बप्पा रावल का इतिहास | Bappa Rawal History Hindi

बप्पा रावल इतिहास | History Story Kahani Biography Of Bappa Rawal In Hindi :- मेवाड़ के गुहिल वंशी शासकों में बापा (बप्पा) रावल का महत्वपूर्ण स्थान है.

बापा के जन्म व माता पिता के बारे में विद्वानों में मतैक्य नही है, लेकिन इसका बचपन मेवाड़ के एकलिंगजी के पास नागदा गाँव में व्यतीत हुआ, इसी पर सभी विद्वान एक मत है.

यहाँ पर नागदा के जंगलों में गायें चराते हुए बप्पा का सम्पर्क हारीत राशि से हुआ था.

बप्पा रावल का इतिहास Bappa Rawal History Hindi

बप्पा रावल का इतिहास | Bappa Rawal History Hindi

बप्पा रावल का आरम्भिक जीवन और हारीत राशि से मुलाकात (Bappa Rawal early life and meet Harit RASHI)

हारित राशि पाशुपत- लकुलीश मत में दीक्षित एक सन्यासी थे. बापा ने हारित राशि की खूब सेवा की. यह समय प्रतिकूल परिस्थतियों का था. अरब खलीफाओं के खुनी संघर्ष व धर्म परिवर्तन के अत्याचारों से हारित राशि दुखी थे.

बप्पा के व्यक्तित्व, विचारों तथा प्रतिभा से हारित राशि काफी प्रभावित हुए थे. उन्होंने रावल बप्पा में वे सभी गुण देखे जो तत्कालीन परिस्थितियों को अनुकूल परिस्थतियों में बदल सकते थे. यही सोचकर बापा को हारित राशि ने उसी तरह शिक्षित व प्रशिक्षित किया, जिस तरह चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को तैयार किया था.

हारित राशि ने अपने जीवन का अंतिम समय जानकार बापा को वरदान दिया कि तुम मेवाड़ के शासक बनोगे और तुम्हारे वंशजों के हाथ से कभी मेवाड़ का राज्य नही जाएगा. इस वरदान के साथ हारित राशि ने बापा को आर्थिक सहयोग भी किया और यह भी कहा तुम्हारा संबोधन रावल होगा.

बप्पा रावल का मेवाड़ शासक बनना (Bappa Rawal becoming Mewar ruler)

हारित राशि के अवसान के बाद बापा ने सेना का संगठन किया और चित्तोडगढ पर आक्रमण कर उस पर कब्जा कर लिया और अपने राज्य की सीमा का विस्तार भी किया.

इस समय पश्चिम भारत अरबों के आक्रमणों से लगातार संघर्ष करना पड़ रहा था. इस विषम परिस्थतियों को अनुभव कर बापा रावल ने अरबी सेना से टक्कर लेने का निश्चय किया.

उसने प्रतिहार नागभट प्रथम, साभर व अजमेर नरेश अजयराज, हाडौती के धवल, माड़ जैसलमेर के शासक देवराज भाटी एवं सिंध के राजा दाहिर से मिलकर एक संयुक्त मौर्चा बनाया.

बप्पा रावल के नेतृत्व में इस संयुक्त मौर्चे की सेना व अरब की खलीफा शक्ति के बिच जबरदस्त युद्ध हुआ. मुहम्मद बिन कासिम को भी पराजित किया.

सिंध को मुक्त कराकर इस सेना ने ईरान, ईराक व खुरासन तक प्रदेश जीत लिया. बप्पा रावल ने यहाँ कई विवाह किये. धर्मान्तरित हुए लोगों को पुनः हिन्दू बनाया.

बप्पा रावल के कार्य (Bappa Rawal’s work)

”फतुहुल बलदान” नामक अरबी ग्रन्थ का लेखक बताता है कि अब भारत में पुनः मूर्तिपूजा आरम्भ हो गई. इस प्रकार बप्पा ने मेवाड़ की सीमा को ईरान, इराक व खुरासान तक बढ़ाया और प्रथम बार अरब खलीफाओं के आक्रमणों व धर्म परिवर्तन के प्रयासों पर अंकुश लगाया.

बप्पा रावल ने अपने राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था को सुद्रढ़ किया तथा कई निर्माण कार्य भी करवाए, सोने का सिक्का भी जारी किया. बप्पा रावल ने अपने जीवन के चतुर्थाश्रम में प्रवेश करने पर अपने पुत्र को राज्य सौपकर हारित राशि की परम्परा में सन्यास ग्रहण किया और सन्यासवस्था में ही इनका देहांत हो गया.

एकलिंगजी से कोई तीन किलोमीटर उत्तर दिशा में बापा रावल का अंतिम संस्कार किया गया. इस अंतिम संस्कार स्थल को आज भी बप्पा रावल के नाम से जानते है.

जहाँ पर बप्पा का मंदिरनुमा समाधि बना हुआ है. हारित राशि की भविष्यवाणी के अनुसार बप्पा रावल के वंशज सन 1947 में भारत के आजाद होने तक मेवाड़ पर शासन करते रहे.

बप्पा रावल का मेवाड़ इतिहास में स्थान (Bappa Rawal’s place in Mewar history)

इस तरह बप्पा के वंशजों का मेवाड़ पर तेरह सौ वर्षो तक अधिकार रहा, जो भारत में सबसे अधिक जीवित राजवंश के नाम से जाना जाता है. इतिहासकार ओझा ने बप्पा रावल को एक स्वतंत्र प्रतापी और विशाल राज्य का स्वामी बताया है.

डॉक्टर गोपीनाथ शर्मा ने बप्पा का स्थान मेवाड़ के इतिहास में अग्रणी स्वीकार किया है. यह धर्मनिष्ठ था. कर्नल टोंड ने इन्हें कई वंशों का संस्थापक व शासक के रूप में मान्यता प्रदान कर मनुष्यों में पूजनीय और अपनी कीर्ति से चिरंजीवी माना है.

ब्रिटिश विद्वान चाल्र्स मार्टन ने लिखा है कि उसके शौर्य के सामने अरब आक्रमण का ज्वारभाटा टकराकर चूर चूर हो गया. कवि राजा श्यामलदास ने लिखा है कि इसमें संदेह नही कि बप्पा हिंदुस्तान का बड़ा पराक्रमी, प्रतापी व तेजस्वी महाराजधिराज हुआ. उसने अपने पूर्वजों के प्रताप, बडडपन को  पुनः स्थापित किया.

रावलपिंडी से बप्पा रावल का संबंध

बप्पा रावल की गिनती मेवाड़ के सबसे शक्तिशाली राजाओं में की जाती हैं. इनका राज्य विस्तार न केवल बड़ा था बल्कि विदेशी आक्रमणों का भी मुहतोड़ जवाब देने का सामर्थ्य रखते थे. बप्पा रावल ने चित्तौड को अरबो से आजाद करवाकर अपनी राजधानी बनाई.

उस समय के देशी राजाओं में बप्पा की सेना बेहद शक्तिशाली थी. इन्होने अरबी लुटेरों की निगरानी रखने के लिए वर्तमान रावलपिंडी के स्थान पर एक सैनिक चौकी बनाई. इस जगह को पूर्व में गजनी कहा जाता था. इसे बप्पा ने बदलकर रावलपिंडी कर दिया.

वर्तमान अफगानिस्तान तक मेवाड़ की सीमाओं की रक्षा करना एक कठिन प्रश्न था, फिर भी रावल ने साहस का परिचय देते हुए लगातार 16 वर्षों तक अरबी लुटेरों को हिन्दुस्तान से दूर रखा और सिंध में अरबों के प्रभाव को हमेशा के लिए समाप्त कर दिया.

इतिहास और कालभोज (बप्पा रावल)

इतिहास के ऊपर किसी की हुकुमत नहीं चलती, लेकिन यह तय है कि जो व्यक्ति इतिहास का निर्माण कर रहे है उनके पास लिखने के लिए समय नहीं होता, आज हम जो इतिहास पढ़ते हैं वह कलम से अधिक चंद सिक्कों की खनक से लिखा गया था.

जिसमें महान लोगों को लुटेरे और लुटेरों को महान लिख दिया गया. पर इसी इतिहास में कुछ लोग ऐसे भी हुए जो अपनी तलवारों की चमक शौर्य और पराक्रम से जिन्होंने माँ भारती की रक्षा ही नहीं कि अपितु दुश्मनों के घरों में घुसकर भगवा ध्वज फहराया, और नया इतिहास रच दिया.

आज हम जिस इतिहास की गाथा को बता रहे हैं यह उस समय का इतिहास हैं जब भारत भूमि से हजारों कोस दूर अरब के रेगिस्तान में मजहबी सोच उफान मार रही थी. इस मजहबी सोच ने एक ओर पूर्वी रोमन साम्राज्य का नक्शा समेट दिया था तो दूसरी तरफ फारस का पारसी साम्राज्य भी लगभग निस्तानाबुत कर दिया था.

अब बारी थी हिंदुस्तान की मिट्टी को रौदे जाने की. लेकिन यह सब कुछ घट रहा था तब यहाँ की मिट्टी में एक शूरवीर खेल रहा था. नाम था कालभोज जिसे सब बप्पा रावल अर्थात पिता रावल कहते थे.

बप्पा के बारे में कहा जाता हैं कि जब सन 711-712 के लगभग अरबी मुस्लिम आक्रान्ताओं को हरित ऋषि ने अपनी आँखों से देखा, तभी उन्होंने कहा था कि एक ऐसा यौद्धा आएगा, जो इन अरबी मुस्लिम आक्रमणकारियों को खदेड़ देगा.

इसके बाद 713 में जन्मे कालभोज अर्थात बप्पा रावल की शिक्षा दीक्षा हरित ऋषि की देख रेख में हुई. महर्षि हारित ने इनको युद्ध अस्त्र और शस्त्र की शिक्षा प्रदान की.

यही नहीं जब वो मात्र 3 साल के थे तब वो और उनकी माता असहाय महसूस कर रहे थे, अतः इन्होने भीलों के बीच रहना स्वीकार किया, भील समुदाय ने इनकी और इनकी माता का पालन पोषण किया साथ ही भील समुदाय ने अरबी मुसलमानों से लड़ाई में बप्पा रावल का भरपूर साथ दिया.

यह बालक यू तो गहलोत राजपूत राजवंश में पैदा हुआ था, लेकिन देखते ही देखते समूचे मेवाड़ की प्रजा इसे अपने पिता के समान मानने लगी. बप्पा ने भी सम्मान को जाया नहीं जाने दिया. और अपने कुल राजवंश के नाम की बजाय नया राजवंश आरम्भ कर दिया.

जिसमें अजमेर और जैसलमेर जैसे छोटे राज्यों को अपने साथ मिलाकर सारी प्रजा को सम्मान देते हुए नाम रखा मेवाड़ वंश, और चित्तौड को अपनी राजधानी बनाया. दूसरी ओर सिंध में अरबी लुटेरों का शासन स्थापित हो चुका था.

अब वो पूर्व की ओर आगे बढ़कर समूचे भारत को भी रौदने की योजना बना रहे थे. लेकिन उन्हें मालूम नहीं था इस वक्त हिंदुस्तान के द्वार पर मेवाड़ी राजवंश के सबसे प्रतापी यौद्धा, बप्पा रावल का शासन हैं.

9 फीट ऊंचे कद के बप्पा रावल जिनकी तलवार के एक प्रहार से पांच दुश्मनों की गर्दनें जमीन चाटने लगती थी. वीरता में उनकी बराबरी कोई और यौद्धा नहीं कर सकता था.

ये वो शासक एवं यौद्धा थे जिनके बारे में राजस्थानी लोकगीतों में आज भी कहा जाता हैं सबसे पहले बप्पा रावल ने केसरिया फहराया.

सर्वप्रथम बप्पा रावल ने केसरिया फहराया ।
और तुम्हारे पावन रज को अपने शीश लगाया ।।
फिर तो वे ईरान और अफगान सभी थे जिते ।
ऐसे थे झपटे यवनो पर हों मेवाड़ी चीते ।।

सिंध जीतने के बाद इस्लामी लुटेरों की फौज आगे बढ़ी तो उनका सामना बप्पा रावल से हुआ, लेकिन उन्हें बप्पा रावल की मेवाड़ी सेना ने धूल चटा दी. लुटेरे भाग गये इसके कुछ समय बाद मजहबी लुटेरों की फौज ने आक्रमण किया, एक बार फिर बप्पा की तलवार ने इन्हें उल्टा दौड़ा दिया.

अब बप्पा ने सोच लिया कि हर रोज इस झंझट से बेहतर है उनके घर पर जाकर आक्रमण किया जाए. मेवाड़ की सेना ने जोरदार आक्रमण किया और लुटेरों की सल्तनत के गढ़ एक ही वार में ढहा दिए और एक नई लकीर खीच दी.

जिसमें अफगानिस्तान का कांधार, खुरासान, तूरान और ईरान के हिस्सों को भी शामिल कर लिया. बप्पा के सैन्य ठिकाने के कारण ही आज के पाकिस्तान के शहर का नाम रावलपिंडी पड़ा था.

आखिर यह कैसे संभव हुआ, आइये जानते हैं बप्पा की वीरता का अनूठा इतिहास, जिनके शौर्य और पराक्रम के भय से अरबी लुटेरों को दिल्ली की गद्दी तक आने में 500 साल लगे.

आखिर मेवाड़ पर शासन करने वाले बप्पा रावल सिंध और बाद में ईरान तक कैसे पहुंचे. और वहां कैसे रावलपिंडी नामक शहर की स्थापना हुई. यह तो सभी जानते हैं कि 712 ईस्वी में मुहम्मद कासिम ने सिंध जीत लिया था.

उसके बाद अरबों ने चारों ओर धावे बोलने शुरू कर दिए. उन्होंने चवनों, मौर्यों, सैन्ध्वों, कछेलो को हराया. मारवाड़, मालवा, मेवाड़ गुजरात आदि सभी भूभागों में उसकी सेनाएं जाने लगी.

एक तरफ नागभट्ट प्रथम ने अरबों को पश्चिमी राजस्थान के मालवे से मार भगाया, वही दूसरें मोर्चे पर बप्पा ने यही कार्य मेवाड़ और उसके आसपास के प्रदेश के लिए किया. ऐतिहासिक दस्तावेजों से पता चलता है कि गुहिल के वंशज नागा द्वितीय को 727 ई में भीलों ने मार डाला था.

यह वो समय था जब हिंदुस्तान पर अरबी लुटेरों के हमले का डर बना हुआ था. आज से लगभग 1400 वर्ष पहले अरब के लुटेरे शासकों ने मध्य पूर्व और अरब के इलाकों को अपने कब्जे में ले लिया. इसके बाद इन्होने मिस्र, स्पेन और ईरान को भी जीत लिया.

इसी दौरान इरान का शासक अल हजाज अकूट सम्पदा से भरे पड़े हिंदुस्तान पर अपनी निगाह टेडी किये हुए था. उसने कई बार यहाँ आक्रमण करना चाहा, आपसी फूट और ;लालच के कारण वो यहाँ हमला नहीं कर सका.

हालांकि इस समय तक अरब लुटेरों ने सिंध पर छोटे मोटे हमले करने शुरू कर दिए थे. इसके बाद अलहज्जाज के भतीजे और दामाद मोहम्मद बिन कासिम ने 712 ईसवीं में खलीफा की मदद से हिंदुस्तान की उत्तर पश्चिमी सीमा से सिंध पर आक्रमण कर दिया.

उस समय दाहिर सेन सिंध के राजा थे, सिंध की सीमा यूपी के कन्नौज, अफगानिस्तान के कांधार से लेकर कश्मीर और रेगिस्तान को लेकर नमक की दलदली भूमि गुजरात के कच्छ तक थी.

मुहम्मद बिन कासिम ने उनके किले पर कई बार हमला किया, लेकिन दाहर सेन की सेना से उसे हार ही मिली. फिर एक रोज कासिम ने धोखे से दाहिर सेन की सेना में अपने आदमियों को महिला के वस्त्र पहनाकर भेज दिया. आखिरकार राज्य की रक्षा के लिए दाहिर सेन ने दुश्मनों से लड़ते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी.

इस प्रकार अरबों ने सिंध को जीतकर उसके बड़े भूभाग पर कब्जा कर लिया. इसके बाद रास्ते में आने वाले सभी साम्राज्य अरबों के आगे कमजोर पड़ते जा रहे थे. कोई भी शक्ति अरब आक्रमणकारियों का सामना करने में सक्षम नहीं थी.

वो वर्तमान अफगानिस्तान, सिंध को जीत चुका था. और रेगिस्तान से होते हुए मेवाड़ की ओर बढ़ रहा था. देखते ही देखते कुछ सालों में अरब आक्रान्ताओं ने चावणों, मौर्यों सैन्ध्वों, क्च्चेलों को हरा दिया.

इसके बाद अरबों ने सिंध के रास्ते वर्तमान के राजस्थान और गुजरात में प्रवेश करते हुए 725 ईसवीं तक जैसलमेर मारवाड़, मांडलगढ़ और भरूच इलाकों पर कब्जा कर लिया.

जब सभी साम्राज्य अरबों के आगे हार चुके थे, ऐसे समय में नागा द्वितीय के पुत्र और मेवाड़ के महाराजा बप्पा रावल ने युद्ध की बागडोर अपने हाथों में ली. उन्होंने अपनी विशाल सेना को एकत्र किया और हार चुके राज्यों को जीत का आश्वासन देकर अपने पक्ष में किया.

बप्पा रावल ने सर्वप्रथम मेवाड़ के निकट स्थित महत्वपूर्ण चित्तौड के किले पर अपना आधिपत्य जमाया और 734 मेवाड़ राजवंश की नीव रखी. चित्तौड़ विजय के उपरान्त नागदा से हटाकर इसे अपनी राजधानी बनाया. उन्होंने जैसलमेर और जोधपुर के शासकों के साथ मिलकर अरबों को वापस अफगानिस्तान से बाहर खदेड़ दिया.

महज इतना ही नही बप्पा ने साहस का परिचय देते हुए वर्तमान के पाकिस्तान के रावलपिंडी शहर में अरब लुटेरों पर नजर रखने के लिए एक सैन्य चौकी बनाई, पहले इस स्थान को गजनी के नाम से जाना जाता था. और देखते ही देखते वर्तमान के अफगानिस्तान तक जा पहुंचा था.

बप्पा रावल ने अफगानिस्तान अपने राज्य और हिन्दू साम्राज्य को विस्तारित किया. इतना ही नहीं बप्पा ने जिन जिन राजाओं को हराया उनकी बेटियों से विवाह भी किया. ऐसा कहा जाता हैं समस्त रानियों में 35 सिर्फ मुस्लिम शासकों की बेटियां थी.

ये सभी मुस्लिम शासक या तो बप्पा रावल से हार गये थे या उनसे डर के बेटियों का विवाह बप्पा रावल के साथ कर दिया और संधि कर ली ताकि जान बच सके. आठवीं सदी के आते आते केसरिया ध्वज खुरासान तक फहरा दी गई. अफगानिस्तान का गांधार हो या खुरासान और तूरान के इलाके वाले ईरान के हिस्सों को भी शामिल कर लिया गया.

मेवाड़ साम्राज्य अरब के रेगिस्तान तक को छूने लगा. यह वह समय था जब कोई भी अरबी लुटेरा खलीफा हिंदुस्तान की तरफ आना तो दूर बप्पा के डर से देखता भी नहीं था. बप्पा एक ऐसे सम्राट थे जो कभी किसी से पराजित नहीं हुए, चक्रवर्ती सम्राट थे.

जब इन्होने सम्पूर्ण क्षेत्र में शान्ति की स्थापना कर दी तो इन्होने सन्यास लेना उचित समझा और मात्र 58 वर्ष की आयु में सन्यास ले लिया और अपने पुत्र को मेवाड़ का राजा बनाया.

आखिर ज्यो ज्यो वक्त गुजरा बप्पा की उम्र ढलती चली गई और अन्तः 97 वर्ष की आयु में एक अजेय यौद्धा मेवाड़ की मिट्टी में विलीन हो गया और जाते जाते छोड़ गया एक ऐसा इतिहास जिसे सुनकर आज भी बप्पा के शौर्य के पराक्रम के गीत गाए जाते हैं वो बप्पा जिसने अपना इतिहास किसी से लिखवाया नहीं बल्कि अपने पराक्रम से उसका निर्माण किया.

बप्पा रावल की मृत्यु – ( Bappa Rawal Death )

मेवाड़ी राजवंश के सबसे वीर साहसी प्रतापी राजा बप्पा रावल का सानी उस समय के भारत में कोई अन्य नहीं था.

उनकी वीरता के गुणगान आज भी राजस्थानी लोकगीतों में किए जाते हैं. इनकी मृत्यु नागदा में हुई थी. जहाँ उनका समाधि स्थल आज भी स्थित हैं.

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1 thought on “बप्पा रावल का इतिहास | Bappa Rawal History Hindi”

  1. रोहित Kandpal

    थोड़ा सम्मान भी तो प्रदर्शित कीजिए अपनी लेखनी में । ऐसे वीर महामानव को आप जगह जगह उसने उसने संबोधित कर रहे हैं

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