कविवर बिहारी का जीवन परिचय | Hindi Poet Bihari Das biography
biography Of Bihari Das In Hindi– कविवर बिहारी जिन्हें बिहारीलाल भी कहा जाता हैं रीतिकाल के प्रतिनिधि कवि हुए हैं. श्रृंगार रस की चमत्कारपूर्ण करने वालों में इनका नाम सबसे पहले आता हैं. बिहारी का जन्म ग्वालियर के पास बसुआ गोविंदपुर के माथुर चतुर्वेदी परिवार में वर्ष 1595 में हुआ था. विभिन्न राजाओ के प्रश्रय में रहने वाले बिहारी ने अपने राजा की की महिमा कि खातिर कई रचनाएँ लिखी. बिहारी ने कई निति के दोहे लिखे हैं, जिन्हें आज के हिंदी साहित्य प्रेमी पढना बहुत पसंद करते हैं.
कविवर बिहारी
- नाम– बिहारीदास
- जन्म-1595
- जन्म स्थान – ग्वालियर
- प्रसिद्ध रचनाएँ- सतसैया
- आश्रयदाता– शाहजहाँ, जयसिंह
- मृत्यु – 1663
Bihari Das biography
1595 में जन्मे बिहारी के पिता का नाम केशवराय था, जो प्रसिद्ध हिंदी कवि केशवदास से भिन्न थे. बचपन में बिहारी को संस्कृत,प्राकृत और ज्योतिष के अध्ययन का सुयोग प्राप्त हुआ. बाद में बिहारी वृन्दावन आए और निम्बार्क समप्रदाय में राधा कृष्ण भक्ति की दीक्षा ली. इनकी काव्य प्रतिभा से प्रसन्न होकर शाइजादा खिर्र्म जो शाहजहाँ के नाम से विख्यात हुआ वह बिहारी को दिल्ली ले आए.
वहाँ इन्हे शाही दरबार में प्रतिष्टा मीली. जिन्हें कई हिन्दू राजाओं ने भी सम्मान दिया.
जयपुर आमेर के राजा मिर्जा राजा जयसिंह ने इनकी वार्षिक वृति बाँध दी. एक बार जब ये अपनी वृति लेने आमेर पहुचे तो वहाँ राजा जयसिंह, नवोढा रानी के अनुराग में इस तरह आसक्त थे कि राजकाज ही भुला बैठे. राजा को सचेत करने के लिए बिहारी ने यह दोहा लिखकर उनके पास भिजवाया.
”नाहि पराग नहि मधुर मधु नहि विकास इहि काल |
अली,कली ही सों बिंध्यो आगे कौन हवाल ||
यह दोहा पढ़कर जयसिंह की आँखे खुल गईं.
इस अन्योकित ये बहुत प्रभावित हुए. प्रसन्न होकर बिहारी को पुरूस्कार के रूप में एक जागीर भेट कर दी. फिर बिहारी स्थायी रूप से आमेर में ही रहने लगे. इन्होने राजा जयसिंह के कहने पर सात सौ दोहें लिखे, जो सतसैया के नाम से विख्यात हैं.
इनका निधन 1663 में हुआ.
बिहारी का काव्य परिचय
बिहारी की एकमात्र कृति सतसैया प्रसिद्ध हैं. इसमे कुल 713 दोहे हैं. इस पर शताधिक टीकाएँ लिखी जा चुकी हैं. पूर्ण बिहारी रत्नाकर नाम से प्रसिद्ध बाबू जगन्नाथदास रत्नाकर की टीका उत्क्रष्ट हैं. सतसैया में भक्ति, निति, हास्य व्यग्य, वीरता, राज प्रशस्ति, धर्म, सत्संग महिमा एवं श्रृंगार का वर्णन दोहों में किया हैं. कुछ कवित्त भी उनके द्वारा रचे बताए जाते हैं. परन्तु प्रमाणिकता नही हैं. एक ही रचना सतसैया से बिहारी को इतनी ख्याति मिली.
यह उनकी काव्यगत उत्कृष्टता का ज्वलंत प्रमाण हैं.
भाव पक्ष
बिहारी मुख्यत श्रंगारी कवि थे.
नायिकाओं के रूप-सौन्दर्य,पूर्वानुराग, मान प्रवास आदि के चमत्कारपूर्ण चित्र उनकेकाव्य में मिलते हैं. लज्जा,मंद, अवहित्था, हर्ष, विबोध आदि संचारी भावों और नायक नायिका की चेष्टाओ या अनुभावों का जैसा वर्णन सतसई में मिलता हैं. वह अन्यत्र दुर्लभ हैं. संयोग श्रृंगार में कवि का मन विशेष रूप से रमता हैं. फारसी पद्दति अपनाने के कारण नायिकाओं के विरह वर्णन अस्वभाविक हो उठे हैं.
भक्तिपरक दोहों में वर्णित भक्तिभाव में भक्त कवियों जैसा इश्वर प्रेम और अनन्य भाव दिखाई पड़ता हैं.
कला पक्ष –
बिहारी उच्च कोटि के काव्य शिल्पी थे. दोहा जैसे छोटे छंद में चुन-चुनकर व्यजंक शब्दों का प्रयोग करके कवि ने अर्थगांभीर्य कौशल दिखाया हैं. समास पद्दति अपनाकर भाषा की समाहार शक्ति से काम किया हैं. इसलिए कहा जाता हैं. बिहारी ने गागर में सागर भर दिया हैं. उनकी ब्रजभाषा इतनी सशक्त और शुद्ध हैं. कि आलोचकों ने बिहारी को मध्यकाल की मानक काव्यभाषा के रूप में स्वीकार किया हैं. अलंकारो का समुचित प्रयोग, प्रंसगानुकुल मधुर व्यजंक पदावली, सांकेतिक अभिव्यजना शैली ऐसी विशेषताएँ हैं. जो बिहारी को रीतिकाल में सर्वोत्तम स्थान दिलाती हैं.
उनकी भाषा में चित्रोपमता,नाद सौदर्य, लोकोक्ति एवं मुहावरों का प्रयोग सहजता से हुआ हैं. मित्रों बिहारी का जीवन परिचय यह लेख आपकों कैसा लगा, कमेंट कर जरुर बताएँ. बिहारी का जीवन परिचय अच्छा लगा हो तो अपने दोस्तों के साथ जरुर शेयर करे. आपके पास किसी हिंदी साहित्यकार के जीवन परिचय के बारे में सामग्री उपलब्ध हो तो हमारे साथ जरुर शेयर करे.
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