बाल विवाह पर निबंध भाषण Speech Essay On Child Marriage In Hindi

बाल विवाह पर निबंध भाषण Speech Essay On Child Marriage In Hindi: भारतीय संस्कृति में सोलह संस्कारों में विवाह संस्कार का विशेष महत्व है.

वैदिक काल में यह संस्कार पवित्र भावनाओं का परिचायक था. परन्तु प्रवर्ती काल में इसमें अनेक बुराइयाँ और कुप्रथाएं जुड़ती चली गई.

इन्ही विकृतियों के कारण के कारण हमारे देश में अनमेल विवाह तथा बाल विवाह का प्रचलन हुआ. जो कि आज के शिक्षित भारतीय समाज के सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन के लिए घोर अभिशाप बन चूका है.

बाल विवाह पर निबंध भाषण Speech Essay On Child Marriage In Hindi

बाल विवाह पर निबंध भाषण Speech Essay On Child Marriage In Hindi

नमस्कार दोस्तों बाल विवाह प्रथा पर यहाँ शोर्ट निबंध दिया गया हैं. यह प्रथा क्या हैं कब इसका जन्म हुआ और समाज में किस तरह प्रचलित हैं, इस पर यह निबंध एस्से दिया गया हैं.

शोर्ट निबंध बाल विवाह पर

मुख्यतः भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचलित बाल विवाह एक ऐसी सामाजिक बुराई हैं जो दो नन्हे बालक बालिकाओं के सुनहरें भविष्य को मटियामेल कर देती हैं.

मानसिक रूप से अपरिपक्व बालक बालिका को विवाह जैसे महत्वपूर्ण बंधन में बाँध दिया जाता हैं. दोनों के लिए अपरिपक्वता में एक पति, पिता आर माँ पत्नी के रूप में जिम्मेदारियों का निर्वहन करना कठिन हो जाता हैं.

छोटी आयु में बालिका का विवाह सम्पन्न करा दिए जाने पर वह बाल वधू बन जाती हैं. वह विभिन्न बीमारियों और मानसिक तनाव का शिकार हो जाती हैं. छोटी आयु में लडकें का विवाह कर दिए जाने पर वह कम आयु में ही आर्थिक और पारिवारिक जिम्मेदारियों के तले दब जाता हैं.

बच्चें अपने बालपन को गंवा देते हैं, कई घातक बीमारियाँ उन्हें अपना शिकार आसानी से बना सकती हैं. लड़की तथा उससे उत्पन्न होने वाली संतान में कुपोषण, कम वजन और अन्य प्रकार की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता हैं.

एक समय भारतीय समाज में बाल विवाह बड़े स्तर पर होते थे, इनके दुष्प्रभावों को देखते हुए भारतीय संविधान में विवाह योग्य लड़कें की आयु 21 वर्ष तथा लड़की की आयु 18 वर्ष का प्रावधान किया हैं.

बाल विवाह कानूनन वर्जित हैं तथा ऐसा करने वालों पर कानून में सजा का प्रावधान हैं. बाल विवाह की रोकथाम हेतु काफी सख्त कानून भी बने हैं फिर भी इसे पूरी तरह रोकना सम्भव नहीं हो पाया हैं.

यूएनओ की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व में सर्वाधिक बाल विवाह के मामलें में भारत दूसरे स्थान पर हैं, देश में हर दिन करीब चालीस हजार बाल विवाह होते हैं.

यह आंकड़ा काफी बड़ा और चिंता बढ़ाने वाला हैं, क्योंकि इनमें वे राज्य भी शामिल है जिनमें साक्षरता दर अधिक हैं. एक समय था जब मुगलों और ब्रिटिश राजशाही में बेटियां सुरक्षित नहीं समझी जाती थी.

उन्हें उत्पीड़न से बचाने के लिए बाल विवाह कर दिए जाते थे. अब वक्त बदल चूका हैं. लोगों को अपनी सोच को बदलना चाहिए तथा विवेकपूर्ण निर्णय लेते हुए समाज से बाल विवाह की प्रथा को अब समाप्त कर दिया जाना चाहिए.

बाल विवाह इतिहास

हमारे समाज में इस कुप्रथा का प्रचलन मध्यकाल से हुआ. जब विदेशी विधर्मी यवन तुर्क अक्रान्ताओ ने अपनी वासना पूर्ति के लिए कन्या अपहरण और जबरदस्ती रोटी बेटी का सम्बन्ध बनाने की कुचाल चली.

इस कारण भारतीय हिन्दू समाज में अशिक्षित एवं अशक्त लोगों ने अपनी कन्या का बालपन से ही विवाह करना उचित समझा. दहेज प्रथा के कारण भी बाल विवाह का प्रचलन तेजी से बढ़ा. उस समय में किसी भी घर में बेटी के जन्म को अशुभ माना जाता था.

बालक एवं बालिका पूर्ण रूप से नासमझ रहने के कारण बाल विवाह नामक संस्कार का प्रखर प्रतिरोध नही कर पाते थे. दूसरी तरफ कम उम्रः में ही बेटी की शादी कर देने से माता-पिता को दहेज देने से भी छुटकारा मिल जाता था.  

इस प्रकार की सोच के घर कर लेने के कारण मध्यमऔर निम्न वर्ग परिवारों में बाल विवाह का प्रचलन तेजी से बढ़ता गया.

बाल विवाह का अभिशाप

विवाह संस्कार में कन्यादान को पवित्र एवं मांगलिक कार्य माना जाता है. इस अवसर पर कन्या के माता-पिता अपनी हैसियत के मुताबिक अपनी बेटी को उपहार में कुछ वस्तुए व धन देते है.

यही दहेज़ प्रथा धीरे-धीरे विकृत स्थति में चली गई. इसी का परिणाम था कि परिवार में बेटी का जन्म को भी लोग भार मानने लगे.

बेटी को पराया धन समझने वाली सोच के लोग बालपन में ही उनका विवाह करवाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते है. मगर इस गलत परम्परा ने कालान्तर में समाज में कई बड़ी समस्याओं को जन्म देने का कार्य किया.

कम उम्र में लड़के-लड़की के विवाह हो जाने के कारण जल्दी ही वे संतानोत्पत्ति का कार्य आरम्भ कर देते है. जिसकी वजह से अनियंत्रित जनसंख्या को बढ़ावा मिलने के साथ ही मध्यम और निम्न वर्ग के जीवन स्तर में भी गिरावट आती है.

बाल विवाह की इस सामाजिक प्रथा के कारण जो उम्रः बच्चो के खेलने कूदने व पढ़ने की होती है. उस उम्रः में उन्हें विवाह जैसे जिम्मेदारी भरे बंधन में अपरिपक्व अवधि में ही जकड़ देते है.

जब बालक न तो शिक्षा प्राप्त कर पाता है, न उनका ठीक से शारीरिक विकास हो पाता है. असमय पति की मौत और कम उम्रः में नवयुवतियों के विधवा बन जाने का मुख्य कारण बाल विवाह ही है.

इस तरह के दुष्प्रभावों के कारण बाल विवाह तथा अनमेल विवाह आज हमारे समाज के लिए सबसे बड़ी समस्या का रूप धारण कर चूका है.

बाल विवाह की समस्या और समाधान (Effects & Solution Of Child Marriage )

इस बाल विवाह की प्रथा की बुराइयों व दुष्परिणामों को देखकर समय समय पर समाज सुधारकों ने इस प्रथा को जड़ से समाप्त करने की दिशा में कई महत्वपूर्ण कार्य किये.

भारत सरकार ने भी इसकी रोकथाम के लिए बाल विवाह को अपराध मानते है कठोर कानून बनाए है. साथ ही सभी के लिए विवाह की न्यूनतम आयु लड़को के लिए 21 वर्ष और लड़कियों के लिए 18 वर्ष निर्धारित कर रखी है.

इस आयु से कम उम्रः के बच्चो का विवाह करना कानूनन जुर्म है ऐसा करने वाले संतानों के माँ-बाप व प्रतिभागियों के लिए कठोर सजा का भी प्रावधान किया गया है. इतना सब कुछ होते हुए भी आज सब कुछ खुले आम हो रहा है.

मुख्यतः राजस्थान में अक्षय तृतीया (आखातीज) के अवसर पर बाल विवाहों की बाढ़ सी आ जाती है. अचम्भे की बात यह है कि इस प्रकार के चाइल्ड मैरिज प्रोग्राम्स में कानून निर्माता और इनके कथित रक्षक भी ऐसे लोगों के साथ बैठे नजर आते है.

बाल विवाह की भयानक समस्या से छुटकारा पाने के लिए जन-जागरण सबसे जरुरी कदम उठाया जाना चाहिए. अब तो भारत सरकार ने विवाह पंजीयन प्रमाण पत्र बनवाना भी अनिवार्य कर दिया है.

सरकार के इस कदम से बाल विवाह कार्यक्रमों पर कुछ हद तक लगाम कसने में मदद मिल सकती है. साथ ही सरकार और समाज सुधारकों को इस दिशा में और अधिक सार्थक कदम उठाएं जाने की आवश्यकता है.

राजस्थान में बाल विवाह

सम्भवतः मध्यकाल में भारत में बाल विवाह की प्रथा ने जन्म लिया था, इसके कई तात्कालिक कारण थे उस दौर में ये समाज का सही कदम भी था. जैसे जैसे वक्त बदला इस प्रथा के स्वरूप में भी बदलाव आता चला गया.

राजस्थान में आज भी यह प्रथा विद्यमान हैं, मगर इसने पुराने स्वरूप को त्यागकर नयें रूप में उपस्थित हैं. आज भी छोटी उम्र में हजारों बालक बालिकाओं का विवाह अक्षय तृतीया पर होता हैं, इस विवाह में लड़की जब तक 18 वर्ष की नहीं हो जाती वह ससुराल नहीं जाती हैं. मृत्यु भोज के कारण प्रदेश में यह प्रथा जीवित हैं.

अवयस्क अवस्था में लड़के एवं लड़की का विवाह. राजस्थान में मुख्यतया अक्षय तृतीया / आखातीज को बाल विवाह होते हैं. भारत में दुनियां के लगभग 40 प्रतिशत बाल विवाह होते हैं.

बाल विवाह के दुष्परिणाम

  • बालक का बचपन छिन जाता है तथा कई बार विवाहोंउपरांत शिक्षा से वंचित हो जाता हैं.
  • बालिका के स्वास्थ्य पर कुप्रभाव- कुपोषण, मानसिक विकास में अवरोध, यौन समस्याएं, HIV, अपरिपक्व गर्भाधान आदि समस्याएं पैदा होती हैं. व्यक्ति का समुचित विकास नहीं हो पाता हैं.
  • मातृ मृत्यु दर पर शिशु मृत्यु दर बढ़ती हैं.
  • बाल विवाह के कारण लड़का बड़ा होकर लड़की को कई बार छोड़ देता हैं.
  • बालिका को कम उम्रः में पारिवारिक जिम्मेदारियां उठानी पड़ती हैं.
  • बालक पर आर्थिक भार, भविष्य की चिंता

बाल विवाह के तथ्य व आकंड़े

  • यूनिसेफ की बच्चों की स्थिति पर रिपोर्ट 2009 व राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़ों 2005-06 के अनुसार सर्वाधिक बाल विवाह अनुपात बिहार 69 प्रतिशत व द्वितीय राजस्थान 65 प्रतिशत हैं.
  • भारत सरकार ने नेशनल प्लान फॉर चिल्ड्रन 2005 में 2010 तक पुर्णतः बाल विवाह खत्म करने का लक्ष्य रखा मगर असफल रहे.

बाल विवाह रोकने के क़ानूनी प्रयास

  • 1891 में ब्रिटिश भारत सरकार ने वायसराय लेंस डाउन के काल में एस गांगुली के प्रयास से एज ऑफ कंसेंट एक्ट बनाया जिसके अनुसार 12 वर्ष से कम उम्रः की लड़की का विवाह प्रतिबंधित किया गया.
  • तिलक ने एज ऑफ कंसेंट एक्ट का विरोध करते हुए इसे भारतीय मामलों में विदेशी हस्तक्षेप बताया.

शारदा एक्ट

  • सितम्बर 1929 में केन्द्रीय विधानमंडल के सदस्य व अजमेर के रहने वाले मशहूर इतिहासकार हर विलास शारदा के प्रयासों से बाल विवाह प्रतिषेध कानून सितम्बर 1929 में केन्द्रीय विधान मंडल में पारित हुआ तथा 1 अप्रैल 1930 को यह अधिनियम पूरे भारत में लागू हुआ. शारदा एक्ट वायसराय लार्ड इरविन के काल में लागू हुआ.
  • शारदा एक्ट के अनुसार विवाह हेतु लड़की की न्यूनतम आयु 14 वर्ष तथा लड़के की न्यूनतम आयु 18 वर्ष निर्धारित की गई.
  • 1940 में संशोधन कर 15 वर्ष से कम लड़की व 18 वर्ष से कम लड़के का विवाह निषेध किया गया.
  • 1978 में मोरारजी भाई देसाई की सरकार ने शारदा एक्ट में संशोधन करते हुए बालिकाओं के लिए न्यूनतम आयु 18 वर्ष तथा बालकों के लिए 21 वर्ष कर दी.
  • 1992 में फिर संशोधन कर बाल विवाह करवाने वाले अभिभावकों को भी सजा देने का प्रावधान किया गया.
  • 2006 में शारदा एक्ट समाप्त कर बाल विवाह निरोधक अधिनियम 2006 बनाया, जो 1 नवम्बर 2007 को लागू किया गया.

2006 के बाल विवाह निरोधक अधिनियम के अनुसार

  • वयस्क होने के दो साल के भीतर बाल विवाह व्यर्थ घोषित किया जा सकता हैं.
  • विवाह की न्यूनतम आयु 21 वर्ष तथा 18 वर्ष
  • बाल विवाह हेतु दोषी सभी व्यक्तियों को 1 लाख रूपये जुर्माना या दो साल की कठोर कारावास अथवा दोनों
  • जिले में निषेध अधिकारी- कलक्टर
  • बाल विवाह रोकथाम का नोडल विभाग- गृह विभाग व महिला एवं बाल विकास विभाग

तथ्य

  • 1885 में जोधपुर के प्रधानमंत्री सर प्रतापसिंह ने गैर कानूनी घोषित किया.
  • 1903 में अलवर रियासत ने अनमेल व बाल विवाह प्रतिषेध नियम बनाया.

उपसंहार

बाल विवाह यानि कम उम्र में लड़के लड़की की शादी से वर वधु दोनों का जीवन अंधकारमय बन जाता है. इसके चलन से समाज में कई और समस्याओं और विकृतियों का जन्म हो जाता है.

अतः अब वक्त आ चूका है हम सबकों जगना होगा और इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए लम्बी सामूहिक लड़ाई लड़नी होगी. तभी हमारे समाज को बाल विवाह जैसे दंश से छुटकारा दिलाया जा सकता है.

बाल विवाह पर भाषण Speech On Child Marriage In Hindi

भारतीय समाज स्वयं को प्रबुद्ध शिक्षित एवं आधुनिक बना रहा हैं मगर आज भी हमारे समाज में बाल विवाह जैसी कुप्रथाएं कानूनी रूप से प्रतिबंधित किये जाने के बाद भी सिर उठा रही हैं.

Child Marriage के कानून एवं हकीकत को जानने के लिए अक्षय तृतीया जैसे अवसरों पर राजस्थान व बिहार के देहाती क्षेत्रों का भ्रमण कर आइए आप हकीकत से रूबरू हो जाएगे. चाइल्ड मैरिज स्पीच इन हिंदी में हम बाल विवाह के बारे में यहाँ जानेगे.

बाल विवाह पर भाषण- Child Marriage Speech

समस्त मेहमानों एवं मुख्य अतिथि महोदय, सर्वप्रथम बाल विवाह पर आयोजित इस भाषण समारोह में मुझे अपने उद्गार प्रकट करने का अवसर देने के लिए धन्यवाद.

अक्सर हमारे समाज की कई बार ऐसी तस्वीर देश व दुनियां के मध्य पेश की जाती हैं कि क्षण भर के लिए हम भी चकरा जाते हैं कि ये किस समाज की बात कर रहे हैं.

मैं अपने भाषण के विषय पर आता हूँ, मुख्य अतिथि महोदय मैं प्रदेश के ग्रामीण इलाके से आता हूँ. वैसे तो यहाँ का परिवेश दुनियां की भागदौड की बेहद दूर एवं बेहद शांत हैं.

मगर रूढ़िवादिता के विषय में हम किसी को आगे नही निकलने देते हैं. हम कुछ भी बदलना पसंद नहीं करते यहाँ तक कि पहने हुए वस्त्र बदबू न दे तो उन्हें भी नहीं, ठीक ऐसा ही बाल विवाह के विषय में हैं.

समाज में बाल विवाह कुप्रथा के प्रचलन का मूल कारण मैं जो समझता हूँ वह जानकारी का अभाव हैं. आज भी समाज के अधि कतर लोगों का मानना हैं कि बाल विवाह हमारे धर्म से जुड़ा विषय हैं अथवा यह हमारे पुरखों द्वारा शुरू की कोई परम्परा व रस्म हैं. मगर सच्चाई इन दोनों दावों को खारिज कर देती हैं.

वैसे तो हम सभी परिचित होंगे कि बाल विवाह क्या हैं मगर किसी को इस विषय में अधिक जानकारी नहीं हैं तो बताना चाहूँगा. जन्म के बाद 2-3, 5-6, 8-10 अर्थात ऐसे समय में नन्हे बालक बालिकाओं का विवाह कर दिया जाता हैं जिन्हें विवाह जैसे संस्कार का क, ख भी नहीं पता हो.

भारत में बाल विवाह मध्यकाल में मुगलों की देन हैं. बाहरी आक्रमणकारियों के भय से माँ बाप अपने  नन्हे बालक बालिकाओं का विवाह करवाकर जिम्मेदारी से मुक्त होने लगे, यह चलता रहा और समाज ने इसे एक प्रथा के रूप में स्वीकार कर लिया.

एक समय यह समाज के लिए जरूरत थी मगर आज वैसी कोई परिस्थिति नहीं हैं अतः हमें समाज में लोगों तक यह बात पह चानी होगी.

आज हर ओर से बाल विवाह के खिलाफ आवाज बुलंद की जा रही हैं. सरकार ने कठोर कानूनों का प्रावधान भी किया हैं. मगर इन सबके बावजूद भी चोरी छिपे बाल विवाह हो रहे हैं.

जिस तेजी से दुनियां बदल रही हैं हमे भी अपने विचारों को नये दौर के सांचे में ढालना होगा. विवाह जैसे पवित्र प्रसंग व जीवन भर साथ रहने के रिश्ते को लड़के व लड़की की पसंद के अनुसार ही बनाने चाहिए न कि माँ बाप की मर्जी से.

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