हर्षवर्धन का प्रशासन जीवनी व इतिहास | Harshvardhan King In Hindi

हर्षवर्धन का प्रशासन जीवनी व इतिहास | Harshvardhan King History Biography In Hindi: गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद भारत की राजनितिक एकता समाप्त हो गई, यहाँ छोटे छोटे राज्य बन गये.

ऐसे ही एक नये राजवंश की स्थापना प्रभाकर वर्धन ने की. इनके दो पुत्र थे राज्यवर्धन और हर्षवर्धन तथा एक पुत्री राजश्री थी.

अपने बड़े भाई की मृत्यु के बाद 606 ई में हर्षवर्धन थानेश्वर का राजा बना, उसने कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया और उसने कई वर्षों तक निरंतर युद्ध करके सम्पूर्ण उत्तरी भारत पर अधिकार कर लिया.

हर्षवर्धन का प्रशासन जीवनी व इतिहास | Harshvardhan King In Hindi

हर्षवर्धन का प्रशासन जीवनी व इतिहास | Harshvardhan King In Hindi

हर्ष ने राज्य संभालने के साथ ही अपना राज्य एवं अपने प्रभाव क्षेत्र को बढ़ाने के लिए कई सैनिक अभियान चलाए. हर्ष एक वीर यौद्धा और विजेता था.

उसके प्रमुख सैनिक अभियानों में बंगाल, पंजाब, चालुक्य और वल्लभी से हुए युद्ध भी शामिल हैं. वह सिंधु, नेपाल, उड़ीसा तक अपने अभियानों से अपना प्रभाव डालने में सफल रहा.

हर्षवर्धन की धार्मिक नीति और कन्नौज का धर्म सम्मेलन (Harshavardhana Religious policy and Kannauj Dharma Sammelan)

आरम्भ में हर्ष सूर्य और शिव का उपासक था, बाद में बौद्ध बन गया, किन्तु सभी धर्मों के प्रति उनकी निति उदार थी. उनके राज्यों में शैव, वैष्णव, जैन और बौद्ध धर्म स्वतंत्रता पूर्वक प्रचलित थे. उसने राज्य के उच्च पदों पर गैर बौद्धों को नियुक्त किया. दान देने अथवा किसी कार्य में वह धार्मिक भेद नही करता था.

उसने कन्नौज में एक विशाल धर्म सम्मेलन का आयोजन किया. चीनी यात्री ह्वेनसांग को इसका अध्यक्ष बनाया. यह सम्मेलन 23 दिनों तक चला. अनेक बौद्ध भिक्षु, चीनी यात्री, राजा और विद्वानों ने इसमें भाग लिया.

हर्षवर्धन की प्रयाग सभा, सिक्के मुहरे तथा दरबार के विद्वान व लेखक

  • प्रयाग सभा- हर्ष प्रत्येक पांच वर्ष के अंतराल में प्रयाग में एक सभा का आयोजन करता था. 643 ई में छठी सभा हुई. हर्ष अपने पांच वर्ष की एकत्रित सम्पति को बाट देता था. यहाँ तक कि स्वयं के धारण किए हुए वस्त्र भी दान में दे देता था. स्वयं के पहनने के लिए बहिन से मांगकर शरीर ढकता था. इस सभा को मोक्ष परिषद् भी कहा जाता था.
  • हर्षकालीन सिक्के और मुहरें– हर्षकालीन सोने के सिक्के मिले हैं, उन पर मुद्रालेख हर्षदेव हैं. और उस पर एक घुड़सवार का चित्र हैं. अभिलेखों तथा बाणभट्ट के हर्ष चरित में हर्ष को हर्ष देव कहा गया हैं. हर्ष की अन्य मुहरें भी प्राप्त हुई हैं. सोनीपत मुहर के शीर्ष पर बैल की आकृति हैं. नालंदा मोहर में एक अभिलेख हैं, जिसमें हर्ष को महाराजधिराज कहा गया हैं.
  • लेखक तथा विद्वानों का आश्रयदाता- हर्षवर्धन केवल विजेता और प्रशासक ही नही बल्कि विद्वान भी था. हर्ष की काव्यात्मक कुशलता, मौलिकता और विस्तृत ज्ञान को बाणभट्ट ने स्वीकार किया हैं. हर्ष को रत्नावली, प्रियदर्शिका और नागानन्द की रचना का भी श्रेय दिया जाता हैं. जयदेव ने अपनी कृति गीत गोविन्दम में कहा हैं, कि कालिदास और भास् की भाति हर्ष भी एक महाकवि था. हर्ष के दरबार में कई विद्वान भी थे. बाणभट्ट उनमें से एक था और उसने हर्षचरित और कादम्बरी की रचना की. विद्वान हरिदत्त को भी हर्ष ने संरक्षण प्रदान किया था.

राजा हर्षवर्धन का प्रशासन (king harshavardhana administration in hindi)

सम्राट हर्ष स्वयं प्रशासन की धुरी था, उनका विचार था कि प्रशासकीय कुशलता के लिए शासक को निरंतर सचेत रहना चाहिए. हर्षवर्धन ने दिन को तीन भाग में बाँट दिया था. जिनमें से एक भाग राज्य कार्य के लिए निश्चित था. वह प्रजा को देखने स्वयं नगरों और ग्रामों में यात्रा करता था.

यह ठीक हैं कि सिद्धांत रूप में हर्षवर्धन का प्रशासन निरंकुश था. किन्तु लोगो को अपने क्षेत्र में बहुत सा स्वशासन प्राप्त था. अधिकांश कार्य ग्रामीण समुदायों के हाथ में था. केन्द्रीय सरकार और ग्राम सभाओं में पर्याप्त सहयोग था. माना जाता हैं कि हर्ष का प्रशासन निरंकुश तथा गणतंत्रीय तत्वों का मिश्रण था.

हर्ष का साम्राज्य प्रान्तों, भुकित्यों (डिविजन) और विषयों (जिलों) में विभक्त था. सबसे छोटी इकाई ग्राम थी. प्रशासन चलाने के लिए तीन प्रकार के करों का उल्लेख मिलता हैं- भाग भूमि कर था, हिरण्य नकद कर था, बलि अतिरिक्त कर था.

सम्राट हर्षवर्धन के समय दंड विधान भी कठोर नही थे. दंड शारीरिक नही दिए जाते थे. अभियुक्त से अपराध स्वीकार करने के लिए उसे यंत्रणा नही दी जाती थी. परीक्षण द्वारा अपराध की जांच करने का ढंग प्रचलित था.

सामंतवाद में बढ़ोतरी

हर्षवर्धन के दरबार में जितने भी लोग काम करते थे उनका वेतन देने के लिए नगदी और जागीर उन्हें दी जाती थी परंतु ह्वेनसांग का ऐसा मानना था कि जितने भी अधिकारी और मंत्री उनके दरबार में काम कर रहे हैं उन्हें उनकी तनख्वाह देने के लिए जमीन दान का सिस्टम अख्तियार किया जाए अर्थात उनके काम के बदले मे उन्हें जमीन दी जाए। 

हालांकि जब इस सिस्टम को हर्षवर्धन ने लागू किया तो इसके कारण काफी बड़े पैमाने पर उनके राज्य में सामंतवाद में बढ़ोतरी हुई, जिसके कारण हर्षवर्धन के दरबार में विद्रोह भी होने लगे।

हर्षवर्धन की सैन्य रचना

अगर हर्षवर्धन की सैन्य संरचना के बारे में बात की जाए तो ऐसा कहा जाता था कि तकरीबन 5000 से भी ज्यादा शक्तिशाली हाथी हर्षवर्धन की सेना में थे। इसके अलावा 2000 से भी अधिक अनुभवी और कुशल घुड़सवार तथा 5000 से भी ज्यादा पैदल सैनिक हर्षवर्धन की विशाल सेना में थे। 

आगे चलकर के हर्षवर्धन को अपनी सेना में हाथियों के झुंड में बढ़ोतरी करने का ख्याल भी आया है। इसीलिए हर्षवर्धन ने अपनी सेना में हाथियों की संख्या को 5000 से बढ़ाकर के 60000 तक कर दी।

इसके अलावा उन्होंने घुड़सवार सैनिकों की संख्या को बढा करके 1 लाख तक पहुंचा दिया। इस प्रकार हर्षवर्धन ने अपनी सेना को शक्तिशाली बनाने का प्रयास किया।

राजा हर्षवर्धन की रचनाएं

जिस प्रकार राजा हर्षवर्धन एक अच्छे राजा होने का फर्ज निभाते थे, उसी प्रकार वह एक अच्छे लेखक और विद्वान होने का फर्ज भी निभाते थे। हर्षवर्धन ने अपने शासनकाल के दौरान कई रचनाएं भी तैयार की थी, जिसमें उन्होंने टोटल 3 नाटक संस्कृत भाषा में तैयार किए थे, जिसका नाम रत्नावली, नागानंद, और प्रियदर्शिका था। 

हर्षवर्धन के दरबार के कवि बाणभट्ट ने अपनी किताबों में हर्षवर्धन के शासनकाल के दरमियान घटित कई बातों का उल्लेख किया है जिसे हम आज भी किताबों में पढ़ते हैं।

मृत्यु

न्याय प्रिय राजा हर्षवर्धन ने तकरीबन भारत पर 40 सालों तक अपना राज्य चलाया था और इस प्रकार ईशवी सन 640 में उनकी मौत अज्ञात कारणों से हो गई थी। 

जब राजा हर्षवर्धन की मृत्यु हो गई थी तो उनकी मौत के बाद कोई भी उत्तराधिकारी उनकी गद्दी को संभालने के लिए नहीं बचा था और इसी के कारण धीरे-धीरे हर्षवर्धन का साम्राज्य पतन की ओर चला गया और वारिश ना होने के कारण राजा हर्षवर्धन का साम्राज्य पूरी तरह से खत्म हो गया। इस प्रकार हर्षवर्धन का साम्राज्य खत्म हो गया।

चरित्र का मूल्यांकन (history of king harshavardhana in hindi)

हर्ष महान विजेता था. इसका प्रमाण उस विशाल क्षेत्र से मिलता हैं, जिसे उसने अपने अधिकार में लिया था. ‘हर्षवर्धन’ स्वयं विद्वान था और विद्वानों को संरक्षण भी देता था. यह आदर्श शासक था, वह बहुत परिश्रमी था और सत्कार्यों में नीद और भोजन तक भूल जाता था.

सम्राट हर्षवर्धन” ने अपना सारा समय प्रजा की हित वृद्धि में लगाया. यह कार्य करने के लिए उसके दिन बहुत छोटा पड़ जाता था. उदारता और दान में हर्ष का कोई सानी नही था.

दानशीलता के लिए कर्ण की तरह हर्ष विख्यात था. हर्ष ने नालंदा विश्वविद्यालय के लिए 100 से भी अधिक गाँव दान में दिए थे. नालंदा उस समय विश्व का प्रमुख विश्वविद्यालय बन चूका था.

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1 thought on “हर्षवर्धन का प्रशासन जीवनी व इतिहास | Harshvardhan King In Hindi”

  1. Ram Kumar Sethi Advocate Kurukshetra

    बहुत अच्छी और सटीक जानकारी है। साधुवाद

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