भारत की स्थापत्य कला | Indian Architecture In Hindi

भारत की स्थापत्य कला | Indian Architecture In Hindi: मध्यकाल वह समय था जब भारत में चित्रकला और स्थापत्य कला ने बहुत प्रगति की, इसके अनेक नमुने आज भी हमारे सामने हैं. और उसी  परम्परा को आज के कलाकार आगे बढ़ा रहे हैं.

भारत की स्थापत्य कला का इतिहास सिंधुघाटी सभ्यता के जितना पुराना हैं, दुनियां की अधिकतर सभ्यताएं उस समय अपने आरंभिक दौर में थी,

वही सिंधु घाटी सभ्यता में नजर नियोजन तथा इमारतों के निर्माण के साक्ष्य देखकर पश्चिमी इतिहासकारों को भी भारत की स्थापत्य कला की प्राचीनता आज से चार पांच हजार साल प्राचीन माननी पड़ती हैं.

भारत की स्थापत्य कला | Indian Architecture In Hindi

मध्ययुगीन चित्र शैली

चित्र शैली का अर्थ चित्र बनाने के एक विशेष तरीके से हैं. मध्ययुगीन चित्रकला शैली के दो प्रधान केंद्र रहे हैं. पहला पश्चिमी भारत का क्षेत्र तथा दूसरा उत्तर पूर्वी भारत का क्षेत्र.

पश्चिमी भारत के क्षेत्र का केंद्र गुजरात व राजस्थान बना, उत्तरी पूर्वी शैली का केंद्र बंगाल और बिहार. दोनों केन्द्रों के विषय जैन व बौद्ध कथाओं पर आधारित थे. इसे पाल शैली कहते थे.

इनके आकार, प्रकार, स्वरूप में साम्यता थी. यह चित्र ताड़पत्र व कागज पर बनाए जाते थे. इन्हें पोथी चित्र भी कहा जाता था.

इस शैली की पहचान हैं, गुरुड सी आगे निकली हुई नाक, पतली आँखे, छोटी टुंडी, ऐठी अंगुलियाँ पतली कमर इत्यादि.

इन चित्रों में लाल, नीले, पीले चित्रों का प्रयोग किया जाता था. इनकी रेखाओं की एक छोटी मोटाई होती थी. पश्चिमी भारतीय शैली से राजस्थानी चित्रकला की उत्पप्ति मानी जाती हैं.

सल्तनत कालीन स्थापत्य कला (modern indian architecture In Hindi)

दिल्ली में मुस्लिम सल्तनत की स्थापना के साथ ही नई भारत में स्थापत्य कला की शैली ने जन्म लिया. पश्चिम एशिया के प्रभाव से अब भारत में भी मस्जिदे बनने लगी.

शायद इस्लामिक शैली वाला देश का सबसे बड़ा भवन समूह दिल्ली के पास महरौली में बना. यहाँ कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद के समीप ही दुनिया की मशहूर क़ुतुब मीनार हैं.

मुगलकालीन स्थापत्य कला (Mughal Sthapatya Kala)

भारत में दिल्ली सल्तनत के बाद मुगल आए. मुगलों के पास बड़ी बड़ी इमारते बनाने के लिए अपार धन था. उन्होंने मस्जिदों के अलावा कई भव्य मकबरे भी बनवाएं.

इन मकबरों में मध्य और पश्चिम की स्थापत्य कला का काफी असर था. दिल्ली में हुमायु का मकबरा, आगरा में ताजमहल भारत में स्थापत्य कला की मुगल शैली के विशिष्ट उदाहरण हैं.

शाहजहाँ द्वारा निर्मित दिल्ली का लाल किला मुख्यतः रिहायशी किला था, सामरिक महत्व का नही, वही आगरा में बना लाल किला सामरिक महत्व का भी था.

इस किले को यूनेस्को ने वैश्विक विरासत घोषित किया हैं. दिल्ली के लाल किले को हिंदुस्तान में सता का प्रतीक माना जाता था. इसका उदाहरण तब मिलता हैं,

जब सुभाषचंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज के सैनिकों को प्रेरित करते हुए लाल किले की प्राचीर से तिरंगा फहराने की बात कही थी.

आज हिन्द फौज के सैनानियों पर मुकदमा भी अंग्रेज सरकार ने लाल किले में ही चलाया था. मुगल स्थापत्य कला ने राजस्थान में भी स्थापत्य कला पर असर डाला. अब राजस्थान की इमारतों में भी छ्ज्जें, छतरी और झरोखे बनाएं जाने लगे हैं.

राजस्थान की स्थापत्य कला (architecture of rajasthan)

राजस्थानी स्थापत्य कला क्या थी, इसे समझने के लिए कुछ अतीत की ओर लौटना पड़ेगा. मानव को गुफाओं से निकलकर कुछ सुरक्षित आवासों की आवश्यकता पड़,

उसने बाँस घास फूस से झोपडी का निर्माण किया. इसी प्रक्रिया में उसने पत्थरों तथा पक्की ईटों का उपयोग किया.

मनुष्य जब समूहों में रहने लगा तो उसने पशुपालन तथा कृषि कार्य को अपनाया, आस-पास के जंगली जानवरों से रक्षा करने के लिए एक परकोटे का निर्माण किया.

भारत में सिंधु सभ्यता के उत्खनन से और राजस्थान के कालीबंगा हनुमानगढ़ और आहाड़ सभ्यता के उत्खनन से सुनिश्चित आवास की एक नगरीय सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं.

ऐसा माना जाता हैं कि सिंधु सरस्वती सभ्यता से ही ईटों के भवन बनाने की परम्परा शुरू हुई, जिसका निरंतर विकास होता रहा,

मौर्य युग में लकड़ी से निर्मित भवनों तथा दुर्गों व किलों के निर्माण का विवरण मिलता हैं. पाटलिपुत्र के भव्य महलों का उल्लेख मेगस्थनीज ने भी किया हैं.

दुर्ग व किलों का उपयोग सुरक्षा के लिए होता था, इनका इस्तमोल सांकेतिक रूप से लोगों के साथ संवाद करने के लिए भी होता था. तभी तो अनेक इमारते इतनी खुबसुरत और महंगी बनाई जाती थी,

ताकि यह जाहिर हो सके कि इमारत में रहने वाला तथा उसे बनवाने वाला कितना महान व्यक्ति था. समय के साथ साथ स्थापत्य कला कर स्वरूप में भी परिवर्तन आया जिन्हें हम निम्न रूप में देख सकते हैं.

  • दुर्ग निर्माण
  • स्तूप
  • मंदिर
  • पुर अथवा नगर
  • ग्रामीण स्थापत्य

स्थापत्यविद पर्सी ब्राउन की मान्यता हैं कि मुस्लिम कारीगरों ने भारतीय स्थापत्य के पारम्परिक व आकारों को स्थानीय रूपों को मिलाकर आवश्यकतानुसार संशोधन कर एक विशिष्ट स्थापत्य शैली का निर्माण किया, जिसे इंडो इस्लामिक शैली का नाम दिया गया.

FAQ

भारतीय वास्तुकला को क्या कहा जाता है?

मुख्य रूप से, भारतीय मंदिर वास्तुकला को तीन व्यापक प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है, अर्थात्; नागर या उत्तरी शैली, वेसर या मिश्रित शैली, और द्रविड़ जो दक्षिणी शैली है। इन सभी शैलियों में अपने अद्वितीय क्षेत्रीय प्रभाव और वंश हैं।

भारतीय वास्तुकला के बारे में अद्वितीय क्या है?

भारतीय वास्तुकला अपने प्रभावकों के तत्वों को अवशोषित करने और अद्वितीय रूप बनाने के लिए जानी जाती थी। परिणाम वास्तुशिल्प निर्माण की एक विकसित श्रृंखला है जो पूरे इतिहास में निरंतरता की एक निश्चित मात्रा को कम नहीं रखता है। सम्राट अशोक के शासनकाल के दौरान बौद्ध धर्म को महत्व मिला।

भारत में प्रसिद्ध वास्तुकला क्या हैं?

ऐतिहासिक भारतीय इमारतों में सबसे प्रसिद्ध, ताजमहल यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है और दुनिया के नए सात अजूबों में से एक है। 1632 में मुगल सम्राट शाहजहाँ द्वारा अपनी पत्नी मुमताज़ महल की कब्र के लिए बनवाया गया, ताज आज सार्वभौमिक रूप से प्रेम के प्रतीक के रूप में पहचाना जाता है।

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