यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत का अर्थ Yada Yada Hi Dharmasya Sloka Meaning in Hindi

यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत का अर्थ Yada Yada Hi Dharmasya Sloka Meaning in Hindi गीता हिंदुओं का बहुत ही पवित्र धर्म ग्रंथ है।

गीता धर्म ग्रंथ में श्री कृष्ण के द्वारा अर्जुन को दिए गए बहुत सारे उपदेशों का समावेश किया गया है। हिंदू धर्म में गीता को बहुत ही पवित्र पुस्तक माना जाता है। कई लोगों का ऐसा कहना है कि गीता के अंदर जिंदगी का सार मौजूद है।

यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत का अर्थ

यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत का अर्थ Yada Yada Hi Dharmasya Sloka Meaning in Hindi

गीता का एक बहुत ही फेमस डायलॉग है यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत जिसके अर्थ के बारे में बहुत ही कम लोग को जानकारी है।

इसीलिए इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको इस श्लोक के बारे में अधिकतम जानकारी देने का प्रयास कर रहे हैं। आइए जानते हैं यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत श्लोक के बारे में।

यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत श्लोक का हिंदी में मतलब

युद्ध भूमि में जब अपने सामने कौरव की सेना को देखकर के अर्जुन का आत्मबल डगमगाने लगा तब श्री कृष्ण अर्जुन को युद्ध करने के लिए तैयार करने के लिए उसकी सहायता के लिए आगे आए। 

जब अर्जुन ने अपने साथियों और अपने गुरुजनों के साथ युद्ध लड़ने से मना कर दिया तो श्रीकृष्ण ने अर्जुन को एक बहुत ही गोपनीय गीता का ज्ञान दिया जो था यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। यह गीता का एक श्लोक है जो कि गीता के अध्याय 4 में सातवें और आठवें नंबर पर है।

“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।”

ऊपर दिए गए गीता के श्लोक में श्री कृष्ण यह कह रहे हैं कि धर्म की हानि जब जब इस धरती पर होगी और जब जब विनाश का काम होगा तथा अधर्म बढ़ेगा तब तक मैं धरती पर अवतार लेकर आता रहूंगा और धर्म की स्थापना करूंगा तथा अधर्म का नाश करूंगा।

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे

ऊपर दिए गए श्लोक में श्री कृष्ण यह कह रहे हैं कि मैं हर युग में बार-बार अवतार साधुओं की रक्षा करने के लिए, धरती पर से पाप को खत्म करने के लिए, पापियों का संहार करने के लिए और धर्म को स्थापित करने के लिए लेता रहूंगा और अवतार लेकर के मै पृथ्वी पर निवास करने वाले हर प्राणी का कल्याण करूंगा।

यदा यदा ही धर्मस्य श्लोक की व्याख्या 

हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथ श्रीमद् भागवत गीता में जो श्लोक कहे गए हैं वह सभी श्रीकृष्ण ने अपने मुंह से कहे हैं। श्री कृष्णा ने श्रीमद्भागवत गीता में चौथे अध्याय के सातवें श्लोक में अर्जुन से कहा है कि;

जब इस दुनिया में अधर्म तेजी के साथ बढ़ने लगता है और उसके साथ पाप भी बढ़ने लगता है तो लोग गलत कामों को करने लगते हैं और अपने से कमजोर व्यक्ति के साथ अन्याय करने लगते हैं जिसके कारण धर्म का नाश होने लगता है और धर्म की धीरे-धीरे समाप्ति होने लगती है तब फिर से धर्म की वृद्धि करने के लिए और अधर्म को रोकने के लिए इस दुनिया में मैं अवतरित होता हूं।

इस दुनिया में जो इंसान लोगों से अच्छा व्यवहार करता है उन सभी सज्जन लोगों की रक्षा करने के लिए और बुरे लोगों का संघार करने के लिए तथा धर्म को स्थापित करने के लिए अवतार हर युग में मैं लेता हूं।

भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से भागवत गीता में मौजूद 8वे श्लोक में कहते हैं कि मैं उन लोगों की हमेशा रक्षा करता हूं जो बुरे समय में भी भगवान पर अपना विश्वास जमा कर रखते हैं और मैं ऐसे लोगों की रक्षा खराब लोगों से भी करता हूं। इस धरती पर मौजूद अधर्मियों को  दुष्टों को और पापियों को मारने के लिए हर कालखंड में तथा हर युग में मैं अवतरित होता हूं।

मैं धर्म की हानि होने पर उसकी रक्षा करता हूं और लोगों का धर्म के प्रति अविश्वास भी दूर करता हूं। मैं ही लोगों के मन मंदिर में धर्म के प्रति आस्था पैदा करता हूं।

श्रीमद् भागवत गीता की प्रमुख शिक्षाएं

इंसान को फल की चिंता छोड़ करके सिर्फ अपने कर्म पर विशेष तौर पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि इंसान के अधिकार में कर्म करना ही होता है ना कि उसका फल। इंसानों के कर्म का फल भगवान समय आने पर अवश्य देता है।

आत्मा को कोई भी नहीं मार सकता है क्योंकि वह अजर अमर होती है और आत्मा कभी भी नहीं मरती है वह बस शरीर छोड़ करके दूसरे शरीर में प्रवेश कर जाती है।

इंसान को अपने शरीर से नहीं बल्कि अपनी आत्मा से प्यार करना चाहिए क्योंकि इंसान का शरीर हर जन्म में चेंज होता रहता है।

मौत एक सास्वत सत्य है और इससे कोई भी नहीं बच सकता। जो लोग यह सोचते हैं कि उनकी मौत कभी नहीं होगी वह सबसे बड़े बेवकूफ हैं। मौत होने के बाद ही व्यक्ति को किसी दूसरे शरीर में नया जन्म मिलता है।

इंसानों को उसके अच्छे कर्मों का फल भी निश्चित समय पर मिलता है और उसके द्वारा किए गए बुरे कर्मों का फल भी उसे समय आने पर ही मिलता है। हालांकि यह समय कब आएगा इसका निर्णय लेने का अधिकार ईश्वर के पास होता है।

इंसान का मन बहुत ही चंचल होता है, इसीलिए इंसान को अपने मन पर हमेशा काबू करने की कोशिश करनी चाहिए और अपने मन को इंसान को ईश्वर की भक्ति में लगाना चाहिए।

श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार ऐसा मनुष्य सर्वश्रेष्ठ होता है जो दूसरे जीवो के प्रति दया का भाव रखता है और उनकी तकलीफों को समझता है।

जो इंसान अपने मन पर कंट्रोल नहीं कर पाता है उसका मन ही उस इंसान का दुश्मन हो जाता है। मन पर कंट्रोल करना बहुत ही आवश्यक होता है जिन लोगों का अपने मन पर कंट्रोल नहीं होता है वह अपनी मंजिल से भटक जाते हैं।

इंसान को कभी भी किसी भी चीज से मोह नहीं करनी चाहिए क्योंकि एक न एक दिन उसकी मृत्यु हो जानी है और उसकी सारी मोहमाया इसी धरती पर धरी की धरी रह जानी है।

गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है कि जो व्यक्ति निश्चल भाव से हमेशा मेरा चिंतन करता है और मेरी उपासना करता है, मैं उस पर अपनी कृपा दृष्टि अवश्य रखता हूं और उसके सारे दुखों को मैं खत्म कर देता हूं।

FAQ:

Q: यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत श्लोक किसने किससे कहा था?

Ans: श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था।

Q: इस श्लोक को हिंदू धर्म के किस ग्रंथ में लिखा गया है?

Ans: श्रीमद्भागवत गीता 

Q: इस उपदेश को श्री कृष्ण ने अर्जुन को कब दिया था?

Ans: कौरव सेना के साथ युद्ध करने के दरमियान युद्ध के मैदान में।

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उम्मीद करता हूँ दोस्तों यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत का अर्थ Yada Yada Hi Dharmasya Sloka Meaning in Hindi का यह आर्टिकल आपको पसंद आया होगा. अगर आपकों संस्कृत श्लोक इसका अर्थ और व्याख्या पसंद आई हो तो अपने फ्रेड्स के साथ जरुर शेयर करें.

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