बढ़ती भौतिकता घटते मानवीय मूल्य पर निबंध | essay on Increasing materialism reducing human values in hindi

बढ़ती भौतिकता घटते मानवीय मूल्य पर निबंध essay on Increasing materialism reducing human values in Hindi

बढ़ती भौतिकता घटते मानवीय मूल्य पर निबंध | essay on Increasing materialism reducing human values in hindi

 उपभोक्तावादी संस्कृति का प्रसार– आज के वैज्ञानिक युग में उपभोक्तावादी संस्कृति बढ़ रही हैं. अब पुराने रहन सहन धार्मिक आध्यात्मिक जीवन एवं सात्विक आचरण को पुराणपंथी तथा ढोंग बताया जाता हैं.

भौतिकतावादी प्रवृत्ति उत्तरोतर बढने से अब मौज मस्ती एशो आराम फैशनपरस्ती एवं अंधानुकरण को जिन्दगी का सर्वश्रेष्ट पक्ष माना जा रहा हैं.

यह भौतिकतावादी संस्कृति कुछ तो पाश्चात्य देशों से आयतित हैं तथा कुछ नई सभ्यता की होड़ा होड़ी से चल रही हैं. इस भौतिकतावादी प्रवृत्ति के कारण सामाजिक जीवन वितृष्णा से आक्रान्त हो रहा हैं, साथ ही मानवीय मूल्यों का पतन व हास भी हो रहा हैं.

भौतिकता का व्यामोह– भौतिकतावादी प्रवृत्ति वस्तुतः चार्वाक मत का नया रूप हैं. आज हर आदमी अपनी जेब का वजन न देखकर मोबाइल, टेलीफोन, टेलीविजन, फ्रिज, कूलर, कार आदि भौतिक साधनों की जुगाड़ में लगा रहता हैं.

बैंकों से अथवा उत्पादक कम्पनियों से ऋण लेकर व्यक्ति इनकी पूर्ति कर लेता हैं, परन्तु वह ऋण चुकाने के चक्कर में वह कितना परेशान रहता हैं यह हर कोई जानता हैं.

फैशन के अनुसार कपड़े पहनना, जूते पहनना, सिगरेट, शराब पान आदि का सेवन करना, कोल्ड ड्रिक एवं मिनरल वाटर का अभ्यस्त बनाना, क्लब व किटी पार्टी को अपनी इज्जत का प्रतीक मानना तथा भौतिक सुविधाओं को जिन्दगी का सच्चा सुख बताना आज मुख्य सिद्धांत बन गया हैं. इस तरह निम्न मध्यम वर्ग से लेकर उच्च वर्ग तक भौतिकता का व्यामोह फ़ैल रहा हैं.

बढ़ती भौतिकता का कुप्रभाव– भौतिकता के साधनों की पूर्ति से अनेक कुप्रभाव देखे जा रहे हैं. इससे निम्न मध्यम वर्ग की आर्थिक स्थिति बिगड़ रही हैं, ऋण बोझ बढ़ रहा हैं. फलस्वरूप परिवार में अशांति व कलह बढ़ रहा हैं. ऋण मुक्ति की खातिर मानसिक तनाव बढ़ने से आत्महत्या तक की जा रही हैं.

अब सामाजिक दायित्व का निर्वाह न करना, आपसी सम्बन्ध न मानना, यांत्रिक जीवन की नीरसता से कुंठित रहना इत्यादि अनेक कुप्रभाव देखने को मिल रहे हैं. कर्मचारियों के द्वारा रिश्वत लेना, गबन तथा फरेब करना, भ्रष्टाचार को शिष्टाचार मानना भी बढ़ती भौतिकता का ही कुप्रभाव हैं.

भौतिकता से मानवीय मूल्यों का हास– भौतिकता की प्रवृत्ति के कारण सर्वाधिक हानि मानवीय मूल्यों की हुई हैं. अब राह चलती महिलाओं से छीना झपटी करना, भाई बन्धुओं की सम्पति हडपने का प्रयास करना, बलात्कार, धोखाघड़ी, मक्कारी, सहानुभूति संवेदना न रखना, अस्त्याचरण, दूध घी आदि में मिलावट करना, प्रबल स्वार्थी भावना रखना आदि अनेक बुराइयों से सामाजिक सम्बन्ध तार तार हो रहे हैं. इसी प्रकार आज सभी पुराने आदर्शों एवं मानवीय मूल्यों का पतन हो रहा हैं.

उपसंहार– आज भौतिकतावाद का युग हैं. भौतिकता की चकाचौंध में मानव इतना विमुग्ध हो रहा हैं. कि  वह मानवीय अस्मिता को भूल रहा हैं.

इस कारण सामाजिक जीवन पर कुप्रभाव पड़ रहा हैं.और मानव मूल्यों एवं  आदर्शों का लगातार हास हो रहा हैं. यह स्थिति मानव सभ्यता के लिए चिंतनीय हैं.

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