बाढ़ पर निबंध | Essay on Flood in Hindi

Essay on Flood in Hindi: प्रिय मित्रों बाढ़ पर निबंध आपके साथ साझा कर रहे हैं. बच्चों को स्कूल की परीक्षा में बाढ़ पर निबंध अनुच्छेद भाषण इत्यादि लिखने को कहे जाने पर आप हमारे इस निबंध की मदद ले सकते हैं. Flood Essay को कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10  के बच्चों को ध्यान में रखते हुए तैयार  किया गया हैं.

बाढ़ पर निबंध Essay on Flood in Hindi

बाढ़ पर निबंध | Essay on Flood in Hindi

शोर्ट बाढ़ की समस्या पर निबंध Essay on Flood in India In Hindi

चारों ओर जल प्रलय का दृश्य जिसमें खेत के खेत बहे जा रहे हों, मरे हुए मवेशियों की लाशें डूबती उतराती नजर आ रही हों, लोग अपनी जान बचाने के लिए सुरक्षित स्थान की तलाश में पानी में तैरते हुए नजर आ रहे हों, ये बाढ़ की विभीषिका की भयावहता को दर्शाने के लिए पर्याप्त हैं.

अपेक्षित वैज्ञानिक प्रगति के बावजूद भी प्राकृतिक आपदाओं से मानव अब तक भी पूरी तरह पार पाने में कितना अक्षम रहा हैं, इसका प्रत्यक्ष उदहारण बाढ़ के दौरान ही दिखाई पड़ता हैं. बाढ़ की विभीषिका के बारे में चर्चा करने से पहले यह जान लेना आवश्यक हैं कि बाढ़ वास्तव में क्या हैं.

दरअसल, जब बरसात के मौसम में नदियों के जल स्तर में वृद्दि होती हैं, तो इसके कारण बाढ़ उत्पन्न हो जाती हैं. नदियों का पानी तीव्र वेग के साथ निचले इलाकों में भर जाता हैं.

बरसात के दिनों में नदियों के जल स्रोत में वृद्धि होने के कारण ही उनके जल स्तर में वृद्धि होती हैं. इस जल स्तर में वृद्धि के कारण नदियों के आस-पास के क्षेत्र में भी पानी जमा हो जाता हैं. नदी के आस पास के क्षेत्रों में पानी जमा होने की यह स्थिति बाढ़ कहलाती हैं.

हर वर्ष जून से सितम्बर के महीने तक भारत में अत्यधिक वर्षा होती हैं. इसलिए इसी अवधि के दौरान देश के अधिकतर हिस्सों में बाढ़ का कहर देखने को मिलता हैं. बाढ़ की विभीषिका का दृश्य बहुत भयावह होता हैं.

चारों ओर अफरा तफरी का माहौल होता हैं, लोग अपनी जान बचाने के लिए विफल प्रयास करते नजर आते हैं. जल जमाव हो जाने के कारण पानी में तैरते हुए भागना उनके लिए कठिन हो जाता हैं.

जल प्रवाह तेज होने या नदियों के तटबंध टूटने से आई बाढ़ में लोगों को अपनी जान बचाने का भी मौका नहीं मिलता. मिट्टी तथा खपरैल से बने घर ताश के पत्तों की तरह बाढ़ में बहते हुए नजर आते हैं.

चारों ओर चीख पुकार की आवाजे सुनाई देती हैं. लोग जान बचाने के लिए ऊँचे स्थानों पर शरण लेते नजर आते हैं. कोई ऊँचा स्थान न मिलने की स्थिति में लोगों को पेड़ पर भी शरण लेने के लिए विवश होना पड़ता हैं.

खुले आसमान के नीचे बाढ़ ग्रस्त इलाके में रहना मौत को दावत देने जैसा ही हैं. ऐसी विपदा की स्थिति में नदी में जान बचाने के लिए तैरते सांप दुःख और भय को बढ़ा देते हैं. सरकार द्वारा लोगों को जान बचाने के लिए नावों एवं हेलीकॉप्टरों से खाद्य सामग्री उन तक पहुचाने का भी प्रबंध किया जाता हैं.

लोग इन खाद्य सामग्री पर जानवरों की तरह टूट पड़ते हैं. इस तरह बाढ़ की विभीषिका मानव को पशु बनने के लिए विवश कर देती हैं. सभी को अपनी जान प्यारी होती हैं. लोग अपनी जान बचाने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं.

जहाँ एक ओर बाढ़ अपने साथ कहर लाती हैं, वहीँ बाढ़ से एक लाभ भी हैं, इसके साथ आने वाली उपजाऊ मिट्टी से नदियों के आस पास का क्षेत्र उर्वर हो जाता हैं. किन्तु यह लाभ इससे होने वाली हानियों की तुलना में नगण्य हैं.

इससे होने वाली हानियों की क्षतिपूर्ति करना बाद में काफी कष्टदायी होता हैं. बाढ़ से जन धन की अपार हानि होती हैं. सड़के टूट जाती हैं. रेलमार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं. सड़कों एवं रेलमार्गों के अवरुद्ध हो जाने से यातायात एवं परिवहन बाधित होता हैं जिससे जन जीवन ठप हो जाता हैं.

बाढ़ की विभीषिका पर लघु निबंध, Essay on Flood in Hindi For Students

इस तरह एक तरफ तो लोग बाढ़ से परेशान रहते हैं, ऊपर से उन तक खाद्य सामग्री की पहुच मुश्किल हो जाती हैं,  बाढ़    के कारण लाखों एकड़ की फसल बर्बाद हो जाती हैं.

बाढ़ में मवेशियों के बह जाने से पशु संसाधन की हानि तो होती ही हैं, कृषि पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा हैं.बाढ़ में तटबंध टूटने की स्थिति में बड़ी बड़ी बस्तियाँ अचानक उजड़ जाती हैं. इस तरह बाढ़ के कारण लोगों को अपने घरों तक से हाथ धोना पड़ता हैं. इसके कारण लोग विस्थापित हो जाते हैं.

बाढ़ के उतर जाने पर भी अनेक प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं. घास एवं झाड़ियों के सड़ जाने एवं मवेशियों के मरने से संक्रामक बीमारियों के फैलने का खतरा बन जाता हैं. लाख लोग अपना घर बार पहले ही गंवा चुके होते हैं.

फसलें बर्बाद हो जाने से किसानों के सामने रोजी रोटी की समस्या उत्पन्न हो जाती हैं. बाढ़ के दौरान टूटी हुई सड़कों एवं रेलमार्ग को ठीक करने में काफी समय लगता हैं. तब तक उस क्षेत्र का यातायात एवं परिवहन ठप ही रहता हैं. इस तरह बाढ़ का प्रकोप बाढ़ के बाद भी लोगों को प्रभावित करता रहता हैं.

भारत में लगभग हर राज्य किसी न किसी रूप में बाढ़ से प्रभावित हैं. किन्तु बिहार बाढ़ से सर्वाधिक प्रभावित राज्य हैं. यहाँ हर साल बाढ़ आती हैं. जिससे धन जन की अपार हानि होती हैं. 1954 से च रही राष्ट्रीय बाढ़ नियंत्रण कार्यक्रम के बावजूद अभी तक एक प्रभावकारी बाढ़ नियंत्रण प्रणाली विकसित नहीं कर सकी हैं.

अभी तक बाढ़ नियंत्रण के कई पारम्परिक उपाय आजमाएं जा चुके हैं, जैसे नदियों के प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए तटबंध का निर्माण और नियंत्रित दर से पानी की निकासी के लिए जलाशयों का निर्माण.

प्रायः देखा जाता हैं कि बाढ़ को नियंत्रित करने वाले इन जलाशयों में पनबिजली उत्पन्न करने के लिए तथा अधिक कृषि क्षेत्र को सिंचाई उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से अधिक से अधिक पानी का संचय किया जाता हैं.

इसके कारण कभी कभी जल स्तर अत्यधिक बढ़ जाता हैं. एवं बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती हैं. इस तरह बाढ़ की समस्या से निपटने का उपाय ही उस समस्या का एक कारण बन जाता हैं. बाढ़ नियंत्रण के उद्देश्य से नदियों के किनारे तटबंध एवं बांध बनाएं जाते हैं.

कभी कभी इन तटबंधो एवं बाँध के कारण बाढ़ का प्रभाव अधिक खतरनाक हो जाता हैं. जब जल स्तर अधिक हो जाता हैं. एवं नदी के प्रवाह में तीव्रता आ जाती हैं, तो तटबंध भी पानी को नियंत्रित नहीं रख पाते और तटबंधों के टूटने से अचा-नक आई बाढ़ का कहर और भी खतरनाक हो जाता हैं.

पर्यावरणविदों एवं वैज्ञानिकों के अनुसार बाढ़ की समस्या का सबसे अच्छा समाधान होता हैं. नदी के पानी को नियंत्रित करने की बजाय उसे सही तरीके से रास्ता दिया जाना.

पानी को नियंत्रित करने का प्रयास ही अधिक खतरनाक होता हैं. यदि पानी का स्तर सामान्य हैं तब तो बाढ़ पर नियंत्रण करने के ये उपाय कारगर हो सकते हैं.

किन्तु पानी के प्रवाह में तीव्रता एवं अत्यधिक जलस्तर की स्थिति में ये उपाय किसी काम के नही होते. नदियों को जोड़ने की प्रस्तावित योजना को कार्यरूप देने से इस समस्या का काफी हद तक समाधान हो सकता हैं.

यदि बाढ़ जैसी आपदा पर प्रभावी नियंत्रण किया जाए तो जन धन की अपार क्षति के साथ साथ कृषि क्षेत्र में होने वाले नुकसान से भी बचाव हो सकेगा और देश सम्रद्ध होगा.

बाढ़ की समस्या इसके कारण प्रभावित क्षेत्र और प्रबंधन Flood Causes Effects Types Facts Prevention In Hindi

अपने विशाल आकार एवं मानसूनी जलवायु के कारण ये दोनों प्राकृतिक आपदाएं भारत को प्रभावित करती है. भारतीय जनमानस अपने स्वभाव व सहज संतोषी वृति के कारण ईश्वरीय प्रकोप मानकर सदियों से इन आपदाओं को सहता आ रहा है.

जब भारी अथवा निरंतर वर्षा के कारण नदियों का जल अपने तटबंधो को तोड़कर बहुत बड़े क्षेत्र में फ़ैल जाता है. तो उसे बाढ़ कहते है. वर्षा ऋतू में वर्षा का यह आसमान वितरण भारत में प्राकृतिक आपदाओं का कारण बनती है. प्रत्येक वर्ष भारत के किसी न किसी क्षेत्र में बाढ़ आती है. भारत में 4 करोड़ हैक्टर क्षेत्र को बाढ़ प्रभावित क्षेत्र माना जाता है.

बाढ़ के कारण (flood causes in hindi)

भारी वर्षा के चलते नदी जलग्रहण क्षेत्र में प्रवाहित जल को पर्याप्त प्रवाह मार्ग उपलब्ध नही होने से अतिरिक्त वर्षा जल चारों ओर फैलने लगता है. वर्षा ऋतू में पानी के साथ बहकर आये अवसाद नदी मार्ग को संकड़ा व उथला बना देते है. जिसके कारण पानी किनारों के बाहर फैलकर बाढ़ की शक्ल दे देता है.

धरातल पर वनों का व चरागाहों के निरंतर विनाश भी भारत में बाढ़ की समस्या के कारण है. इनके अतिरिक्त नदी प्रवाह मार्गों पर आबादी की बसावट, अविवेकपूर्ण तरीकों से आवागमन मार्गों का निर्माण, परम्परागत जल ग्रहण स्रोतों को नष्ट करना तथा प्राकृतिक रूप से जल प्रवाह स्वरूप की उपेक्षा कर निर्माण कार्य करना बाढ़ के कारण बनते है.

भारत में बाढ़ प्रभावित क्षेत्र (Flood affected areas in India)

भारत के बाढ़ प्रभावित क्षेत्र वर्षा के वितरण से निर्धारित है. भारत में बाढ़ों से होने वाली 90 प्रतिशत से अधिक क्षति उतरी एवं उतरी पूर्वी मैदानी क्षेत्रों में होती है. भारत के उत्तर पश्चिम में बहने वाली नदियाँ सतलज, व्यास, रावी, चिनाब व झेलम से बाढ़ की भयंकरता कम होती है.

जबकि पूर्व में बहने वाली गंगा, यमुना, गोमती, घाघरा व गंडक आदि नदियों से अपेक्षाकृत अधिक बाढ़ आती है. कोसी व दामोदर नदियों में बाढ़े विनाशकारी होती है, इसलिए कोसी नदी को बिहार का शोक व दामोदर नदी को बंगाल का शोक कहा जाता है.

देश के उत्तर पूर्वी भाग में ब्रह्मपुत्र नदी घाटी है. अतः नदी घाटी में भी प्रति वर्ष बाढ़ आती है. इस क्षेत्र में वर्षा भी 250 सेमी से अधिक होती है.

भारत में बाढ़ का इतिहास

भारत में बाढ़ से प्रतिवर्ष 2000 से अधिक जाने जाती है. 80 लाख हैक्टर क्षेत्र से बाढ़ से सर्वाधिक प्रभावित होता है. 35 लाख हैक्टर क्षेत्र में फसल नष्ट हो जाती है. 3 करोड़ हैक्टेयर क्षेत्र में जीवन अस्त व्यस्त हो जाता है. आर्थिक रूप से लगभग एक करोड़ रुपयें की हानि प्रतिवर्ष होती है.

बाढ़ का सर्वाधिक प्रभाव पशुधन पर पड़ता है. लगभग 12 लाख पशुधन को हानि उठानी पडती है. 12 लाख से अधिक मकान क्षतिग्रस्त हो जाते है.

भारत में बाढ़ से होने वाली 60 प्रतिशत से अधिक क्षति केवल उत्तरप्रदेश व बिहार में होती है. इसके बाद पश्चिम बंगाल, आसाम, उड़ीसा को नुकसान उठाना पड़ता है.

बाढ़ की समस्या जीवन को अस्त व्यस्त कर देती है. मार्ग अवरुद्ध हो जाते है तथा फसलें नष्ट हो जाती है. पानी के स्रोत खराब व दूषित हो जाते है.

संचार के साधन बिगड़ जाते प्रभावित क्षेत्र में गंदगी बढ़ने से महामारी फैलने का भय रहता है. बाँधो, तालाबों तथा नहरों को क्षति होती है.

बाढ़ प्रबंधन (Flood Facts Prevention management in Hindi)

सरकारी व सामाजिक स्तर (Government and social status)– देश में बाढ़ की विकरालता के मध्यनजर सबसे पहले इसकी रोकथाम की आवश्यकता के प्रयास प्रारम्भ हुए.

इस दिशा में सन 1854 में राष्ट्रीय बाढ़ नियंत्रण योजना प्रारम्भ की गई. इस योजना में नदी तटबंधों का निर्माण व जल प्रवाह नालिकाओं का निर्माण करने के निर्णय लिए गये.

बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में बहुउद्देशीय योजनाओं के बाँध बनाने का कार्य भी किया जाता है. इस सन्दर्भ में महानदी, दामोदर, सतलज, व्यास, चम्बल, नर्मदा नदियों पर बाँध बनाए गये है.बाढ़ों पर नियंत्रण के लिए नदी उद्गम क्षेत्रों एवं जल ग्रहण क्षेत्रों में वनों का लगाया जाना अति आवश्यक है.

इससे मृदा अपरदन रुकने से नदी पेटे में अवसाद के अभाव में कमी आएगी. अतः जरुरी है कि वृक्षारोपण के साथ साथ वनों का अविवेकपूर्ण दोहन रोका जायें. यातायात मार्गों के निर्माण के समय यह ध्यान रखा जाए कि इससे जल के प्राकृतिक प्रवाह में अवरोध उत्पन्न हो.

वर्षा से पहले नदी की जल ग्रहण क्षमता को बढ़ाया जाए, अवसाद को निकालकर तटबंधों पर डलवाया जाए इससे दोहरा लाभ होगा, एक तो नदी की जलग्रहण क्षमता बढ़ेगी व तटबंध ऊँचे व मजबूत होंगे.

बाढ़ की समस्या से होने वाली हानि से बचने के लिए 1854 इसवी में बाढ़ पूर्वानुमान संगठन की स्थापना की गई. वर्तमान में प्रत्येक जिला मुख्यालय पर बाढ़ नियंत्रण कक्ष की स्थापना की गई है.

मौसम एवं सिंचाई विभाग वर्षा ऋतू में उस समय होने वाली वर्षा की मात्रा एवं जल प्रवाह की राशि को सतर्कता से अवलोकन करते है. संचार के साधनों से सदैव जनता को स्थति से अवगत कराया जाता है.

व्यक्तिगत स्तर पर (At the personal level) व्यक्तियों को चाहिए कि वे वर्षा ऋतू में रेडियों व दूरदर्शन से लगातार समाचार सुनते रहे. यदि वे बाढ़ संभावित क्षेत्र में रह रहे है तो सरकारी आदेशों व सलाह की अनिवार्यता पालना करे.

बिजली उपकरणों को बंद कर दे. घर में कीमती सामान, कपड़े व भोजन सामग्री को सुरक्षित स्थान पर ले जाए, ताकि जब तक बाढ़ का पानी उतरे नही तब तक स्वयं का व अन्य लोगों का ध्यान रखा जा सके.

वाहनों व पालतू पशुओं को सुरक्षित स्थान पर पहुचाए जाए, मकान में यदि जल खतरे के निशान से उपर जाने लगे तो सुरक्षित स्थान पर अतिशीघ्र पहुचने का प्रयास करे.

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