संत कबीर दास जी का जीवन परिचय | Kabir Das Biography In Hindi

संत कबीर दास जी का जीवन परिचय जीवनी इतिहास Kabir Das Biography In Hindi: 15 वी सदी के हिंदी के महान भक्ति कवि एवं निर्गुण विचारधारा के जनक कबीर दास जी का जन्म ४५५ (सन १३९८ ई ०) वाराणसी, में हुआ था.

इनके अनुयायी कबीर पंथी कहलाते हैं. कबीरदास जी की जीवनी के इस लेख में हम उनके जीवन, मृत्यु, विचार, जयंती दोहों और रचनाओं के बारे में जानेगे.

कबीर दास जी का जीवन परिचय Kabir Das Biography In Hindi

संत कबीर दास जी का जीवन परिचय | Kabir Das Biography In Hindi

Kabir Das Fact Information Biography In Hindi

नामकबीर दास
जन्म1440 ईस्वी
जन्म स्थानकाशी
मृत्यु1518 ईस्वी
पहचानसमाज सुधारक, कवि, संत
पिता का नामनीरू जुलाहे
माता का नामनीमा
गुरु का नामगुरु रामानंद जी
प्रसिद्ध रचनासाखी, सबद, रमैनी
  

अपनी रचनाओं तथा दोहों में कबीर दास ने हिन्दू मुसलमानों को समान रूप से फटकारा हैं. इनके गुरु का नाम रामानंद था. इनके पीछे एक कथा प्रचलित हैं, कि रामानंद जी ने कबीर को शिष्य बनाने से इनकार कर दिया था, मगर कबीर यह निश्चय कर चुके थे, कि वे रामानंद जी को ही गुरु बनाएगे.

इस निश्चय के साथ ही वों सवेरे पंचगंगा घाट (काशी) की सीढियों पर सवेरे ही जाकर लेट गये. जहाँ रामानंद जी नित्य स्नान करने के लिए आया करते थे.

उस दिन जैसे ही वे सीढियों से उतर रहे थे, उनका पैर कबीर पर पड़ गया तथा मुह से राम राम निकल पड़ा इसके बाद रामानंद जी ने कबीर को अपना शिष्य बना लिया था.

अपने घर का खर्चा चलाने के लिए कबीर दास जी जुलाहे का कर्म करते थे तथा खाली वक्त में दोहों की रचना करते थे. संत कबीर दास जी का जीवन परिचय में उनके जीवन से जुडी जानकारी दिखाई गई हैं.

कबीर कौन है (who is kabir)

संत कबीर या कबीर साहेब के नाम से जाने जाने वाले ये एक भक्त कवि और रहस्यमयी संत थे. इनका जीवनकाल 15 वी सदी था. उत्तरी भारत में निर्गुण भक्ति की चेतना के प्रवर्तक के रूप में इन्हें जाना गया. इनकी रचनाओं खासकर दोहे समाज में बड़े स्तर पर स्वीकार्य बने.

सिक्खों के गुरु ग्रन्थ साहिब में भी कबीर की वाणी देखने को मिलती हैं. कबीर को हिन्दुओं द्वारा हिन्दू और मुस्लिमों द्वारा मुस्लिम बताने के प्रयास वर्षों से चले आ रहे हैं. जबकि सच्चाई यह हैं कि इनका जन्म एक हिन्दू परिवार में हुआ, जबकि इनका लालन पोषण एक मुस्लिम जुलाहे परिवार में हुआ.

अपनी रचनाओं में कबीर ने स्वयं को किसी धर्म विशेष के साथ नहीं जोड़ा, वे निर्गुण निराकार ईश्वर की भक्ति पर बल देते थे. इन्होने हिन्दू और इस्लाम धर्म की बुराइयों और कर्मकांड व समाज में व्याप्त आडम्बरों पर कड़े शब्दों में आलोचना भी की. यह भी माना जाता हैं इनके जीवन भर मुस्लिम और हिन्दू दोनों की ओर से उपेक्षा का सामना करना पड़ा था.

समाज सुधारक के रूप में कबीर दास

भक्त कवि कबीर दास मात्र भक्त संत न होकर बड़े समाज सुधारक थे. उन्होंने समाज में फैली हुई कुरीतियों का डटकर विरोध किया.

जनसाधारण की भाषा में उन्होंने बताया कि प्रभु सबके लिए हैं, उन पर किसी वर्ग, व्यक्ति तथा जाति पाति का अधिकार नही हैं. कबीर धार्मिक क्षेत्र में सच्ची भक्ति का संदेश देकर प्रकट हुए थे.

महात्मा बुद्ध के बाद कबीर, गुरुनानक आदि ने जातीय असमानता का विरोध किया. कबीर के अनुसार सभी व्यक्ति जन्म से समान हैं. जिस व्यक्ति ने अपने पवित्र कर्मों से भक्ति को अपनाया हैं, उसकी जाति का संबंध पूछना अनुचित हैं.

कबीर कर्म की श्रेष्ठता पर बल देते थे. ईश्वरीय एकता के संदेश के कारण हिन्दू व मुसलमान सभी उनके अनुयायी बनने लगे. समकालीन समाज व धर्म के सभी क्षेत्र में उनकी बातों का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा था. कबीर के उपदेश हमें उनकी साखियों व पदों में मिलते हैं. कबीर ने बाहरी आडम्बरों का कड़ा विरोध किया.

कबीर दास का जीवन परिचय जन्म तिथि स्थान 

संत कबीर के बारे में ऐतिहासिक जानकारी बहुत कम हैं. मान्यता है कि वे पन्द्रहवी सोलहवी सदी में हुए थे. उनका पालन पोषण बनारस या आस पास रहने वाले जुलाहे परिवार में हुआ था.

कबीर के भजन कई घुमंतू धार्मिक गायक गाते थे. और ये भजन काफी लोकप्रिय रहे. इनमें से अनेकों को गुरु ग्रंथ साहिब, पंचवाणी और बीजक में संग्रहित किया गया हैं. कबीर ने गुरु ईश्वर से भी अधिक महत्व दिया हैं और कहा हैं कि.

गुरु गोविन्द दोनों खड़े काके लागूं पाय
बलिहारि गुरु आपने, गोविन्द दियो बताय !

संत कबीर दास जी पर निबंध (kabir das short biography Essay Paragraph in hindi)

कबीर का जन्म लहरतारा (वाराणसी) में हुआ तथा ये रामानन्द के शिष्य थे. इन पर नाथ, सूफी तथा संत विचारधाराओं का प्रभाव था. ये ईश्वर के निर्गुण स्वरूप के उपासक थे. तथा इन्होने मूर्तिपूजा, तीर्थाटन तथा औपचारिक कर्मकांडों का विरोध किया एवं हिन्दू व मुसलमान दोनों धर्मों की रूढ़िवादी परम्पराओं पर प्रश्न चिह्न लगाया.

वे एकेश्वरवादी थे, अतः मानव समानता पर बल देते थे. कबीर ने भक्ति एवं सामान्य गृहस्थ जीवन का समन्वय संत आचरण में बाधक नही हैं. इनका मानना था कि मानव आचरण द्वारा समाज में परिवर्तन संभव हैं. इनके अनुयायी कबीरपंथी कहलाएँ, इनके एक शिष्य धर्मदास ने इनके सिद्धांतों को बीजक में संकलित किया हैं.

कबीर का काव्य परिचय व साखिया तथा पद

भक्ति की भावना को सामान्य जन की भाषा में अनुभव गम्य बनाने में सिद्धहस्त भक्त प्रवर कबीरदास का जन्म काशी तथा इनकी मृत्यु मगहर में हुई थी. वे बिलकुल अनपढ़ थे, मगर बहुश्रुत थे तथा उनका ज्ञान अनुभव सम्रद्ध था.

स्वामी रामानंद के उदार विचारों का भी इन पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा. कबीर के लिए कविता साध्य न होकर साधन थी, वे सहज अनुभूतियों को बड़े प्रभावशाली ढंग से जनमानस तक पहुचाना जानते थे.

कबीर की वाणी में सच्चे ह्रदय से स्वानुभव से कही गई बात श्रोता के ह्रदय पटल पर अमिट प्रभाव छोडती हैं. कबीर सच्चे समाज सुधारक थे. ठीक निशाने पर चोट करने की कला में कबीर अद्वितीय हैं.

कठिन से कठिन विचार को भी सटीक उपमा, द्रष्टान्त और अन्योक्ति द्वारा बड़े ह्रदय स्पर्शी ढंग से समझाते थे. कबीर धार्मिक संकीर्णता को दूर करने वाले एक समाज सुधारक के रूप में हमारे समक्ष हैं.

राम और रहीम की एकता के माध्यम से धार्मिक मतान्तरों से ऊपर मानवता की स्थापना का शंखनाद कबीर के काव्य से प्रारम्भ होता हैं. बाह्याचार, अंधविश्वास और रुढ़ियों से मुक्त सामाजिक समरसता की स्थापना का संदेश कबीर के काव्य में मिलता हैं.

रचनाएँ

कबीर के अनपढ़ होने के कारण उनकी रचनाओं का संकलन शिष्यों द्वारा किया गया हैं, जिनमें सबसे प्रमाणिक बीजक हैं.

कबीर की साखी व पद

सतगुरु की महिमा अनन्त, अनन्त किया उपगार,
लोचन अनन्त उघाडिया, अनन्त दिखावत हार
भगति भजन हरि नांव है, दूजा दुःख अपार
मनसा वाचा कर्मना, कबीर सुमिरन सार,
पोथि पढ़ी पढ़ी जग मुआ, पंडित भया ना कोई
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होई
ऊँचे कुल क्या जनमियाँ, जे करणी ऊँच न होई
सोवन क्लस सुरे, भरया, साधो निधा सोई
एसी बानी बोलिए, मन का आपा खोई
औरन कुं सीतल करे आपै सीतल होई
कस्तूरी कुंडली बसे, म्रग ढूंढे बन माहि
ऐसी घटि घटि राम हैं दुनिया देखे नाहि
निंदक नियरे राखिये, आंगन कुटी छवाय
बिन पानी साबन बिना, निरमल करे सुभाय

कबीर के पद

मोको कहाँ ढूढे बंदे मै तो तेरे पास में
ना मै देवल ना मैं मस्जिद ना काबे कैलास में
ना तो कौने क्रिया कर्म में, नहि योग बैराग में
खोजी होय तो तुरन्ते मिलिहो, पल भर की तलास में
कहै कबीर सुनों भाई साधो, सब स्वांसों की स्वांस में
भाई रे दुई जगदीश कहाँ ते आया कहूँ कवने भरमाया
अल्लह राम करीमा केसो, हजरत नाम धराया
गहना एक कनक ते गढ़ना, इनि महं भाव न दूजा
कहन सुनन को दुर करि पापिन, इक निमाज इक पूजा
वही महादेव वही महमंद ब्रह्मा आदम कहिये
को हिन्दू को तुरुक कहावै, एक जिमी पर रहियें
वेद कितेब पढ़े वे कुतुबा, वे मोलानावे पांडे
बेगरी बेगरि नाम धराये, एक मटिया के माडे
कहहि कबीर वे दूनो भूले, रामहिं किन्हूँ न पाया !!

संत कबीर दास जयंती

भले ही अपने समय में कबीर के विचारों को स्वीकार्यता नहीं मिली हो, मगर आज करोड़ो लोग स्वयं को कबीरपंथी मानते है. कबीर को अपना गुरु मानकर उनकी शिक्षाओं और विचारों को जीवन में अपनाते हैं. भारत में संत कबीर जी की जयंती को बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता हैं.

माना जाता हैं जन्म संवत 1455 को ज्येष्ठ शुक्ल की पूर्णिमा तिथि को संत कबीर जी का अवतरण हुआ था. ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को हर वर्ष कबीर जयंती मनाई जाती हैं. उनके विचार और दोहों के माध्यम से कहे संदेश को जन जन तक पहुचाया जाता हैं.

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