बात करने की कला | Baat Karne Ka Tarika In Hindi

बात करने की कला तरीका| Baat Karne Ka Tarika In Hindi जहाँ आदमी को अपनी जिन्दगी मजेदार बनाने के लिए खाने पीने चलने फिरने आदि की जरुरत रहती है.

वहां बातचीत की भी हमे अत्यत आवश्यकता रहती है. जो कुछ मवाद या धुआ जमा रहता है. वह सब बातचीत के जरिये भाप बनकर बाहर निकल जाता है.

बात करने की कला | Baat Karne Ka Tarika In Hindi

बात करने की कला | Baat Karne Ka Tarika In Hindi
बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि,
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।

(Talk) बात करने से हमारा चित हल्का और स्वच्छ हो परम आनंद में मग्न हो जाता है. बातचीत करने का अपने आप में एक अलग ही मजा होता है. जिनको बात करने की लत पड़ जाती है. वे इसके पीछे खाना पीना तक छोड़ देते है.

अपना बड़ा हर्ज कर देना उन्हें पसंद आता है पर बातचीत का मजा नही खोना चाहते है. राबिन्सन क्रुर्सो का किस्सा बहुधा लोगों ने पढ़ा होगा. जिसे सोलह वर्ष तक मनुष्य का मुख देखने को नही मिला था.

कुत्ता बिल्ली आदि जानवरों के बिच रहा सोलह वर्ष के उपरांत जब उसने फ्राइडे के मुख से एक बात सुनी, यधपि उसने अपनी जंगली बोली में कहा था, पर उस समय रोबिन्सन को ऐसा आनन्द हुआ मानो इसने नए सिरे से आदमी का चोला पाया.

इससे सिद्ध होता है मनुष्य की वाक्शक्ति में खान तक लुभा लेने की ताकत है. जिनसे केवल पत्र व्यवहार है कभी एक बार भी साक्षात्कार नही हुआ है उसे अपने प्रेम से कितनी लालसा बात करने को रहती है.

अपना आभ्यंतरिक भाव दुसरे को प्रकट करना और उसका आशय आप ग्रहण कर लेना केवल शब्दों के द्वारा ही हो सकता है. बेन जानसन का यह कहना कि बोलने से ही मनुष्य के रूप का साक्षात्कार होता है बहुत ही उचित बोध होता है.

इस बातचीत की सीमा दो से लेकर वहां तक रखी जा सकती है जितना की जमात, मीटिग या सभा न समझ ली जाए. एडिसन का मत है कि असल बातचीत केवल दो में ही हो सकती है. जिसका तात्पर्य यह हुआ कि जब दो आदमी होते है तभी अपने दिल की बात दुसरे के सामने खोलते है. जब तीन हुए तब वह बात कोसों दूर गई.

सफलता के लिए जरूरी है बोलने की कला (The art of speaking is essential for success)

हमारी बोली अर्थात बातचीत करने का तरीका हमारे व्यक्तित्व और जीवन शैली को अच्छा या बुरा स्वरूप देता हैं. स्मार्ट तरीके से बोलना एक कला है जो बिगड़े हुए काम को भी सुलझा देती हैं.

हमारे आस पास बहुत से ऐसे व्यक्ति हैं जो व्यापार बिजनेस के माहिर हैं मगर बातचीत में नहीं. उनकी यह कमजोरी कई जगह उन्हें मात भी दे देती हैं. अगर हम बोलने की कला को नहीं समझते है तो निश्चय ही कई अवसर हमारे हाथों से फिसल सकते हैं.

खासकर बिजनैस के फिल्ड में बातचीत के हुनर का होना बहुत जरुरी हैं, अपने क्लाइन्ट और कस्टमर को आकर्षित करने में हमारी बोली एक अहम हथियार हैं. जितना अच्छा कम्युनिकेशन स्किल होगा उतने ही ग्राहक बढ़ेगे और व्यापार तरक्की करेगा.

जब हम अपने कस्टमर या टीम मेम्बर्स के साथ वन टू वन बातचीत कर रहे तब चेहरे के भाव के साथ बातचीत करना जरुरी हो जाता हैं. अगर अल्फाज के साथ साथ हमारे एक्सप्रेशन भी हो तो इसका न केवल प्रभाव अधिक होता है बल्कि बात में विश्वसनीयता भी बढ़ती हैं.

बात को बिना हाव भाव के साथ बोलने से इसका नकारात्मक असर पड़ता है तथा बात उतना असर भी नहीं छोडती हैं. बोलते समय चुने गये शब्दों का संतुलित और व्यवस्थित होना भी बातचीत को आकर्षक बनाता हैं.

जब कभी किसी से बात करनी हो अपनी बात को अधिक संक्षिप्त और स्पष्ट रखने का यत्न करना चाहिए, यह आपकी बात को अधिक तवज्जु भी देगा और इसका वजन भी अधिक होगा.

दूसरों को प्रभावित करने के लिए आकर्षक और सटीक बात कहने के साथ ही बातचीत का ढंग भी बहुत मायने रखता हैं. एक ही व्यक्ति के सामने आराम से बात कहने और एग्रेसिव होकर बात करने दोनों के प्रभावों में बहुत बड़ा अंतर होता हैं.

अच्छी तरह बोलना सीखने के लिए पहले अच्छा श्रोता होना बहुत जरूरी हैं, कुछ भी बोलने से पूर्व सामने वाले वक्ता की बात को अच्छे ढंग के साथ सुनना चाहिए. सामने वाले की पूरी बात सुने बिना बात काटकर या जल्दबाजी में बोलने से न केवल वार्तालाप पर विराम आ जाता हैं बल्कि हम उस बात का अच्छे से रिस्पांस भी नहीं दे सकेगे.

बात को अच्छे ढंग से कहने में एक बड़ा फैक्टर कांफिडेंस का भी हैं. जब तक हम स्वयं की कही बात पर विशवास नहीं दर्शाएगें तब एक वह दूसरे को प्रभावित नहीं कर सकेगी.

जब आपको अपनी ही बात पर यकीन होगा तब बात करते समय आपके चेहरे पर वह विश्वास झलकेगा यह बात की विश्वसनीयता को कई गुना तक बढ़ा देता हैं.

प्रभावशाली ढंग से बात करने के 10 आसान तरीके

बातचीत एक अदाकारी तो हैं ही मगर इसे प्रभावशाली बनाने के लिए हमें कुछ बेसिक स्किल्स पर काम करना चाहिए, यहाँ हम कुछ आसान तरीको पर चर्चा करेगे जिन्हें अपनाकर हम अपने बात करने के ढंग को काफी हद तक सुधार सकते हैं.

शब्दकोश का विस्तार

अक्सर हमारी बोली वैसी ही होती है जैसा हमारा ज्ञान समझ और विचार हैं. अर्थात जैसा ज्ञान वैसी ही वाणी. हमारा शब्द भंडार सबसे महत्वपूर्ण हैं इसे समृद्ध करने का जरिया अच्छी पुस्तकें है आधुनिक स्वरूप में अच्छी शैली में लिखे जाने वाले ब्लॉग भी ज्ञानवर्धन करते है तथा हमारे बोलने के शब्दों के भंडार में वृद्धि करते हैं.

सार्थक बातचीत में शब्दों का चयन तभी कर पाएगे जब हमारे पास किसी विचार को व्यक्त करने के लिए अधिकाधिक शब्द भंडार हो. विनम्रता और कृतज्ञता दर्शाने वाले अधिक शब्दों के चयन से निरर्थक और अपशब्दों की मात्रा स्वत कम हो जाती हैं जो एक अच्छे वार्लाताप को नकारात्मक बना सकते हैं.

विचारों की स्पष्टता

बातचीत अथवा संवाद करने का मूल उद्देश्य अपने विचारों की श्रोता के साथ उसी रूप में पहुचाना है जिस रूप में हम बात कहना चाहते हैं. मगर यदि हमारे कहने का ढंग कुछ इस तरह है जिसमें स्पष्टता का अभाव है तो यकीनन हम विचारों के सम्प्रेष्ण के मूल उद्देश्य से विमुख हो जाएगे.

संवाद गति करता रहे इस बाबत चर्चा की विषय वस्तु हमारे मस्तिष्क में पूर्ण स्पष्ट होनी चाहिए. विषय की अनभिज्ञता की स्थिति में संशय उपस्थित होगा और सामने वाले का एकतरफा संवाद आपको विषय वस्तु स्पष्ट करने की दिशा में ही रहेगा.

चर्चा के सर्वोत्तम परिणाम तभी प्राप्त किये जा सकते है जब हम न केवल अपने सब्जेक्ट को लेकर आश्वस्त हो बल्कि सन्दर्भ पर बने रहना भी जरुरी हैं. कई बार किसी मुद्दे पर बात करते इतने दूर निकल जाते है जिससे मूल उद्देश्य पर बात ही नहीं हो पाती हैं.

बात कहने का तरीका सही हो

बात करने की कलाकारी सीखने का एक तरीका अपने बोलने के ढंग वाणी की मिठास भी हैं. ध्वनि की तीव्रता कर्कशता बातचीत को बोझिल और अरुचिकर बना देती हैं. कुछ लोगों को उच्च स्वर में बात करने की आदत होती है तो किन्ही को बेहद मंद स्वर में ऐसे में आपकी बात सुनने वाले पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता हैं.

अगर हमें अपनी बातचीत करने के तरीके में सुधार लाना है तो एक सरल सा उपाय हैं. जब भी आप किसी को कॉल करें तब अपनी कॉल रिकॉर्ड अवश्य करें. एकांत में बैठकर उस बातचीत को सुने और आत्म अवलोकन करें.

ऐसे करके आप अपनी वाणी कहने के ढंग, सम्बोधन, स्वीकारोक्ति आदि में बड़ा बदलाव ला सकते हैं. वाणी में मधुरता का क्या स्थान हैं कवि तुलसीदास के इस दोहे से जाना जा सकता हैं.

कोयल काको देत है कागा कासो लेत।
तुलसी मीठे वचन ते जग अपनो करि लेत।।​

पूर्वाग्रह न रखे

हमारा दैनिक जीवन में जिन जिन व्यक्तियों के साथ सम्पर्क होता है उनके बारे में अच्छी या बुरी एक छवि हमारे मस्तिष्क में छप जाती हैं. यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है मगर एक प्रभावशाली वक्ता के लिए यह एक सम्प्रेषण अवरोधक की तरह काम करता हैं.

मान लीजिए आपके एक दोस्त के बारें में आपकी यह धारणा है कि वह बहुत आलसी नशेडी और कामचोर है, इस नकारात्मक छवि के चलते आप इसे इग्नोर करना आरम्भ कर देते हैं. हर व्यक्ति में कुछ अच्छाईयों के साथ बुराइयां भी होती हैं.

ऐसे में हम संकीर्ण पूर्वधारणा के चलते बात करते वक्त उस मित्र की किसी अवसर पर कही बेहतरीन बात सीख संदेश या सलाह को भी उसकी छवि की तरह ही इग्नोर करते जाएगे.

अगर हम पूर्वाग्रह को कम से कम करके वर्तमान स्थिति पर बात करके अच्छे विचारों को स्वीकारोक्ति और सम्मान दे तो निश्चय ही बहुत कुछ सीखने को मिल सकता है और संवाद को आकर्षक बनाया जा सकता हैं.

बहस से बचे

बातचीत को तर्क संगत स्वरूप से बहस में बदल देना इसे परिणाम शून्य बना देता हैं. कई बार चर्चा चलते चलते कब बहस बन जाती है इसका संज्ञान नहीं रहता हैं. बहस की प्रवृति को कम करने के लिए वक्ता के विचारों को सहमती में बदलने का प्रयास करना चाहिए.

कई दफा अपनी गलतियों के बचाव में भी बहस आरम्भ हो जताई हैं. अपनी बातचीत में ठहराव वक्त के विचारों को ध्यानपूर्वक सुनना और उन्हें समझने की कोशिश करना और विनम्रता से उत्तर देकर अनावश्यक बहस से बचा जा सकता हैं.

अच्छी बॉडी लैंग्वेज

शारीरिक भाषा एक मूक अभिव्यक्ति का बड़ा साधन है विचारों को बिना उच्चारण के बातचीत में बॉडी लैंग्वेज के जरिये भी काफी कुछ व्यक्त किया जा सकता हैं.

संवाद में 30 प्रतिशत केवल मौखिक भाषा और 70 फीसदी शारीरिक भाषा काम में ली जाती हैं. पोजिटिव बॉडी लैंग्वेज वन टू वन बातचीत को अधिक सार्थकता देता हैं.

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