रास बिहारी बोस का जीवन परिचय Biography Of Rash Behari Bose In Hindi: जापान से इंडियन इंडिपेंडेस लीग की स्थापना कर भारत की आजादी के लिए आजाद हिंद के लिए ब्रिटिश हुकुमत की चूल हिलाने वाले स्वतंत्रता सेनानी थे.
बोस ने नेताजी के साथ मिलकर भी काम किया. आज की जीवनी में उनके जीवन वृतांत को संक्षिप्त में दिया गया हैं.
Biography Rash Behari Bose In Hindi रास बिहारी बोस जीवन परिचय
इंडियन इंडिपेंडेस लीग और आजाद हिंद फौज जैसी स्वतंत्रता सैनानियो की फौज में अहम भूमिका निभाने वाले रासबिहारी बोस महान देशभक्त थे.
अपनी मातृभूमि को गोरों की बेड़ियों को तोड़कर स्वतंत्र कराने की सोच रखने वाले इस महान सेनानायक ने अपना पूरा जीवन राष्ट्र के नाम समर्पित कर दिया था.
वे भले ही आजादी का सवेरा नही देख पाए मगर उनके बलिदान और देशप्रेम ने आगामी प्रयासों को दैवीय शक्ति प्रदान की.
अपने देश के लिए इतना बलिदान देने वाले रास बिहारी बोस को जापानी सरकार ने उनकी मृत्यु के बाद ”आर्डर ऑफ द राइजिंग सन” से भी सम्मानित किया था. रास बिहारी बोस का जीवन परिचय में एक झलक इस क्रांतिकारी देशभक्त के सम्पूर्ण जीवन पर.
इनका जन्म २१ जनवरी १९४५ को बर्धमान वर्तमान पश्चिम बंगाल में हुआ था. इनके पिता का नाम विनोद जी बोस था जो पेशे से अध्यापक थे, इनके जीवन पार विनोद जी का व्यापक असर पड़ा
उन्ही के विचारों से प्रेरित होकर रास बिहारी बचपन में ही भारत से अंग्रेजो को खदेड़ने की प्लानिग सोच रहे थे. कालान्तर में इन्होने अंग्रेजी सेवा में कुछ समय के लिए क्लर्क के पद पर भी कार्य किया, जहाँ उनकी मुलाक़ात अनेक क्रांतिकारी नवयुवकों से हुई, जिनकी प्रेरणा उन्हें क्रांतिकारी गतिविधियों तक ले आए.
पहली बार रास बिहारी बोस बंग विभाजन के समय सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में सामने आए. इन्होने अरविन्द घोष तथा जतिन बनर्जी जैसे दिग्गज राष्ट्रनेताओ के साथ गोरी सरकार के कारनामों को जनता तक पहुचाने में अग्रणी भूमिका निभाई.
रास बिहारी बोस की जीवनी
रास बिहारी बोस 20 वी सदी के एक महान क्रांतिकारी नेता थे. इनका जन्म 25 मई 1886 को पश्चिम बंगाल के पेलारबिघाटी नामक स्थल पर हुआ था. रास बिहारी बोस बचपन में ही एक क्रांतिकारी संगठन के सक्रिय सदस्य बन गये थे.
उन्होंने उत्तरप्रदेश दिल्ली पंजाब सहित भारत के बहुत से क्षेत्रों से गुप्त क्रांतिकारी संगठनो को खड़ा किया. 23 दिसंबर 1912 वो दिन था जिस दिन बोस देशभर के लोगों के सामने आए उस समय उन्होंने वायसराय लार्ड होर्डिंग पर दिल्ली में हमला किया था.
जिसके बाद ये बनारस चले गये जहाँ पर गदर पार्टी के सहयोग से आंतरिक रूप से एक सक्रिय क्रांतिकारी दल का गठन किया.
हालांकि वे जिन सपनों को लेकर चल रहे थे उन्हें साकार करना उतना आसान नही था. उनकी राह का सबसे बड़ा रोड़ा अंग्रेजी हुकुमत थी. जिन्होंने बोस के कई साथियो को राजद्रोह के आरोप में बंद कर दिया था.
क्रांतिकारी जीवन और जापान यात्रा
चांदनी चौक कांड के बाद बोस और उनके साथियों पर लाहौर षड्यंत्र कांड का मुकदमा चलाया गया. सरकार के इस झूठे मुकदमे से बचने का एक ही रास्ता था, वो था देश छोड़कर भाग जाना. रास बिहारी बोस ने भी यही राह चुनी और जापान चले गये.
1915 से लेकर कई वर्षो तक जापान में एक शरणार्थी के रूप में रहते हुए इन्होने प्रवासी भारतीयों की मदद से भारत को आजाद करवाने के लिए एक सेना का गठन करने का निश्चय किया.
इसी क्रम में जून 1942 में थाईलैंड की राजधानी बैंकाक में रास बिहारी बोस ने भारतीय स्वाधीनता संगठन का अधिवेशन बुलाया. इसी समय पर खाड़ी के एशियाई देशों से नेताजी सुभाषचंद्र बोस ”आजाद हिन्द फौज” का गठन कर चुके थे. जिसकी कार्यकारिणी परिषद के अध्यक्ष स्वयं रास बिहारी बोस ही थे.
अपने अभियान की कामयाबी के लिए इन्होने जापानी सरकार से भारतयुद्धबंदियों तथा सरकार के प्रत्यक्ष सहयोग से भारत की स्वतंत्रता दिलाने के लिए सहायता भी मांगी.
वर्ष 1943 में रास बिहारी बोस ने आजाद हिंद फौज की कमान नेताजी सुभाषचंद्र बोस को सौप दी. तथा 21 जनवरी 1945 को जापान की राजधानी टोक्यों में इनका देहांत हो गया था.
जापान में विवाह
रासबिहारी बोस ने वर्ष 1916 में जापान में रहते हुए सोमा आइजो और सोमा कोत्सुको की बेटी से विवाह किया जो एशियाई समर्थक नेता थे. इसी की बदौलत वर्ष 1923 को रास बिहारी बोस को जापान की नागरिकता मिल जाती हैं.
इंडियन इंडीपेंडेंस लीग की स्थापना
विदेशों में रहकर भारत की आजादी के लिए जत्न करने वाले बोस ने जापान के अधिकारियों और प्रवासी भारतीय क्रांतिकारियों की मदद से एक संगठन बनाने का निश्चय किया.
जापान की राजधानी टोक्यो में बोस ने 28 मार्च 1942 को एक कांफ्रेस बुलाई और इसी सभा में इंडियन इंडीपेंडेंस लीग की स्थापना का प्रस्ताव रखा गया, जो सभी द्वारा स्वीकृति से पास हुआ और भारत की आजादी के लिए एक सशस्त्र सेना के गठन पर स्वीकृति मिली.
इंडियन नेशनल आर्मी
टोक्यो सम्मेलन के बाद रास बिहारी बोस और समर्थकों ने दूसरा इंडियन इंडीपेंडेंस लीग सम्मेलन थाईलैंड की राजधानी बैंकोक में रखा. जून 1942 में आयोजित इस सम्मेलन की अध्यक्षता के लिए नेताजी सुभाषचंद्र बोस को आमंत्रित किया गया.
बोस ने जापान सरकार से बात कर मलय और बर्मा में कैद किये भारतीयों को इंडियन नेशनल आर्मी में शामिल करने का निवेदन किया जिसे जापान ने मान लिया और इस तरह सितम्बर 1942 में लीग की सैन्य शाखा के रूप में आजाद हिन्द फौज का जन्म हुआ.
जापानी सरकार ने हालांकि बाद में मोहन सिंह और रास बिहारी बोस को आजाद हिन्द फौज से पदच्युत कर दिया. मगर नेताजी के नेतृत्व में यह संगठन भारत की आजादी के लिए विदेशी धरती पर काम करता रहा.
सितम्बर 1942 में इण्डियन नेशनल लीग की सैन्य शाखा के रूप में किया. और इसी के साथ झंडे का भी चयन किया और जिसे आज़ाद नाम दिया. और इस झंडे को उन्होंने सुभाष चंद्र बोस के हवाले किया.
मृत्यु
विदेशी धरती से भारत की स्वतंत्रता के लिए नियोजित ढंग से संग्राम छेड़ने वाले रास बिहारी बोस का निधन 21 जनवरी 1945 को हो गया था. इनके निधन के पश्चात जापानी सरकार ने बोस को आर्डर आफ द राइजिंग सन का सम्मान दिया.
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