सतत समग्र मूल्यांकन क्या है | Continuous And Comprehensive Evaluation In Hindi

Continuous And Comprehensive Evaluation In Hindi: सतत समग्र मूल्यांकन जिन्हें संक्षिप्त में CCE के नाम से भी जाना जाता हैं. भारतीय स्कूली शिक्षा में सतत एवं व्यापक मूल्यांकन (cce) को वर्ष 2009 से समग्र रूप से लागू किया गया.

आरम्भ में इसे क्लास 6 से दसवीं तक के बच्चों के लिए शुरू किया गया था. आज के लेख में हम सतत व समग्र मूल्यांकन को हिंदी पीडीऍफ़ में विस्तार से जानेगे.

Continuous And Comprehensive Evaluation In Hindi

Continuous And Comprehensive Evaluation In Hindi

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समग्र एवं सतत मूल्यांकन का प्रयोग सर्वप्रथम सक्रीवेन द्वारा 1967 में किया गया था. इसका प्रयोग मात्र पाठ्यचर्या मूल्यां कन के लिए किया जाता था.

सक्रीवेन द्वारा समग्र एवं सतत मूल्यांकन में अंतर अस्पष्ट किया गया तथा इनके प्रयोग को उत्पादन, प्रविधि, कार्य कर्ताओं अथवा शिक्षार्थी के गुण या योग्यता को जानने के लिए किया गया. अनेक वर्षों तक पाठ्यक्रम मूल्यांकन के लिए इनका प्रयोग होता रहा.

समग्र एवं सतत मूल्यांकन सी सी ई क्या है Continuous And Comprehensive Evaluation Meaning In Hindi

  • विकास के शैक्षिक और सह शैक्षिक क्षेत्रों के नियमित निर्धारण द्वारा छात्र की सम्पूर्णतावादी पार्श्विका उपलब्ध करवाने की प्रक्रिया है.
  • इस योजना का लक्ष्य मूल्यांकन को शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का अभिन्न अंग बनाना है.
  • यह योजना छात्रों के व्यक्तित्व के सर्वतोमुखी विकास पर केन्द्रित है.
  • योजना अधिगम अंतरों के निदान द्वारा प्रचलित शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में सुधार की ओर ध्यान देती है और सुधारक तथा समृद्ध इनपुट प्रस्तुत करती है.
  • सी सी ई योजना परीक्षा से प्रभावी शिक्षा की ओर एक प्रतिमान बदलाव लाएगी.

सी सी ई में सतत शब्द से क्या तात्पर्य है What does the word continuous in CCE mean?

  • यह निर्धारण में नियमितता और निरन्तरता पर बल देता है.
  • सतत शब्द का तात्पर्य निर्धारण को शिक्षक तथा अधिगम की प्रक्रिया के साथ पूर्णतया एकीकृत करना है.
  • शब्द का अर्थ छात्रों को सहयोग देते हुए अधिगम का स्तर बढाने के लिए अधिगम अंतरों का निदान करना और उपचारी उपाय करना है ताकि वे अपने कौशलों का विकास सुधार कर सके.

समग्र एवं सतत मूल्यांकन में व्यापक शब्द का तात्पर्य What does the Comprehensive mean in a Comprehensive and continuous assessment?

  • इसमें ज्ञानात्मक भावात्मक तथा मनोप्रेरक प्रभाव क्षेत्रों सहित छात्र का सम्पूर्णतावादी विकास का निर्धारण शामिल हैं.
  • शब्द में छात्रों के निर्धारण हेतु साधनों एवं तकनीकों की विविधता का प्रयोग भी शामिल हैं.

शैक्षिक और सह शैक्षिक शब्दों का अर्थ क्या है What is the meaning of the terms educational and co-educational

  • शैक्षिक शब्द का सम्बन्ध उन पहलुओं से है जो बुद्धि अथवा दिमाग से सम्बन्धित है इसमें पाठ्यचर्या विषयों दत्तकार्यों प्रोजेक्ट कार्य प्रयोगात्मक तथा मौखिक कार्य इत्यादि में छात्रों का निर्धारण शामिल हैं.
  • सह शैक्षिक शब्द का सम्बन्ध उन पहलुओं से है जो हस्त और ह्रदय से सम्बन्धित है. इसमें मनोप्रेरक कौशल, शारीरिक विकास जीवन कौशल मनोवृत्ति, मूल्य, रूचि तथा पाठ्योत्तर गतिविधियों को शामिल किया जाता हैं.

सी सी ई योजना छात्रों को कैसे सहयोग करेगी How the CCE scheme will support the students

  • वर्ष के अंत में केवल एक बार होने वाली परीक्षा में हुए निर्धारण से उत्पन्न चिंता एवं तनाव को कम करेगी.
  • अधिगम अंतरालों और उपचारी हस्तक्षेप का यथासमय निदान करने के कारण अधिगम का उच्चतर स्तर प्राप्त होगा.
  • यह छात्रों की उनके व्यक्तित्व के भिन्न भिन्न प्रभाव क्षेत्रो के रूप में छात्रों का सम्पूर्ण विकास करने में सहायता करेगी.
  • यह अधिगम की आवश्यकता के स्थान पर अधिगम के प्रति लगाव को केन्द्रित करेगी.

समग्र एवं सतत मूल्यांकन की पूरी जानकारी Complete knowledge of Comprehensive and continuous evaluation In Hindi

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में सतत और समग्र मूल्यांकन पर बल दिया गया. सतत  व्यापक मूल्यांकन का अर्थ विद्यार्थियों के विद्यालय आधारित मूल्यांकन की उस प्रणाली से है.

जिसमें विद्यार्थियों के विकास के सभी पहलुओं की ओर ध्यान दिया जाता हैं. यह निर्धारण की विकासात्मक प्रक्रिया हैं, जो दोहरे उद्देश्यों पर बल देती हैं. ये लक्ष्य हैं.

  • व्यापक आधार वाली शिक्षा प्राप्ति का मूल्यांकन और निर्धारण
  • आचरणात्मक परिणामों का मूल्यांकन और निर्धारण सतत और व्यापक मूल्यांकन में सतत शब्द का उद्देश्य इस बात पर बल देना है कि बच्चों की संवृद्धि और विकास के अभिजात पहलुओं का मूल्यांकन एक घटना होने की बजाय एक सतत प्रक्रिया हैं.

जो अध्यापन शिक्षा प्राप्ति की सम्पूर्ण प्रक्रिया के अंदर निर्मित है और शैक्षिक सत्र की समूची अवधि में फैली होती हैं. इसका अर्थ है निर्धारणा की नियमितता, इकाई परीक्षाओं की बारम्बारता, शिक्षा प्राप्ति की कमियों का निदान, सुधारात्मक उपायों का उपयोग पुनः परीक्षण और अध्यापकों तथा छात्रों के स्वमूल्यांकन के लिए प्रतिपुष्टि आदि.

सक्रीवेन के अनुसार सतत मूल्यांकन वह प्रविधि है जिसमें किसी कार्यक्रम के विकास के समय अथवा सुधार के समय का मूल्यांकन किया जाता हैं.

यह मूल्यांकन कार्यक्रम के विकास की वस्तुस्थिति जानने के लिए किया जाता है जिसमें आवश्यकता नुसार सुधार किया जा सके.

दूसरे शब्द व्यापक का अर्थ है कि यह मूल्यांकनविद्यार्थियों की संवृद्धि और विकास के शैक्षिक और सह शैक्षिक दोनों क्षेत्रों को समाहित करने का प्रयास करता हैं.

चूँकि योग्यताएं, अभिवृत्तियां और अभिरुचियाँ अपने आपकों लिखित शब्दों से भिन्न अन्य रूपों में प्रकट करती है. इसलिए इस शब्द में विभिन्न प्रकार के साधनों और तकनीकों के उपयोग और शिक्षा प्राप्ति के क्षेत्र में शिक्षार्थियों के विकास को आंकने के लक्ष्यों का उल्लेख किया गया है, जैसे.

  • ज्ञान
  • अनुप्रयोग
  • मूल्यांकन
  • समझना/ बोध
  • विश्लेषण
  • सृजन

इस प्रकार सतत व समग्र मूल्यांकन में परीक्षण के स्थान पर सम्पूर्णवादी शिक्षा प्राप्ति पर जोर दिए जाने का प्रयास किया गया हैं. इसका लक्ष्य अच्छे स्वास्थ्य, उपयुक्त कौशलों और वांछनीय गुणवत्ता वाले और शैक्षिक उत्कृष्टता वाले अच्छे नागरिकों का निर्माण करना हैं.

समग्र एवं सतत मूल्यांकन की विशेषताएं (Characteristics of continuous & comprehensive evaluation in hindi)

  • इस प्रक्रिया के द्वारा निश्चित समय अंतराल में विद्यार्थियों के अधिगम स्तर का ज्ञान होता हैं.
  • इस प्रक्रिया द्वारा अध्यापक विद्यार्थियों की आवश्यकताओं एवं क्षमताओं के आधार पर शिक्षण की उपचारात्मक उपचारात्मक विधियों का प्रयोग करता हैं.
  • इस प्रक्रिया से विभिन्न शिक्षण सहायक सामग्रियों एवं तकनीकों के प्रयोग के द्वारा अधिगम को प्रोत्साहित किया जाता हैं.
  • यह प्रक्रिया शिक्षार्थियों को अधिगम की प्रक्रिया में सक्रिय भागीदारी के लिए प्रोत्साहित करती हैं.
  • इस प्रक्रिया द्वारा उन विद्यार्थियों की योग्यता का ज्ञान होता है जो शैक्षणिक गतिविधियों की बजाय सह पाठ्यगामी क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन करते है तथा उनका उत्साहवर्धन भी होता हैं.
  • इस प्रक्रिया के द्वारा पाठ्यक्रम या कार्यक्रम अथवा छात्र के अध्ययन की प्रगति के समय उसकी प्रति पुष्टि उपलब्ध होती हैं जिससे समय रहते उसमें सुधार हो सकता हैं.

सतत एवं समग्र मूल्यांकन के उद्देश्य (aim of continuous and comprehensive evaluation in hindi)

  • चिंतन की प्रक्रिया पर जोर देना और कठंस्थ करने पर बल न देना.
  • संज्ञानात्मक, मनोज्ञत्यात्म्क और प्रभावकारी कौशलों का विकास करने में सहायता देना.

सतत एवं समग्र मूल्यांकन में अंतर (Continuous and comprehensive evaluation difference)

  1. मूल्यांकन को अध्यापन शिक्षा प्राप्ति की प्रक्रिया का अभिन्न अंग बनाना.
  2. मूल्यांकन का उपयोग नियमित निदान और उसके उपचारात्मक अनुदेश के आधार पर विद्यार्थियों की उपलब्धियों और अध्यापन शिक्षा प्राप्ति की कार्यनीतियों में सुधार करने के लिए करना.
  3. कार्य निष्पादन का वांछित स्तर बनाए रखने के लिए मूल्यांकन का उपयोग एक गुणवत्ता नियंत्रण साधन के रूप में करना.
  4. किसी कार्यक्रम की सामाजिक उपयोगिता, वांछनीयता अथवा प्रभावकारिता निर्धारित करना और शिक्षार्थी, शिक्षा प्राप्ति की प्रक्रिया और शिक्षा प्राप्ति के वातावरण के बारे में उपयुक्त निर्णय लेना.
  5. अध्यापन और शिक्षा प्राप्ति की प्रक्रिया को शिक्षार्थी केन्द्रित क्रियाकलाप बनाना.
क्रमांकसतत मूल्यांकनसमग्र मूल्यांकन
1.इसमें आण्विक विश्लेष्ण होता है.इसके द्वारा वर्णनात्मक सूचना उपलब्ध कराई जाती हैं.
2.इसमें शिक्षक द्वारा निर्मित अथवा मानकीकृत उपकरण प्रयोग किये जाते हैं.इसमें पूर्व विकसित उपकरण प्रयोग में लाए जाते हैं.
3.एक या दो ईकाई के शिक्षण के पश्चात उपलब्धि परीक्षण किया जाता हैं.इसमें छात्र की वास्तविक उपलब्धि को देखा जा सकता हैं.

किस बात का मूल्यांकन किया जाना चाहिए?

बच्चें की शिक्षा प्राप्ति का एक पूरा चित्र प्राप्त करने के लिए मूल्यांकन का ध्यान इस बात पर केन्द्रित होना चाहिए कि निम्न लिखित बातों के लिए शिक्षार्थी में कितनी योग्यता हैं.

  1. विभिन्न विषय क्षेत्रों के सम्बन्ध में वांछित कौशल सीखना और प्राप्त करना.
  2. विभिन्न विषय क्षेत्रों में अपेक्षित मात्रा में सफलता का स्तर प्राप्त करना.
  3. बच्चे के वैयक्तिक कौशलों, रुचियों, अभिवृत्तियों और अभिप्रेरणा का विकास.
  4. एक स्वस्थ और उत्पादक जीवन का अर्थ समझना और वैसा जीवन बिताना.
  5. समय समय पर बच्चों के ज्ञान, आचरण और प्रगति में होने वाले परिवर्तनों को मानिटर करना.
  6. स्कूल के अंदर और स्कूल के बाहर दोनों स्थानों पर विभिन्न स्थितियों और अवसरों में प्रतिक्रिया.
  7. जो कुछ सीखा है, उसका उपयोग विभिन्न पर्यावरण परिस्थितियों और स्थितियों में करना.
  8. स्वतंत्र रूप से मिलकर और साम्ज्स्यपूर्ण तरीके से कार्य करना.
  9. विश्लेषण और मूल्यांकन
  10. सामाजिक और पर्यावरणिक मुद्दों से सुपरिचित होना.
  11. सामाजिक और पर्यावरणिक परियोजनाओं में और उद्देश्यों के लिए भाग लेना.
  12. जो कुछ सीखा उसे याद करना.

भविष्य के विद्यालयों के लिए यह जरुरी होगा कि वे अपने शिक्षार्थियों में जोखिम लेने, अनुकूलित बनने लचीला बनने की योग्यता और निरंतर होने वाले परिवर्तनों का सामना करने और जीवन भर शिक्षार्थी बने रहने की योग्यता का विकसित करें. इस संदर्भ में शिक्षार्थी सक्रिय नेता और अध्यापक समर्थ बनाने वाले नेता बन जाते हैं.

सतत एवं व्यापक मूल्यांकन में ध्यान रखने योग्य बातें

यह मूल्यांकन एक उपयोगी, वांछनीय और एक समर्थकारी प्रक्रिया हैं. इसे पूरा करने के लिए हमें हमारे लिए निम्नलिखित प्राचलों को ध्यान में रखना जरुरी हैं.

  • विद्यार्थी का मूल्यांकन
  • शिक्षार्थी के ज्ञान और पाठ्यक्रम के विषयों और अन्य विषयों के बारें में उसकी प्रगति के बारें में सूचना एकत्र करने के लिए विविध प्रकार के तरीके का उपयोग करना.
  • सूचना निरंतर एकत्र करते रहना और उसे अभिलेखबद्ध करना.
  • प्रत्येक विद्यार्थी के प्रत्युतर देने और सीखने के तरीके और उसमें लगने वाले समय को महत्व देना.
  • निरंतर आधार पर रिपोर्ट देना और प्रत्येक विद्यार्थी की अनुक्रिया के बारे में संवेदनशील होना.
  • फीडबैक उपलब्ध करना, जिससे सकारात्मक कार्यवाही की जा सकेगी और विद्यार्थी को बेहतर ढंग से कार्य करने में सहायता मिलेगी.

मूल्यांकन की प्रक्रिया में निम्नलिखित कार्य न करने का ध्यान रखना

  • शिक्षार्थियों को मंद, कमजोर, बुद्धिमान आदि के रूप में व्रगिकृत करना.
  • उनके बीच तुलना करना
  • नकारात्मक बयान देना.

सतत और समग्र मूल्यांकन के कार्य एवं महत्व (Functions and importance of continuous and comprehensive evaluation in hindi)

यह अध्यापक को प्रभावकारी कार्यनीतियाँ आयोजित करने में सहायता देता हैं. सतत मूल्यांकन शिक्षार्थी की प्रगति की सीमा और मात्रा को नियमित रूप से आंकने में सहायता देता हैं.

सतत मूल्यांकन कमजोरियों का निदान करने का कार्य करता है और अध्यापक को अलग अलग शिक्षार्थियों की शक्तियों और कमजोरियों और उसकी आवश्यकताओं का पता लगाने में सहायता देता हैं.

यह अध्यापक को तत्काल फीडबैक उपलब्ध करता है जो तब यह फैसला करता है, जो तब यह फैसला कर सकता है कि कोई विशेष यूनिट अथवा संकल्पना समूची कक्षा को फिर से पढाए जाने की आवश्यकता है अथवा केवल कुछ शिक्षार्थियों को उपचारी शिक्षा की आवश्यकता हैं.

सतत मूल्यांकन के द्वारा बच्चे अपने शक्तियों और कमजोरियों को जान सकते हैं. यह बच्चों को अध्ययन की अच्छी आदतें विकसित करने, गलतियों को सुधारने और अपने क्रियाकलापों को वांछित लक्ष्य प्राप्त करने की दिशा में मोड़ने के लिए अभि प्रेरित कर सकता हैं.

इससे शिक्षार्थी को शिक्षा के उन क्षेत्रों को निर्धारित करने में सहायता मिलती है, जिनमें अधिक जोर दिए जाने की आवश्यकता हैं. सतत और व्यापक मूल्यांकन अभिरुचियों और प्रवृत्ति वाले क्षेत्र अभिज्ञात करता हैं.

यह अभिवृत्तियों और मूल्य प्रणालियों में होने वाले परिवर्तनों का पता लगाने में सहायता देता हैं. यह विषयों, पाठ्यक्रमों और जीवनवृत्तियों के चुनाव के बारे में, भविष्य के लिए फैसले करने में सहायता देता हैं.

यह शैक्षिक व सह शैक्षिक क्षेत्रों में विद्यार्थियों को प्रगति के बारें में सूचना देता है और इस प्रकार शिक्षार्थी की भावी सफलताओं के बारें में पूर्वानुमान लगाने में सहायता देता हैं.

सतत मूल्यांकन समय समय पर बच्चे, अध्यापकों और माता पिता को उपलब्धि में कोई कमी हुई तो वे उसके सम्भाव्य कारणों की जांच कर सकते हैं. और शिक्षा के उस क्षेत्र में, जिसमें अधिक जोर देने की आवश्यकता हो, उपचारी उपाय कर सकते हैं.

सतत और व्यापक मूल्यांकन का मुख्य जोर विद्यार्थियों की निरंतर संवृद्धि पर और उसका बौद्धिक भावनात्मक, शारीरिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विकास सुनिश्चित करने पर होता है और इसलिए यह विद्यार्थी की केवल शैक्षिक उपलब्धियों को आंकने तक सिमित नहीं होगा.

यह मूल्यांकन का उपयोग शिक्षार्थियों को अन्य कार्यक्रमों के लिए अभिप्रेरित करने, सूचना प्रदान करने, फीडबैक की व्यवस्था करने और शिक्षाप्राप्ति में सुधार करने के लिए अनुवर्ती कार्यवाही करने और शिक्षार्थी के विवरणों की एक व्यापक तस्वीर प्रस्तुत करने के एक साधन के रूप में करता हैं.

बहुत बार ऐसा होता है कि कुछ वैयक्तिक कारणों पारिवारिक समस्याओं अथवा समायोजन की समस्याओं के कारण बच्चे अपने अध्ययन की उपेक्षा करना शुरू कर देते हैं, जिसके परिणामस्वरूप उनकी उपलब्धि में अचानक गिरावट आ जाती है.

यदि अध्यापक बच्चें और माता पिता की उपलब्धि में अचानक आई गिरावट का पता न चले, तो बच्चे द्वारा अपने अध्ययन की उपेक्षा लम्बे समय तक की जाती रहती है और इसके परिणामस्वरूप उपलब्धि घटिया हो जाती है और बच्चे की शिक्षा प्राप्ति में स्थायी रूप से त्रुटि रह जाती हैं. सतत मूल्यांकन से इन समस्याओं का शीघ्र पता चल पाता हैं.

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