भाई दूज पर निबंध 2024 | Essay On Bhai dooj In Hindi

नमस्कार आज का निबंध भाई दूज पर निबंध 2024 Essay On Bhai dooj In Hindi पर दिया गया हैं. दिवाली के बाद भाई बहिन का यह पर्व मनाया जाता हैं.

आज के सरल निबंध में हम भाई दूज अथवा भैया दूज की कहानी क्यों और कब मनाते है इसके महत्व पर स्टूडेंट्स के लिए पर्व के बारे में जानकारी दी गई हैं.

भाई दूज पर निबंध 2024 Essay On Bhai dooj In Hindi

भाई दूज पर निबंध 2024 Essay On Bhai dooj In Hindi

हमारा देश त्यौहारो का देश कहा जाता है, यहाँ हर महीने कोई न कोई पर्व या उत्सव अवश्य मनाया जाता है. भारत के मुख्य त्योहारों में होली, दीपावली, ईद और रक्षाबन्धन की गिनती की जाती है.

दीपावली का त्यौहार इनमे सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है. जो कार्तिक महीने में पांच दिनों तक मनाया जाता है. जिनका पांचवा दिन भैया दूज का होता है, इसे यम दितीया भी कहा जाता है.

यह त्यौहार भाई बहिन के प्रेम पर आधारित है. इसे मनाने के पीछे जुड़ी मान्यता के अनुसार बहिन अपने भाई की सभी विपतियों का हरण कर भाई के दीर्घायु की कामना करती है.

भाई बहिन के अगाध प्रेम पर आधारित इस भाई दूज के अवसर पर सभी विवाहित बहिने भाई दूज पर अपने भाई को घर आने का न्यौता देती है.

साथ ही पूर्ण विधि-विधान के साथ पाठ पूजा कर भाई को प्रेम पूर्वक भोजन करवाती है तथा इस दिन बहिन अपने भाई को तिलक लगाकर उपहारस्वरूप कुछ भेट भी देती है.

जिस तरह रक्षाबंधन के दिन भाई अपने बहिन का आदर सत्कार करता है. भाई दूज के दिन बहिन बचपन से अपने साथ खेलने और साथ में जीवन बिताने वाले भाई के साथ पुराने पलों को याद करती हुई अपना प्रेम प्रकट करती है.

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार भाई दूज का पर्व दीपावली के ठीक दो दिन बाद कार्तिक महीने की शुक्ल द्वितीय को मनाया जाता है. इसके साथ ही पंचदिवसीय दीवाली की धूम भी भाई दूज अर्थात यम द्वितीया के दिन समाप्त हो जाती है.

भाई दूज की कथा और मनाने का महत्व (Bhai Dooj Ki Katha Aur Manane Ka Mahatv)

कहा जाता है भगवान् सूर्यदेव (रवि) ने समजना नामक युवती से विवाह किया था. जिन्होंने अपने विवाह के एक साल बाद दौ जुड़वाँ बच्चों को जन्म दिया.

रवि ने इनके नाम यम और यमुना रखा. लम्बे समय तक समजना द्वारा अपने पति के साथ न रह पाने के कारण उन्होंने धरती पर रहने का निश्चय किया. मगर वह अपने पति के साथ छाया के रूप में बनी रही. उसी समय उनके पुत्र भी साथ-साथ खाते पीते बड़े हो गये.

उस छाया को समजना से इर्ष्या होने लगी, सूर्यदेव से उनके पुत्रों यम और यमुना को दूर करने के लिए अतः उन्होंने अपने पुत्रो को जन्म दिया और यम और यमुना के साथ पर भेज दिया. यमुना धरती पर आकर नदी के रूप में बहने लगी, तथा यम यमलोक चले गये जहाँ की सता उन्हें प्राप्त हो गई.

कई सालों तक यम और यमुना अलग अलग रहने लगे एक बार यम ने अपनी बहिन से मिलने का निश्चय किया. जब यमुना के घर भाई आए तो उन्होंने ठाठ बाट से उनका स्वागत किया तथा एक बड़ी दावत दी.

यह अवसर दीपावली के दौ दिन बाद का था. जब भाई के वापिस जाने का वक्त हुआ तो वह बहिन के पास गये और बोले आपने मेरा बहुत आदर सम्मान किया. इसके बदले में मै आपकों क्या उपहार दू.

बहिन ने कहा मुझे उपहार कुछ नही चाहिए इस दिन प्रत्येक बहिन को उनके भाई के दर्शन सुलभ हो. उन्हें भाई दूज के दिन अपनी बहिन को जरुर याद करना चाहिए.

तभी यमराज बोले- बहिन भाई दूज के दिन जो भी भाई अपनी बहिन के लिए भेट लेकर जाएगे, उन्हें स्वस्थ जीवन की प्राप्ति होगी.

भाईदूज की पूजा विधि (Bhai Dooj Puja Vidhi)

भाई दूज के दिन ऐपन का बड़ा महत्व है. जो बहिन स्वयं अपने हाथो से मिट्टी या कागज का मुर्तिरुपी संकेतक तैयार करती है. सुबह जल्दी उठने के पश्चात नहा-धोकर ऐपन जिनमे अधिकतर लोग सात बहिने और उनके एक भाई के संकेत के रूप में आकृतिया तैयार करती है.

पास में रखी लकड़ी की डंडी जिन्हें मूसल कहा जाता है. इससे बिच्छु व कीटों पर प्रहार करती है. प्रतीक के रूप में इस परम्परा के द्वारा बहिन अपने भाई के जीवन में आने वाली सभी समस्याओं को समाप्त कर भाई की दीर्घायु और जिन्दगी में उन्नति के लिए ईश्वर से प्रार्थना करती है.

भैया दूज की कहानी और निबंध क्यों मनाया जाता है भाई दूज का त्योहार

भाई दूज हिन्दुओं का एक महत्वपूर्ण त्योहार है इसे भैया दूज भी कहा जाता हैं. हिन्दू कलैंडर के अनुसार कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को मनाए जाने वाले भैया दूज को भाई बहिन का त्योहार भी माना जाता हैं.

यह दिवाली के पांच दिनों के पर्व का आखिरी दिन होता हैं, जो बड़ी दिवाली के दो दिन बाद पड़ता हैं. इस पर्व की को मनाने की मान्यता के अनुसार बहिन अपने भाई को घर बुलाकर उनकी सेवा साकरी करती है तथा उनकी लम्बी आयु के लिए भगवान से कामना करती हैं.

एक पौराणिक कथा के अनुसार नारायण की पत्नी का नाम छाया था, जिनकें गर्भ से एक युवक एवं एक युवती का जन्म हुआ, जिनका नाम क्रमशः यमराज और यमुना रखा गया था. बहिन यमुना अपने भाई यमराज से बेहद लगाव रखती थी.

बहिन को बड़ी होने पर शादी करके ससुराल भेज दिया गया. यमुना बराबर अपने भाई को घर आकर भोजन करने का न्यौता देती रही.

यमराज उन्हें जरुर आउगा कह कहकर इसे टालता रहा. यमुना ने यमराज को एक दिन सौगंध दिलाकर आने का न्यौता दिया, वह दिन था कार्तिक शुक्ल द्वितीया का.

इस बार यमराज से भी काफी सोचा आखिर लोग मुझसे भयभीत रहते है, मुझसे बात तक नही करते. मगर एक बहिन ही है जो निरंतर कई वर्षों से मुझे बुला रही है तथा अपने घर आकर भोजन करने का न्यौता दे रही हैं.

भाई के धर्म को अदा करने का वक्त आ चूका है अतः उसने अपनी कारागृह में बंदी सभी जनों को मुक्त कर यमुना के घर पंहुचा. जब यमुना ने साक्षात् अपने भाई को देखा तो वह विश्वास नही कर पाई. उनके कई वर्षों का सपना आज पूर्ण होने जा रहा था. वह नहा धोकर भाई के लिए स्वादिष्ट भोजन तैयार करके लाई.

इस तरह यमराज ने यमुना के घर बेहद आदर सत्कार के साथ भोजन ग्रहण किया, तत्पश्चात उन्होंने यमुना से कहा बहिन आप क्या चाहती है अपना वरदान मांगों, तब यमुना ने कहा आप इसी दिन हर साल मेरे घर आकर भोजन ग्रहण करो.

तब यमराज ने कहा. यह दिन यम द्वितीया अर्थात भाई दूज का दिन कहलायेगा. इस दिन जो बहिन अपने भाई को घर बुलाकर आदर सत्कार से भोजन कराकर उन्हें टीका करेगी उन्हें मृत्यु का भय नही रहेगा, यह मेरा वरदान हैं.

इसी कहानी और मान्यता के चलते आज भी भाई दूज के दिन बहिनें अपने भाई को घर आकर भोजन करने का न्यौता देती है उन्हें तिलक लगाती है तथा लम्बी आयु की कामना करती हैं.

बदले में भाई उन्हें बहुमूल्य उपहार भेट कर बहिन का धन्यवाद करता हैं. माना जाता है कि ऐसा करने से मृत्यु का भय दूर हो जाता हैं.

यदि भाईदूज के दिन बहिन अपने हाथों से खाना बनाकर परोसकर भाई को खिलाती है तो ऐसा माना जाता है कि उन्हें लम्बी आयु मिलती है तथा जीवन में व्याप्त सभी दुखों व कठिनाइयों से छुटकारा मिल जाता हैं. 

जहाँ तक संभव हो हर भाई को इस दिन अपनी बहिन का अतिथि बनना चाहिए, यदि सगी बहिन न हो तो चचेरी या ममेरी बहिन भी हो सकती हैं. 

इस दिन के भोजन में मुख्य रूप से चावल को अच्छा माना गया हैं, भोजन के आसन पर बैठने के बाद भाई को गंगा यमुना लक्ष्मी गाय अथवा किसी स्त्री शक्ति का ध्यान लगाना चाहिए. भाई दूज का दिन कई स्थानों पर गोधन कूटने के रूप में भी जाना जाता हैं. 

इस दिन गाय के गोबर की बनी मूर्ति पर इट रखकर इसे मुसल के साथ तोड़ने की प्रथा हैं. इस तरह रक्षाबन्धन के बाद मनाये जाने वाले भाई दूज का पर्व भाई बहिन का दूसरा सबसे बड़ा पर्व है इस दिन यमुना एवं उनके भाई यमराज की पूजा करने का विधान हैं.

Short Essay on Bhai Dooj in Hindi

दिवाली को हिन्दू धर्म का सबसे प्राचीन एवं महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है यह कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी तिथि कार्तिक शुक्ल द्वितीया तक दो दिनों तक मनाया जाता हैं. 

इसका पहला दिन धनतेरस और अंतिम दिन भाई दूज के रूप में मनाया जाता हैं, इसे यम द्वितीया भी कहा जाता हैं. यह पर्व पूर्ण रूप से भाई बहिन के प्रेम एवं उनके रिश्ते पर आधारित है, जिनमें धार्मिक आस्था, विशवास एवं परम्परा का जुड़ाव भी हैं. 

सभी सम्बन्धों के अपने अपने दिन एवं पर्व होते हैं. भाई बहिन का रिश्ता सबसे पवित्र माना गया हैं. श्रावण पूर्णिमा को रक्षाबन्धन के बाद भाइयों और बहिनों के त्योहार के रूप में भाई दूज का पर्व मनाया जाता हैं. यह दिवाली के दो दिन बाद मनाया जाता हैं.

भाई दूज कैसे मनाते हैं- यह दिवाली का अंतिम दिवस एवं पर्व होता है मुख्य रूप से यह विवाहित बहिनों द्वारा ही मनाया जाता हैं. चूँकि अविवाहित बहिन अपने माता-पिता के घर ही रहती है इसलिए वह इस परम्परा का निर्वहन नही कर पाती हैं.

विवाहित बहिने इस दिन अपने भाई के घर जाकर उन्हें अपने यहाँ आने का न्यौता देती हैं. भाई द्वारा बहिन के घर आने पर वह प्रेम पूर्वक उन्हें भोजन कराती है टीका लगाकर उनकी लम्बी आयु की कामना करती हैं. 

भाईदूज की कहानी एवं कई पौराणिक प्रसंग देश के विभिन्न भागों में प्रचलित है मुख्य रूप से इसे यमराज एवं बहिन यमुना की कहानी से जोड़कर देखा जाता हैं.

भैयादूज की मान्यता -इस दिन यमुना स्नान को पवित्र माना गया हैं प्रचलित मान्यता के मुताबिक़ बहिन अपने भाई को तिलक लगाकर भोजन कराती है बदले में भाई उन्हें कुछ उपहार भी देता हैं.

इस तरह यह दो महत्वपूर्ण सम्बन्धों को और अधिक प्रगाढ़ करने वाला उत्सव भी हैं. बहिन अपने सौभाग्य एवं भाई इस पर्व से लम्बी आयु की दुआ प्राप्त करते हैं.

भाई दूज त्यौहार क्या है?

भाई दूज का पर्व कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को मनाया जाता है। यह त्यौहार भाई बहन को समर्पित किया गया है। भाई दूज का त्यौहार दिवाली के त्यौहार के बीत जाने के पश्चात तीसरे दिन आता है। 

भाई दूज को यम द्वितीया के नाम से भी जानते हैं और यही वजह है कि इस दिन यम देवता की पूजा अर्चना की जाती है। पौराणिक कहानी के अनुसार अगर इस दिन बहन यम देवता की पूजा करती है तो उसके भाई को अकाल मृत्यु का खतरा नहीं रहता है। पूरे भारत देश में यह त्यौहार हिंदू समुदाय के बीच धूमधाम से मनाया जाता है।

FAQ: 

Q: भैया दूज का क्या महत्व है?

ANS: इस दिन बहन अगर यम देवता की पूजा करती है तो उसके भाई को अकाल मृत्यु का खतरा नहीं रहता है।

Q: भाई दूज कैसे मनाते हैं और क्यों मनाते हैं?

ANS: इस दिन यम देवता की पूजा होती है ताकि बहन के भाई को अकाल मृत्यु का खतरा ना रहे।

Q: भाई दूज के दिन क्या करते हैं?

ANS: नहा धोकर स्वच्छ कपड़े पहनकर यम देवता की पूजा की जाती है।

Q: भाई दूज कब है?

ANS: 26 अक्टूबर

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