हीनयान और महायान में अंतर बताइए Difference between Hinayana and Mahayana In Hindi: बौद्ध धर्म के दो पंखों के रूप में इसके दोनों सम्प्रदायों हीनयान तथा महायान को जाना जाता है.
महात्मा बुद्ध द्वारा स्थापित बौद्ध धर्म के विभाजन के बाद यह दो सम्प्रदायों में बंट गया. आज के लेख में हम इनकी इनफार्मेशन डिटेल्स यहाँ साझा कर रहे हैं.
Difference between Hinayana and Mahayana In Hindi
बौद्ध धर्म के संस्थापक भगवान बुद्ध के निर्वाण की शताब्दी के भीतर ही बौद्ध धर्म में आपसी टकराव सामने आ गया. जब वैशाली में दूसरी बौद्ध संगीति का आयोजन हुआ तो इसमें थेर भिक्षुओं से वैचारिक मतभेद रखने वाले लोगों को संघ से बाहर का रास्ता दिखा दिया.
इसी समय संघ से निर्वासित भिक्षुओं ने अपने मत को महासांघिक तथा शेष को हीनसांघिक का नाम दिया गया था. जो आगे जाकर हीनयान और महायान के नाम से जाने गये.
सम्राट अशोक ने 249 ई.पू. में पाटलिपुत्र में तीसरी बौद्ध संगीति का आयोजन करवाया गया था. पहली बार महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं को संकलित करने का प्रयास किया गया. और यही से बौद्ध धर्म के तीनों पिटकों के रूप में सामने आए.
महायान सम्प्रदाय के भिक्षुओं का मानना था कि हीनयान के वैचारिक मतभेद को दूर करने के लिए वेद और उपनिषद आधारित अद्वैतवाद पुनर्स्थापना हैं.
हीनयान तथा महायान– कनिष्क के शासनकाल में बौद्ध धर्म दो प्रमुख सम्प्रदायों में विभाजित हो गया- हीनयान और महायान.
हीनयान सम्प्रदाय के लोग अपने को मूल बौद्ध धर्म का संरक्षक मानते हैं और उसमें किसी प्रकार के परिवर्तन को स्वीकार नहीं करते. दूसरी ओर महायान सम्प्रदाय के लोग बौद्ध धर्म के सुधरे हुए स्वरूप को मानते हैं.
हीनयान क्या है?
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि जब भगवान बुद्ध का निरवाण हो गया था तो उनकी मृत्यु के 100 सालों के बाद ही बौद्ध समुदाय में मतभेद की समस्या पैदा हो गई थी, जो धीरे-धीरे काफी विकराल होती जा रही थी।
इन विकट होती जाती परिस्थिति को देखते हुए वैशाली में दूसरे बौद्ध संगीति का आयोजन किया गया था, जिसमें थेर साधुओं ने मजबूर होकर के ऐसे सभी साधुओं को संघ से बाहर निकालने का फैसला किया,
जो मतभेद रखते थे या फिर मतभेद पैदा करने का काम करते थे और इस प्रकार मतभेद रखने वाले या फिर मतभेद पैदा करने वाले साधुओ को बाहर निकाल दिया गया।
उसके बाद जिन साधुओं ने दूसरे साधुओ को संघ से बाहर का रास्ता दिखाया था, उन बाहर निकाले गए साधुओं ने हीनसांघिक का नाम दिया और आगे चलकर के यही नाम हीनयान में परिवर्तित हो गया।
महायान क्या है?
जिन साधुओं के मन में मनभेद था उन्हें वैशाली में आयोजित दूसरे बौद्ध संगीति में थेर साधुओ ने बाहर निकाल दिया था। इस प्रकार संघ से बाहर निकलने के बाद निकाले गए साधु ने अपना खुद का एक संघ बनाया, जिसका नाम उन्होंने महासांघिक रखा और आगे चलकर के इसे महायान के नाम से जाना जाने लगा।
हीनयान और महायान में क्या अंतर है?
नीचे हम आपको बिंदुओं के माध्यम से हीनयान और महायान के बीच क्या अंतर है, इसकी जानकारी दे रहे हैं।
• बौद्ध के बताए हुए रास्ते को जिन साधुओं ने चुना उन्हें हीनयान कहा गया और जिन साधुओं ने अपना खुद का ही एक अलग संघ बनाया और जो गौतम बुद्ध के बताए हुए रास्ते पर नहीं चले वह महायान कहलाए।
• हीनयान वह थे, जिन्होंने आत्म अनुशासन को अपनाया और ध्यान के जरिए व्यक्तिगत मोक्ष की मांग की। इसके अलावा महायान वह थे जिन्होंने बुद्ध और बोधिसत्व की कृपा और इन दोनों की सहायता से प्रणाम को मांगा।
• आपकी जानकारी के लिए बता दें कि जिस प्रकार इस्लाम धर्म के लोग मूर्ति पूजा को नहीं मानते हैं उसी प्रकार जो लोग हीनयान को मानते हैं वह लोग भी मूर्ति पूजा को नहीं मानते हैं ना ही मूर्ति पूजा करते हैं। इसके अलावा महायान के लोग मूर्ति पूजा को मानते भी हैं और मूर्ति पूजा को बराबर करते भी हैं।
• जो साधु हीनयान को मानते हैं, वह पाली भाषा को सपोर्ट करते हैं और जो साधु महायान को मानते हैं, उनकी आस्था संस्कृत भाषा में है। इसीलिए वह संस्कृत भाषा को बल देते हैं।
• हीनयान को अधिकतर दक्षिण के इलाके जैसे कि श्रीलंका, वर्मा, थाईलैंड जगह पर भारी मात्रा में माना गया। इसके अलावा महायान को चाइना,कोरिया, जापान जैसे देशों में भारी मात्रा में माना गया।
• हीनयान कुल दो भागों में बांटा हुआ है जिसमें पहला है वैभाषिक और दूसरा है सौतांत्रिक और महायान टोटल दो भागों में विभाजित है जिसमें पहला है मधमिका और दूसरा है योगाचार।
मूर्तिपूजा
महायान सम्प्रदाय के लोग बुद्ध को देवता मानने लगे और उनकी मूर्तियों की पूजा करने लगे. बुद्ध तथा बोधिसत्वों की मूर्तियाँ बनाई जाने लगीं और उनकी पूजा की जाने लगी.
साधना मार्ग
हीनयान का साधना मार्ग अधिक कठोर हैं. और वह मुख्यतः भिक्षु धर्म हैं. महायान का साधना मार्ग अपेक्षाकृत सरल हैं. महायान के अनुसार उपासक और गृहस्थ भी निर्वाण कर सकता हैं.
साधना के लक्ष्य के विषय में अंतर
हीनयानी व्यक्तिगत निर्वाण प्राप्त करने पर बल देते हैं. हीनयान का लक्ष्य अर्हत पद प्राप्त करना है, जबकि महायान ने बोधिसत्व का आदर्श प्रस्तुत किया हैं. महायान के अनुसार सभी प्राणी निर्वाण प्राप्त करने के योग्य बनें और समस्त मानवता को बुद्धत्व का लाभ हो.
अवतारवाद
हीनयानी महात्मा बुद्ध को अवतार नहीं मानते हैं, वे उन्हें केवल एक महापुरुष मानते हैं. जबकि महायानी बुद्ध को ईश्वर के समान मानकर उनकी अवतार के रूप में पूजा करते हैं.
सिद्धांतों में अंतर
हीनयान शील और समाधि प्रधान हैं जबकि महायान करुणा और प्रज्ञा प्रधान हैं.
तर्क के स्थान पर विश्वास
हीनयानी व्यक्तिगत प्रयत्न और अच्छे कर्मों पर बल देते थे. उनके अनुसार प्रत्येक मनुष्य को अपने कर्मों का फल भोगना पड़ता हैं, परन्तु महायानी विश्वास और पूजा पर अधिक बल देते थे.
उपासना विधि
हीनयानी केवल महात्मा बुद्ध को ही सर्वोच्च स्थान देते हैं और केवल उन्ही की उपासना करते हैं. परन्तु महायानी बुद्ध के अतिरिक्त अन्य बौधिस्त्वों की भी उपासना करते हैं.
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