चन्द्रगुप्त मौर्य इतिहास व जीवन परिचय | Chandragupta Maurya History in hindi

चन्द्रगुप्त मौर्य इतिहास व जीवन परिचय Chandragupta Maurya History Biography in hindi: मगध की राजधानी पाटलिपुत्र के क्रूर शासक घनानन्द के शासक का अंत कर मौर्य शासक चन्द्रगुप्त ने मौर्य वंश की स्थापना की.

प्राचीन भारत के सबसे शक्तिशाली शासकों में इन्हें गिना जाता हैं. 137 वर्षों तक मौर्य वंश ने भारत पर शासन किया. छोटे छोटे राज्यों में बंटे भारत को पहली बार एकजुट कर शासन चलाने का गौरव चन्द्रगुप्त मौर्य को ही मिलता हैं.

कश्मीर से दक्कन और असम और कांधार तक साम्राज्य विस्तार करने वाले चन्द्रगुप्त की सबसे बड़ी ताकत उनके राजनैतिक गुरु कौटिल्य थे, जिन्होंने ही उन्हें सत्ता दिलवाई थी.

चन्द्रगुप्त मौर्य इतिहास व जीवन परिचय Chandragupta Maurya History Biography

चन्द्रगुप्त मौर्य इतिहास व जीवन परिचय | Chandragupta Maurya History in hindi

चन्द्रगुप्त मोर्य में बाल्यावस्था से ही नेतृत्व का गुण था वह अपने मित्रों के साथ खेल खेलते समय नेतृत्व करना पसंद करता था आचार्य सानक्य ने चन्द्रगुप्त मौर्य के इस गुण की पहचान कर उसे भारतवर्ष का सम्राट बनाने का निर्णय किया था चन्द्रगुप्त मौर्य 322 ई पूर्व नंदवंश के शासक घनानन्द को परास्त कर मगध का शासक बना था.

तत्पश्चात चंद्रगुप्त मौर्य ने छोटे -छोटे राज्यों को हराकर एक विशाल सम्राज्य की स्थापना की था तत्पश्चात चन्द्रगुप्त मौर्य ने सिकन्दर के उतराधिकारी सेल्यूकस को बुरी तरह से परास्त किया.

क्रमांकजीवन परिचय बिंदुचन्द्रगुप्त जीवन परिचय
1.पूरा नामचन्द्रगुप्त मौर्य
2.जन्म340 ईसा पूर्व
3.जन्म स्थानपाटलीपुत्र , बिहार
4.उतराधिकारीबिन्दुसार
5.पत्नीदुर्धरा
6.बेटेबिंदुसार अशोका सुसीम, विताशोका

चन्द्रगुप्त मौर्य को सेल्यूकस से कंधार ,काबुल ,हैरात प्रदेश एंव बलूचिस्तान का कुछ प्राप्त हुआ साथ ही सेल्यूकस की पुत्री का विवाह चन्द्रगुप्त मौर्य से हुआ सेल्यूकस ने मेगस्थनीज को चन्द्रगुप्त के दरबार में अपना राजदूत बनाकर भेजा ,

जो मगध की राजधानी पाटलिपुत्र में कई वर्षो तक रहा मेगस्थनीज ने ‘इडिका ‘नामक पुस्तक भी लिखी ,जिसमे मौर्यकालीन शासन व्यवस्था की जानकारी प्राप्त होती है वर्तमान में इंडिका हमे अपने वास्तविक रूप में नही मिलती है ,परन्तु यूनानी लेखको ने इंडिका की कुछ घटनाओ को अपने साहित्य में स्थान दिया है.

चन्द्रगुप्त मौर्य ने जीवन के अंतिम काल में अपने पुत्र बिन्दुसार को राज्य सौंप दिया और जेन ग्रहण क्र लिया चन्द्रगुप्त ने भद्रबाहु को श्रवणबेलगोला में अपना गुरु बनाया एंव तप का मार्ग अपनाया.

बिन्दुसार– चन्द्रगुप्त के उतराधिकारी बिन्दुसार ने मौर्य साम्राज्य की प्रतिष्ठा को बनाये रखा बिन्दुसार को अमित्रघात के नाम से जाना जाता था.

आचार्य चाणक्य उसके दरबार में प्रधानमंत्री था. बिन्दुसार में 272 ई.पू. तक विशाल सम्राज्य पर शासन किया. बिन्दुसार की मृत्यु के बाद मौर्य सम्राज्य की बागडौर उसके सुयोग्य पुत्र सम्राट अशोक के हाथ में आ गई.

चन्द्रगुप्त मौर्य का आरम्भिक जीवन

मौर्य सम्राट के जन्म उनके माता पिता वंश के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं हैं. अलग अलग ग्रथों में एक दूसरी के उल्ट तथ्य और मान्यताएं देखने को मिलती हैं.

जैन बौद्ध ग्रथों और पुराणों में चन्द्रगुप्त के जीवन में बारे में उल्लेख मिलता हैं. इसके अलावा विशाखदत्त के संस्कृत नाटक मुद्राराक्षस में उन्हें मौर्य पुत्र कहा गया हैं.

यह भी मान्यता है कि वे मुरा नाम भील माँ के बेटे थे, जो घनानन्द के राज्य में नृतकी थी, घनानन्द ने उन्हें राज्य निकासी दे दी जिसके चलते वह जंगल में ही जीवन बसर करने लगी थी.

मान्यता है कि 340 ई पु में मौरिय अथवा मौर्य कुल में महान चन्द्रगुप्त का जन्म हुआ था. उनकी माता का नाम मुरा था कुछ का मानना है कि ये मयूर तोमर्स के मोरिया जनजाति के थे. इनके पिता घनानन्द की सेना में एक अधिकारी थे.

घनानन्द द्वारा उनके पिता की हत्या कर दी जाती हैं, तब चन्द्रगुप्त का जन्म भी नहीं हुआ था. यह भी मान्यता है कि जब ये 10 वर्ष के थे तब इनकी माता मुरा का भी देहांत हो जाता है और ये चाणक्य की चरण में आ जाते हैं.

एक अन्य मान्यता के अनुसार ये राजा नंदा और उनकी पत्नी मुरा के बेटे थे. ये कुल 100 भाई थे तथा इनका सम्बन्ध मौर्य परिवार से था जो एक क्षत्रिय जाति थी.

चन्द्रगुप्त मौर्य के दादा के दो पत्नियाँ थी एक से 9 बेटों ने जन्म लिया था जिन्हें नवनादास कहा गई दूसरी पत्नी से चन्द्रगुप्त के पिता ने जन्म लिया था.

दोनों माओं के बेटों के बीच संघर्ष चलता रहा, नवनादास हमेशा नंदा और उनके बेटों को मारने की फिराक में रहते थे. कहते है उन्होंने चन्द्रगुप्त के सभी भाइयों को मार डाला और वे किसी तरह बच निकले और उनकी मुलाक़ात चाणक्य से होती हैं.

चाणक्य उनके गुणों की पहचान कर उन्हें अपना शिष्य बनाकर शिक्षा देते है तथा एक बुद्धिमान व ज्ञानी राजा बना देते हैं.

आचार्य चाणक्य ने बुद्धिमतापूर्वक चन्द्रगुप्त की बचपन में कड़ा प्रशिक्षण दिया. उन्हें न केवल एक वीर यौद्धा, शस्त्र शास्त्र का ज्ञाता बनाया बल्कि उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाने के लिए रोजाना भोजन में विष भी दिया करते थे. ताकि कभी छल कपट में उन्हें जहर भी दिया जाए तो यह उनके जीवन के घातक न बने.

राजा चन्द्रगुप्त ने तीन विवाह किये थे. इनकी पहली पत्नी का नाम दुर्धरा था जिन्होंने बिन्दुसार को जन्म दिया जो चन्द्रगुप्त के उत्तराधिकारी बने. इनकी दूसरी पत्नी यूनानी राजकुमारी कार्नेलिया थी जो सेल्यूकस की पुत्री थी, इनके भी एक बेटा हुआ जिसका नाम जस्टिन था. मौर्य की तीसरी पत्नी का नाम चन्द्र नंदिनी कहा जाता हैं.

मौर्य साम्राज्य की स्थापना

इतिहास में महान मौर्य साम्राज्य को खड़ा करने और सम्पूर्ण भारत को एक करने का श्रेय कौटिल्य अर्थात चन्द्रगुप्त के गुरु प्रधानमंत्री चाणक्य को ही जाता हैं.

वे एक बुद्धिमान शिक्षक और कूटनीतिज्ञ थे. उस समय की बात है जब अलेक्जेंडर अर्थात् सिकंदर अपने विश्व विजयी अभियान को लेकर भारत की ओर बढ़ रहा था. अब उसका अगला लक्ष्य भारत था.

उधर नंदा राजगद्दी के असली हकदार चन्द्रगुप्त अन्यायपूर्ण तरीके से सत्ता से बेदखल किये जा चुके थे. गुरु चाणक्य ने दोनों जिम्मेदारियां उठाई.

उन्होंने चन्द्रगुप्त को वचन दिया कि वे उन्हें अंखड भारत का सम्राट बनाएगे साथ ही सिकन्दर समेत विदेशी आक्रान्ताओं से भारत भूमि के रक्षा करेगे.

सिकन्दर के भारत आगमन के समय ही उसकी विशाल सेना के आगे अधिकतर छोटे छोटे राज्यों ने समर्पण कर दिया जिनमें मगध भी एक था.

पंजाब के शासक पर्वतेश्वर ने प्रतिकार किया मगर विशाल सेना के सामने उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा. चाणक्य ने कई राज्यों से बात की और साथ मिलकर लड़ने का प्रस्ताव रखा मगर बात न बन सकी.

चन्द्रगुप्त मौर्य की सिकंदर पर जीत (Chandragupta Maurya Fight with Alexander)

मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त के शुरूआती जीवन और राजगद्दी पाने तक का विवरण इतिहास में अस्पष्ट हैं, इसे कई तरीको से लिखा गया हैं जिसके चलते किसी एक मत को सत्य मानना या दूसरे को नकारना जटिल हैं.

मान्यता यह भी है कि चन्द्रगुप्त ने सिंकदर महान को युद्ध में पराजित किया था तथा वह भारत विजय के अधूरे सपने को लेकर लौट रहा था और काबुल के पास उसकी मृत्यु हो गई.

एक अन्य मत के अनुसार पंजाब के राजा पोरस के साथ चाणक्य और चन्द्रगुप्त ने मिलकर सिकन्दर की सेना को हराया था. इस मत के समर्थन में काफी स्पष्ट तथ्य है जब सिकन्दर 325-326 ई पू में सिन्धु पार कर रहा था उस समय उसका सहयोग तक्षशिला के राजा अम्भी उसका सहयोगी बना था,

यह राजा पोरस का प्रतिद्वंद्वी था और सिकन्दर का संधि प्रस्ताव लेकर पंजाब भी गया था. कहते है पांच हजार की सेना के साथ गये अम्भी को जान बचाकर लौटना पड़ा था. सम्भवत इस कारण सिकंदर ने वापस लौटने का निश्चय किया हो.

जैसे ही सिकन्दर की मौत का समाचार चाणक्य तक पंहुचा उन्होंने यूनानी सरदारों के खिलाफ भारतीय प्रजा के उभरे विरोध को पुनः जगाया और विरोधियो की सेना का सेनापति चन्द्रगुप्त को बनाकर छोटे छोटे क्षेत्रों को जीतना शुरू कर दिया.

जैसे जैसे उत्तरी पश्चिमी भारत में चन्द्रगुप्त की सेना क्षेत्रों को विजित करती गई उसकी सेना और अधिक शक्तिशाली होती गई. कहते है पोरस की मदद से ही उन्होंने मगध पर आक्रमण किया और म्हापद्मनाभ को पराजित कर मगध की सत्ता हासिल की.

इस तरह तक्षशिला से शुरू हुआ चन्द्रगुप्त का विजय अभियान समूचे उत्तर और पश्चिम भारत को अपने जद में लेता हुआ मगध और सम्पूर्ण पूर्वी भारत एक एकछत्र राज्य स्थापित किया.

सेल्यूकस और चन्द्रगुप्त मौर्य

25 वर्ष की आयु में मगध के शासक बने चन्द्रगुप्त मौर्य के लिए सबसे बड़ी चुनौती यूनानियों की थी. भले ही सिकन्दर की मृत्यु हो गई मगर उसका उत्तराधिकारी सेल्यूकस निकोटर अलेक्जेंडर के विजित क्षेत्रों अफगानिस्तान और बलूचिस्तान का प्रतिनिधि बनकर युद्ध लड़ने की तैयारियों में लगा था.

चन्द्रगुप्त ने भी अपनी सेना को युद्ध की तैयारी के आदेश दे दिया. जब दोनों सेनाएं आमने सामने हुई तो सेल्यूकस को भारतीयों की वीरता के बारे में जो पूर्वाग्रह था वह टूट गया.

एक तरह से चन्द्रगुप्त भारतीय सेना का नेतृत्व कर रहे थे, वीरों के साहस के आगे यूनानी अधिक समय तक टिक न सके और तेजी से आगे बढ़ती सेना से सेल्यूकस और उसकी सेना का आत्मविश्वास टूट गया और सेना ने हथियार डाल दिए और संधि के लिए राजी हो गया.

सेल्यूकस और चन्द्रगुप्त के मध्य 303 ई पू में यह संधि हुई जिसकी शर्तों के अनुसार सेल्यूकस ने हेरात, काबुल, कंधार और मकरान मौर्य सम्राट को दे दिए चन्द्रगुप्त ने भी उपहार स्वरूप 500 हाथी भेंट किये.

यूनानी शासक ने भारत के साथ दीर्घकालीन शांतिपूर्ण रिश्ते के लिए अपनी बेटी हेलन का विवाह चन्द्रगुप्त के संग कर दिया.

चन्द्रगुप्त मौर्य का अंतिम समय व मृत्यु

तीसरी और दूसरी सदी ईसा पूर्व के समय भारत में जैन धर्म अपने चरम पर था. अपने 24 वर्षों के राज्य शासन के बाद जीवन के अंतिम पडाव में ये जैन धर्म के अनुयायी बन गये. अपने पुत्र बिन्दुसार को राजसत्ता देकर 298 ई पू में चन्द्रगुप्त ने कर्नाटक की ओर प्रस्थान किया.

जैन परम्परा के अनुसार उन्होंने संथारा किया, जिसमें साधक अपने देह त्याग के उद्देश्य से आजीवन खाना पीना छोड़ देते हैं.

कहते हैं 5 सप्ताह तक संथारा करने के पश्चात भारत के गौरवशाली साम्राज्य के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने प्राण त्याग दिए. इनकी मृत्यु का वर्ष 297 ई पू माना जाता हैं. इन्ही के वंश में आगे चलकर सम्राट अशोक का जन्म होता हैं.

भारत के इतिहास में मौर्य साम्राज्य, अशोक, चन्द्रगुप्त और कौटिल्य यानी चाणक्य का बड़ा स्थान हैं. यूनानी विद्वान मेगस्थनीज भी चार वर्षों चन्द्रगुप्त के राज्य में रहे थे.

इनके साम्राज्य में दक्षिण के इलाके को छोडकर लगभग समस्त भारतीय उपमहाद्वीप पर एकछत्र शासन किया था. इन्ही के वंशज अशोक ने दक्षिण भारत को भी विजित कर पूरे उपमहाद्वीप पर भारतीय सत्ता स्थापित की थी.

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