तुलसीदास का जीवन परिचय एवं दोहे | Biography Of Tulsidas In Hindi

तुलसीदास का जीवन परिचय एवं दोहे Biography Of Tulsidas In Hindi: सौरमंडल में जो स्थान सूर्य को दिया गया हैं वैसे ही हिंदी साहित्य में कवि गोस्वामी तुलसीदास जी को वह सम्मानीय पद प्राप्त हैं.

वैसे तो तुलसीदासजी ने 12 से अधिक ग्रंथों की रचना की मगर रामचरितमानस उनकी अनुपम कृति थी जिसने उन्हें अमर बना दिया, यही वजह हैं कि 5 शताब्दी बीत जाने के बाद भी आज भी तुलसी को सम्मान के साथ याद किया जाता हैं.

तुलसीदास का जीवन परिचय एवं दोहे Biography Of Tulsidas In Hindi

तुलसीदास का जीवन परिचय एवं दोहे | Biography Of Tulsidas In Hindi

हिंदी भक्ति काव्य धारा के सूर्य के समान ख्याति प्राप्त भक्त कवि गोस्वामी तुलसीदास जी सगुण भक्ति धारा के स्तम्भ कवि थे.

इनके तेज से मध्यकाल में हिन्दू समाज फैली निराशा की भावना को ईश्वर भक्ति से जोड़कर पीड़ित जनमानस में आशा की किरण पैदा की.

तुलसीदास जी की जीवनी और वर्ष के बारे में अन्य प्रमुख कवियों की तरह कोई स्पष्ट राय नही हैं. भले ही आज ये जीवित नही हैं, बल्कि इनकी मुख्य रचना रामचरितमानस आज भी प्रत्येक हिन्दू के लिए आदर्श ग्रन्थ का स्थान ले चूका हैं.

कवितावली एवं विनयपत्रिका वर्णित कुछ लाइनों में इस बात का संकेत मिलता हैं. कि तुलसीदास जी ब्राह्मण कुल के थे. तुलसीदास का जीवन परिचय एवं दोहे में तुलसी का संक्षिप्त जीवनी दी गई हैं.

हिंदी साहित्य के सर्वश्रेष्ट महाकवि तुलसीदासजी सगुण काव्यधारा में राम के उपासक थे. गोस्वामी तुलसीदास का जन्म सवत 1554 विक्रमी संवत (1497) उत्तरप्रदेश के बांदा जिले के राजापुर में हुआ था.

इनके पिता का नाम आत्माराम और माता का नाम हुलसी था. बाल्यावस्था में ही माता-पिता का देहांत हो जाने के कारण तुलसीदास जी का लालन-पोषण गुरु नरहरिदास जी ने ही किया.

बाबा नरहरिदास को तुलसीदास का गुरु अन्तः साक्ष्य के आधार पर माना जाता हैं. तुलसीदास भगवान श्रीराम के प्रति सर्वस्व समर्पण कर काव्य रचना करते थे.

उनकी भक्ति भावना का मूल उत्स लोक संग्रह एवं लोक मंगल की भावना हैं. तुलसीदास में समन्वय की चेष्टा और अद्भुत शक्ति थी, सनातन हिन्दू धर्म के भिन्न भिन्न सम्प्रदायों के पारस्परिक विद्वेष को कम करने के लिए उन्होंने अथक प्रयास किया.

तुलसीदास जी ने रामभक्ति से प्रेरित होकर अपने रामकथा ग्रंथों में राम तथा उनके भक्तों का जो चित्रण प्रस्तुत किया हैं. वह मानवता के सर्वोच्च आदर्शों को स्थापित करता हैं.

इस संबंध में रामचरितमानस अद्वितीय रचना हैं. तुलसीदास ने प्रबंध और मुक्तक दोनों प्रकार के काव्य अवधि एवं ब्रजभाषा में स्वभाविक रूप से सर्जित कर काव्य रचना में सिद्धह्स्त्ता को प्रत्यक्ष किया हैं. तुलसी का सम्पूर्ण काव्य उन्हें भारत वर्ष का लोक नायक प्रतिष्ठित कर आधुनिक युग की प्रत्येक समस्या का समाधान उपलब्ध करवाता हैं.

भगवान् श्रीराम के प्रति अनन्य भक्ति ने रामचरितमानस जैसे दिव्य ग्रन्थ की रचना कवि द्वारा करवाई. रामचरितमानस के अतिरिक्त तुलसीदास जी की अन्य रचनाओं में विनयपत्रिका, कवितावली, गीतावली, दोहावली, जानकी मंगल, और बरवै रामायण हैं.

इनकी भक्ति की सबसे प्रधान विशेषता उनकी सर्वागपूर्णता हैं, उनमे धर्म और ज्ञान का सुंदर समन्वय हैं. इनके आराध्य राम परमब्रह्मा होते हुए गृहस्थ थे.

तुलसीदास जी ने परिवारिक सम्बन्धो के आदर्श चरित्र को हमारे सामने प्रस्तुत किया हैं. तुलसीदास जी की इन्ही विशेषताओ के कारण कहा गया हैं, कि

कविता कर तुलसी न लसै |
कविता लसि पा तुलसी की कला ||

तुलसीदास की जीवनी | Tulsidas ka Jeevan Parichay In Hindi

हिंदी साहित्याकाश में प्रभावशाली सूर्य, लोकनायक गोस्वामी तुलसीदास हमारे हिंदी साहित्य में एक विशिष्ट एवं महत्वपूर्ण स्थान है. इस महाकवि का जन्म का संवत 1554 में हुआ था.

इनके पिता श्री आत्माराम व माता हुलसी थी. हमारे रूढ़ीग्रस्त समाज में मूल नक्षत्र में जन्म लेना अपशकुन माना जाता है. और इस महाकवि का जन्म भी इस नक्षत्र में ही हुआ था. इसी कारण इन्हे माता पिता ने त्याग दिया था.

तुलसीदास का जीवन परिचय-एक महात्मा की कृपा द्रष्टि से उनकी छत्रछाया में तुलसीदास का लालन पोषण हुआ. शिक्षा दीक्षा समाप्त होने पर इनका विवाह रत्नावती नामक गुणवती कन्या के साथ सम्पन्न हुआ.

ये पत्नी में अत्यधिक अनुरुक्त थे. एक बार उसके मायके चले जाने पर उसके वियोग न सह सकने के कारण वहां पहुच गये.

पत्नी ने इस आसक्ति को लक्ष्य कर इन्हे ताना मार दिया. इससे इनका ह्रद्य परिवर्तित हो गया और इसके बाद तुलसीदास निखरे लोकनायक तुलसीदास, जो समस्त हिन्दीभाषी समाज के समझ एक मिसाल कायम कर गये.

तुलसीदास का साहित्यिक परिचय (Literary introduction of Tulsidas)

गोस्वामी तुलसीदास भावुकता के साह ही मर्यादा के भक्त कवि थे. गोस्वामीजी मध्युगीन काव्य की जादुई उपवन के विशाल वृक्ष थे. समस्त संसार के किसी भी कवि ने कविता में संत तुलसीदास जैसी प्रखर प्रतिभा का परिचय नही दिया.

काशी को इस बात का गर्व है कि उसकी गोद में तुलसी जैसे महाकवि फले फुले. भाषा का माधुरी और ओज तुलसी के काव्य में खूब मिलता है.

इनकी शैली अपूर्व अनुपम और मादकता का सागर है. रामचरितमानस इनकी अनुपम कृति है. जिसमे केवल राम की कथा ही आदि से अंत तक अखनत नही है

अपितु बिच बिच में उनके चरित्र से सम्बन्धित अनेक उपकथाएँ भी है. और इस प्रकार इठलाती बलखाती, राह में विश्राम लेती यह कथा अपनी मौज मस्ती में बढ़ती जाती है. कही भी उतावलापन या जल्दबाजी के दर्शन इस कृति में नही होते है.

यह तुलसी की असाधारण प्रतिभा का प्रमाण है. कि पाठक को इसे पढ़कर थकान का अनुभव नही होता है., अपितु वह एक स्फूर्ति का अनुभव करता है.

अपने आदर्श कथानक एवं मर्यादा पुरुषोतम श्रीराम के उदात चरित्र का अंकन करने से गोस्वामी तुलसीदास का रामचरितमानस समग्र हिन्दू समाज के लिए श्रेष्ट धर्मग्रन्थ के रूप में पूज्य पठनीय बन गया है.

तुलसीदास एक अप्रितम, अनुपम प्रतिभा के स्वामी थे. तुलसीदास ने भले ही लम्बे समय तक छन्दशास्त्र पढ़ा हो, किन्तु रामचरितमानस और विनय पत्रिका आदि रचनाओं में भी ऐसा आभास नही मिलता है.

कि उन्होंने कही श्रम अथवा चेष्टा की है, भावों की सुमधुर अभिव्यक्ति के लिए शैली सरल प्रवाहमयी है. भाषा और छंदवृत भी प्रसंग के अनुकूल है. चाहे जैसी भी स्थति हो, उनका ह्रद्य उनके मूल रस में प्रवेश कर जाता है.

इन्होने प्रसंगानुसार हास्य, करुण, वीर, भयानक आदि रसो का सुंदर चित्रण किया है. इनकी रचनाएं व्यंग्य एवं उपदेशात्मकता से युक्त और सामाजिक आदर्शों से मंडित है.

समाज सुधारक और लोकनायक (Social reformer and tribune)

युगद्रष्टा गोस्वामी तुलसीदास का प्रदुभाव ऐसी परिस्थतियों में हुआ, जब भारत में ऐसी विषम संकट की स्थति से गुजर रहा था. कि बयान करना भी सहज नही है.

मुगलों के अत्याचार सहन करती जनता सुव्यवस्थित भविष्य के प्रति लगभग निराश हो चुकी थी. शैवों और वैष्णवों में भयंकर मतभेद का जहर फैला हुआ था.

किन्तु ईश्वर को इस समय तक समाज की दुर्गति का ध्यान आया था. इसलिए उन्होंने सह्रदय लोकनायक को हमारे बिच भेजा.

तुलसी ने ऐसी विषम परिस्थतियों में कष्ट सहकर अपने साहित्य स्रजन द्वारा हमारे पथभ्रष्ट समाज को ऊँगली पकड़कर सही रास्ता दिखलाया. उसे पतन के गर्त से निकालने की चेष्टा की और उसमे एक हद तक सफलता भी प्राप्त की.

तुलसीदास की कहानी (Story of tulsidas)

यों तो और भी लेखक कवि तथा साहित्यकार ऐसे हुए है जिन्होंने अपनी असाधारण योग्यता तथा काव्य कुशलता द्वारा हमारा ध्यान विशेश्यता आकर्षित किया है.

परन्तु वे हम हमारे लिए उतनी श्रद्धा के पात्र नही है, क्युकि उनका व्यक्तित्व गोस्वामी तुलसीदास जितना पवित्र नही है.

गोस्वामी तुलसीदास की प्रतिभा लोकमंगल और विविध आदर्शों के समन्वय से मंडित थी. वे सच्चे लोकनायक थे. यही कारण है कि उनकी अनूठी कलात्मक योग्यता का बखान असंभव सा प्रतीत होता है.

Books Written By Tulsidas (तुलसीदास जी की रचनाएँ)

महाकवि तुलसीदास द्वारा लिखित रामचरितमानस विश्व के सर्वश्रेष्ट 100 ग्रंथो में 46 वें स्थान पर हैं, भारत में रामायण और महाभारत के बाद सबसे अधिक प्रसिद्ध हैं. राम के जीवन पर आधारित रचनाओं के कारण तुलसीदास जी को रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि का अवतार भी माना जाता हैं. तुलसीदास की निम्न पुस्तके हैं.

  • रामचरितमानस (1631-1633)
  • हनुमानबाहुक ( भगवान् हनुमान जी के जीवन पर)
  • गीतावली (भगवान् राम पर आधारित गीत)
  • कवितावली (अधूरी रचना)
  • दोहावली (दोहों की श्रखला)
  • रामाज्ञा प्रश्न (ज्योतिष शास्त्रीय पद्धति का ग्रंथ)
  • पार्वती-मंगल (पूर्ण प्रमाणित)
  • हनुमान चालीसा
  • वैराग्य-संदीपनी
  • बरवै रामायण
  • राम शलाका
  • संकट मोचन
  • करखा रामायण
  • रोला रामायण
  • झूलना
  • छप्पय रामायण
  • कवित्त रामायण
  • कलिधर्माधर्म निरूपण

तुलसीदास के दोहे (tulsidas dohe in hindi )

हिंदी साहित्य के सर्वश्रेष्ट महाकवि तुलसीदास जी सगुण काव्य धारा में राम के उपासक थे. गोस्वामी तुलसीदास का जन्म 1554 विक्रमी वर्ष 1497 में उत्तरप्रदेश के बांदा जिले के राजापुर गाँव में हुआ. इनके पिता का नाम आत्माराम और माता का नाम हुलसी था.

बाल्यकाल से ही माता-पिता का देहांत हो जाने के कारण गुरु नरहरिदास ने इनका लालन-पोषण किया. श्रीराम के प्रति अनन्य भक्ति ने रामचरित मानस जैसे दिव्य ग्रन्थ की रचना कवि द्वारा करवाई.

रामचरितमानस के अतिरिक्त तुलसीदास जी की अन्य रचनाओं में विनयपत्रिका, कवितावली, गीतावली, दोहावली, जानकीमंगल और बरवै रामायण हैं.

इनकी भक्ति की सबसे प्रधान विशेषता उनकी सर्वागपूर्णता हैं. तुलसीदास में धर्म और ज्ञान का सुंदर समन्वय हैं. इनके राम परमब्रह होते हुए भी गृहस्थ थे.

उन्होंने पारम्परिक सम्बन्धो के आदर्श चरित्र को हमारे सामने प्रस्तुत किया हैं. इन्ही सब विशेषताओ के कारण कहा गया हैं. कि-

कविता कर के तुलसी न लसै|
कविता लसि पा तुलसी की कला||

प्रस्तुत कविता तुलसीदास जी द्वारा रचित कवितावली के अयोध्याकाण्ड का अंश हैं. जो ह्रदयस्पर्शी एक चित्रात्मक हैं. कवि ने सीता, राम व लक्ष्मण के वन गमन का रोचक व सहज वर्णन किया हैं.

पथ पर महिलाओं का उलाहना, सीताजी द्वारा उनकी जिग्यासाओ का शमन करना, राम का मुनिवेश, धारण कर पद्वेश बिना कटीले पथ पर चलना, आदि भावो का शब्द चित्र ह्रदयस्पर्शी बन पड़ा हैं.

पुर ते निकसी रघुवीर धरि धरि दये मग में डग द्वै |
झलकी भुरी भाल कनी जल की, पुट सुखि गए मधुराधर वै ||
फिरि बूझति हैं ” चलनो अब केतिक, पर्ण कुटी करिहों कित हवे |
तिय की लखि आतुरता पिय की अखियाँ अति चारु चली जल च्वे ||

जल को गये लखन हैं लरिका परिखो,पिय! छांह घरिक हवे ठाढे |
पौछि पसेउ क्यारि करो, अरु,पाय पखारियो भूभुरी दाढे ||
तुलसी रघुवीर प्रिया सम जानि कै बैठीँ विलव लो कंटक काढ़े |
जानकी नाह को नेह लख्यो,पुलको तन, वारि विलोचन वाढे ||

ठाढे हैं तो द्रुम डार गहे, धनु काढ़े धरे, कर सायक लै |
विकटी भ्कुटी बडरी अंखिया, अनमोल कपोलन की छवि हैं ||
तुलसी असि मूर्ति आनी हिए जड़ डारिहो प्रान निछावरि कै |
स्त्रम सीकर साँवरी देह लसै मनो रासि महातम तारकमै ||

बनिता बनी श्यामला गौर के बिच, बिलोकहु री सखी ! मोहिसी हवे |
मग जोग न, कोमल, क्यों चलिहै? सकुचात मही पदपंकज छवे ||
तुलसी सुनि ग्राम् वधुविथकी तन औ चले लोचन च्वे |
सब भाति मनोहर मोहन रूप, अनूप हैं भूप के बाल द्वे ||

सावरे गोर सलोने सुभाय, मनोहरता जीती मैंन लियो हैं |
बान कमान निषंग कसे ,सिर सोहे जटा मुनिवेश कियो हैं ||
संग लिए विधु बैनी वधु रति को जोही रंचक रूप दियो हैं |
पाँयन तौ पन्ही न पयादेहि क्यो चलिहै? संकुचात हियो हैं ||

तुलसी के पद tulsidas ke pad

रानी में जानी अजानी महा, पबि पाहन हु ते कठोर हियो हैं |
राजहू काज अकाज न जान्यो कहो तीय को जिन कान कियो हैं ||
ऐसी मनोहर मूर्ति ये, बिछुरे कैसे प्रीतम लोग जियो हैं |
आंखन में, सखि ! राखिबे जोग, किमी के बनबास दियो हैं ||

सीस जटा ,उर बाहू बिसाल,विलोचन लाल त्रिछि सी भौहे |
तुन सरासन बाण धरे, तुलसी वन मारंग में सुठि सोहे ||
सादर बारहि वार सुभाय चितै तुम ल्यो हमरो मन मोहे |
पुछ्सी ग्राम्वधू सिय सों ” कहो सांवरो से, सखी रावरे को हैं? ||

सुनि सुंदर बैन सुधारस साने, सयानी हैं जानकी जानी भली |
तिरछे करे नैन दे सैन तिन्हे समुझाई कछु मुसुकाई चली ||
तुलसी तेहि औसर सोहे सबै अवलोकित लोचन- लाहू अली |
अनुराग-तडांग में भानु उदै विग्सी मनो मंजुल कंज-कली ||

पुर तें निकसी रघुबीर वधू, धरि धीर दए मगमें डग द्वे |
झलकीं भरी भाळनीं जल की, पुट सूख गए मधुराधंर

लनो अब केतिक, पर्नकुटी करि हौ कित हवैं।
तिय की लखी आतुरता पीयखियां अति चारू चलीं जल च्वै।

नामु राम कल पतरू कली कलियाणन नीवसु |
जे सिंमरत भयो भाग ते तुलसी तुलसीदास ||

सुचिव वैद ग़रु तिन्ही जों प्रिय बोलही भय आस |
राज धरम तन तीनी कर होइ बेगिहीं नाश ||

जल को गये गये हैं लक्खन हैं लरिका,परखो, पिय छांह घरिक हवे ताढ़े
पोछि पसेउ क्यारी करों, अरु पायं प्खारियो भुभिरी डाढ़े ||
तुलसी रघुबीर प्रिया स्म्र जानि कै बैठी विलव लौ कंटक काढ़े |
जानकी नाह को नेह लख्यौ, पुलको तन, वारि विलोचन वाढ़े ||

ठाहे हैं द्रुम डार गहे घनु कांधे धरे, कर सायक लै |
विक्टी भकुटी बडरी अंखिया, अनमोल कपोलन की छवि हैं |
तुलसी असि मूर्ति आनि हिए जड़ डरिहौ प्रान निछावरि कै |
स्त्रम-सीकर साँवरी देह लसै मनो रासि महातम तारकमै ||

बनिता बनी स्यामल गौर के बिच, विलोकहू री सखी ! मोहिसी हवौ |
मन जोग न, कोमल, क्यों चलिहै? चनकुचात मही पदपंकज छ्वै ||
तुलसी सुनि ग्रामवधु विथकी तन औ चले लौचन च्वे |
सब भांति मनोहर मोहन रूप, अनूप हैं भूप के बालक द्वै ||

तुलसीदास जी की राम कथा चौपाई सोरठा व दोहा

चौपाई-
बरबस राम समन्त्रू पठाएं, सुरसुरी तीर आपु तब आए,
मागी नांव न केवटु आना, कहई तुम्हार मरमु मैं जाना
चरण कमल रज कहू सब कहई, मानुष करनी मूरी कछु अहई,
छुअत सिला भई नारि सुहाई, पाहन तें न काठ कठिनाई
तरनिउ मुनि घरिनि होई जाई, बाट परई मोरि नाव उड़ाई
एहिं प्रतिपालउ सबु परिवारु, नहीं जानऊ कटु अउर कबारू,
जौ प्रभु पार अवसि गा चहहू, मोहि पद पदुम पखारन कहहू

अर्थ-रामचरितमानस से ली गई इस चौपाई में सुंदर प्रसंग के माध्यम से तुलसीदास ने केवट का श्रीराम के प्रति अगाध विश्वास तथा श्री राम का भक्त के प्रति अनन्य प्रेम उद्घाटित किया हैं. आजीविका के एकमात्र साधन नाव को बचाने के बहाने से चरण धोने का सौभाग्य प्राप्त करना केवट की भक्ति और दृढता का परिचय कराते हैं.

छंद-
पद कमल धोई चढ़ाई नाव न नाथ उतराई चहौं
मोहि राम राउरि आन दसरथ सपथ सब साँची कहौं
बरु तीर मारहु लखनु पे जब लगि न पाय पखारिहों
तब लागि न तुलसीदास नाथ कृपालु पारु उतारिहों

सोरठा- सुनि केवट के बैन प्रेम लपेटे अटपटे
बिहसे करूनाएन चितई जानकी लखन तन.

चौपाई- कृपासिन्धु बोले मुसुकाई, सोई करू जेहि तव नाव न जाई
बेगि आनु जल पाय पखारू, होत बिलंबु उतारहि पारु
जासु नाम सुमिरत एक बारा, उतरही नर भवसिंधु अपारा.
सोई कृपालु केवटहि निहोरा, जेहिं जगु किय तिहु पगहु ते थोरा
पद नख निरखि देवसरी हरषि, सुनि प्रभु बचन मोहँ मति करषी
केवट राम रजायसु पावा, पानि कठवता भरी लेई आवा
अति आनन्द उमगि अनुराधा, चरण सरोज पखारन लागा
बरषि सुमन सुर सकल सिहाहीं, एहि सम पुन्यपुंज कोउ नाहिं

दोहा- पद पखारि जलु पान करि, आपु सहित परिवार
पितर पारु करि प्रभुहि पुनि मुदित गयउ लेई पार

वहीँ श्रीराम का केवट को इच्छा के अनुरूप चरण पखारन कर नाव उतारने को कहना, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की विनम्रता का उद्घोष करता हैं.

इस सम्पूर्ण प्रसंग के माध्यम से तुलसीदास जी श्रीराम के सर्व जन के प्रति सह्रदयता और संवेदनशीलता को प्रमाणित करते हैं. तुलसी के इस प्रसंग से विविध छन्दों का प्रयोग एवं उद्धरण ज्ञात होते हैं.

चौपाई- उतरि ठाढ़ भये सुरसुरि रेता, सीय राम गुह लखन समेता
केवट उतरि दंडवत कीन्हा प्रभुहि सकुच एहि नहिं कछु दीन्हा
पिय हिय की सिय जाननिहारि, मुनि मुदरी मन मुदित उतारी
कहेऊ कृपाल लेहि उतराई, केवट चरण गहे अकुलाई
नाथ आजू मैं काह न पावा, मिटे दोष दुःख दारिद दावा
बहुत काल मैं कीन्हि मजूरी, आजु दीन्ह बिधि बनि भलि भूरि,
अब कुछ नाथ नाथ न चाहीअ मोरें, दीनदयाल अनुग्रह तोरें
फिरती बार मोहि जो देबा, सो प्रसादु मैं सिर धरि लेबा

दोहा- बहुत किन्ही प्रभु, लखन सियँ नहिं कछु केवटु लेई
विदा कीन्ह करूनायतन, भगति बिमल बरु देई.

तुलसीदास जी की मृत्यु (Goswami Tulsidas Death )

अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में तुलसीदासजी जी काशी आकर बस गये. कहा जाता हैं उस समय एक रात कलियुग उनके नजदीक आया और इन्हें कष्ट पहुचाने लगा.

इस पर तुलसी ने हनुमान जी का ध्यान किया तभी उनकी विनती पर बजरंग बली स्वय प्रकट हुए और इस दुःख के निवारण के लिए प्रार्थना के पद को रचने को कहा. उसी समय गोस्वामी ने अपनी आखिरी किताब विनयपत्रिका भगवत के चरणों में धर दी.

पुरुषोतम श्रीराम जी ने विनयपुस्तिका पर अपने दस्तखत किये और गोस्वामी तुलसीदास जी को निर्भय बना दिया. आखिर 1680 को काशी में ही तुलसीदास जी ने देह त्याग दी.

श्रावण माह की कृष्ण पक्ष की तृतीया के दिन को तुलसीदास जयंती के रूप में प्रतिवर्ष उन्हें चाहने वाले करोड़ो लोग इस दिन ऐसे महान भक्त कवि को याद करते हैं.

तुलसी जयंती (Tulsidas Jayanti In Hindi)

तुलसीदास जी को जन-जन का कवि कहा जाता हैं, लोगों की किवदन्ती हैं, कि जब इनका जन्म हुआ तो साधारण बच्चों की तरह ये रोये नही थे. साथ ही जन्म के समय ही उनके मुह में पुरे बतीस दांत थे. कुछ लोग इन्हे महर्षि वाल्मीकि के अवतार थे.

क्युकि वाल्मीकि भी भगवान् राम के अनन्य भक्त थे. तुलसीदास को अपने जीवन में राम के बारे में लिखने की प्रेरणा राम जी और हनुमान जी के साक्षात दर्शन के बाद मिली. हर वर्ष श्रावण मास के सातवे दिन तुलसीदास जयंती मनाई जाती हैं.

अवधि भाषा में राम के प्रति दास्य भाव से काव्य की रचना करने वाले तुलसीदास जी को सबसे अधिक ख्याति रामचरितमानस ग्रन्थ से मिली, इनके अतिरिक्त 12 अन्य पुस्तको को प्रमाणित माना जाता हैं. जो आज भी उपलब्ध हैं. तुलसी जयंती पर हम सभी ऐसे महान भक्त कवि को शत शत नमन करते हैं.

कवि तुलसीदास जी का जीवन परिचय इन हिंदी

तुलसीदास का विस्तृत जीवन परिचय: तुलसीदास राम काव्य परम्परा के सर्वश्रेष्ठ गायक एवं कवि के रूप में माने जाते हैं. इनकें जन्मकाल के बारें में एकाधिक मत हैं.

बेनीमाधव दास द्वारा रचित गोसाई चरित्र और महात्मा रघुवरदास कृत तुलसीचरित दोनों के अनुसार तुलसीदास का जन्म 1497 ई में हुआ था. शिवसिंह सरोज के अनुसार इनका जन्म संवत 1583 अर्थात 1526 ई में हुआ था. पं रामगुलाम द्वेदी इनका जन्म 1532 ई मानते हैं. यह निश्चित हैं कि ये महाकवि 16 वीं शताब्दी में विद्यमान थे.

जनश्रुति के अनुसार गोस्वामी तुलसीदास के पिता का नाम आत्माराम दुबे और माता का नाम हुलसी था. मिश्रबन्धुओं ने इन्हें कान्यकुब्ज माना हैं. मूल गोसाई चरित और तुलसी चरित्र के आधार पर आचार्य शुक्ल आदि ने इन्हें सरयूपाणि ब्राह्मण माना हैं.

तुलसी का बचपन घोर दरिद्रता एवं असहायवस्था में बीता था. उन्होंने लिखा हैं माता पिता ने दुनियां में पैदा करके मुझे त्याग दिया. अभुक्तमूल नक्षत्र में जन्म लेने के कारण माता पिता ने इन्हें त्याग दिया था. यह मान्य हैं कि तुलसी की मृत्यु 1623 ई में हुई. उनकी मृत्यु के विषय में उनका यह दोहा प्रसिद्ध हैं.

संवत सोरह सौ असी असी गंग के तीर
श्रावण शुक्ला सप्तमी तुलसी तज्यो शरीर

तुलसी के जन्मस्थान के विषय में काफी विवाद हैं. कोई उन्हें सोरों का बताता हैं कोई राजापुर का और कोई अयोध्या का. ज्यादातर लोगों का झुकाव राजापुर की ओर हैं. उनकी रचनाओं में अयोध्या, काशी, चित्रकूट आदि का वर्णन बहुत आता हैं. इन स्थानों पर इनके जीवन का पर्याप्त समय व्यतीत हुआ होगा.

बालकाण्ड के एक दोहे में उन्होंने लिखा कि मैंने रामकथा सूकरखेत में अपने गुरु के मुहं से सुनी. इस सूकर खेत को कुछ विद्वान् सोरों मानते हैं कुछ गोंडा जिले का सूकर खेत.

तुलसीदास के गुरु का नाम नरहरिदास था. माता-पिता के द्वारा छोड़ दिए जाने पर इन्होने ही तुलसी का पालन पोषण किया और ज्ञान भक्ति की शिक्षा दीक्षा दी. तुलसीदास का विवाह दीनबंधु पाठक की कन्या रत्नावली से हुआ था. अत्यधिक आसक्ति के कारण जब एक बार इन्हें अपनी पत्नी से मधुर भर्त्सना से लाज आई.

आपको दौरे आएहु साथ मिलि तब इनकी भवधारा सहसा लौकिक विषयों से विमुख होकर प्रभु की सेवा की ओर उन्मुख हो गई.

गोस्वामी तुलसीदास रचित 12 ग्रंथ प्रमाणिक माने जाते हैं. दोहावली, कवित्तरामायण, गीतावली, रामचरितमानस, रामाज्ञाप्रश्न, विनयपत्रिका, रामललानहछू, पार्वतीमंगल, जानकीमंगल, बिरवे रामायण, वैराग्यसंदीपनी, श्रीकृष्ण गीतावली. रामचरितमानस की रचना गोसाई जी ने सन 1631 अर्थात 1574 ई में प्रारम्भ की जैसा कि उनकी इस अर्धाली से प्रकट हैं सम्वत सोलह सो इकतीसा, करऊ कथा परिपद धरि सीसा.

तुलसीदास हिंदी के अत्यंत लोकप्रिय कवि हैं इन्हें हिंदी का जातीय कवि कहा जाता हैं. उन्होंने हिंदी क्षेत्र की मध्यकाल में प्रचलित दोनों काव्य भाषाओं ब्रज भाषा और अवधि में समान अधिकार से रचना की. एक अन्य महत्वपूर्ण बात यह हैं कि उन्होंने मध्यकाल में व्यहहत प्रायः सभी काव्यरूपों का प्रयोग किया हैं.

केवल तुलसीदास की ही रचनाओं को देखकर समझा जा सकता हैं कि मध्यकालीन हिंदी साहित्य में किन काव्य रूपों की रचना होती थी,

उन्होंने वीरगाथा काव्य की छप्पय पद्धति, विद्यापति और सूरदास की गीत पद्धति, गंग आदि कवियों की कवित सवैया पद्धति, रहीम के समान दोहे और बरवै, जायसी की तरह चौपाई दोहे के क्रम में प्रबंध काव्य रचे.

पं रामचन्द्र शुक्ल के शब्दों में हिंदी काव्य की सब प्रकार की रचना शैली के ऊपर गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपना ऊँचा स्थान प्रतिष्ठित किया हैं. यह उच्चता और किसी को प्राप्त नहीं.

तुलसीदास ने अपने जीवन और अपने युग के विषय में हिंदी के किसी भी मध्यकाल के कवि से ज्यादा लिखा हैं. तुलसी राम के सगुण भक्त थे. लेकिन उनकी भक्ति में लोकोंमुखता थी.

वे राम के अनन्य भक्त थे. राम ही उनकी कविता के विषय हैं. नाना काव्यरूपों में उन्होंने राम का ही गुणगान किया हैं. किन्तु उनके राम परमब्रह्म होते हुए भी मनुज हैं.

और अपने देशकाल के आदर्शों से निर्मित हैं. वस्तुतः रामचरितमानस के प्रारम्भ में ही तुलसी ने कौशलपूर्वक राम के ब्रह्मात्व और मनुजत्व की सहस्थिति के विषय में पार्वती द्वारा शंकर से प्रश्न करा दिया हैं और रामचरितमानस की पूरी कथा शंकर ने पार्वती को उस शंका निर्वारनार्थ सुनाई हैं.

तुलसी ने वाल्मीकि और भवभूति के राम को पुन प्रतिष्ठित नहीं किया, उनहोंने रामचरितमानस में जिस राम को निर्मित किया, वे ब्रह्मा होते हुए भी ऐतिहासिक स्थितियों के आधार पर व्यक्ति हैं.

वे अपार मानवीय करुणा वाले हैं, गरीब निवाज हैं दरिद्रता रुपी रावण का नाश करने वाले वाद्वाग्नी से भी भयंकर पेट की आग बुझाने वाले हैं. तुलसी के राम, तुलसी, तुलसी के व्यक्ति गत संघर्ष और उनके युग की विषमता के आलोक में प्रकाशित हैं.

महान रचनाकारों की रचना में कोई न कोई द्वंद होता हैं. रचना इस द्वंद को पाटती हैं. दार्शनिक धरातल पर तुलसी के यहाँ यह द्वंद राम के ब्र्ह्मात्व और मनुजत्व को लेकर हैं जिसे पार्वती के प्रश्न के द्वारा प्रस्तुत किया गया हैं.

लौकिक धरातल पर यह द्वंद कलिकाल और रामराज्य में हैं. तुलसी की सभी रचनाएँ इस द्वंद को चित्रित करने और उन्हें शमित करने का आद्यंत प्रयास हैं.

तुलसी ने कलियुग का वर्णन विशेष रूप से कवितावली और रामचरितमानस के उत्तरकाण्ड में किया हैं, दरिद्रता, रोग, अज्ञान, कामसक्ति आदि कलयुग के प्रभाव से हैं.

तुलसी ने महामारी , अकाल, बेरोजगारी आदि का मार्मिक वर्णन किया हैं. कवितावली में लंका दहन के प्रसंग में आग लगाने का जो वर्णन हैं यह अन्यत्र दुर्लभ हैं.

चूकी तुलसी ने अपने जीवन में अभावग्रस्तता और भूख का अनुभव किया था, इसलिए वे लोक में व्याप्त दरिद्रता का बहुत तीव्रता से अनुभव करके व्यथित हुए. इसलिए उन्होंने दरिद्रता को जगत का सबसे पीड़ादायी दुःख कहा.

तुलसीदास ने अपनी कविता में नारी जीवन के विविध चित्र खीचे हैं. उन्होंने नारी के प्रति अपार करुणा का भाव दर्शाया हैं. मध्यकाल में शायद ही किसी अन्य कवि ने नारी की पराधीनता का उल्लेख इतने स्पष्ट तौर पर नहीं किया हैं. कत विधि स्रजी नारि जग माही पराधीन सपनेहु सुख नाहि.

कैकेयी मंथरा संवाद और शूर्पनखा प्रसंग यह प्रकट करते हैं कि वे इस देश की नारियों को अनेक रूपों में जानते हैं. तुलसी नारी निंदक ही नहीं नारी सौन्दर्य से अत्यंत प्रभावित रचनाकार भी हैं.

किन्तु वे रीतिकालीन रीतिबद्ध कवियों के समान नारी को केवल भोग्यारूप में ही चित्रित नहीं करते. उन्होंने सीता की जो वन्दना की हैं. वह कन्या, माँ और प्रिया तीनों रूप में हैं. जनकसुता, जगजननी, जानकी अतिसय प्रिय करुणानिधान की.

तुलसीदास ने तत्कालीन सामंतों की सत्ता लोलुपता पर प्रहार किया हैं. प्रजा द्रोही शासक तुलसी की रचनाओं में प्रायः उनके कोप भाजन बनते हैं.

उन्होंने अकाल, महामारी के साथ साथ प्रजा से अधिक कर वसूलने की निंदा की हैं. अपने समय की विभिन्न धार्मिक साधनाओं के पाखंड का उद्घाटन किया हैं. तुलसी की दृष्टि में जो बुरा हैं वह कलिकाल का प्रभाव हैं.

यहाँ तक कि लोग वर्णाश्रम का पालन नहीं कर रहे हैं जो वह भी कलिकाल प्रभाव हैं विषमताग्रस्त कलिकाल तुलसी का युग हैं, जिसमें वे दैहिक, दैविक, भौतिक तापों से रही सर्वसुखद रामराज्य का स्वप्न बुनते हैं. रामराज्य तुलसी की आदर्श व्यवस्था हैं. इसमें नायक और व्यवस्थापक तुलसी के राम हैं.

तुलसी आदर्श व्यवस्था का स्वप्न ही नहीं देखते, उनके अनुसार वे अपने पात्रों को गढ़ते भी हैं. वे राम को आदर्श राजा, पुत्र, भाई, पति, स्वामी, शिष्य, सीता को आदर्श पत्नी और हनुमान को आदर्श सेवक के रूप में प्रस्तुत करते हैं. वस्तुतः रामोनुखता तुलसी का सबसे बड़ा आदर्श और मूल्य हैं. राम से विमुख होकर सभी सम्बन्ध त्याज्य हैं, ताजिए ताहि कोटि बैरी सैम जधपी परम स्नेही.

रामचरितमानस या अन्य काव्यो में तुलसी दास ने कथा के मार्मिक स्थलों की पहचान करते हुए उन्ही अंशो का विस्तार दिया जो मार्मिक हैं, अर्थात जिनमें मनुष्य का मन देर तक रम या रस मग्न हो सकता हैं. जैसे पुष्प वाटिका प्रसंग, रामवन गमन, दशरथ मरण, भरत की ग्लानि, वन मार्ग, लक्ष्मण शक्ति.

किसी भी स्थिति में पड़ा हुआ पात्र कैसी चेष्टा करेगा इसे जानने और चित्रित करने में तुलसी अद्वितीय हैं. वे मानव मन के कुशल चितेरे हैं.

चित्रकूट के राम भरत के मिलन के अवसर पर जो सभा जुड़ती हैं उसमें राम, भरत, विश्वामित्र आदि के व्यक्तव्य मध्यकालीन शालीनता एवं वचन रचना का आदर्श प्रस्तुत करते हैं.

तुलसीदास जिस प्रकार ब्रजभाषा और अवधि दोनों भाषाओं पर समान अधिकार रखते हैं. उसी प्रकार प्रबंध और मुक्तक दोनों की रचना में भी कुशल हैं. वस्तुतः तुलसी ने गीतावली, कवितावली आदि में मुक्तकों में कथा कही हैं.

डॉ रामविलास शर्मा के अनुसार रामचरितमानस में तुलसी की करुणा समाजोन्मुख हैं विनयपत्रिका में व आत्मोनुख हैं. व्यक्तिगत एकांतिक अनुभूतियों की अभिव्यक्ति की दृष्टि से विनयपत्रिका भक्तिकाव्य में अनूठी हैं.

तुलसी की काव्य कला उनकी नाद योजना अत्यंत महत्वपूर्ण हैं. वे वर्णानुप्रास के कवि हैं. उन्होंने बोली विशेषतः अवधी शब्दों में संस्कृत शब्दावली को ऐसा घुलाया हैं कि पूरी पदावली अवधि के ध्वनि प्रवाह में ढल जाती हैं. इसलिए वे हिंदी के सर्वाधिक स्मरणीय कवि हैं.

उनकी पंक्तियाँ हिंदी भाषा जनता की बोली में धुल मिलकर भाषा का मुहावरा बन गई हैं. कोई भी शब्दकार इससे बड़ी सिद्धि की कल्पना नहीं कर सकता हैं.

तुलसी भक्त हैं लेकिन उनके राम तक पहुचाने का रास्ता इसी लोक से होकर जाता हैं. इसीलिए वे महान लोक संग्रही कवि हैं.

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उम्मीद करता हूँ दोस्तों तुलसीदास का जीवन परिचय एवं दोहे | Biography Of Tulsidas In Hindi का यह लेख आपको पसंद आया होगा.

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