अनन्त चतुर्दशी व्रत कथा विधि महत्व | Anant Chaturdashi Katha Puja Vidhi Significance Date In Hindi

अनन्त चतुर्दशी व्रत कथा विधि महत्व Anant Chaturdashi Katha Puja Vidhi Significance Date In Hindi चतुर्दशी व्रत 16 सितम्बर 2024 (Date) को हैं. 

भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को सर्वकामना सिद्धि के लिए अनन्त चतुर्दशी का व्रत किया जाता हैं. हिन्दू व जैन धर्म में इस व्रत को लेकर कई मान्यताएं जुड़ी हुई हैं.

दिगंबर जैन के 10 दिनों के पर्युषण पर्व का यह आखिरी दिन भी हैं, इस दिन जैन धर्म अनुयायी ईश्वर से अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगते हैं. 

अनंत चतुर्दशी के दिन अनंत देव की पूजा अर्चना होती हैं. तथा इन्हें सूत्र चढ़ाया जाता हैं. तथा इसी रक्षासूत्र को रक्षा कवच के रूप में शरीर के किसी अंग पर पहना जाता हैं. 

अनन्त चतुर्दशी व्रत कथा विधि महत्व

अनन्त चतुर्दशी (चौदस) कब मनाई जाती हैं और मुहूर्त क्या है? (Anant Chaturdashi 2024 Date, time and Muhurat)

अनंत चतुर्दशी 16 सितम्बर 2024, को मनाई जायेगी. इस दिन विष्णु के अवतार अनंत देव की पूजा की जाती हैं तथा रक्षा सूत्र को बांधा जाता है.

सभी कष्टों का निवारण करने वाले इस रक्षा सूत्र को पुरुष दाएं तथा स्त्री बाएँ हाथ की बाजू पर बांधते हैं. अनंत चतुर्दशी 2024 का समय तिथि मुहूर्त इस प्रकार हैं.

जैन धर्म में इस दिन को संवत्सरी के रूप में मनाते हैं, महाराष्ट्र तथा देश भर में जैन समुदाय के लोग पर्युषण पर्व के अंतिम दिवस (क्षमा पर्व) के रूप में इसे मनाते हैं.

अनन्त चतुर्दशी व्रत एवं पूजा विधि (Anant Chaturdashi Puja Vidhi)

भाद्र शुक्ल चतुर्दशी की शेष शय्या पर क्षीरसागर में विश्राम कर रहे ईश्वर विष्णु देव की  पूजा की जाती हैं. और व्रत समाप्ति पर निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिए. ” अनंत सर्व नागानामधिपः सर्वकामद:, सदा भूयात प्रस्न्नोमे भकतानाम्भय- करः इस मंत्र से प्रार्थना करनी चाहिए.

अनंत देव कृष्ण विष्णु का रूप हैं और शेषनाग काल रूप से विद्यमान रहते हैं. अतः दोनों भगवान की पूजा साथ ही हो जाती हैं.

पूजा विधि- प्रातः नित्य क्रिया तथा स्नानादि से निवृत होकर चौकी के ऊपर मंडप बनाकर उसमें चावल तथा कुशा के सात कणों से शेष भगवान की प्रतिमा स्थापित करे.

उसके समीप 14 गाठ लगाकर हल्दी से रंगे कच्चे डोरे को रखे. और गंध, अक्षर, पुष्प, दीप, धूप नेवैध से पूजन करे.

इसके पश्चात् अनन्त देव का ध्यान कर शुद्ध अनन्त यानि सूत्र को अपनी दाई भुजा में धारण कर लेना चाहिए. यह सूत्र अनन्त फल देने वाला माना जाता हैं.

अनन्त चतुर्दशी व्रत कथा (anant chaturdashi katha hindi)

पुराने समय की बात हैं, जब पांडुपुत्र धर्मराज युधिष्ठर ने राजसूय नामक यज्ञ किया, उस वक्त मंडप को इतना आकर्षक तरीके से सजाया गया था कि जल स्थल की भिन्न्नता ही दिखाई नही दे रही थी. उसी वक्त इधर उधर भटकता हुआ दुर्योधन भी उस मंडप में आ टपका.

दुर्योधन ने पांडुपुत्रों का द्रोपदी के सामने उपहास बनाने के लिए कहा कि अंधों की सन्तान तो अंधी ही होती हैं. यह बात युधिष्टर को जहरीले बाण की तरह चुभ रही थी.

मन ही मन उसने कौरवों से बदला लेने की ठान ली थी. उसी समय के दौरान कौरवों ने अपनी धूर्त चाल में पांडवों को फसाकर क्रीडा में उनसे राज्य छिन लिया था.

इस धूर्त क्रीड़ा में पांडवों को हस्तिनापुर का राज्य छोड़ने के साथ ही १२ वर्ष का अज्ञात वनवास दिया गया. पांडव जब अपना वनवास बिता रहे थे, तभी एक दिन भगवान कृष्ण उनसे मिलने गये. तब युधिष्ठर ने कृष्ण से सारा वृतांत कह सुनाया. तथा इसे दूर करने का उपाय पूछा,

तब भगवान श्री कृष्ण युधिष्ठर को विधिपूर्वक अनन्त भगवान का व्रत करने को कहते हैं, ऐसा करने से तुम्हारा खोया हुआ राज्य वापिस मिल जाएगा. जब युधिष्ठर अनन्त चतुर्दशी की कथा और महत्व जानने की प्रार्थना करते हैं. तब भगवान श्री कृष्ण अनन्त चतुदर्शी की कथा सुनाते हैं.

एक समय सुमंत नाम के एक ब्राह्मण के सुशीला नाम की एक अति सुंदर कन्या थी. उस कन्या के बड़ी होने पर उसका विवाह कौडिन्य ऋषि के साथ कर दिया. ऋषि कौडिन्य सुशीला को लेकर अपने आश्रम की ओर चल पड़े.

राह में ही दिन ढल गया, अतः ऋषि ने नदी के किनारे ही संध्या करने लगे. तभी सुशीला की नजर कुछ स्त्रियों पर पड़ी जो उस समय किसी देवता की पूजा कर रही थी.

तब सुशीला उन महिलाओं के पास गई तथा उनसे पूछा कि आप किनकी पूजा कर रही हो, उन सभी ने अनन्त चतुर्दशी व्रत की महिमा और महत्व बताया. सुशीला ने भी इस व्रत का अनुष्ठान किया तथा चौदह गाठों वाला सूत्र अपने हाथ में बांधकर ऋषि कौडिन्य के पास आई.

कौडिन्य ने सुशीला के हाथ में बंधे डोरे का रहस्य पूछा, सुशीला ने सारा वृतांत कह सुनाया. ऋषि ने सुशीला के हाथ से डोरा तोड़कर अग्नि में डाल दिया. ऋषि के द्वारा ऐसा करने से भगवान अनन्त का अपमान हुआ.

ऐसा करने से ऋषि की जिंदगी का सम्पूर्ण सुख और वैभव समाप्त हो गया. जब ऋषि ने अचानक आई इन विपत्तियों का कारण सुशीला से पूछा तो उन्होंने इस अनन्त धागे की याद दिलाई.

तब कौडिन्य को अपनी गलती पर गहरा पश्चाताप हुआ तथा अनन्त धागे की खोज में वन में निकल पड़े. लम्बे समय तक वन में विचरण करने के बाद वो भूमि पर गिर पड़े.

तभी भगवान अनन्त देव ने उन्हें दर्शन दिए तथा कहा हे कौडिन्य तूने मेरा अपमान किया, जिस कारण तुझे ये सभी कष्ट झेलने पड़े. अब तुम घर जाकर 14 वर्षों तक अनन्त का अनुष्ठान करों तुम्हारे सम्पूर्ण दुःख तथा पीड़ा समाप्त हो जाएगी.

अनन्त चतुर्दशी का महत्व (anant chaturdashi significance)

अनंत चतुर्दशी या अनंत चौदस जैन धर्मावलंबियों के लिए सबसे पवित्र दिन हैं. यह मुख्य जैन त्यौहार, पर्यूषण पर्व का आख़री दिन होता है.

अनंत चतुर्दशी गणेश चतुर्थी (गणेशोत्सव) के हिंदू त्यौहार का अंतिम दिन है. यह चतुर्दशी व्रत अक्सर गणेश चतुर्थी के 10 अथवा 11 दिन बाद आता हैं.

इस दिन आस-पास के घरों मुहल्लों से लोग गणेश जी की प्रतिमा को किसी जलाशय में विसर्जित करते हैं. नृत्य तथा गायन के साथ गणेश जी की यात्रा निकालकर उनका विसर्जन कर दिया जाता हैं.

अनंत चतुर्दशी व्रत विधि (Anant Chaturdashi Vrat Puja Vidhi in hindi)

चतुर्दशी तिथि को व्रत रखने वाले स्त्री पुरुष को एक दिन पूर्व व्रत का संकल्प करना चाहिए. अनंत चतुर्दशी के दिन सुबह जल्दी उठने के पश्चात स्नान इत्यादि नित्य कर्मों से निवृत होकर कलश की स्थापना करे, जिसमें धागा तथा कमल का एक फूल रखा जाता हैं.

अनंत भगवान को कुम कुम, हल्दी, दीप, दूप एवम भोग इत्यादि पूजा सामग्री के साथ पूजन किया जाना चाहिए. सायंकाल को चतुर्दशी तिथि की समाप्ति पर पांच पकवानों के साथ उपवास तोड़ा जाता हैं.

अनंत चतुर्दशी व्रत पूजन सामग्री

भगवान गणेश की फोटो या मूर्ति, लाल कपड़ा, दूर्वा, जनेऊ, कलश, नारियल, पंचामृत, पंचमेवा, गंगाजल, रोली, मौली लाल, विष्णु भगवान की फोटो या मूर्ति,पुष्प, गीला नारियल, सुपारी, फल, लौंग, धूप, दीप, घी, पंचामृत, अक्षत, तुलसी ,चंदन, मिठाई

अनंत चतुर्दशी व्रत/पूजन विधि

अनंत चतुर्दशी का व्रत महिलाएं और पुरुष दोनों रख सकते हैं। जो भी महिला या फिर पुरुष अनंत चतुर्दशी का व्रत रखना चाहते हैं उन्हें सबसे पहले इस दिन सुबह 4:00 बजे के आसपास उठ जाना चाहिए क्योंकि यह समय ब्रह्म मुहूर्त का होता है जो कि देवी-देवताओं का सबसे प्रिय मुहूर्त होता है।

ब्रह्म मुहूर्त में उठने के बाद उन्हें या तो ताजे पानी से स्नान कर लेना चाहिए या फिर अपने ऊपर गंगाजल का छिड़काव कर लेना चाहिए।

स्नान की क्रिया से छुट्टी पाने के बाद महिला अथवा पुरुष को साफ और स्वच्छ पीले या फिर लाल रंग के कपड़े पहनने चाहिए और उसके बाद उन्हें अपने घर के मंदिर में जाना चाहिए और मंदिर में घी का दीपक माचिस की सहायता से जलाना चाहिए।

दीपक जलाने के बाद उन्हें जितने भी देवी देवता उनके घर के मंदिर में स्थापित है, सभी का गंगाजल से अभिषेक करना चाहिए और हो सके तो उन्हें इस दिन व्रत भी रखना चाहिए।

अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश पूजा की जाती है।‌इसीलिए सबसे पहले आपको गणेश जी का ही पूजन करना चाहिए। अगर आपके पास गणेश जी की प्रतिमा है तो आपको उसका पूजन करना चाहिए या फिर आप स्वास्तिक का निशान हल्दी की सहायता से बना करके उसकी पूजा भी कर सकते हैं।

गणेश जी की पूजा करने के बाद आपको उन्हें गुलाब के फूल अर्पित करने चाहिए।‌ इसके अलावा आप चाहे तो उन्हें दुर्वा घास भी अर्पित कर सकते हैं, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि गणेश भगवान को दूर्वा घास अति प्रिय होती है।

घास अर्पित करने के बाद भगवान गणेश को आपको लाल सिंदूर का तिलक लगाना चाहिए और फिर आप को हाथ जोड़कर के मन ही मन भगवान गणेश का ध्यान करना चाहिए।

इसके बाद ध्यान समाप्त करके आपको भगवान विष्णु को गुलाब के फूल और तुलसी की माला अर्पित करनी चाहिए।

इसके बाद आपको भगवान विष्णु और गणेश जी को प्रसाद का भोग लगाना चाहिए। भोग के तौर पर प्रसाद में आप लड्डू का भोग लगा सकते हैं। हालांकि यहां पर आपको इस बात का ध्यान रखना है कि आपको सिर्फ शुद्ध चीजों से बनी हुई भोग ही प्रसाद के तौर पर रखनी है।

इसके साथ ही आपको यह भी बता दें कि भगवान विष्णु को आप को भोग के तौर पर तुलसी के पत्ते अवश्य चढाने हैं क्योंकि उन्हें यह अति प्रिय होते हैं।

इस दिन भगवान विष्णु और गणेश के साथ तुलसी माता की भी पूजा करनी चाहिए, साथ ही साथ आपको लक्ष्मी माता की भी पूजा करनी चाहिए।

अगर आपने इस दिन व्रत करके रखा है तो आपको दिन भर सिर्फ पानी के सहारे ही रहना चाहिए और रात में आपको फलाहार कर के अपने व्रत का समापन करना चाहिए।

14 गांठ वाले अंनत सूत्र का महत्व

अनंत चतुर्दशी के व्रत के दिन ही एक 14 गांठ वाला अनंत सूत्र अपने हाथों में बांधा जाता है, क्योंकि इसकी विशेष महिमा बताई गई है।

इसके पीछे ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु जी ने जिन 14 लोक का निर्माण किया था उसी को यह 14 गांठ वाला अनंत सूत्र यानी कि पवित्र धागा प्रदर्शित करने का काम करता है

और जो व्यक्ति इस 14 गांठ वाले धागे को अपने हाथों में पहनता है उसे किसी भी प्रकार की तकलीफ नहीं होती है और वह जिंदगी में तरक्की की ऊंचाइयों को लगातार छूता जाता है

क्योंकि यह धागा भगवान विष्णु को अति प्रिय है और जो व्यक्ति इस धागे को धारण करता है भगवान विष्णु उसकी हर प्रकार से रक्षा करने का काम करते हैं।

अनंत सूत्र की पूजा विधि

इस पवित्र धागे को धारण करने के लिए सबसे पहले जब अनंत चतुर्दशी का दिन आए तो उस दिन व्यक्ति को स्नान कर लेना चाहिए और भगवान विष्णु की पूजा करने के बाद उसे अनंत चतुर्दशी के व्रत की कथा का पाठ अपने खुद के मुंह से करना चाहिए।

इसके बाद उसे एक सफेद धागा लेना चाहिए। यह धागा सूती का होना चाहिए और उसके बाद उसे इस धागे को कुमकुम, हल्दी, केसर और चंदन के पेस्ट में डुबो लेना चाहिए। इस प्रकार धागे का रंग लाल हो जाएगा।

इसके बाद उसे इस धागे में टोटल 14 गांठ लगानी चाहिए और गांठ लगाने के दरमियान उसे विष्णु भगवान के मंत्रों का जाप करना चाहिए। 14 गांठ लगाने के बाद उसे इस धागे को अपने दाहिने हाथ में कलाई के पास बांधना चाहिए।

अनंत सूत्र को धारण करने का नियम

जब अनंत सूत्र की पूजा करने के बाद इसे व्यक्ति अपने दाहिने हाथ में कलाई के ऊपर धारण कर ले तो उसी रात को सोने के दरमियान उसे इसे उतार कर के भगवान के मंदिर के पास रख देना चाहिए और फिर अगले दिन उसे इसे ले जाकर के किसी बहते हुए पानी में या फिर साफ नदी में प्रवाहित कर देना चाहिए।

अगर आपके घर के आसपास बहता हुआ पानी या फिर साफ नदी नहीं है तो आप इसे किसी कुएं में भी डाल सकते हैं।

अगर कोई व्यक्ति यह क्रिया नहीं कर पा रहा है तो इसे अगले 14 दिनों तक उसे अपने हाथों में बांधकर के रखना है और उसके पश्चात वह इसे किसी बहते हुए पानी में डाल सकता है.

अगर फिर भी कोई ऐसा नहीं कर पा रहा है तो व्यक्ति को इस धागे को अगले साल आने वाली अनंत चतुर्दशी तक पहन कर रखना चाहिए।

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