सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय | Biography Of Sumitranandan Pant In Hindi

सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय Biography Of Sumitranandan Pant In Hindi पंत प्रकृति की क्रोड़ में पलने वाले अत्यंत सुकुमार कवि हैं.

नवींन युग में प्रवाहित प्रमुख प्रवृत्तियों एंव विचार धाराओ की रूप रेखाएं स्पष्ट या अस्पष्ट स्वरूप में सुमित्रानंदन पंत की कविताओ में मिल जाएगी.

प्रकृति निरिक्षण से उन्हें कविता की प्रेरणा मिली. प्रकृति प्रेमी और छायावाद के स्तम्भ सुमित्रानंदन के सक्षिप्त जीवन परिचय उनकी रचनाओं और कविता संग्रह पर एक नजर-

Biography Of Sumitranandan Pant In Hindi सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय

सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय | Biography Of Sumitranandan Pant In Hindi
पूरा नामसुमित्रानंदन पंत
काव्य नाम/उपाधिप्रकृति के सुकुमार कवि
जन्म20 मई 1900
जन्म स्थानअल्मोड़ा ,कौसानी गाँव उतराखंड
बचपन नामगुसाई दत्त
मौलिक रचनाएँवीणा,पल्लव, युगवाणी, युगांत,ग्राम्या
मृत्यु28 दिसम्बर 1977
सम्मानपद्मभूषण,ज्ञानपीठ पुरस्कार, हिंदी साहित्य अकादमी, सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार

अपनी जन्मभूमि कुर्मांचल प्रदेश की सोंदर्यत्मक अनुभिती ने पंत को उनकी सारी भावनाओं में रंग दिया. विणा से ग्राम्या तक सभी रचनाओं में यह विशेषता किसी न किसी रूप में विद्यमान हैं.

सुमित्रानंदन पंत के अंदर विश्व और जीवन के प्रति एक गम्भीर आश्चर्य की भावना भी इसी कारण आ गईं थी. उनकी कल्पना जन भीरु हो गईं. 

प्रकृति को उन्होंने सदा सजीव सत्ता रखने वाली नारी के रूप में देखा हैं. विणा और पल्लव उनकी रचनाओं में विशेषत से गुंजन में सुन्दरम से शिवम की ओर अधिक झुक गये हैं. गुजंन तथा ज्योत्स्ना में कल्पना अधिक तथा भावात्मक हो गये हैं.

सुमित्रानंदन पंत जी का जन्म

20 मई साल 1900 में अल्मोड़ा जो पूर्व में उत्तरप्रदेश वर्तमान में उत्तराखंड का एक जिला है, यहाँ इनका जन्म हुआ था. इनके जन्म के थोड़े समय पश्चात ही माताजी सरस्वती देवी का देहांत हो गया. सुमित्रानंदन पन्त जी के पिताजी का नाम गंगादत्त पंथ था.

पंत के बचपन का नाम गोसाई दत्त था. ये अपने सभी भाई बहिनों में सबसे छोटे थे. बालपन में ही माँ के देहांत के पश्चात दादी माँ ने इनकी परवरिश की. महज सात वर्ष की अल्पायु में ही इन्होने कविताएँ लिखनी शुरू कर दी तथा अपना नाम गोसाई दत्त से सुमित्रा नंदन पंत कर दिया.

शिक्षा व आरंभिक जीवन

सुमित्रानंदन पंत जी ने स्नातक तक की शिक्षा प्राप्त की थी. इन्होंने अपनी आरम्भिक शिक्षा अल्मोड़ा के एक जिला विद्यालय से ही की. हाई स्कूल की पढ़ाई के लिए ये अपने एक बड़े भाई के पास बनारस चले गये, तब पंत की आयु 18 वर्ष थी.

बनारस से हाई स्कूल की पढ़ाई के बाद इन्होने प्रयागराज का रुख किया और यही से इन्होंने कॉलेज शिक्षा में दाखिला लिया और स्नातक की डिग्री अर्जित की.

कॉलेज शिक्षा के दौरान ही इनका सानिध्य राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से हुआ और ये स्नातक की पढ़ाई पूरी कर गांधीजी के सत्याग्रह आंदोलन में कूद पड़े. विधिवत रूप से शिक्षा का ये आखिरी अवसर था. अब पंत घर पर ही हिंदी, संस्कृत और बंगाली के साहित्य का अध्ययन करते रहे.

सुमित्रानंदन पंत का कवि परिचय

छायावादी कवियों में पंत जी ऐसे कवि हैं. जिन पर पाश्चात्य प्रभाव बहुत अंश तक पड़ा. वर्ड्सवर्थ, किट्स, शेली तथा टेनिसन आदि अंग्रेजी के कवि तथा रविन्द्र इन सबके प्रभाव को उन्होंने स्वयं स्वीकार किया हैं.

युगांत, युगवाणी तथा ग्राम्या इन तीनों में उनकी विचारधारा का मोड़ नामकरण से ही प्रतीत होता हैं. जीवन की समस्याओं के प्रति जागरूक होकर जो कविताएँ उनकी लेखनी से उद्घृत हुई हैं वे सब इन संग्रहों में संकलित हैं. सुमित्रानंदन पंत जी की भाषा में कोमलता हैं. उनमे कलात्मकता का आग्रह न होने पर भी सौदर्य हैं.

शब्द ध्वनि की परख उन्हें चित्रों में झंकार उत्पन्न करने में सदा सहायता देती रहती हैं. खड़ी बोली को वे ब्रजभाषा की सी मधुरता अपने शब्द चयन की सजकता द्वारा प्रदान करते हैं. विचार पक्ष को वे कला पक्ष से अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं.इसी कारण वे शब्द कौशल को ओर आगे चलकर अधिक ध्यान न दे सके.

सुमित्रानंदन पंत की साहित्य रचनाएँ

कहते हैं जब पंत जी मात्र 8 वर्ष के थे तब इन्होने अपनी पहली कविता लिखी थी. कुछ ही वर्षो के लेखन के बाद इन्हें हिंदी की नवींन धारा का प्रदुभाव करने वाले कविवर के रूप में मान लिया गया.1926 में पंत जी का पहला काव्य संग्रह प्रकाशित हुआ था.

इससे पूर्व विणा जिनमे उनके आरम्भिक जीवन जीवन में कविताएँ लिखी गईं थी. यह संग्रह प्रकाशित हुआ. इसके बाद पंत जी अंग्रेजी और देश के अन्य साहित्यकारों के सम्पर्क में आएं,

इस दौर में इन्होने नामक प्रगतिशील नाम से मासिक प्रकाशित होने वाली पत्रिका का सम्पादन भी किया.इसके बाद उत्तरी भारत लेखक संघ और आकाशावाणी से इनका जुड़ाव हुआ.

अब तक सुमित्रानंदन पंत की कुल 28 रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमे निबंध, कविता और नाटक शामिल हैं. पल्लव को उनकी बेहतरीन हिंदी कविता का संग्रह माना जाता हैं, यह 1918 से 25 के काल के बिच लिखी गईं 30 से अधिक कविताओं का संग्रह हैं.

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