मेसोपोटामिया की सभ्यता | Mesopotamian Civilization In Hindi

आज हम मेसोपोटामिया की सभ्यता Mesopotamian Civilization In Hindi को पढ़े. वर्तमान के इराक कुवैत , सीरिया का क्षेत्र बेबीलोन या बेबीलोनियन /सुमेरियन सभ्यता भी कहा जाता हैं.

यह सिन्धु घाटी सभ्यता की समकालीन मानव सभ्यता थी, इसका कालक्रम 2300-2150 ई पू माना जाता हैं. आज हम मेसोपोटामिया के इतिहास को जानेगे.

मेसोपोटामिया की सभ्यता Mesopotamian Civilization In Hindi

मेसोपोटामिया यूनानी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है दो नदियों के बिच की भूमि. इस देश का आधुनिक नाम ईराक है. इस प्रदेश को दजला और फरात नदियाँ सींचती है.

मेसोपोटामिया को इसकी अर्द्धचन्द्राकार सी आकृति तथा खेती की दृष्टि से अत्यंत उर्वर होने के कारण उपजाऊ अर्धचन्द्र भी कहा जाता है.

प्राचीनकाल में मेसोपोटामिया प्रदेश के दक्षिणी भाग को सुमेर कहा जाता था जो इस सभ्यता का प्रमुख केंद्र था. सुमेर के उतर पूर्व के भाग को बाबुल (बेबीलोन) तथा अक्कद कहते थे. और उत्तर की ऊँची भूमि असीरिया कहलाती थी.

मेसोपोटामिया के राज्यों का उत्थान और पतन (Emergence and collapse of the states of Mesopotamia)

कालांतर में उतर के पर्वतीय प्रदेशों से आए सुमेरियन लोग मेसोपोटामिया में ही बस गये और उन्होंने एक अत्यंत सम्रद्ध सभ्यता का विकास किया.

सुमेरियन लोगों ने नगर राज्य की सरकार की स्थापना की. उर, लगाश, एरेक तथा एरिडू प्रसिद्ध राज्य थे. 2500 ईसा पूर्व लगभग सागाँन प्रथम ने, जो अक्कद से आया था सुमेरियन लोगों को जीत लिया. सुमेर और अक्कद दोनों राज्यों को मिलाकर उसने एक सुद्रढ़ राज्य की स्थापना की.

किन्तु 2100 ईसा पूर्व लगभग ये अक्कादियन लोग भी पराजित हो गये. बाबुल या बेबीलोन में एक नये सामी राजवंश का उदय हुआ. बेबीलोन नगर अब इस नये सम्राज्य का राजधानी केंद्र बन गया.

बेबिलोनिया के सबसे प्रसिद्ध सम्राट हब्बुराबी ने विभिन्न नगर राज्यों में होने वाली लड़ाईयां रोककर एक समस्त देश में एक जैसे कानून लागू कर दृढ राज्य स्थापित किया.

बेबिलोनिया की सभ्यता भी सुमेरियन सभ्यता पर आधारित थी. इसके अन्ततर मेसोपोटामिया में असीरियाई लोगों ने अपना सम्राज्य लगभग (1100 से 612 ईसा पूर्व) तक स्थापित किया.

असीरियाई लोगों ने सीरिया, फिलिस्तीन, फिनिशिया आदि प्रदेशों को जीतकर विशाल सम्राज्य स्थापित किया. इसके बाद काल्डियाई लोगों ने असीरियाई लोगों को पराजित कर एक दूसरे शक्तिशाली बेबीलोनियन सम्राज्य (612 ई.पूर्व से 539 ईसा पूर्व) का निर्माण किया.

किन्तु 539 ई.पू. उन्हें पारसियों के हाथों पराजित होना पड़ा. सुमेरिया, बेबिलोनिया, असीरिया तथा कोल्डिया की सभ्यताओं को समग्र रूप में मेसोपोटामिया की सभ्यता के नाम से जाना जाता है.

इतिहास (History)

आर्मीनिया के उत्तरी तथा काकेशिय के दक्षिणी पहाड़ों से निकलने वाली दजला और फरात नदियों के बीच के भूभाग को प्राचीन काल में मेसोपोटामिया कहा जाता था. यूनानी भाषा के मेसोपोटामिया शब्द का अर्थ है दोआब अर्थात दो नदियों के बीच का प्रदेश होता हैं.

प्रसिद्ध इतिहासकार हेरोडॉट्स ने इस प्रदेश को अदन का बाग़ तथा ब्रेस्टेड ने उपजाऊ चंद्राकर प्रदेश कहा है. शिन्नार का प्रदेश भी इस क्षेत्र को कहा जाता हैं. यूरोप के विद्वान् मेसोपोटामिया को एक तरह से अपने पूर्वजों की भूमि मानते हैं.

इस भूभाग पर सुमेरिया, बेबिलोनियन, असीरिया तथा कैलिडयन सभ्यता विकसित हुई. इन्हें संयुक्त रूप से मेसोपोटामिया की सभ्यता कहा जाता हैं. सातवीं शताब्दी में अरब के मुसलमानों ने इस क्षेत्र पर अधिकार कर इसका नाम अल ईराक रख दिया.

राजनीतिक दृष्टि से मेसोपोटामिया दो भागों में विभाजित था उत्तरी भाग असीरिया तथा दक्षिणी भाग बेबिलोनिया. बेबिलोनिया का उत्तरी भाग अक्काद तथा दक्षिणी भाग सुमेर कहा जाता था. अक्काद में सेमाईट जाति तथा सुमेर में अल्पाइन प्रजाति के लोग निवास करते थे.

शात अल अरब मैदान – विद्वानों की मान्यता है कि प्राचीन काल में दजला और फरात दोनों नदियाँ फारस की खाड़ी में अलग अलग गिरती थी.

दोनों नदियाँ फारस की खाड़ी के मुहाने पर मिट्टी और कीचड़ इक्कठा करती गई और खाड़ी सिकुड़ती गई. परिणामस्वरूप 300 मील लम्बा मैदान बन गया, जिसे शात अल अरब कहा जाता हैं.

सुमेरियन सभ्यता

मेसोपोटामिया की संस्कृति का उदय सर्वप्रथम सुमेरिया में हुआ. इस क्षेत्र में रहने वाले निवासियों को इतिहासकार ओपार्ट ने सुमेरियन नाम दिया. सुमेर और अक्काद का ज्ञात राजनीतिक इतिहास लगभग 3200 ई पू से प्रारम्भ होता है.

उस समय दोनों प्रदेश छोटे छोटे प्रतिस्पर्धी नगर राज्यों में विभाजित थे. इनमें अक्काद में किश, कूथा, सिप्पर तथा ओपिस जबकि सुमेर में एरेक, लारसा, इसिन, उर, एरिडू निप्पुर, लगश आदि नगर राज्य प्रमुख थे, इनमें निप्पुर सर्वप्रधान था.

नगर राज्यों के राजा को पटेसी या लूगल कहा जाता था. यद्यपि दोनों शब्दों में कोई अंतर नहीं समझा जाता था लेकिन साधारण लूगल शब्द राजा और पटेसी देवता के प्रतिनिधि के अर्थ में प्रयुक्त होता था. नगरों में प्रधान मन्दिरों के प्रधान पुरोहित राजनीतिक नेता बन बैठे उन्हें एनसी कहा गया, ये पद वंशानुगत नहीं होते थे.

अनुश्रुतियों के अनुसार सुमेरिया में सेमाईट जाति के आधिपत्य की स्थापना करने वाला व्यक्ति अक्काद का सारगोन प्रथम था. सेमेटिक इतिहास में उसे राष्ट्रीय वीर कहा गया है.

बैबिलोनिया के इतिहास में उसे वहीँ स्थान प्राप्त है जो मिस्र के इतिहास में मेनिज तथा भारतीय इतिहास में चन्द्रगुप्त मौर्य को हैं. उसने सुमेरियन कानूनों और धार्मिक पुस्तकों को अनुदित करवाकर मन्दिरों में सुरक्षित रखवाया. लगभग 2000 वर्ष बाद असीरियन सम्राट असुरबनिपाल की आज्ञा से उसकी प्रतिलिपियाँ बनाई गई थी.

उर के तृतीय राजवंश के महानतम शासक शुल्गी अथवा दूंगी ने समस्त बैबिलोनिया पर अधिकार कर लिया. वह पहला सुमेरियन शासक था जिसने सुमेर और अक्काद के राजा की पदवी धारण की.

दूंगी का शासनकाल सेमाईट आधिपत्य के विरुद्ध सुमेरियन प्रतिक्रिया और पुनर्जागरण का प्रतीक हैं. विजेता के साथ साथ वह इतिहास में अपनी विधि संहिता के लिए भी प्रसिद्ध हैं, जो ह्म्बूराबी की विधि संहिता से प्राचीन हैं.

दुंगी के बाद धीरे धीरे उर का पतन प्रारम्भ हुआ. एलम का आक्रमण करके पतन का तात्कालिक कारण बना. जब दुंगी के अंतिम उत्तराधिकारी को बंदी बनाकर एलम ले जाया गया.

22 वीं शताब्दी ई पू का काल बैबिलोनिया में त्रिशक्ति संघर्ष का इतिहास हैं. उत्तर में पश्चिमी सेमाईट बेबीलोन को केंद्र बनाकर सम्पूर्ण सुमेर व अक्काद को जीतने के बारे में सोच रहे थे. दक्षिण में एलमी का शासक लारसा को केंद्र बनाकर उत्तर की तरफ बढ़ना चाहता था. इन दोनों के बीच इसिन राज्य अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रखने का प्रयास कर रहा था.

सुमेरियन सभ्यता की देन

पश्चिमी एशिया में सभ्यता का विकास करने का कार्य सर्वप्रथम सुमेरियन लोगों ने ही आरम्भ किया था. उन्होंने कीलाक्षर लिपि का विकास किया. बेलनाकार मुद्रा सुमेरवासियो की पहचान रेखांकित करने वाला मौलिक योगदान माना जाता हैं.

उन्होंने व्यापार में लिखित अनुबंध पत्रों की शुरुआत की और रीती रिवाजों व परम्पराओं को आधार पर विधि संहिता को जन्म दिया. सुमेरिया से ही सबसे पहले राज्यों और साम्राज्यों के दर्शन होते हैं.

सृष्टि और प्रलय की प्रथम कहानियों का पता भी वहीँ से चलता हैं. विल ड्यूरेंट के अनुसार सिंचाई की सर्वप्रथम प्राचीन व्यवस्था, ऋण प्रणाली, पुस्तकालय, पाठशाला, प्राचीन मन्दिर व मूर्तियाँ, मेहराब, गुम्बद आदि प्राचीन सुमेरिया की अभूतपूर्व देन हैं. वस्तुओं के मूल्य निर्धारण के लिए सबसे पहले सोने व चांदी का प्रयोग यहीं से प्रारम्भ हुआ.

यहीं सबसे पहले लिपि का व्यापक पैमाने पर विकास हुआ. स्रष्टि और प्रलय की कहानियों, साहित्य व कविता के दर्शन ही सुमेरिया में ही होते हैं. सौन्दर्य प्रशासन, गहने, जवाहरात, मूर्तिकला और पत्थरों पर चित्र खोदने की कला सबसे पहले यहीं दिखाई दी. सुमेरियन इतिहास के प्रारम्भिक काल में नगर की सत्ता जनसभाओं के हाथ में थी.

राजा उनके परामर्श के अनुसार ही राज्य करता था. इस दृष्टि से सुमेरियनों को प्रजातंत्र का जनक और उनकी जनसभाओं को विश्व की प्रारम्भिक जनसभाएं कहा जा सकता हैं.

खानाबदोश अकाडियन जाति ने सुमेरिया पर अधिकार कर इस सभ्यता का अंत कर दिया. इतिहासकार डेविड ने गेंहूँ की कृषि के प्रारम्भ का श्रेय सुमेरियन लोगों को ही दिया हैं.

बेबिलोनिया की सभ्यता

लगभग 2225 ई पू के आसपास अमोरी सरदार सुम्मू आबू ने इलू (बेबीलोन) नामक एक छोटे नगर को केंद्र बनाकर एक नयें राजवंश की नींव डाली. उसने अपनी नई राजधानी का नाम सुमेर भाषा में का डिंगर रा और अक्काद भाषा में बाब इलिम रखा.

इन दोनों शब्दों का अर्थ था भगवान का द्वार. आगे चलकर यही नगर एक विशाल साम्राज्य की राजधानी बना जो इतिहास में यूनानियों द्वारा प्रचारित बेबीलोन के नाम से प्रसिद्ध हैं.

कुछ विद्वानों का मानना है कि बैबुली नामक विशाल जिग्गुरात के नाम पर इस नये राज्य का नाम बेबिलोनिया पड़ा. इस प्रकार से शहरी या नागरिक सभ्यता थी, सुमेर और अक्काद के युद्धरत राज्यों में सेमाइटों के आधिपत्य में मर्दुक देवता के नगर बैबिलोन का उदय सुमेरियनों की राजनीतिक शक्ति के ह्रास का परिणाम हैं.

सुम्मू आबू के बाद क्रमश सुमूल इलु, ज्बुम, इमेरुम, अपिल सिन तथा सिन मुबाल्लित ने राज्य किया. पश्चिमी सेमाइटों की शक्ति और प्रतिष्ठा को चरमोत्कर्ष पर पहुँचाने वाला हम्मूराबी सिन मुबाल्लित का पुत्र था. ह्म्मूराबी का शाब्दिक अर्थ बड़ा चाचा होता है.

कालान्तर में उसके निर्बल उत्तराधिकारियों के समय अवसर पाकर कसाइट वंश के संस्थापक गंदाश ने बैबिलोन पर अधिकार कर लिया. इतिहास में कसाइट लोगों के बारे में कुछ जानकारी कुडूरू शिलालेखों से मिलती हैं.

जो बड़े बड़े खेतों की सीमाओं पर लगाए जाते थे. प्रारम्भ में कसाईट लोग पूर्णतया असंस्कृत थे किन्तु बैबिलोनियन लोगों के सम्पर्क में आने के बाद उसने विजित लोगों से बहुत कुछ सीखा. बाद में इन लोगों ने पेचिंदे ढंग के स्थान पर सरल ढंग से वर्षों की गणना प्रारम्भ की और इन्ही लोगों ने बैबिलोनिया में घोड़ों का प्रयोग आरम्भ किया.

सेमाईटो के खिलाफ कसाईट लोगों की सफलता का कारण तथा बैबिलोनियन संस्कृति को क्साईटो की प्रमुखतम देन अश्वपालन ही हैं. कसाइट लोगों के शासन का अंत काफी हद तक एल्म के आक्रमण से हुआ.

देन

राजनीति के क्षेत्र में राजत्व में देवत्व की भावना का विकास, मंत्री परिषद् का विकास और पहली बार अलग अलग विभागों का दायित्व अलग अलग मंत्रियों को सौपने की परिपाटी का सूत्रपात उन्होंने ही किया था. उन्होंने विश्व इतिहास में पहली बार प्रान्तों और नगरों के मानचित्र बनाकर मानचित्र बनाने की कला का सूत्रपात किया.

बैबिलोनिया को खगोलशास्त्र का जन्मदाता कहा जाता है. कांच के क्षेत्र में बैबिलोन प्राचीन विश्व का महान केंद्र था. बैंक व्यवस्था का विकास प्राचीन काल में सबसे पहले बैबिलोनिया में हुआ था.

संसार में सबसे प्राचीन शब्दकोश की उत्पत्ति बेबीलोन में ही हुई. बैबिलोन ने माप प्रणाली का आविष्कार किया, जिससे लम्बाई, समय, तोल आदि को मापा जा सकता था.

ईंधन के अभाव में पकाई हुई ईंटे महंगी पड़ती थी, इसलिए नींव के अलावा मकानों के अन्य भागों के निर्माण में धुप में सुखाई गई ईंटों का प्रयोग होता था.

असीरिया की सभ्यता

मेसोपोटामिया का उत्तरी भाग असीरिया कहलाता था. यहाँ के निवासी मुख्यतः सेमेटिक जाति के लोग थे. उन्होंने अपने मुख्य देवता असुर के नाम पर असीरिया नगर की स्थापना की.

बैबिलोन में क्साईट वंश के पतन तथा मिस्री एवं हिटटाइट साम्राज्यों के पराभव के पश्चात असीरिया को स्वतंत्र रूप से विकसित होने का अवसर प्राप्त हुआ,

धीरे धीरे असीरिया का साम्राज्य प्राचीन विश्व के शक्तिशाली तथा विशाल साम्राज्यों की श्रेणी में आ गया. विजित प्रदेशों में आतंक उत्पन्न करने के लिए असीरिया के विजेताओं ने अपने विजित शत्रुओं के साथ अत्यंत क्रूरता तथा निर्दयता के साथ अमानुषिक व्यवहार किया जिसके कारण वे अपनी क्रूरता के लिए कुख्यात हुए.

असुर बनिपाल का काल असीरियन सभ्यता का स्वर्णकाल कहा जाता हैं. कालान्तर में असीरिया साम्राज्य बैबिलोनिया के आक्रमणों का सामना नहीं कर सका. लगभग 600 ई पू में असीरियन राजधानी निनवे का पतन हो गया. सम्पूर्ण पश्चिमी एशिया में दहशत फ़ैलाने वाली असीरिया की सैनिक शक्ति पूर्णरूपेण नष्ट हो गई. उसके पतन का मुख्य प्रसार व विजय की असीम आकांक्षा थी.

असीरियाई समाज तीन वर्गों में विभक्त था अभिजात वर्ग, शिल्पी वर्ग तथा श्रमिक वर्ग. अभिजात वर्ग की महिलाओं को कभी कभी गर्वनर के पद पर भी नियुक्त किया जाता था.

प्राचीन विश्व के इतिहास में इतने ऊंचे पदों पर महिलाओं को नियुक्त करने का श्रेय असीरियाई लोगों को ही हैं. कभी कभी तो वे वास्तविक शासिका भी बन जाती थी. सम्मुरामत तथा नकिया नामक रानियाँ इसका उदाहरण हैं.

असीरियाई कानूनों में स्त्रियों के मुख पर घुंघट डालने के विशेष नियम बने थे, जिनका उल्लंघन करना दंडनीय अपराध माना जाता था. विवाहित स्त्रियों को घर के बाहर घुंघट निकालकर चलना अनिवार्य था. किन्तु कुमारियो, पुजारिनो. वेश्याओं तथा दासियों के लिए घुंघट निकालकर सड़कों पर चलना वर्जित था.

यदि कोई पुरुष दासियों तथा वेश्याओं को घुंघट लगाकर सड़क पर ले जाता था तो उसे कठोर दंड दिया जाता था. इसका कारण नैतिक जीवन को मर्यादित बनाए रखना था, प्रो आमस्टीड का मानना है कि पर्दे की प्रथा का जन्म असीरिया में ही हुआ था.

असीरियाई विधि संहिता का विकास स्वतंत्र रूप से हुआ. इस पर बैबिलोनिया अथवा हम्मुराबी की विधि संहिता का कोई प्रभाव दृष्टिगोचर नहीं होता.

हब्बूराबी की विधि संहिता की तुलना में असीरियाई कानूनों में दंड विधान काफी कठोर है जिसमें नाक कान काटना, कोड़ों से पीटना, कड़ा जुर्माना, बेगार तथा बधिया करना शामिल था. कुछ अपराधों में दंड देने का अधिकार पीड़ित व्यक्ति को दिया जाता था.

असीरियन लोगों का धर्म बैबिलोनियनों के धर्म से मिलता जुलता था. बैबिलोनियनों के मर्दुक देवता के स्थान पर उनका मुख्य देवता असुर माना गया जो समस्त सृष्टि का निर्माता, प्राणियों का भाग्य विधाता तथा युद्ध का देवता था.

उसकी पत्नी इश्तर को बेलित नाम से पुकारा जाता था. राजा को देवताओं का प्रतिनिधि माना जाता था जो देवताओं की इच्छानुसार शासन करता था.

असीरिया के शासकों को इतिहास में पहली बार एक नियमित सेना का गठन करने, युद्धकला के वैज्ञानिक स्वरूप को विकसित करने, प्रतिरक्षात्मक युद्ध प्रणाली को जन्म देने तथा युद्ध में घोड़ों एवं लोहे के शस्त्रास्त्रों का प्रयोग करने का श्रेय दिया जाता हैं.

असीरिया ही प्रथम शक्ति थी जिसने लौह और रक्त के सिद्धांत को विश्व में प्रतिपादित किया. राजनीतिक क्षेत्र में उनकी देन बर्बर सैन्यतंत्र की स्थापना करना हैं.

असीरिया के सम्राट युद्ध के समय क्रूर एवं अत्याचारी बनकर नगरों को जलाते और युद्धबंदियों का कत्ल करते थे. उनकी इस बर्बरता और अमानवीयता ने उन्हें सम्पूर्ण दुनिया में घ्रणा का पात्र बना दिया.

बैबिलोनिया में जहाँ व्यापार को अधिक महत्व दिया जाता था, वहीं असीरिया में कृषि को. असीरियन समाज का मारबानुति वर्ग व्यापारियों को घ्रणा की दृष्टि से देखता था.

असीरिया में चूना पत्थर, संगमरमर और अन्य कठोर पाषाण अनायास उपलब्ध थे. इसलिए वे वास्तुकला में कठोर पाषाण का प्रयोग करते थे. जबकि बैबिलोनियनो को सदा ईंटों पर निर्भर रहना पड़ता था.

असीरियन राजधानी में प्रत्येक वर्ष के प्रथम दिन एक धामिक उत्सव मनाया जाता था जिसकी घोषणा लिम्मू नामक पदाधिकारी द्वारा की जाती थी.

प्रत्येक वर्ष अलग अलग नाम से मनाएं जाने वाले उत्सव के नाम पर ही उस वर्ष के नाम का निर्धारण किया जाता था. सेनाकेरिब ने असीरियन राजधानी निनेवेह का पुनर्निर्माण करवाया और बैबिलोन का पूर्णतया विश्वंश कर दिया.

उसे संसार का पहला राज माना जाता हैं जिसने चांदी के सिक्के चलाये. असुरबनीपाल द्वितीय ने निनेवेह के स्थान पर क्ल्खी को अपनी राजधानी बनाया.

सुमेर और बैबिलोनिया ने मेसोपोटामिया की संस्कृति का निर्माण एवं विकास किया जबकि असीरिया ने उनकी सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा की तथा उसका प्रसार किया. यही उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि और विश्व सभ्यता को देन हैं.

इन्ही की बदौलत हमें गिल्गमेश नामक विख्यात बैबिलोनियन महाकाव्य की जानकारी मिल पाई हैं. इसी प्रकार विश्व की सृष्टि का रहस्य समझाने वाला सात तख्तियों का आख्यान भी असीरिया वालों की कृपा से ही हमें मिल पाया.

कैल्डियन सभ्यता

प्राचीन मेसोपोटामिया की सभ्यता का चौथा और अंतिम चरण कैल्डियन सभ्यता के रूप में विख्यात हैं. शासक कबीले के पुराने नाम क्लिद के आधार पर इस सभ्यता को कैल्डियन सभ्यता कहा जाता हैं. इसका काल असीरिया के बाद प्रारम्भ होता हैं.

इस काल में नेबुकेडन्जार नामक प्रसिद्ध शासक ने अपनी प्रियतमा रानी अमितिस की कोमल काय को नैसर्गिक सुख देने के लिए विस्मयकारी झूलते हुए बगीचों का निर्माण करवाया, जो बैबिलोन की गर्मी सहन नहीं कर पाती थी.

मेहराबों पर आधारित विस्तृत छतों पर यह उद्यान लगाया गया. जिसे प्राचीन विश्व के सात आश्चर्यों में शामिल किया जाता हैं. कैल्डियनों ने समय विभाजन की पुरानी पद्धति में कुछ संशोधन करते हुए सप्ताह को सात दिनों में, दिन को 12 घंटों में और एक घंटे को 120 मिनट में बांटा.

540 ई पू के लगभग फारस के महान शासक सायरस ने इस साम्राज्य को जीत लिया और उसके साथ ही मेसोपोटामिया की सभ्यता का अंत हो गया. दुनिया को मेसोपोटामिया की सबसे बड़ी देन उसकी कालगणना और गणित की विद्वतापूर्ण परम्परा हैं.

वर्ष का 12 महीनों में विभाजन, एक महीनें का 4 हफ्तों में विभाजन एक दिन का 24 घंटों में और एक घंटे का 60 मिनट में विभाजन मेसोपोटामिया वासियों से ही हमें मिला हैं.

मेसोपोटामिया सभ्यता की विशेषताएं (7 characteristics of civilization mesopotamia)

हम्मूराबी की विधि संहिता– बेबीलोन के सम्राट ह्म्मूराबी ने अपनी प्रजा के लिए एक विधि संहिता बनाई थी. जो इस समय उपलब्ध सबसे प्राचीन विधि संहिता है.

सम्राट ने इसे एक आठ फुट ऊँची पत्थर की शिला पर उत्कीर्ण करवाया था. हम्मूराबी का दंड विषयक सिद्धांत यह था कि जैसे को तैसा और खून का बदला खून.

मेसोपोटामिया का सामाजिक जीवन- मेसोपोटामिया सभ्यता में राजा पृथ्वी पर देवताओं का प्रतिनिधि माना जाता है. राजा व राजपरिवार के बाद दूसरा स्थान पुरोहित वर्ग का था. जो संभवत राजतंत्र की प्रतिष्ठा से पूर्व शासक रहे थे.

मध्यम वर्ग में व्यापारी जमीदार व दुकानदार थे. समाज में दासों की स्थति सबसे नीचे थी. लगातार युद्ध होते रहने के कारण समाज में सेना का महत्वपूर्ण स्थान था.

मेसोपोटामिया सभ्यता का आर्थिक जीवन कृषि व पशुपालन- इस सभ्यता के लोगों का प्रमुख व्यवसाय कृषि था. वहां के किसान भूमि की जुताई हलों से करते थे. और बीज कीप द्वारा बोते थे.

खेतों की सिंचाई के लिए नदियों के बाढ़ के पानी को नहर तक ले जाकर बड़े बड़े बाँधो में इकट्ठा कर लेते थे. हलों से जुताई हेतु मवेशी काम में लेते थे. और उनकी नस्ल सुधार के लिए पशुओं का प्रजनन भी किया जाने लगा था.

व्यापार व उद्योग- मेसोपोटामिया की सभ्यता मूलतः एक व्यावसायिक सभ्यता थी. वहां देवता का मंदिर एक धार्मिक स्थल ही नही एक व्यावसायिक केंद्र भी था. यही सर्वप्रथम बैंक प्रणाली का विकास हुआ. 

मेसोपोटामिया का भारत की सिन्धु सरस्वती सभ्यता से व्यापारिक सम्बन्ध था. सिन्धु सरस्वती सभ्यता की कई वस्तुएं मेसोपोटामिया के उर नगर की खुदाई में मिली है.

लोगों की धार्मिक मान्यताएं– मेसोपोटामिया  लोग अनेक देवी देवताओं में विशवास करते थे. प्रत्येक नगर का अपना एक संरक्षक देवता होता था. उसे जिगुरात कहते थे. जिसका अर्थ है स्वर्ग की पहाड़ी.

उर नगर मेसोपोटामिया के सबसे बाहरी नगरो में से एक था. उर नगर में जिगुरात का निर्माण एक कृत्रिम पहाड़ी पर ईंटो से हुआ था. उर के जिगुरात में तीन मंजिले थी और उसकी उंचाई 20 मीटर से अधिक थी. मेसोपोटामिया के लोग परलोक की अपेक्षा इस लोक के जीवन की व्यवहारिक समस्याओं पर केन्द्रित था. उनके पुरोहित भी व्यवसाय में रत थे.

मेसोपोटामिया सभ्यता का ज्ञान विज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में मेसोपोटामिया के लोगों की उपलब्धियाँ महत्वपूर्ण थी. खगोल विज्ञान के क्षेत्र में उन्होंने काफी उन्नति कर ली थी. उन्होंने सूर्योदय, सूर्यास्त तथा चन्द्रोदय, चन्द्रोस्त का ठीक समय मालूम कर दिया था. उन्होंने दिन और रात का समय ठीक हिसाब लगाकर पूरे दिन को 24 घंटो में बांटा था.

साठ सैकंड का मिनट और साठ मिनट के एक घंटे का सबसे पहले विभाजन मेसोपोटामिया में ही किया गया था.रेखागणित के वृत को इन्होने 360 डिग्री में विभाजित करना प्रारम्भ किया था. इस तरह मेसोपोटामिया के निवासी विज्ञान और गणित की उन्नत परम्पराओं से अवगत थे.

स्थापत्य कला- मेसोपोटामिया के कलाकारों ने मेहराब का भी आविष्कार किया. मेहराब स्थापत्य कला की  एक महत्वपूर्ण खोज थी. क्योंकि यह बहुत अधिक वजन संभाल सकती थी. और यह देखने में बहुत ही आकर्षक लगती थी.

कीलाक्षर लिपि- मेसोपोटामिया की पहली लिपि का विकास सुमेर में हुआ. सुमेरियन व्यापारियों ने अपना हिसाब किताब रखने के लिए किली जैसे चिन्ह बनाकर लेखन कला का विकास किया, इसे कुनिफोर्म या कीलाक्षर कहते है.

मेसोपोटामिया का इतिहास संस्कृति

सुमेर सभ्यता को मेसोपोटामिया की सभ्यता के नाम से भी जाना जाता हैं. इसका शाब्दिक अर्थ होता हैं जो नदियों के बीच की भूमि. उस समय की दो नदियों दजला और फुरात के बीच के क्षेत्र मेसोपोटामिया कहलाता था.

आधुनिक इराक, उत्तर-पूर्वी सीरिया, दक्षिण-पूर्वी तुर्की तथा ईरान के कुजेस्तान के क्षेत्र में इस सभ्यता का विस्तार था. इस काल खंड में सुमेर, अक्कदी, बेबिलोन तथा असीरिया की सभ्यताएं विद्यमान थी.

ऊर, किश, निपुर, एरेक, एरिडि, लारसा, लगाश, निसीन, निनिवेह मेसेपोटामिया संस्कृति के बड़े शहर थे, जिनमें निपुर एक बड़ा व महत्वपूर्ण शहर था. इस शहर का देवता एनलिल सभी क्षेत्रों में पूजा जाता था.

मेसोपोटामिया और सिन्धु घाटी सभ्यता समकालीन थी, दोनों सभ्यताओं के बीच लोगों का आवागमन था इस कारण दोनों में कई समानताएं भी हैं. दोनों सभ्यता के लोग आस्तिक और मूर्तिपूजक थे. उस समय के समाज में मंदिर और देवताओं की मूर्ति और पूजा की परम्परा थी.

हिन्दुओं से काफी मिलता जुलता जीवन और परम्पराएं मेसोपोटामिया में थी. महीनों की संख्या बारह ही थी तथा काल गणना भी चन्द्रमा की गति पर आधारित थी. अधिकमास, अष्टमी और पूर्णिमा भी बड़ी तिथियाँ मानी जाती थी.

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उम्मीद करता हूँ दोस्तों मेसोपोटामिया की सभ्यता Mesopotamian Civilization In Hindi का यह लेख आपको पसंद आया होगा. यदि आपको मेसोपोटामिया के इतिहास की जानकारी पसंद आई हो तो अपने फ्रेड्स के साथ भी शेयर करें.

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