चरक का जीवन परिचय Biography of Charak in Hindi

चरक का जीवन परिचय Biography of Charak in Hindi हमारे देश में ज्ञान विज्ञान का इतिहास पुराना हैं. अतीत में भारत को शिक्षा, चिकित्सा, ज्योतिष, खगोल और धर्म इन क्षेत्रों में श्रेष्ठता प्राप्त थी.

हमारे ऋषि मुनियों ने समाज और मानव की उन्नति में अहम किरदार अदा किया हैं. शरीर विज्ञान और चिकित्सा की भारतीय पद्धति आयुर्वेद कहलाती हैं.

आचार्य चरक एक बड़े ज्ञानी ऋषि और आयुर्वेद विद्या के जानकार थे. इन्होंने प्रसिद्ध ग्रंथ चरक संहिता की रचना की. यह आज के समय में भी इस पद्धति के रोगों के निदान में बड़ा उपयोगी ग्रंथ है. करीब 2200 वर्ष पूर्व इन्होने भारतीय औषधि विज्ञान को विकास क्रम प्रदान किया था.

ऋषि चरक के बारे में कहा जाता हैं ये पहली सदी के विद्वान थे तथा कुषाण शासक कनिष्क के राज वैद्य थे. कुछ इतिहासकारों ने इनका कालक्रम बौद्ध काल से पूर्व का माना हैं.

आठवीं सदी में चरक संहिता का अरबी समेत अन्य विदेशी भाषाओं में अनुवाद हुआ और यह विद्या दुनिया के अन्य देशों में फैली.

चरक का जीवन परिचय Biography of Charak in Hindi

चरक का जीवन परिचय Biography of Charak in Hindi

हमारा भारत देश बहुत प्राचीन है. हमारे यहाँ अनेक महान वैज्ञानिक और चिकित्सक हुए है. इनमें से एक थे चरक. इनका नाम चरक कैसे पड़ा, इसकी एक मजेदार कहानी है.

चरक शब्द का अर्थ है ”चलने वाला”. उन्हें जन सेवा में इतनी रूचि थी, कि ये जगह घूमते एवं जनसाधारण की चिकित्सा किया करते थे. तथा चिकित्सा विज्ञान का प्रचार प्रचार किया करते थे. इसलिए लोग इन्हें चरक के  नाम से जानने लगे.

इनका सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ है ‘चरक संहिता’ जिनके आठ खंड है. इनमें शरीर के विभिन्न अंगो की बनावट, जड़ीबूटियों के गुण तथा पहचान का वर्णन है. इनकी धारणा थी. कि चिकित्सक को दयावान और सदाचारी होना चाहिए. उन्होंने चिकित्सकों के लिए प्रतिज्ञाएं भी लिखी.

नागवंश में इनका जन्म माना जाता है, वैशम्पायन इनके गुरु का नाम था. इन्होने अपनी BOOKS में पश्चिमी भारत का अधिक वर्णन किया.

इस कारण संभवतया उनका सम्बन्ध इसी क्षेत्र से रहा होगा. आचार्य चरक कहा करते थे-  ” जो चिकित्सक अपने ज्ञान और समझ का दीपक लेकर बीमार के शरीर को नहीं समझता, वह बीमारी कैसे ठीक कर सकता है”

इसलिए एक अच्छे चिकित्सक को रोग से जुड़े सभी तथ्यों एवं कारणों की गहन पड़ताल के बाद ही रोगी को दवाई दी जानी चाहिए. आचार्य चरक ने भारतीय आयुर्वेद के लिए पाचन, चयापचय तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता (एंटीबायोटिक) के बारे में परिचित करवाया.

शरीर के तीन मुख्य दोष पित्त, कफ और वायु को इन्होने किसी भी बिमारी की जड़ बताया. तथा इनके असंतुलन के चलते शरीर में बिमारी की वजह बनती है.

अतः इन्होने शरीर को स्वस्थ करने के लिए इन तीनों विकारों को ठीक करने पर जोर दिया तथा इनके संतुलन स्थापित करने के लिए दवाइयों का निर्माण किया.

चरक संहिता की रचना वैद्य अग्निवेश ने की थी, मगर आचार्य चरक द्वारा इसे संपादित कर आमजन के उपयोगी प्रकरणों को इसमें शामिल किया गया. मूल रूप से यह ग्रंथ संस्कृत भाषा में है.

आधुनिक काल में इसकी उपयोगिता को देखते हुए, कई वैश्विक भाषाओं में इसका अनुवाद किया गया है. हिंदी भाषी लोगों के लिए हिंदी का संस्करण भी उपलब्ध है.

आपकों बता दे कि आयुर्वेद का अध्ययन करने वाले छात्रों के लिए भारत में चरक संहिता को एक विषय के तौर पर उनके पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है.

महर्षि चरक के जीवन का इतिहास Life History Of Maharishi Charaka in Hindi

आज के दौर में भारत की साख का एक कारण हमारी आयुर्वेद की पद्धति भी हैं. इस औषधि विज्ञान के परिष्कार और उन्नयन में चरक संहिता और आचार्य चरक का बड़ा हाथ था. यह ग्रंथ आयुर्वेद का सबसे प्राचीन और प्रमाणिक ग्रंथ माना जाता हैं.

रोग निवारक और रोग निरोधक दवाइयों के बारे में इस ग्रंथ में उल्लेख मिलता हैं. कई तत्व सोना, लोहा, पारा आदि के गुणधर्मों के बारे में भी इसमें विवरण मिलता हैं.

मूल रूप में संस्कृत में रचित इस ग्रंथ का मूल लेखन अग्निवेश जी द्वारा किया गया था, मगर चरक ने इसमें कई अध्याय जोडकर इसको अधिक उपयोगी रूप दिया. महर्षि चरक द्वारा रचित चरक संहिता के कुल आठ खंड हैं, इनके नाम इस प्रकार हैं.

  1. सूत्र स्थान
  2. निदान स्थान
  3. विमान स्थान
  4. शरीर स्थान
  5. इन्द्रिय स्थान
  6. चिकित्सा स्थान
  7. कल्प स्थान
  8. सिद्धि स्थान

औषधि विज्ञान और आयुर्वेद के जनक चरक ने सबसे पहले वात पित्त और कफ की अवधारणा को बताया, शरीर की सभी प्रकार की व्याधियों का कारण इन तीनों में असंतुलन का कारण होता हैं.

चरक संहिता में विभिन्न प्रकार के रोगों उनके निदान, सूक्ष्म कृमियों तथा शारीरिक विभाजन मिलता हैं. इस तरह कह सकते है उस दौर में विद्यमान समस्त शरीर विज्ञान के अनुप्रयोगों इसमें वर्णित हैं. प्राचीन काल में जो छात्र आयुर्वेद की शिक्षा लेते थे, उन्हें चरक के नाम की शपथ लेनी होती थी.

आचार्य चरक ने शरीर के 9 छेदों (दो आँख, दो कान, नाक, मुहं, गुदा और मूत्र मार्ग) के बारे में बताया हैं. इनके शरीर विभाजन में 900 शिरा, 400 पेशी, 200 धमनी, 200 अस्थि मज्जा, 107 स्पर्श बिंदु और 29956 शिराओं के बारे में जानकारी मिलती हैं.

चरक संहिता का महत्व

इतिहास में महर्षि चरक के जीवन के बारे में कम ही जानकारी मिलती हैं, इससे अधिक वर्णन चरक संहिता के बारे में मिलता हैं. यह ग्रंथ आत्रेय और पुनर्वसु के ज्ञान का संग्रह भर था जिसे चरक द्वारा व्यवस्थित रूप दिया गया.

फ़ारसी विद्वान अल बरुनी ने चरक संहिता के बारे में लिखा है यह हिन्दुओं की औषध विज्ञान की सर्वश्रेष्ठ रचना हैं. मूल रूप से संस्कृत में रचित चरक संहिता को 8 खंड 120 अध्याय में हैं इसमें करीब दो हजार प्रकार की दवाइयों के बारे में 12 हजार श्लोक हैं.

नीम की पत्ती, मटर, मुंग, अखरोट, बादाम और मेवो के औषधीय गुण भी इसमें बताएं गये हैं. आचार्य चरक ने जल का विस्तृत वर्णन किया हैं. उन्होंने मद्यपान के गुण दोष भी गिनाए हैं.

चरक के अनुसार मदिरा सेवन से भय और शोक मिट जाते हैं. वे लिखते है चिकित्सा मन्त्रों और यंत्रों दोनों द्वारा की जाती थी, छोटे छोटे सूक्ष्मजीवों को निकालने के यंत्र भी विद्यमान थे.

इनके अनुसार एक चिकित्सक का बुद्धिमान होने के साथ ही साथ दयावान और सदाचारी होना जरूरी हैं. महर्षि चरक ने स्वप्न और मन पर भी अपने विचार रखे. वे मनोरोग के उपचार हेतु मनोनुकूल गतिविधियों गाना, बजाना आदि पर जोर दिया.

महामारियों की उत्पत्ति और प्रभाव तथा इनके संक्रमण को रोकने के बारे में भी उल्लेख मिलता हैं. कुल मिलाकर यह कहा जा सकता हैं. आचार्य चरक एक बड़े ऋषि थे, चरक संहिता उनकी भारतीय औषध विज्ञान को प्रदान की सबसे बड़ी भेंट हैं.

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