनुसार शांग वंश का अंतिम राजा चाऊ सिन था. उसने चाऊ वंश के वेन वांग को पराजित कर बंदी बना लिया. हर्जाने के रूप में बड़ी रकम वसूलने के बाद वेन वांग को छोड़ दिया गया.

वेन वांग की इस पराजय का बदला उसके पुत्र वू वांग ने लिया और एक विद्रोह द्वारा चाऊ सिन को गद्दी से उतार दिया. पराजित चाऊ सिन ने अपने महल में आग लगी ली और आत्महत्या कर ली.

चाऊ वंश

चाऊ वंश का शासनकाल चीन के अन्य राजवंशों से अधिक रहा, इस वंश का काल चीनी इतिहास का स्वर्णयुग कहा जाता हैं. इस वंश का वास्तविक संस्थापक वेन का पत्र वू वांग था. चाऊ वंश की पश्चिमी शाखा के पतन के उत्तरदायी यू वांग नामक शासक को ठहराया जाता हैं.

वह अपनी उपपत्नी पओज को खुश करने के लिए राज पाट छोड़कर अन्य प्रयत्न करने लग गया. कहा जाता है कि सब प्रयासों द्वारा उसे हंसाने में असफल रहने के बाद यू वांग ने दस हजार मशाले जलवाई, जिन्हें आक्रमण होने की स्थिति में संकेत के रूप में जलाया जाता था.

मशालें देखकर आस पास के सामंत आक्रमण होने का संकेत समझ कर अपनी सेनाओं के साथ सहायता करने के लिए आ गये. सामंतों की इन सेनाओं को झूठ मूठ में आया देखकर पाओज हंस पड़ी. इसके बाद पओज को हंसाने के लिए यू वांग ने ऐसा कई बार किया.

ऐसे मे एक बार जब बर्बर जातियों ने कई राज्यों के साथ मिलकर यू वांग पर आक्रमण कर दिया तो यू वांग ने आक्रमण का संकेत देने के रूप में मशालें जलवाई किन्तु उस समय कोई भी सामंत उसकी सहायता के लिए नहीं आया.

परिणाम यह हुआ कि यू वांग मारा गया और चाऊ वंश की पश्चिमी शाखा का शासन समाप्त हो गया. पूर्वी शाखा ने लोयांग को अपनी राजधानी बनाकर लम्बे समय तक शासन किया.

चाऊ युग में उत्तराधिकारी की नई परिपाटी का प्रारम्भ हुआ. इससे पहले भाई उत्तराधिकारी होता था किन्तु सम्राट वेन ने पुत्र को उत्तराधिकारी नियुक्त कर इस प्रथा को सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में लागू कर दिया.

चाऊ वंश के शासकों ने लम्बे समय तक मंगोल, तातार और हूण जैसी बर्बर जातियों के आक्रमणों से चीन की रक्षा की. लाओत्से और कन्फ्यूशियस जैसे दार्शनिक भी इसी काल में हुए.

उच्च कोटि के साहित्य की रचना के कारण चाऊ युग को प्राचीन चीनी साहित्य का स्वर्ण युग कहा जाता था. धातुओं का प्रयोग, कागज, छपाई एवं बारूद के आविष्कार के लिए भी यह राजवंश प्रसिद्ध हैं. चीन में सामंतवाद का विकास चाऊ राजवंश के काल में ही हुआ.

इस कारण चाऊ वंश के काल को सामंती युग भी कहा जाता हैं. सुव्यवस्थित शासन तंत्र की सफलता के कारण चाऊ राज्य की सीमाएं काफी विस्तृत हो गई.

इस कारण चाऊ शासकों ने साम्राज्य को अनेक खंडों में विभाजित करते हुए उन्हें अपने सम्बन्धियों व मित्रों को सौप दिया. सामंत आवश्यकता पड़ने पर अपने सैनिकों के साथ शासक की सहायता करते थे. युद्ध मुख्यतः रथों द्वारा लड़े जाते थे.

चीन की शक्ति व प्रतिष्ठा बढ़ने से चाऊ वंश के काल में चीन का शासक स्वर्गपुत्र माना जाने लगा. वह राजनीतिक व धार्मिक दोनों ही मामलों में सर्वोपरि था. राजा के इन अधिकारों व कार्यों के निर्देशन के लिए विधियों व नियमों की एक संहिता बनाई गई. जिसे चीनी भाषा में ली कहा जाता हैं.

कालान्तर में इन नियमों का संकलन बड़े ग्रंथों में किया गया. ई ली, ली ची तथा चाऊ ली. इस काल में राजा को वांग कहा जाता था. सिद्धांतत राजा को शासन का अधिकार ईश्वरीय आदेश तथा पुण्य के आधार पर मिला था.

चाऊयुगीन चीनियों के मुख्य उद्यम कृषि कर्म और पशुपालन थे. गाँवों में भूमि का विभाजन परम्परागत चिंग तियेन विधि के अनुसार किया जाता था. इस विधि के अनुसार उर्वर भूमि के एक खंड को नौ टुकड़ों में बांटा जाता था.

बीच के टुकड़े में आठ परिवार रहते थे तथा उसमें सामूहिक खेती करते थे. बाहर के आठ भागों पर उनका व्यक्तिगत स्वामित्व होता था. प्रत्येक को अपनी भूमि के नवें हिस्से की उपज राष्ट्र को देनी पड़ती थी.

चिन वंश

ली सू ने 255 ई पू में चिन साम्राज्य की नींव रखी. इस वंश का सबसे प्रसिद्ध राजा वांग चेंग था. उसने अपना नाम बदलकर शी हुआंग टी कर लिया. उसने सभी सामंत सरदारों की निजी सेनाएं भग कर दी तथा उनके सैनिकों को चीन की महान दीवार के निर्माण के लिए लगा दिया.

उत्तर पश्चिम में विदेशी बर्बर हूण आक्रमणकारियों को रोकने के लिए बनवाई गई. 1500 मील लम्बी, 22 फीट ऊंची और 20 फीट चौड़ी इस दीवार के कारण हूणों को पश्चिम की तरफ आगे बढ़ना पड़ा, जिससे रोमन साम्राज्य का पतन हुआ.

चीन की इस विशाल दीवार के बारे में वाल्तेयर ने कहा कि मिस्र के अद्भुत पिरामिड भी इसकी विशालता के सामने चीटियों के घर की तरह लगते हैं. अनेक लोगों को इस दीवार के निर्माण में बेगार करनी पड़ी,

जिसके कारण भव्य और उपयोगी होने के बावजूद यह चीन में घ्रणा की प्रतीक बन गई. शि हुआंग टी ने चीन में राष्ट्रीयता की भावना पैदा करने के लिए हजारों लोगों को उनके घर उजाड़कर सीमान्त प्रदेशों में बसाया.

उसका साम्राज्य 40 च्युन प्रान्तों में बंटा हुआ था. इतने बड़े साम्राज्य को अपने अधीन बनाए रखने और सेना के आवागमन के लिए उसने सड़कों और नहरों का जाल बिछ्वाया. उसने समूचे देश को एक भाषा, एक लिपि तथा समान माप तौल की प्रणाली प्रारम्भ की.

शी हुआंग टी ने छोटे राजाओं व सामंतों को दबाकर एकीकृत केंद्रीय राज्य का निर्माण किया. सम्पूर्ण साम्राज्य को एकता के सूत्र में बाँधने के कारण उसे चीन का बिस्मार्क कहा जाता हैं.

शि हुआंग टी जनता का दुःख दर्द और प्रशासन की त्रुटियों को जांचने के लिए छद्म वेश में राज्य का भ्रमण करना था. 213 ई पू में उसके आदेश से हजारों दार्शनिक ग्रंथ जला दिए और 400 विद्वान्, दार्शनिक व विचारकों का कत्ल कर दिया गया.

केवल वे ही पुस्तकें रखी गई जो वैद्यक और विज्ञान से सम्बन्धित थी. इस बर्बरता का कारण सम्भवतः यह था कि चाऊ वंश के राज्यकाल में उपदेशकों की संख्या बढ़ गई थी. ये अकर्मण्य लोग अतीत के मुकाबले वर्तमान को तुच्छ घोषित कर अपने स्वार्थ साधते थे.

इस दृष्टि से देश को हानि ही उठानी पड़ रही थी. प्राचीन युग को समाप्त कर नई व्यवस्था का प्रवर्तक बनने के उद्देश्य से शि हुआंग टी ने चीन के इतिहास में पहली बार सामंत व्यवस्था को समाप्त की जिसे हान वंश के प्रथम राजा ने पुनः प्रारम्भ कर दिया.

चिन वंश की हरकतों से तंग आकर साधारण जनश्रेणी के ल्यु पाड नामक व्यक्ति ने क्रांतिकारियों का संगठन कर विद्रोह खड़ा कर दिया. बाद में उसने हान काबु चु नाम से सम्राट बनकर हान वंश के शासन की स्थापना की जो चीन के इतिहास में पहली सार्वजनिक क्रांति थी.

द्वितीय स्वर्ण युग के नाम से प्रसिद्ध इस वंश में बूती और वांगमैंग नामक दो प्रसिद्ध शासक हुए. बूती का शासनकाल राज्य समाजवाद तथा वांगमैंग का शासनकाल गुलामी की समाप्ति व भूमि के राष्ट्रीयकरण के लिए प्रसिद्ध था.

हान काल में मोटे तौर पर चीन की वर्तमान सीमाएं निर्धारित हुई तथा राजकीय सेवाओं में नियुक्ति के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं की प्रणाली आरम्भ की गई. चित्रकला के क्षेत्र में भी चीनी लोग सबसे आगे रहे.

चीन का प्रसिद्ध इतिहासकार शूमा चीन इसी काल में हुआ. उसने भिन्न भिन्न राजघरानों से प्राचीन ग्रंथ जुटाकर सिया वंश के प्रवर्तक सम्राट यू से पहली शताब्दी ई पू तक का विशद् इतिहास तैयार किया. उसे चीन का प्रथम इतिहासकार माना जाता हैं.

हान वंश के शासनकाल में चांग ची नामक व्यक्ति को पश्चिमी देशों के भ्रमण के लिए भेजा गया. चांग ची के विवरण के आधार पर चीनी लोगों को पहली बार ईरान, मिस्र, मेसोपोटामिया और रोमन साम्राज्य के बारे में जानकारी मिली.

इससे नये व्यापारिक मार्ग का विकास हुआ जो मार्ग चीन के उत्तर से चलकर मध्य एशिया होते हुए फारस के उत्तरी भाग तक जाता था. इस मार्ग से रेशमी वस्त्रों का निर्यात अधिक होने के कारण इसे रेशम मार्ग कहा गया. इतिहासकारों के अनुसार चाय की खोज और छापे की कला का आविष्कार भी हान वंश के शासन के दौरान ही हुए.

हान वंश के अंत के बाद चीन गृह युद्ध और विदेशी आक्रमणों से क्षीण होने लगा. साम्राज्य बिखर कर तीन राज्यों में बंट गया. इन तीनों में वाई राज्य उत्तर में शु राज्य पश्चिम में तथा बू राज्य दक्षिण में था. मठीय बौद्ध धर्म का प्रचार वाई काल में हुआ.

चु शिह हिंग नामक चीनी विद्वान इस काल में सबसे पहले 260 ई में खुतन गया. जहाँ उसने एक प्रज्ञासूत्र की प्रतिलिपि प्राप्त की. चीन में यह पंचविशंत साह्स्रिक प्रज्ञा पारमिता नाम से प्रसिद्ध हैं.

बू राज्य की राजधानी कियेन यी थी चिह चिएन ने बू राज्य में आकर दक्षिण चीन में भी बौद्ध धर्म का प्रचार किया. तीनों राज्यों के शासनकाल में बौद्ध धर्म का प्रवेश शु राज्य में नहीं हो पाया.

तीनों राज्यों के अध पतन की स्थिति में उनका स्थान पश्चिमी त्सिन वंश ने ले लिया. इस वंश ने चांग आन से एक अर्ध शताब्दी तक राज्य किया.

इस काल के अंतिम दौर में दो भिक्षुणीयां चिंग चिएन और आन लिंग शाऊ का उल्लेख मिलता हैं. जिनका धर्म परिवर्तन बुद्धदान नामक बौद्ध भिक्षु ने करवाया था. हान वंश के बाद चीनी बौद्ध धर्म ध्यान धर्म और प्रज्ञा पारमिता नामक दो शाखाओं में विभक्त हो गया.

ताओ आन नामक महान बौद्ध भिक्षु इन दोनों शाखाओं का प्रतिनिधि था जिसका जन्म त्सिन सम्राट हुआइ ती के शासनकाल में 312 ई में हुआ. फाहियान भारतवर्ष के एक बड़े भाग की यात्रा करने वाला पहला चीनी यात्री था.

जिसका गोत्र नाम कुंग था, उसने त्सिन सम्राट आन ती के शासनकाल के दौरान विनयपिटक की सम्पूर्ण प्रतियों को प्राप्त करने के उद्देश्य से 399 ई में भारत यात्रा के लिए चीन से प्रस्थान किया.

कुमारजीव के चांग आन पहुचने के दो वर्ष पहले वह भारत पंहुचा. 412 ई में पुनः चीन लौटने के दौरान चिह येन, पाओ यून, फा योंग आदि उसके साथ रहे.

विभिन्न वंशों के छोटे शासनकालों के बाद एक बार फिर सारा देश 618 ई से 907 ई तक तांग साम्राज्य के रूप में एक केन्द्रीय सत्ता के अधीन रहा. इस वंश का संस्थापक एक सोलह वर्षीय किशोर ली शिह मिग था, जिसने सुइ वंश की शक्ति पूर्णतया नष्ट कर दी.

उसने भारत से आए भिक्षु प्रभाकर मित्र और भारत की यात्रा कर लौटे ह्वेनसांग का स्वागत सत्कार किया. ताई त्सुंग के उत्तराधिकारी काओ त्सुंग का राज्यकाल बौद्ध धर्म का स्वर्णयुग कहा जाता हैं.

उसने बौद्ध भिक्षु ह्वेंत्सांग को एक विशेष आज्ञा द्वारा राजमहल में प्रवेश करने की स्वतंत्रता प्रदान की, काओ त्सुंग की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी वू चाओ ने अपने पुत्र फू कुआंग वांग के समय शासन सत्ता पर अपना नियंत्रण बनाए रखा.

उसने तांग वंश का नाम बदलकर चाउ वंश कर दिया. सम्राज्ञी वू चाओ के बाईस वर्षीय शासनकाल में बौद्ध धर्म देश भर में फ़ैल गया.

चीनी सभ्यता की विशेषताएँ एवं तथ्य (Characteristics and facts of Chinese civilization)

यहाँ हम इस सभ्यता के इतिहास के साथ साथ चीनी सभ्यता की मूलभूत विशेषताओं लोगों के सामाजिक आर्थिक जीवन धर्म दर्शन आदि के विषय में यहाँ जानेगे.

चीनी सभ्यता का सामाजिक जीवन (Social life of Chinese civilization)

चीन का प्राचीन समाज मंडारिन, कृषक, कारीगर, व्यापारी तथा सैनिक वर्ग में विभाजित था. सेना में भर्ती होने वाले लोग या तो अत्यंत निर्धन अपरिश्रमी या समाज में अवांछनीय चरित्र के माने जाने वाले थे.

एच ए डेविच का कथन है कि प्राचीन सभ्यताओं में चीन ही ऐसा देश है जो शान्ति के लिए संगठित रहा वहां सैनिक होना अपमानजनक समझा जाता था.

चीनी सभ्यता में संयुक्त परिवार की प्रथा थी परिवार का मुखिया वयोवृद्ध व्यक्ति होता था. वहां के जीवन में नैतिकता पर विशेष बल था. समाज में स्त्रियों को गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त नही था. पर्दा प्रथा व तलाक प्रथा प्रचलित थी.

चीनी सभ्यता में कृषि व पशुपालन (Agriculture and animal husbandry)

चीनी लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था. चावल की खेती तथा चाय की खेती बहुतायत से की जाती थी. नहरों द्वारा सिंचाई होती थी. भेड़, सूअर, गाय, बैल, कुते आदि पालतू पशु थे.

व्यापार व उद्योग (Trade and industry)

चीनी हस्तकला एवं उद्योग के अंतर्गत रेशम तैयार करना और कपड़ा बुनना प्रमुख था. अन्य महत्वपूर्ण उद्योग चीनी मिट्टी के बर्तन बनाना था.

चीन से नमक, मछली, लोम, सूती तथा रेशमी कपड़ो का व्यापार बड़े पैमाने पर होता था. प्राचीन बेबीलोन, मिस्र  एवं भारत से चीनी लोग विभिन्न वस्तुओं का व्यापार करते थे.

चीनी सभ्यता में लोगों का धार्मिक जीवन (Religious life of people in Chinese civilization)

चीनी लोग प्रकृति के उपासक थे. वे सूर्य चन्द्रमा, पृथ्वी, आकाश, वर्षा की पूजा करते थे. चीन में राजा को परमात्मा का पुत्र माना जाता था.

वे जादू टोना, बलि आदि में भी विशवास करते थे. कालान्तर में चीनवासियों की धार्मिक विचारधारा क्न्फ्युशियस के सुधारवादी एकेश्वरवाद एवं लाओत्से की शाश्वत आत्मा के ताओवाद तथा बौद्ध धर्म से प्रभावित हुई.

ज्ञान एवं विज्ञान (Knowledge and science)

प्राचीन चीनी सभ्यता में ज्ञान विज्ञान की खूब उन्नति हुई. कागज, छापाखाना, स्याही, बारूद, चित्रकला तथा दिशासूचक यंत्र का आविष्कार सर्वप्रथम चीन में हुआ. कन्फ्यूशियस और लाओत्से चीन के महान विचारक थे. लीयो वहां का प्रसिद्ध कवि था.

चीन की दीवार का इतिहास (History of The Great Wall of China)

चीन की दीवार चीनी सभ्यता की स्थापत्य कला का विश्व प्रसिद्ध नमूना है. इसका निर्माण चीन के शासक शीहवांगती द्वारा हूणों के निरंतर आक्रमणों से रक्षा के लिए करवाया था.

यह दीवार 1800 मील लम्बी व 20 फीट चौड़ी व 20 फीट ऊँची है. इस दीवार पर थोड़ी थोड़ी दुरी पर बुर्ज जैसे छोटे छोटे किले बने हुए है.

प्राचीन चीनी सभ्यता में भोजन

जिस प्रकार आज भी समाज में गरीब वर्ग और अमीर वर्ग में काफी ज्यादा अंतर है, उसी प्रकार प्राचीन चीन की सभ्यता में भी गरीब वर्ग और अमीर वर्ग में काफी ज्यादा अंतर था।

प्राचीन चीन की सभ्यता में जो अमीर वर्ग के लोग थे वह अच्छी क्वालिटी के भोजन को खाते थे जिसमें मुख्य तौर पर वह भोजन करने के लिए मछली, मांस तथा दूसरे मांसाहारी चीजों का इस्तेमाल करते थे।

क्योंकि उस टाइम में खेती करना उतना ज्यादा प्रचलित नहीं था। इसके अलावा प्राचीन चीन की सभ्यता में जो अमीर वर्ग के लोग थे वह कांसे से बनी हुई तश्तरी में खाना खाने का काम करते थे,

वही प्राचीन चीनी सभ्यता में जो लोग गरीब समुदाय से संबंध रखते थे, वह मुख्य तौर पर बाजरे की रोटी या फिर ज्वार की रोटी खाते थे। इसके अलावा वह खाने को खाने के लिए पेड़ों के पत्तों का इस्तेमाल करते थे।

प्राचीन चीनी सभ्यता में कपड़े पहनने का ढंग 

चीन के लोगों को प्राचीन काल से ही कपड़े पहनने का और गहने पहनने का काफी ज्यादा शौक था। प्राचीन चीन की सभ्यता में अगर लोगों के कपड़े पहनने के ढंग के बारे में बात की जाए तो वह जूट से बने हुए कपड़े पहनते थे.

धीरे-धीरे जैसे जैसे उन्हें आधुनिकता का ज्ञान होता गया है वैसे वैसे जूट से बने हुए कपड़े की जगह पर वह सूती कपड़ों से बने हुए कपड़े पहनने लगे

महिलाओं की बात करें तो महिलाएं फूलों का इस्तेमाल अपने शरीर को सजाने के लिए करती थी। इसके अलावा वह बड़े पैमाने पर फूलों से बने हुए इत्र का इस्तेमाल भी करती थी, जो तब के टाइम में घर पर ही बनाया जाता था।

प्राचीन चीनी सभ्यता में मुद्रा और सिक्के

प्राप्त जानकारी के अनुसार प्राचीन चीनी सभ्यता में सोने और चांदी के सिक्के का चलन पांचवी शताब्दी में शुरू होना माना गया है। हालांकि इसके बारे में कोई सटीक प्रमाण उपलब्ध नहीं है,

वहीं अगर कागज के आविष्कार के बारे में बात की जाए तो ऐसा कहा जाता है कि जब कागज का आविष्कार हो गया तो उसके बाद धीरे-धीरे चीन में सोने और चांदी के सिक्कों से लेनदेन करना बंद कर दिया गया और उसकी जगह पर कागजी मुद्रा को लेनदेन के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा।

वर्तमान के टाइम में चीन में कागजी मुद्रा का इस्तेमाल लेनदेन करने के लिए किया जाता है। हालांकि यहां तक पहुंचने के लिए काफी लंबा समय चीन के निवासियों को इंतजार करना पड़ा।

प्राचीन चीनी सभ्यता में भवन निर्माण कला

आज की जितनी एडवांस टेक्नोलॉजी प्राचीन चीन में नहीं थी परंतु चीन के लोगों के अंदर घरों को बनाने की अद्भुत कला थी। मुख्य तौर पर प्राचीन चीनी सभ्यता के लोग अपने घरों को बनाने के लिए पत्थर का, चुने का और लकड़ी का इस्तेमाल करते थे, क्योंकि यह तीनों चीजें ही उन्हें जंगलों से बड़ी आसानी से प्राप्त हो जाया करती थी।

आपने सायद चीन की दीवार के बारे में सुना ही होगा। इसका निर्माण भी इन्हीं सब चीजों को मिलाकर के किया गया है। वर्तमान के समय में इसे दुनिया के आठ आश्चर्य में भी शामिल किया गया है, जो चीन के लोगों के अंदर मौजूद भवन निर्माण की कला को प्रदर्शित करता है।

प्राचीन चीनी सभ्यता में चित्रकला 

आज भी चीन में कई जगह पर खुदाई के दरमियान ऐसे कई मंदिरों की दीवारें प्राप्त होती है जिसमें काफी बढ़िया चित्रकारी के नमूने हमें दिखाई देते हैं।

इस प्रकार से हम यह कह सकते हैं कि प्राचीन चीनी सभ्यता के लोगों को चित्रकारी करने की अच्छी कला आती थी और वह अपने हुनर का इस्तेमाल करके दीवारों पर अच्छी-अच्छी चित्रकारी करते थे।

चीन में प्राप्त कुछ चित्रकारी को तो देखने के बाद ऐसा लगता है जैसे उसमें चित्र बनाने वाले व्यक्ति ने जान फूंक दी हो।

प्राचीन चीनी सभ्यता में मूर्ति कला 

प्राचीन चीन के लोगों को तो अच्छी चित्रकारी आती थी, साथ ही वह मूर्ति बनाने की कला में भी निपुण थे और यही कारण है कि आज भी दुनिया में जो अच्छी मूर्ति दिखाई देती है, उनमें कहीं ना कहीं चीन के कारीगरों का ही हाथ होता है।

चीनी सभ्यता के लोग मूर्तियां बनाने के लिए मिट्टी और पत्थरों का इस्तेमाल करते थे। इसके अलावा वह मरे हुए हाथी के दांतों का इस्तेमाल भी मूर्ति बनाने के लिए करते थे।

प्राचीन चीनी सभ्यता में साइंस और गणित का विकास

बता दें कि प्राचीन चीन के लोग जीरो के बारे में कुछ भी नहीं जानते थे क्योंकि जीरो का आविष्कार भारतीय गणितज्ञ आर्यभट्ट ने किया था।

हालांकि हम इतना कह सकते हैं कि वह काफी जल्दी दशमलव के बारे में जानने लगे थे। इसके अलावा वह अंकों के बारे में भी जानते थे। इसीलिए अबेकस का आविष्कार उन्होंने कैलकुलेटिंग करने के लिए किया था। 

यूरोप के लोगों को जब तक पाई की जानकारी हासिल हुई थी, उसके पहले ही चीन के लोगों ने पाई के बारे में जानकारी हासिल कर ली थी और उन्होंने पाई का मान निकालने में भी सफलता हासिल कर ली थी।

इसके अलावा वह ज्योतिष के बारे में भी काफी कुछ जानते थे। प्राचीन चीनी सभ्यता के लोग ज्योतिस साइंस का इस्तेमाल करके चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण जैसी घटनाओं के बारे में भी जानकारी हासिल कर लेते थे। बता दें कि, प्राचीन चीन की सभ्यता के लोग ने “सौर पंचांग” को भी बनाया था।

चीनी दर्शन (Chinese philosophy)

छठी शताब्दी ई पू के मध्य में चीन के प्रसिद्ध दार्शनिक कन्फ्यूशियस के उदय के साथ ही चीन की सभ्यता का दार्शनिक युग प्रारम्भ हुआ. इस युग में पांच बड़े दार्शनिक पैदा हुए.

कन्फ्यूशियस, मो त्जू, लाओत्से, मेंजिश्यस और स्नु त्जू. कन्फ्यूशियस सबसे पुराना व सबसे प्रभावशाली विचारक था. उसका जन्म 551 ई पू में ली राज्य में हुआ.

उसे चीनी भाषा में कुंग जु अथवा ऋषि कुंग कहा जाता हैं. वह 17 वर्ष की आयु में ही ची राज्य में कर वसूल करने तथा राजकीय भूमि की देखभाल के लिए नियुक्त किया गया.

धीरे धीरे वह राजकीय नौकरी में सर्वोच्च पद पर पहुच गया. लेकिन राजा के अनैतिक आचरण से ऊब कर उसने नौकरी से त्याग पत्र दे दिया.

कन्फ्यूशियस ने स्वयं कोई ग्रन्थ नहीं लिखा मगर उसके द्वारा प्रणीत 5 ग्रंथ पंचनिन या चिंग कहलाते हैं. उसकी सूक्तियों का संग्रह एनेलेक्ट्स कहा जाता हैं. जिसका संकलन उसके शिष्यों द्वारा उसकी मृत्यु के बाद किया गया.

कन्फ्यूशियस की विचारधारा के उदार पक्ष को लोकप्रिय बनाने का श्रेय उसके शिष्य मेंशियस को दिया जाता हैं. कन्फ्यूशियस की रूचि मुख्यतः नैतिक और राजनीतिक दर्शन में थी. महात्मा बुद्ध के समान उसने आत्मा परमात्मा और स्वर्ग नरक के विषयों पर विचार नहीं किया.

मो त्जू का जन्म उसी वर्ष हुआ जिस वर्ष कन्फ्यूशियस का निधन हुआ था. वह सुंग राज्य के सैनिक विभाग में रक्षामंत्री और अर्थशास्त्र का विशेषज्ञ था. ताओवाद के प्रतिपादक लाओत्से का प्रारम्भिक नाम एहल तन और वंश लि था.

लाओत्से उसकी उपाधि थी. जनश्रुतियों के अनुसार वह कन्फ्यूशियस का समकालिक था और दोनों के मध्य एक बार भेंट भी हुई थी. वह राज्य में राजकीय अभिलेखागार का अध्यक्ष तथा प्रमुख इतिहासकार था.

जब उसे लगा कि राज्य में नैतिक मूल्यों में बुरी तरह गिरावट आ गई है तो वह राज्य छोडकर चल दिया. वह घाटी पार करने ही वाला था तब घाटी के पहरेदार ने उससे कहा कि तुम अब राज्य छोड़कर जा रहे हो तो मेरे आग्रह पर अपने विचार लिखकर छोड़ जाओ.

लाओत्से ने उस समय लाओ ते चिंग की रचना की. लाओत्से के दर्शन को ताओवाद कहा जाता हैं. ताओवाद कन्फ्यूशियसवाद की विरोधी विचारधारा हैं.

इस विचारधारा ने कन्फ्यूशियसवाद के शिष्टाचार एवं कर्मकांड, नीतिशास्त्र एवं बौद्धिकता की कटु आलोचना की. यह सामाजिक उत्थान तथा सभ्यता के विकास में कोई दिलचस्पी नहीं रखता था.

इसके विपरीत मनुष्यों को अपनी नैसर्गिक आदिम अवस्था में लौटने का आदेश देता था. ताओवाद के अनुसार वास्तविक जगत को इन्द्रियों द्वारा न तो देखा जा सकता है और न ही अनुभव किया जा सकता हैं. इस प्रकार कुछ अंशों में यह भारतीय दर्शन के शंकराचार्य के मायावाद से मिलता जुलता हैं.

फाचिया या विधिवादी सम्प्रदाय का सबसे प्रसिद्ध दार्शनिक हान फेई त्जू था. हान फेई त्जू तथा उसके अनुयायी कन्फ्यूशियस के इस विचार के विरोधी थे कि राजा सुचरित्र का आदर्श प्रस्तुत कर जनता को सुपथ पर ला सकता हैं.

उनका मानना था कि मनुष्य स्वभाव से ही दुष्ट प्रवृत्ति का होता है और उसे कानूनों के द्वारा ही सुधारा जा सकता हैं. कहा जाता है कि इस सम्प्रदाय के दो प्रधान स्तम्भों लार्ड शांग तथा ली स्सू द्वारा विकसित आदर्शों के आधार पर ही शी हुआंग टी ने चाऊ वंश का विनाश कर समस्त चीन को एक सूत्र में आबद्ध कर प्रथम साम्राज्य की स्थापना की.

चीनी सभ्यता की देन

चीन ही एक ऐसा देश है जहाँ पर सैनिक होना अपमानजनक समझा जाता हैं. बारूद का प्रयोग उनके द्वारा विध्वंसकारी कामों के स्थान पर आतिशबाजी और आमोद प्रमोद के लिए किया जाता हैं.

इस प्रकार विश्व शान्ति का संदेश देते हुए चीन की सबसे बड़ी देन हैं. चीनी की दूसरी महत्वपूर्ण देन है उनका व्यापक दृष्टिकोण. वे लोग उदारवादी थे और जातीय अथवा धार्मिक मतभेदों पर विशेष ध्यान नही देते थे. यही कारण है कि चीन में सदा एक भाषा और एक लिपि रही.

पेन्सिल, कागज, छापाखाना, बारूद, रेशम, दिशा सूचक यंत्र, कागजी मुद्रा, ताश के पत्ते, चीनी मिट्टी के बर्तन, चाय, रेशम के कीड़े पालने की विधि, लकड़ी पर लाख की रंगाई और चित्रकारी, चन्द्र की गति के आधार पर पंचाग बनाना, पहिये वाली गाड़ी, नहरों के जल को नियंत्रित करने वाले द्वार आदि वस्तुएं चीन ने विश्व को दी हैं.

विश्व संस्कृति को चीनी सभ्यता का एक अत्यंत दुर्लभ योगदान राज्य समाजवाद हैं. सरकार का किस्सों, नमक और लोहे पर एकाधिकार था.

कम मूल्य के समय सरकार इन वस्तुओं को खरीद कर अधिक मूल्य के समय बेच देती थी. वह जनता से पांच प्रतिशत आय कर भी वसूल करती थी.

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