मआसिर ए आलमगीरी

मआसिर ए आलमगीरी maasir e alamgiri: इस ग्रंथ का लेखक मुहम्मद साफी मुस्तइद्दखां हैं.वह मुगल साम्राज्य के वजीर इनायतुल्लाखां की मुंशी था.

इस ग्रंथ में औरंगजेब के शासन का इतिहास हैं ग्रंथ की रचना किसी का आदेश से नहीं अपितु स्वयं की इच्छा के कारण थी.

मआसिर ए आलमगीरी maasir e alamgiri

मआसिर ए आलमगीरी maasir e alamgiri

1710 ई में ग्रंथ की रचना पूरी हो गई. इस ग्रंथ के दो भाग हैं. और साथ में एक परिशिष्ट भी हैं. पहला भाग काजिम के आलम गीरनामा का संक्षिप्तिकरण मात्र हैं. दूसरे भाग में औरंगजेब के शासन के अंतिम ४० वर्षों तथा उनकी मृत्यु का हाल दिया गया हैं.

परिशिष्ट में सम्राट से सम्बन्धित कहानियों व शाही परिवार का पूरा वृतांत दिया गया हैं. मआसिर ए आलमगीरी के ऐतिहासिक मूल्यांकन के सम्बन्ध में विद्वान एकमत नहीं हैं.

किसी के अनुसार यह घटनाओं एवं तथ्यों का खजाना है तो किसी के अनुसार लेखक ने अनेक महत्वपूर्ण घटनाओं को छोड़ दिया हैं.

उसने कुछ विषयों पर ध्यान दिया हैं और कुछ छोड़ दिए हैं. इसके अलावा उसने अपने ग्रंथ में अनेक ऐसी तुच्छ घटनाओं का उल्लेख किया हैं.

जिनकों इतिहास में कोई स्थान नहीं मिलना चाहिए, फिर भी औरंगजेब के दक्षिण प्रवास के समय की घटनाओं के लिए इस ग्रंथ की उपेक्षा नहीं की जा सकती.

मआसिर ए आलमगीरी का लेखक कौन था?

मुहम्मद साफी मुस्तइद्दखां ने मआसिर / मासिर-ए-आलमगीरी नामक मध्यकालीन इतिहास ग्रंथ को लिखा था. इसमें मुगल काल के एक अहम शासक औरंगजेब के शासन अवधि ग्याहरवें वर्ष से 20 वें वर्ष तक के कालखंड की घटनाओं का उल्लेख किया गया हैं.

प्रथम दस वर्षों का इतिहास शिराजी की आलमगीरनामा का सारांश लिखा हैं. किताब में सतनामी विद्रोह को विस्तृत ढंग से कवर किया गया हैं.

मासिर-ए-आलमगीरी में 1680 के दौर के आलिमों के तबादले उनकी नियुक्ति और पदोन्नति के बारे में विवरण लिखा गया हैं. इस किताब को इतिहासकार सर जदुनाथ ने मुगल काल का गजेटियर भी कहा हैं.

मआसिर ए आलमगीरी मूल रूप से फ़ारसी में लिखा एक मध्यकालीन ग्रन्थ हैं. यह अंतिम मुगल शासक का मानक संसाधन है जिसके बारे में अच्छे ढंग से लिखा गया हैं.

इसकी लेखन शैली इतिहास और जीवनी के रूप में दी गई हैं. शासकों के शौर्य, उनके पत्राचार तथा व्यक्तिगत यादों को भी समाहित किया गया हैं. इसको लिखने की शुरुआत मिर्जा काजिम ने की तथा पूर्ण लेखन 1710 में साकी खान ने किया.

मआसिर ए आलमगीरी का अनुवाद

भारतीय मध्यकालीन इतिहास में मुगल शासकों का अहम स्थान है उनमें भी धार्मिक कट्टर और भारत के बड़े भूभाग पर शासन करने वाले औरंगजेब के बारे में भी जानने का बड़ा कौतुहल हैं.

1707 में जब औरंगजेब की मृत्यु हो गई इसके तीन साल बाद अंतिम सचिव इनायतुल्ला खान कश्मीरी के निर्देशन पर साकी मुस्तैद खान ने मासिर-ए-आलमगिरी ने लेखनी पूरी की.

इतिहासकार जदुनाथ सरकार ने इसे अंग्रेजी में अनुवादित किया हैं. इसका पहला अध्याय दारा शिकोह के साथ लड़े उत्तराधिकार युद्ध के साथ शुरू होता हैं.

किताब अधिकतर रूप से राजनैतिक घटनाओं को प्रदर्शित करती हैं. इसमें मुगल मराठा संघर्ष को भी दिखाया गया हैं. रोहित सहस्रबुद्धे ने इस किताब का मराठी में अनुवाद किया हैं.

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