भामाशाह का इतिहास व जीवन परिचय Biography Of Bhamashah In Hindi

Biography Of Bhamashah In Hindi भामाशाह का इतिहास व जीवन परिचय: आज भी हमारे यहाँ कोई व्यक्ति समाज कल्याण या धर्म के किसी विषय पर दान देता है तो उन्हें भामाशाह के नाम से बुलाते हैं.

आज के समय दानदाताओं का पर्याय बन चुके, वे भामाशाह कौन थे, उनका इतिहास क्या था आज की इस जीवनी में हम महान देशभक्त एवं स्वतंत्रता प्रेम महाराणा प्रताप के परम सहयोगी दानवीर भामाशाह के बारे में बात करेगे.

भामाशाह का जीवन परिचय Biography Of Bhamashah In Hindi

भामाशाह का इतिहास व जीवन परिचय Biography Of Bhamashah In Hindi

भामाशाह (1547-1600) मेवाड़ राज्य का दीवान था. हल्दीघाटी के युद्ध (1576) के बाद महाराणा प्रताप की सेना के पुनर्गठन एवं मुगलों के विरुद्ध युद्ध जारी रखने के लिए भामाशाह ने अपनी निजी और पैतृक सम्पति अर्पित कर दी. इसने मालवा के आक्रमण करके वहां से दंड स्वरूप 25 लाख रूपये महाराणा को समर्पित कर दिए.

दिवेर के युद्ध में यह मेवाड़ी सेना के साथ था. इसने शासन व्यवस्था को पुनर्स्थापित करने युद्ध सामग्री जुटाने एवं मुगलों के विरुद्ध युद्ध में महाराणा प्रताप का साथ दिया.

राणा प्रताप भामाशाह का बड़ा सम्मान करते थे. महाराणा प्रताप के समय से ही राजधानी उदयपुर की पंच पंचायत, जाति, भोज, सिंह पूजा आदि विशेष अवसरों पर भामाशाह के मुख्य वंशधर को ही सर्वप्रथम तिलक किया जाता हैं.

और मान दिया जाता हैं. वर्तमान समय में भी सार्वजनिक कार्यों के लिए अनुदान देने वाले व्यक्तियों को भामाशाह कहा जाता हैं.

राजस्थान सरकार द्वारा गरीब जनता की सहायतार्थ एक सरकारी योजना शुरू की गई है जिन्हें भामाशाह योजना के नाम से जाना जाता हैं.

29 अप्रैल 1547 को मेवाड़ के एक ओसवाल जैन परिवार में भामाशाह का जन्म हुआ था. इनके पिताजी रणथम्भौर के किलेदार थे, परन्तु भामाशाह बचपन से ही मेवाड़ की सेवा में ही रहे.

जब मेवाड़ के राणा प्रताप संकट की घड़ी में थे, लम्बे समय तक मुगलों से संघर्ष के लिए उन्हें आर्थिक आवश्यकता थी तो उस समय भामाशाह ने आर्थिक सहायता कर प्रताप के संग्राम को जारी रखने में अहम भूमिका निभाई.

भामाशाह भी प्रताप की तरह सच्चे देशभक्त थे. इन्होने मेवाड़ की सेना के लिए छापामार पद्दति से युद्ध नीति अपनाई तथा दुश्मन राज्यों पर धावा बोलकर वहां से धन संपदा ले आते थे.

भामाशाह ने प्रताप को 20,000 सोने के सिक्के व 25,00,000 लाख रूपये दान में दिए यह इतना पर्याप्त धन था कि बीस हजार की फौज का अगले 10-12 वर्षों तक आराम से निर्वहन हो सकता था.

यही वह समय था जब इस जैन परिवार का राज परिवार से अटूट रिश्ता बन गया था. भामाशाह महाराणा प्रताप के विश्वासपात्र थे.

इनके बाद राजसिंह के शासन में भामाशाह का पुत्र जीवाशाह ने राज सेवा का धर्म निभाया तथा अक्षयराज प्रताप के पोते कर्ण सिंह के साथ मेवाड़ के प्रधान पर रहकर न सिर्फ जैन धर्म के गौरव को बढ़ाया, बल्कि अपनी ईमानदारी तथा स्वामिभक्ति का परिचय भी दिया.

आज भी चित्तौड़गढ में भामाशाह की हवेली बनी हुई हैं. माऊंट आबू मे जैन मंदिर का निर्माण भी भामाशाह के एक भाई ताराचंद द्वारा करवाया गया था. राज्य सरकार भी मेधावी छात्रों को भामाशाह पुरस्कार से सम्मानित करती हैं.

अपने 52 वर्षों के जीवनकाल में देशभक्ति व दानवीर की भूमिका निभाने वाले भामाशाह की समाधि उदयपुर में हैं. ३१ दिसम्बर २००० को भारत सरकार द्वारा इस महान विभूति के नाम का डाक टिकट भी जारी किया जा चुका हैं.

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