Aam Ki Thi Daal Hariyal | Hindi Kavita
आम की थी डाल हरियल, मैं मगनगम झूमता था
कई पल्लव और भी थे, उन्हें जीर भर चूमता था।
देख मेरा हरा यौवन मुस्कुराती नित्य डाली
गीत से मन जीत लेते कभी कोयल, कभी माली
बाग बस्ती में अचानक हुआ मेरा रंग पीला
खिलखिलाना बन्द, बजना बन्द, यह तन पड़ा ढीला।
हवा ने ऐसा हिलाया डाल का भी साथ छूटा
रह गया परिवार पीछे, एक पल्लव हाय! टूटा।।
जब हवा की गोद में कुछ दूर बगिया से बहा
देवता हो तुम पवन मेरी सुनो मैंने कहा।
जन्मभूमि बाग मेरी मूल माँ के चरण चूमूँ
खाद बनकर करूँ सेवा फिर किसी डाली पै झूमूँ
पवन की करूणा-कृपा से बाग में उड़ लौट आया
वृक्ष के चरणों में पल्लव खाद बनकर मुस्कुराया।