विजय सिंह पथिक का जीवन परिचय | Biography of Vijay Singh Pathik In Hindi

Biography of Vijay Singh Pathik In Hindi | विजय सिंह पथिक का जीवन परिचय: उत्तरप्रदेश के बुलंदशहर जनपद के गाँव गुढावली में 24 मार्च 1882 को विजयसिंह पथिक का जन्म हुआ. इनका प्रारम्भिक नाम भूपसिंह था.

1907 में इनका शचीन्द्र सान्याल से सम्पर्क हुआ. 1915 की सशस्त्र क्रांति की योजना क्रियान्वित करने के लिए इन्हें खरवा ठाकुर गोपालसिंह की सहायतार्थ राजस्थान भेजा गया था.

विजय सिंह पथिक का जीवन परिचय

विजय सिंह पथिक का जीवन परिचय | Biography of Vijay Singh Pathik In Hindi
पूरा नामविजय सिंह पथिक
मूल नामभूपसिंह गुर्जर
जन्म27 फ़रवरी, 1882
जन्म भूमिगुलावठी कलाँ, ज़िला बुलंदशहर
मृत्यु28 मई, 1954
मृत्यु स्थानमथुरा, उत्तर प्रदेश
अभिभावकहमीर सिंह और कमल कुमारी
पत्नीजानकी देवी
प्रसिद्धिस्वतंत्रता सेनानी
आंदोलनबिजोलिया किसान आन्दोलन

राजस्थान आते ही पथिक जी को गिरफ्तार कर नजरबंद की अवस्था में टाटगढ़ में रखा गया, जहाँ से ये फरार हो गये तथा किसानों के जन जागरण में लग गये.

इन्हें राजस्थान के किसान आंदोलन का जनक कहा जाता हैं. साधु सीताराम दास के आग्रह पर वे बिजौलिया आए और वहां किसानों को सामंती शोषण से बचाने के लिए प्रयत्नशील हो गये.

इन्होने बिजौलिया किसान आंदोलन का नेतृत्व किया. पथिक ने बेगूं किसान आंदोलन का निर्देशन भी किया. इन्होने वर्धा से राजस्थान केसरी एवं अजमेर से नवीन राजस्थान और तरुण राजस्थान नामक पत्र निकाले तथा अजमेर में राजस्थान सेवा संघ की स्थापना की और गनेश शंकर विद्यार्थी एवं गांधीजी से मिलकर बिजौलिया किसान आंदोलन को देशव्यापी बना दिया.

विजयसिंह पथिक की जीवनी

भारत के एक स्वतंत्रता सेनानी विजयसिंह पथिक की पारिवारिक पृष्ठभूमि देशभक्ति से जुड़ी हुई थी. इन्हें बचपन में ही रासबिहारी बोस और शचीन्द्रनाथ सान्याल जैसे क्रांतिकारियों का निर्देशन मिला.

इनके बचपन का नाम भूपसिंह गुर्जर था. लाहौर षड्यंत्र केस में इनका नाम आने के बाद इन्होने अपना नाम बदलकर विजयसिंह रख दिया.

महात्मा गाँधी के राष्ट्रीय आंदोलनों से पूर्व ही इन्होने राजस्थान से बिजोलिया किसान आन्दोलन की शुरुआत कर किसानों में जागृति लाने तथा उन्हें अपने हितों के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया.

इनके पिता का नाम  हमीर सिंह तथा माँ का नाम कमल कुमारी था. पथिक के दादा ने भारत की आजादी के पहले स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया तथा वे शहीद हो गये थे.

अपनी अधेड़ आयु में पथिक जी ने जानकी देवी नामक शिक्षिका से शादी की. मगर वे पारिवारिक जीवन का आनन्द नही ले पाए, विवाह के कुछ समय बाद ही पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था.

पथिक ने राजस्थान सेवा आश्रम की शुरुआत की थी. इस संस्था का परिचालन उनके जीवन का मुख्य उद्देश्य था मगर वो इसे आगे तक जारी नहीं रख पाए इनका भी अफ़सोस उन्हें था.

बिजोलिया किसान आन्दोलन

1920 के आसपास राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र के इलाकों में सामन्ती और ब्रिटिश हुकुमत के किसानों के प्रति अत्याचारों से तंग आकर किसानों ने अपनी पीड़ा विजय सिंह पथिक जैसे नेताओं के सामने रखी. भीलवाड़ा का बिजौलिया गाँव जो मेवाड़ रियासत के अंतर्गत आता था यही से बिजौलिया किसान आन्दोलन की शुरुआत हुई.

किसानों के समर्थन से विजय सिंह ने विद्या प्रचारिणी सभा की स्थापना की तथा गाँव गाँव घूमकर किसानों को संगठित करने का कार्य किया. गणेश शंकर विद्यार्थी द्वारा सम्पादित प्रताप पत्र के माध्यम से किसानों की समस्याओं को भी प्रकाशित करते रहे.

विजय सिंह पथिक ने किसानों की इन समस्याओं को कांग्रेस के 1920 के नागपुर अधिवेशन में भी उठाई. जिससे इस मुद्दे के प्रति देश के बड़े नेताओं का ध्यान भी गया.

मसलन गांधीजी ने उन्हें राजस्थान केसरी समाचार पत्र के संचालन का जिम्मा दिया. वही लोकमान्य तिलक ने मेवाड़ के महाराणा फतेह सिंह को पत्र लिखकर किसानों की मांगे पूरी करने का निवेदन भी किया.

बिजौलिया से शुरू हुए इस आन्दोलन का प्रभाव राजस्थान व देश के दुसरे हिस्सों में भी दिखाई देने लगा. ब्रिटिश सरकार असहयोग आन्दोलन के समय भारतीयों की कड़ी नाराजगी के बाद किसी विद्रोह को झेलने की स्थिति में नहीं थी,

अतः उसने ए जी जी होलेन्ड के नेतृत्व में बिजौलिया किसान पंचायत और राजस्थान सेवा संघ को समझौता का न्यौता दिया और किसानों की अधिकतर मांगे मान ली.

अधेड़ आयु में विवाह

साल 1930 में जब विजय सिंह की आयु 48 वर्ष थी तब इनके विवाहिक जीवन की शुरुआत एक विधवा शिक्षिका के साथ शुरू हुआ. इनकी पत्नी का नाम जानकी देवी था. वैवाहिक जीवन को एक महीना ही नहीं बीता था कि ब्रिटिश हुकुमत ने पथिक जी को हिरासत में ले लिया था.

जानकी देवी बच्चों को ट्यूशन पढाकर घर का खर्च चलाने लगी. आजीवन विजय सिंह जी को इस बात के लिए गहरा दुःख रहा कि उन्होंने राजस्थान सेवा आश्रम के रूप में जिस संस्था को खोला वे उन्हें लम्बे समय तक जारी नहीं रख पाए थे.

निधन

आजीवन किसानों के हितों की आवाज उठाने वाले ये एक सच्चे देशभक्त और क्रांतिकारी नेता थे. माँ भारती के इस सपूत का देहावसान 28 मई 1954 को हो गया था.

एक अग्रदूत क्रांतिकारी के रूप में उनसे जिस रूप में बन सका मातृभूमि की निस्वार्थ सेवा की. एक कद्दावर नेता होने के साथ साथ किसानों के ह्रदय सम्राट विजय सिंह पथिक ने जिस समय इस संसार को अलविदा कहा उस समय की सरकार में इनके कई शिष्य थे.

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आशा करता हूँ दोस्तों Biography of Vijay Singh Pathik In Hindi के बारे में दी गई यह संक्षिप्त जानकारी आपकों अच्छी लगी होगी. इस लेख को विस्तार देने की आवश्यकता हैं. अतः आपके पास विजयसिंह पथिक से जुड़ी कोई जानकारी हो तो कमेंट के जरिये हम तक पहुचाएं.

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