चंदबरदाई का जीवन परिचय | Biography Of Chandbardai in hindi

चंदबरदाई का जीवन परिचय | Biography Of Chandbardai in hindi: पृथ्वीराजरासो के रचयिता चंदबरदाई चौहान शासक पृथ्वीराज तृतीय (1178-1192 ई) का दरबारी कवि था.

पृथ्वीराज रासो में चौहान शासक पृथ्वीराज तृतीय एवं तत्कालीन राजनीतिक स्थिति का वर्णन हैं. पृथ्वीराजरासो हिंदी का प्रथम महाकाव्य माना जाता हैं. इसमें पहली बार राजपूतों की अग्निकुंड से उत्पत्ति का वर्णन हैं.

चंदबरदाई का जीवन परिचय | Biography Of Chandbardai in hindi

चंदबरदाई का जीवन परिचय | Biography Of Chandbardai in hindi
पूरा नामचंदबरदाई
जन्मसंवत् 1205
जन्म भूमिलाहौर
मृत्युसंवत् 1249
मुख्य रचनाएँपृथ्वीराज रासो
भाषाब्रजभाषा
उपाधिमहाकवि
नागरिकताभारतीय

चंदबरदाई ने अपने ग्रंथ में पृथ्वीराज तृतीय द्वारा कन्नौज के गहडवाल शासक जयचंद की कन्या संयोगिता का स्वयंवर के समय हरण करना बतलाया हैं. ऐसी किवदन्ती है कि पृथ्वीराज तृतीय को तराइन के द्वितीय युद्ध के बाद जब मुहम्मद गौरी गजनी ले गया तब चंदबरदाई भी गजनी के दरबार में चला गया.

वही उसने योजना बनाकर पृथ्वीराज के शब्दभेदी बाण से गौरी की हत्या करवा दी. और फिर पृथ्वीराज एवं चंदबरदाई ने एक दूसरे को कटार भौक्कर आत्महत्या कर दी.

चंदबरदाई की जीवनी (Chand Bardai Biography)

चंदबरदाई का जन्म लाहौर में हुआ था. वह राव जाति के क्षत्रिय थे. इन्होने अपना अधिकाँश जीवन पृथ्वीराज चौहान के साथ अजमेर और दिल्ली में बिताया था. ये पृथ्वीराज चौहान के परम मित्र, सलाहकार एवं राजकवि थे. यह युद्ध क्षेत्र में भी चौहान के साथ जाया करते थे.

पृथ्वीराजरासो ग्रथ की इन्होने पिंगल भाषा में रचना की, जो ब्रज से मिलती जुलती भाषा हैं. इस कारण इन्हें हिंदी भाषा व ब्रज का प्रथम कवि भी माना गया हैं.

बरदाई ने अपने इस ग्रंथ में चौहान के युद्धों तथा उसकी प्रेमगाथा का सजीव चित्रण किया हैं. इस महाकाव्य में वीर रस तथा श्रृंगार रस का अनूठा मेल देखने को मिलता हैं. हालांकि चंदरबरदाई पृथ्वीराजरासो को पूरा नहीं लिख पाई थे.

गजनी में उसके साथ घटित घटनाक्रम को किसी अज्ञात कवि द्वारा उतारा गया हैं. फिर भी यह हिंदी की प्रथम प्रमाणिक रचना मानी जाती हैं,

जो काव्य का महासागर हैं इसमें दस हजार से अधिक छंद तथा स्थानीय छः भाषाओं का प्रयोग किया गया हैं. भारत के तत्कालीन शासक समाज की व्यवस्थाओं एवं परम्पराओं का उल्लेख भी इसमें मिलता हैं.

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने हिंदी साहित्य के इतिहास में इन्हें पहले हिंदी महाकवि की उपाधि दी हैं. ये भारत के अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के दरबारी थे.

बताया जाता है कि चंदबरदाई और चौहान का जन्म दिन व मरण दिन एक ही था. षड्भाषा, व्याकरण, काव्य, साहित्य, छंद शास्त्र, ज्योतिष, पुराण, नाटक आदि में अद्भुत ज्ञान रखने वाले चंदबरदाई जालंधरी देवी को अपनी इष्ट देव मानते थे.

हिन्दी के पहले कवि

हिंदी भाषा की पहली रचना पृथ्वीराज रासो को और चन्दरबरदाई जी को हिंदी का पहला कवि होने का गौरव प्राप्त हैं.

उनके इस अमर काव्य में करीब दस हजार से अधिक छंद है इसमें छह भाषाओं का प्रयोग किया गया हैं. ये पृथ्वीराज चौहान तृतीय के घनिष्ठ मित्र और राजकवि थे इनका काल 1165 से 1192 के मध्य माना जाता हैं.

अपने ग्रंथ में चंदबरदाई ने क्षत्रिय समाज की मुख्य परम्पराओं को भी विस्तृत रूप से लिखा हैं. चन्दरबरदाई ने करीब ढाई हजार पन्नों के इस विशाल ग्रन्थ को 69 अध्यायों में लिखा था.

गोरी के वध में सहायता

पृथ्वीराज चौहान और चंदरबरदाई का जीवन एक दूसरे में रचा बसा था दोनों हर वक्त साथ रहा करते थे. जब गौरी चौहान को बंदी बनाकर गजनी ले जाने लगा तो चन्दरबरदाई भी उनके साथ चले गये.

पृथ्वीराज को कड़ी यातनाएं देकर अँधा कर दिया. उन्होंने गोरी के वध की प्लानिंग की और पृथ्वीराज के शब्दभेदी बाण चलाने की कला के बारे में गौरी को बताया.

गोरी यह कला देखने के लिए उत्सुक हो उठा, इस पर उसका दिल जीतने के लिए पृथ्वीराज से एक घंटे पर तीर चलवाया, तीर जैसे ही निशाने पर लगा गौरी कह उठा वाह,

फिर क्या था चंदबरदायी ने एक दोहा पढकर चौहान को बताया कि वह किस दिशा में कितनी ऊंचाई पर बैठा हैं. इस तरह चंदरबरदाई की मदद से गोरी का वध कर दिया.

चंदबरदाई की मृत्यु

कहते है पृथ्वीराज चौहान और चंदरबरदाई का जन्म एक ही दिन हुआ था, यह संयोग ही था साथ साथ जीवन जीने वाले इन दोनों की इहलीला भी एक साथ ही समाप्त हुई.

सन 1192 में इनका देहावसान अफगानिस्तान के गजनी में हुआ था, जो कि मोहम्मद गजनवी का शहर था.

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