अरुण गवली की जीवनी इतिहास Arun Gawli History In Hindi

अरुण गवली की जीवनी इतिहास Arun Gawli History In Hindi अरुण गवली (डैडी) मुंबई अंडरवर्ल्ड और जुर्म के बादशाह की कहानी बेहद रोचक हैं,

68 वर्षीय गवली हमेशा मुंबई के लिए बड़ी मुसीबत बनकर रहा| करीब एक दशक तक मुंबई पर राज करने वाला यह अंडरवर्ल्ड डॉन आज भले ही जेल में हवा खा रहा हैं, इनका इतिहास ठीक वैसा ही जैसा हमारी जुर्म हिंदी फिल्मों में दिखाया जाता हैं|

अरुण गवली की जीवनी इतिहास Arun Gawli History In Hindi

अरुण गवली की जीवनी इतिहास Arun Gawli History In Hindi

माया नगरी के इस बादशाह अरुण गवली का जन्म 17 जुलाई 1955 को हुआ था|अपनीं छवि को बदलने और पुलिस के एनकाउंटर से बचने के लिए अरुण ने अखिल भारतीय सेना नाम से एक राजनितिक दल भी बनाया,जिसके चुनाव चिन्ह पर चुनाव जीतकर आप महाराष्ट्र विधानसभा में भी जा चुके हैं|

अरुण का जन्म 17 जुलाई 1955 को महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में हुआ था| इनके बचपन का नाम अरुण गुलाबराव अहीर था इनकी जाति अहीर हैं|

इनके लोग डैडी उपनाम से जानते हैं, हिन्दू धर्म अनुयायी अरुण के परिवार की बात करे तो इनकी फैमली (arun gawli family) में पिता गुलाबराय,अंकल हुकमचंद यादव, वन्दना भाभी आशा पत्नी,महेश बेटा और गीता इनकी बेटी का नाम हैं|

अरुण गवली की शिक्षा (Arun Gawli Education)

जब अरुण गवली की पढ़ने की उम्रः थी उस समय पारिवारिक स्थिति ठीक न होने के कारण वह अधिक पढ़ नहीं सका और 5 वीं तक ही पढ़ाई कर सका. बचपन ने लोगों के घरों में दूध पहुचाने के काम से जीवन की शुरुआत की.

अरुण पर कई तरह के गंभीर आरोप हैं जिनमें हत्याए, मनी लोंड्रिग, काला बाजारी, नकली माल, सुपारी लेकर हत्या, धमकी, रिश्वत और हफ्ता वसूली करने के आरोप हैं|

एक समय था जब पुलिस को इन्हें पकड़ने तक का साहस नही कर पाई थी|क्युकि कड़ी सुरक्षा का पहरा और मुंबई में आए दिन इन माफिया लोगों की भिड़त से पुलिस भी भयभीत थी|

अरुण गवली के डॉन बनने की कहानी

मायानगरी के कल्चर में अंडरवर्ल्ड माफिया डॉन एक साधारण बात रही हैं, 60 के दशक से करीब दर्जन भर हाई प्रोफाइल डॉन ने मुंबई पर प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष शासन किया है, उन्ही में से एक नाम अरुण गवली का हैं.

दाउद के साथ मिलकर इन्होने करियर की शुरुआत की और अंडरवर्ल्ड का रास्ता छोड़ने के पश्चात दोनों एक दूसरे के जानी दुश्मन हो गये.

गवली की कहानी ७० के दशक से शुरू होती है. पारिवारिक दशा ठीक न होने के कारण इन्होने मुंबई के कई क्षेत्रों परेल, चिंचपोकली, बयकुल्ला और कॉटन ग्रीन की कपड़ा मील में काम करना शुरू किया.

इनके साथ शुरुआत से ही किशोर साथ रहा, जो गवली का भाई था. शुरुआत में गवली ने रामा नाइक और बाबू रेशीम की गैंग को चुना और अवैध शराब के कारोबार में कई वर्ष बिताएं.

अरुण गवली का इतिहास

अध्याय 1

मुंबई अंडरवर्ल्ड का इतिहास बेहद पुराना हैं जिनका अरुण गवली अंतिम शहंशाह था,इनकी सक्रियता 1970 के आस-पास मानी जाती हैं मगर उस समय अरुण इस खेल का एक मोहरा मात्र था जो बड़े खिलाडियों की चाल में काम आता था|

70 के दशक में मुबई का सम्राज्य तीन अंडरवर्ल्ड ने नेताओं में विभाजित था करीम लाला, वरदराजन और हाजी मस्तान जिनकी आपस में अच्छी दोस्ती भी थी| जिनमे वरदराजन सबसे खूखार था इसी समय जयप्रकाश नारायण के आन्दोलन से प्रभावित होकर इसने राजनीती में कदम रख दिया|

इन तीनो का दौर खत्म होने के साथ ही मुंबई के अंडरवर्ल्ड में दाउद और राजन ने पैर जमा लिए मगर 1993 के मुंबई धमाकों में फसने के डर से इन्होने मुंबई छोड़कर चले जाने का निर्णय कर लिया था| 90 और 2000 के दशक में मुंबई अंडरवर्ल्ड का अखाड़ा खाली सा था तभी इसके दो नए दावेदार निकले जिनमें एक थे अरुण गवली|

अध्याय 2

Arun Gawli History के दुसरे पार्ट में इसे कुछ लक का भी सहारा मिलता हैं, इस समय पुरे मुंबई के क्षेत्र में एक ही प्रतिद्वंदी था अमर नाइक| दोनों के बिच सता को लेकर आये दिन मुठभेडे होने लगी दोनों का साथ रहना एक म्यान में दो तलवार जैसा था|

दोनों के शार्पशुटर एक दुसरे की गैंग पर हमला करते थे इसी समय मुंबई पुलिस ने गैगस्टर अमर नाइक पर हमला कर दिया जिसमे वह मारा गया| इसके भाई अश्विन को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया अब आखा महाराष्ट्र इस डॉन का सम्राज्य बन चूका था|

अब अरुण गवली का कोई प्रतिद्वंदी नही था,इसने अपनें कारोबार, सुरक्षा और अपनी छवि बनाने पर ध्यान देने लगा| मुंबई की दगली चाल का अड्डा अब एक किला बन चूका था| सफ़ेद पोशाक और टोपी के पीछे सारे काले कारनामे अंजाम देने शुरू कर दिए |

अरुण गवली की गैंग 

अरुण गवली की गैग अपने समय में मुंबई के व्यापारियों और पुलिस के लिए मुशीबत का सबब था, कहा जाता हैं इनकी गैग में 1000 से ज्यादा प्रशिक्षित लोग थे| जिन्हें हथियार चलाने की पूरी ट्रेनिग थी जो रात दिन गवली के दरबार का पहरा रखते थे|

किसी पुलिसवाले का उन तक पहुचना एक तरह से नामुमकिन ही था और कोई हिम्मत भी नही करता था क्युकि गवली के पास जाना एक तरह से मौत के बुलावे जैसा ही था|

गवली के अड्डे पर पहुचने की किसी अनजान को अनुमति नही थी, चाहे वो सरकारी व्यक्ति हो या कोई और| इसकी चाल की बाहरी दीवार का मुख्य दरवाजा 15 से बीस फिट उचा था जिनके पास हथियारबंद शूटर रहा करते थे|

अब इसने किसी के मौत की सुपारी लेना, किसी बड़े व्यक्ति को खत्म करना, हफ्ता वसूलना,किडनैपिग, अवैध व्यापार जैसे कामों में पैर पसार लिए|

अध्याय 3

Arun Gawli History का तीसरा पड़ाव बेहद रोचक हैं अब तक इसने अपने काम-काज को शुरू कर दिया था| इसको अब एक ही चीज का डर था पुलिस, दूसरी तरफ पुलिस को भी अरुण गवली से डर और तलाश दोनों थी|

गवली ने तरकीब से काम लेते हुए किसी नए डॉन को पनपने ही नही दिया, दूसरी तरफ पुलिस के बड़े अधिकारियो के साथ साठ-गाठ का खेल शुरू कर दिया| अब पुलिस उनके लिए खतरा ना होकर साथी की भूमिका निभाने लगी| खुलेआम हत्या के मामले या सूपारी किलिंग के मामले में पुलिस कुछ नही कर पाती थी|

इसका खौफ लोगों के जेहन में भर चूका था अंडरवर्ड के लोग इसे डैडी और किंग नाम से पुँकारते थे| दूसरी तरफ अरुण भी डरा हुआ था, उसे यह पता नही था किस दिन पुलिस उसका भी अमर की तरह अनकाउंटर कर देगी| अपने इस भय को दूर करने के लिए इन्होने राजनितिक पार्टी बना ली|

राजनीती में आने की दो ही वजह थी एक तरफ उनकें सताए लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही थी जिनकी हिट लिस्ट में अरुण गवली पहले स्थान पर था| दूसरी तरफ राजनेता बनने के बाद पुलिस इसे मार ना सके|

अरुण गवली का राजनीती में आना और जेल (history arun gawli)

अपने दुश्मनों के भय से गवली ने इस धंधे को छोड़कर राजनीती में आने का निर्णय किया और वर्ष 2004 के चुनावों से पहले अखिल भारतीय पार्टी नाम से दल बनाया| अपने कारोबार के और परिवार के लोगों को चुनाव में जनप्रतिनिधि बनाया|

किसी तरग गवली इस चुनाव को जीतने में कामयाब रहा और विधायक बन गया| माफिया लोग चाहे कितनी ही बार गंगा नहा ले अपना आचरण नही छोड़ते| ठीक वैसा ही हुआ, अरुण जब विधायक बन गया तो उसने कहा था अब पुलिस मुझे नही मार सकती क्युकि में विधायक हु|

मगर चार सालो तक चुप्पी साधने के बाद भी अपनें पेशे को अरुण छोड़ नही सका| अब उसने अपने काम की परिधि को बदल लिया पहले छोटे-बड़े लोगों की सुपारी लेने का काम करता था|

अब उन्हें राजनेताओ के हत्या की सुपारिया आने लगी| इसी दौर में शिवसेना के एक नेता को मारने की 50 हजार की सुपारी मिली तो इसने उस नेता की हत्या करवा दी| जब जांच में अरुण गवली का नाम आया तो पुलिस ने उसे गिफ्तार कर लिया| आखिर उनके काले कर्मो का चिट्टा खुलने लगा|

कोर्ट ने गवली को उम्रकैद की सजा सुना दी, पुलिस के लिए यह एक सुनहरा अवसर था अंडरवर्ल्ड के खात्मे का क्युकि उसके अधिकतर सरगने या तो भाग चुके थे या जेल की कोठरी में बंद थे|

पुलिस ने जिस भी माफिया नेता को देखा उसे वहीं मार डाला या पकड कर जेल में दाल दिया | इस तरह मुंबई में खौफ की दुनिया का अंत हो गया|

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उम्मीद करता हूँ दोस्तों अरुण गवली की जीवनी इतिहास Arun Gawli History In Hindi का यह लेख आपको पसंद आया होगा.

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