ईद-ए-मिलाद उन-नबी या बारावफात Barawafat क्या है

ईद-ए-मिलाद उन-नबी या बारावफात Barawafat क्या है हिन्दू धर्म की तरफ ही मुस्लिम धर्म में भी सालभर पर्व एवं उत्सव मनाये जाते रहे है. मगर हिन्दुओं के होली दिवाली की तरह ईदमिलादुन्नबी अथवा बारा वफात को अन्य पर्वों से अधिक अहमियत दी जाती है.

रबी उल अव्वल इस्लाम केलेंडर एक पवित्र महिना है जिसकी बारह तारीख को पैगम्बर मुहम्मद साहब अवतरित हुए थे,

इसी याद में यह पर्व जिसे हम ईद-ए-मिलाद अथवा बारावफात Barawafat कहते है मनाया जाता है. वर्ष 2023  इसे 29 सितम्बर को भारत में मनाया जाएगा.

मिलाद उन नबी का इतिहास Milad un-Nabi/ Id-e-Milad Festival in India History in hindi

ईद-ए-मिलाद उन-नबी या बारावफात Barawafat क्या है

बारावफात 2023 (Barawafat Festival 2023)

वर्ष 2023 में बारावाफात या मिलाद उन नबी का यह मुस्लिम उत्सव इस साल 29 सितबर को गुरूवार के दिन मनाया जाएगा. पर्व को मनाने के तरीके को लेकर अतीत से आज तक बहुत से परिवर्तन आए हैं.

पहले इसे काफी सादगी के साथ एक सांकेतिक रूप में मनाया जाता था, मगर अब इसे बेहद धूमधाम के साथ मनाया जाता है इस दिन बाजारों में रौनक लौट आती है, सभी लोग मस्जिदों की ओर आते जाते दीखते है.

बारावफात का महत्व (Significance of Barawafat or Milad-un-Nabi)

‘ईद ए मिलाद’ (मीलाद उन-नबी) को बारावफात कहा जाता है. ये अरबी शब्द है जिसका अर्थ होता है पैगम्बर साहब का जन्म दन. इस दिन विशेष धार्मिक पर्वो का आयोजन किया जाता है.

ऐसा माना जाता है जो इस दिन पैगम्बर की शिक्षाओं पर चलने का प्रण लेता है उसे मृत्यु पश्चात स्वर्ग की प्राप्ति होती है.

मुस्लिम समाज के सभी फिरको में इस दिन आपसी एकता और सद्भाव के दर्शन मिलते है. सभी मस्जिद जाकर एक ईश्वर की सन्तान होने का पैगाम देते हैं. मानव कल्याण के लिए ईश्वर की शिक्षाओं की सही व्याख्या और उसे जन जन तक पहुचाने की आवश्यकता हैं.

आज संसार में इस्लाम आंतक का स्वरूप लेता जा रहा हैं. धर्म की शिक्षाएं शांति स्थापना के लिए होनी चाहिए कुछ तंजीमे तथा समुदाय इसे गलत स्वरूप देकर दुनिया के समक्ष प्रस्तुत करते हैं.

प्रत्येक मुस्लिम को बारावफात जैसे अवसरों पर इस चिन्तन करना चाहिए, कि हम जिस धार्मिक कट्टरपन की तरफ बढ़ रहे है वह इस्लाम और मानव समुदाय के खिलाफ हैं.

बारावफात Barawafat क्या है (Eid-e-milad detail in hindi)

Rabi ul Awwal रबि अल अव्वल माह में मनाया जाने वाला यह एक इस्लामिक त्यौहार है जो मोहम्मद साहब के जन्म दिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है.

इस्लामिक तारीख (इतिहास) के अनुसार माना जाता है कि हजरत रसूल उल्लाह मोहम्मद सल्लाह औह-आलै वसल्लम को अल्लाह ने पृथ्वी पर अन्याय को मिटाकर शांति व धर्म की स्थापना के लिए उन्हें जमीन पर भेजा.

मान्यता है कि मोहम्मद साहब से पूर्व 124000 नबी और रसूल का अवतरण हुआ था. सबसे अंतिम रसूल के रूप में पैगम्बर मुहम्मद साहब को 20 अप्रैल 571 ईसवी मुताबिक आज के दिन (12 रबी-ए-उल-अव्वल) पीर (सोमवार) के दिन अरब के मक्का में भेजा.

इनकी माता व पिता का नाम हजरते आमना खातून के यहाँ हुआ. कहा जाता है कि इनके जन्म से पूर्व ही पिताजी चल बसे थे, अतः इन्हें मोहम्मद कहकर पुकारा गया.

मिलाद उन नबी इस्लामिक का इतिहास (Milad un nabi festival history in hindi, Milad un nabi festival date nibandh)

पिता की मृत्यु के बाद मोहम्मद साहब की परवरिश दादा अब्दुल मुन्तलिब साहब द्वारा की गई. मक्का शहर के लोग इन्हें सम्मान की नजरों से देखते थे. मोहम्मद साहब का विवाह खदीजा से २५ वर्ष की आयु में हो गया था. वे अपने परिवार के पालन पोषण के लिए व्यापार का कारोबार किया करते थे.

जब मुहम्मद साहब चालीस वर्ष के हुए तो उन्हें नबी बनने का फरमान हुआ. उस समय सम्पूर्ण अरब व मुस्लिम देशों में अराजकता का माहौल था. लोग धर्म को पूरी तरह भूल चुके थे.

छोटी छोटी बातों पर झगड़े तथा हिंसा आम बात हुआ करती थी. ऐसे समय में नबी ने सच्चे रसूल का फर्ज अदा करते हुए लोगों को तालीम, अच्छाईयों को अपनाने तथा हिंसा से दूर रहने का हुक्म दिया.

उन्होंने कुरान को उतारा तथा इस्लाम में विश्वास रखने वाले धर्मावलम्बियों को इसका महत्व बताया. ६३ वर्ष की आयु में रबी ने इस लोक को अलविदा कह दिया.

12 रवी-उल-अव्वल को ईदमिलादुन्नवी का जुलूस निकालकर शहर व शहर ईद-उल-मिलादुन्नवी को एक पर्व की तरह सेलिब्रेट किया जाता है. हजरत साहब की दरगाह मक्का मदीना में हैं. इस्लाम धर्म में आस्था रखने वाला हर व्यक्ति अपने जन्म एक बार हज यात्रा पर अवश्य जाता है.

बारावफात मनाने का तरीका (Milad un nabi Barawafat festival Celebration)

लोग अपने विश्वास तथा आस्था के मुताबिक़ इस इस्लामिक पर्व को सेलिब्रेट करते हैं. इस दिन को त्योहार के रूप में मनाने का मूल उद्देश्य पैगम्बर मुहम्मद साहब की शिक्षाएं, उनकी जीवन तथा चरित्र को अपने बच्चों तथा लोगों तक पहुचाएं.

धर्म की अच्छी बातों को ग्रहण करे. यह दान देने का महत्वपूर्ण दिन है इस दिन बच्चों, गरीबों आदि में खेरात बांटी जानी चाहिए. लोगों द्वारा बाराबफात के दिन हरें झंडे के साथ रबी की याद में शान्तिपूर्ण जुलूस निकाला जाता हैं.

देश की प्रसिद्ध दरगाहों पर लोग एकत्रित होकर एक दूसरे के अमन के लिए दुआ कर मुबारकबाद पेश की जाती है. इस तरह बारावफात का यह पर्व देश व दुनियां में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता हैं. हैं या खुलने का समय कम कर दिया जाता हैं.

सुन्नी मुस्लिम समुदाय के द्वारा बारावफात (Barawafat By Sunni Muslim Community)

इस्लाम मजहब का सबसे बड़ा फिरका सुन्नी मुस्लिमों का हैं. भारतीय उपमहाद्वीप में मुसलमानों की बहुल आबादी इसी समुदाय की हैं. सुन्नी मुस्लिमों द्वारा बारावफात के दिन को शोक पर्व के रूप में मनाया जाता हैं.

स्वाभाविक हैं पैगम्बर मोहम्मद साहब का इंतकाल इसी दिन हुआ था इसलिए सुन्नी मत को मानने वाले इस दिन अपने खुदा के प्रति शोक प्रकट करते हैं.

इस्लाम का सबसे अधिक कट्टर माना जाने वाला सुन्नी मत पैगम्बर की प्रत्येक शिक्षा और विचार को जीवन में कठोरता से अपनाने पर जोर देता हैं. बारावफात के अवसर पर सुन्नी लोग मस्जिद में जाकर सामूहिक शोक मनाते हैं तथा अपने ईश्वर का स्मरण करते हैं.

शिया मुस्लिम समुदाय द्वारा बारावफात (Barawafat By Shia Muslim Community)

सुन्नी मुस्लिम की तरह शिया समुदाय के लोग भी बारावफात मनाते हैं. मगर इस दिन को शिया समुदाय हर्ष के उत्सव के रूप में मनाते हैं. इसके पीछे मान्यता यह है कि पैगम्बर साहब ने इसी दिन हजरत अली को अपना उत्तराधिकारी बनाया था. शिया समुदाय अली को अल्लाह का पुत्र मानकर उन्हें सर्वेसर्वा मानते हैं.

बारावफात को इस्लाम में पवित्र दिनों में गिना जाता हैं. जो धर्मावलम्बी इस दिन मक्का मदीना अथवा अपने निकट की मस्जिद में जाकर कुरआन पढ़ते है तथा एक मुस्लिम होने का कर्तव्य निर्वहन करते है तो ईश्वर से उसकी समीपता बढ़ जाती है तथा साधक को विशेष रहमत मिलती हैं.

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