आर्यभट्ट पर निबंध Essay On Aryabhatta in Hindi

आर्यभट्ट पर निबंध Essay On Aryabhatta in Hindi : नमस्कार दोस्तों आज हम प्राचीन भारत के एक महान गणित के विद्वान् आर्यभट्ट पर निबंध पढ़ेगे.

इस निबंध में हम आर्यभट्ट के जीवन, गणित और खगोलशास्त्र में इनके योगदान एवं इनकी रचनाओं के बारे में सरल तरीके से समझने का प्रयास करेगें.

Essay On Aryabhatta in Hindi आर्यभट्ट पर निबंध

आर्यभट्ट पर निबंध Essay On Aryabhatta in Hindi

मित्रों आप सभी ने आर्यभट्ट का नाम अवश्य सुना होगा, ये प्राचीन भारत के महान गणितज्ञ थे. इनके सम्मान में भारत ने अपने पहले कृत्रिम उपग्रह को भी इनके नाम रखा था. आज यहाँ स्टूडेंट्स के लिए सरल भाषा में छोटा बड़ा निबंध दिया गया हैं.

(400 शब्द) आर्यभट्ट पर निबंध (Short Essay On Aryabhatta In Hindi)

पश्चिमी दुनिया भारत को सांप सपेरों के देश के रूप में मानती हैं, यह उनके अज्ञान और पूर्वाग्रह से ग्रसित सोच का प्रदर्शित ही करता हैं. सच्चाई यह है जब शेष मानव सभ्यताएं पाषाण युगीन जीवन जी रही थी.

उस समय भारत में चिकित्सा, योग, खगोल, गणित आदि पर कई ग्रंथ लिखे जा चुके थे. इन क्षेत्रों की कई खोजे और परिकल्पनाओं पर कार्य चल रहा था. करीब 1700 वर्ष पूर्व जन्में आर्यभट्ट ने शून्य का आविष्कार कर दुनियां को काउंटिंग सिखाई थी.

भारतीय गणितज्ञ और खगोलशास्त्री के रूप में इन्होने कई अवधारणाओं को पहली बार परिभाषित कर उनका सही मान हमें दिया था, जिनमें त्रिकोणमिति का फलन, स्थानीय मान, सर्वसमिका, पाई आदि.

आर्यभट्ट जी का जन्म 474 ईसवीं के आसपास हुआ ऐसा माना जाता हैं, इनका जन्म स्थान वर्तमान बिहार के पटना के पास स्थित कुसुम्पुरा में बताया जाता हैं.

इन्होने संख्या पद्धति में स्थानीय मान की अवधारणा और शून्य की व्यवस्था देकर आज के गणित में बड़ा योगदान दिया था.

अगर खगोल में उनके योगदान की बात करें तो आज से हजारों वर्ष पूर्व न तो यंत्र थे न उपग्रह ऐसे समय में अपनी मानसिक शक्ति का उपयोग करते हुए गणितीय बुद्धि के दम पर ग्रहों की स्थिति, गति, आकार और उनके परिक्रमण की सम्पूर्ण सटीक अवधारणा अपने ग्रंथ में दी.

आर्यभट्ट ने उस समय सूर्य केन्द्रितता का सिद्धांत परिभाषित करते हुए सभी ग्रहों के सूर्य के चक्कर लगाने की बात लिखी थी, यही बात उनसे करीब एक हजार साल बाद जन्मे निकोलस कोपरनिकस ने 15 वीं शताब्दी में की.

परन्तु पश्चिमी मानसिकता की गुलामी झेल रहे लोगों ने कोपरनिकस को महान खगोल वैज्ञानिक माना पर आर्यभट्ट को उनकी खोज का कोई श्रेय नहीं दिया. महज छोटी सी आयु में इन्होने भारतीय ज्ञान विज्ञान में अपार वृद्धि कर कुछ नये अध्याय जोड़े.

एक वैज्ञानिक के रूप में उनके योगदानों को सदैव याद किया जाता रहेगा, उनके अध्ययन आज की गणित और स्पेस साइंस के लिए मार्गदर्शक हैं. भारतीय बौद्धिक शक्ति के प्रतीक बनकर उन्होंने इस भूमि के ज्ञान विज्ञान का लोहा दुनिया में अपने कार्यों से मनवाया था.

(700 शब्द) आर्यभट्ट पर निबंध (Long Essay On Aryabhatta In Hindi)

आर्यभट्ट का जन्म 476 ई में कुसुमपुर पटना में हुआ था. अपनी 23 वर्ष की अवस्था में इन्होने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ आर्यभट्टीयम की रचना की थी.

आर्यभट्ट के बाद के वैज्ञानिकों वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त आदि के कथनों से यह स्पष्ट होता हैं कि इन्होने एक और ग्रंथ की रचना की थी, जिसके धुर्वांक आर्यभट्टीयम के ध्रुवांक से कुछ भिन्न थे, आर्यभट्ट ने अपने पहले ग्रंथ में युग का आरंभ आधी रात से माना हैं जबकि दूसरे ग्रंथ में युग का आरंभ सूर्यादय से माना हैं.

पहली गणना को अर्द्धरात्रिक गणना और दूसरी को औदयिक गणना कहा गया हैं. आर्यभट्टीयम ग्रंथ में कुल 121 श्लोक है जो चार खंडों में विभाजित हैं. ये खंड निम्नलिखित हैं.

  • गीतिकापाद
  • गणितपाद
  • काल क्रियापाद
  • गोलपाद

गीतिका पाद– गीतिका पाद में यदपि 11 श्लोक ही हैं, तथापि इन श्लोकों में अत्यधिक सामग्री भरी हुई हैं. इसके सम्बन्ध में गागर में सागर भरने की संज्ञा दी जाती हैं. इसे निम्नलिखित बिन्दुओं के अंतर्गत स्पष्ट किया जा सकता हैं.

अक्षरों के द्वारा संख्या प्रकट करने की नवीन रीति– लम्बी संख्याओं को श्लोक में रखने की द्रष्टि से इन्होने अक्षरों के द्वारा संख्या प्रकट करने की नवीन रीति का प्रचलन किया.

क से लेकर ह तक के वर्णों का मूल्य इस प्रकार हैं. इस पद्धति के अनुसार क से लेकर म तक के वर्ण क्रमशः 1 से लेकर 25 संख्या के द्योतक हैं और य का मूल्य 30 हैं तथा इसके बाद ह तक के सभी वर्णों के मूल्य में 10 की वृद्धि होती गई हैं. यथा य=30, र=40, ल=50, व=60, श=70, ष= 80, स=90 और ह=100.

आर्यभट्ट ने अपनी इस नवीन रीति का उपयोग प्रकार किया इसे निम्न उदहारण से समझा जा सकता हैं.

सिद्धांत– आर्यभट्ट का मूल सिद्धांत है कि पृथ्वी का दैनिक भ्रमण होता है और सूर्य स्वयं स्थिर हैं. एक महायुग में उसके अनुसार सूर्य पृथ्वी का 4, 32, 000 चक्कर लगाता हुआ माना गया हैं. चन्द्रमा 5,77, 53, 336 और पृथ्वी 1,58, 22, 37, 500 बार घूमती हुई मानी गई हैं.

महायुगीन भाग्णों की संख्या– गीतिकापाद के प्रथम श्लोक में सूर्य, चन्द्रमा, पृथ्वी, शनि, गुरु, मंगल, शुक्र और बुध के महायुगीन चक्करों की संख्या बताई गई हैं.

पृथ्वी के घूर्णन की संख्या– आर्यभट्ट ने इस भाग में एक महायुग में पृथ्वी के घूर्णन की संख्या भी दी हैं क्योकि उन्होंने पृथ्वी का दैनिक भ्रमण माना हैं.

गणितपाद– आर्यभट्ट के ग्रंथ आर्यभट्टीय का दूसरा भाग गणितपाद का हैं. इसमें उनहोंने अंकगणित, बीजगणित और रेखागणित के प्रश्न दिए हैं. इस भाग में 30 श्लोक हैं. इन श्लोकों में उन्होंने गणित सम्बन्धी अनेक कठिन प्रश्नों को दिया हैं यथा.

  1. प्रथम श्लोक में अपना नाम और स्थान बताया हैं.
  2. दूसरे श्लोक में संख्या लिखने की दशमलव पद्धति की इकाइयों के नाम हैं.
  3. शेष श्लोकों में वर्ग, वर्ग क्षेत्र, घन, घनफल, वर्गमूल, घनमूल, त्रिभुज, त्रिभुज का क्षेत्रफल, शंकु का घनफल, वृत, वृत का क्षेत्रफल, उसका घनफल, विषम चतुर्भुज का क्षेत्रफल सब प्रकार के क्षेत्रों की मध्यम लम्बाई चौड़ाई जानकर क्षेत्रफल निकालने के साधारण नियम दिए हैं.

कालक्रियापाद– आर्यभटीयम ग्रंथ के कालक्रियापाद नामक खंड में ज्योतिष सम्बन्धी बातों का वर्णन हैं. इसमें काल और कोण की इकाइयों का सम्बन्ध तथा मास, वर्ष, और युगों के सम्बन्ध को भी बताया गया हैं.

इस ग्रंथ में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से युग, वर्ष, मास और दिवस की गणना का आरंभ बताया गया हैं. इस ग्रंथ में 20 श्लोकों में तो ग्रहों की गति सम्बन्धी नियम बताए गये हैं.

गोलपाद– आर्यभट्ट ने अपने ग्रंथ आर्यभटीयम के अंतिम खंड को गोलपाद के नाम से अभिहित किया हैं. इसमें 50 श्लोक हैं जिसमें सूर्य ग्रह तथा नक्षत्रों के सम्बन्ध में वर्णन किया गया हैं.

आर्यभट्ट का योगदान

उपर्युक्त सिद्धांतों के आधार पर आर्यभट्ट के योगदान को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता हैं.

ज्योतिष सिद्धांतों की विवेचना– आर्यभट्ट ने अपने ग्रंथ में ज्योतिष सिद्धांत की प्रायः सभी बातें और उच्च गणित की कुछ बाते सूत्र रूप में लिपिबद्ध की हैं.

आर्यभट्टीयम पर अनेक टीकाओं की रचना- अनेक टीकाएँ वर्तमान में आर्यभट्टीयम ग्रंथ के ऊपर लिखी गई हैं. जो इसके महत्व का प्रतिपादन करती हैं.

बीजगणित के जनक– भारत में आर्यभट्ट प्रथम व्यक्ति हैं जिन्होंने अपने ज्योतिष सिद्धांत में निश्चित रूप से एक गणित के अध्याय को समाविष्ट किया हैं. अंकगणित, बीजगणित तथा रेखागणित के सूत्रों व सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया हैं आर्यभट्ट को बीजगणित का जनक माना जाता हैं.

पाई का मान ज्ञात करना– आर्यभट्ट ने पृथ्वी की परिधि की अनुमानतः जो माप की थी, वह आज सही मानी जाती हैं आर्यभट्ट ने पाई का मान 3.1416 बताया था जो आधुनिक पद्धतियों से निकाले मान के बहुत निकट हैं.

पृथ्वी गोल हैं- पृथ्वी गोल है तथा अपनी धुरी पर चलती हैं के सिद्धांत के प्रतिपादन का श्रेय आर्यभट्ट को ही हैं.

सूर्य और चन्द्र के विषय में पौराणिक धारणाओं का खंडन करना- आर्यभट्ट ने सूर्य और चन्द्र के विषय में पौराणिक धारणाओं का खंडन किया है और कहा है कि ग्रहण में राहू केतू का कोई स्थान नहीं हैं बल्कि यह चन्द्रमा और पृथ्वी की छाया का फल हैं.

दशमलव प्रणाली की खोज– आर्यभट्ट ने सर्वप्रथम दशमलव प्रणाली की खोज की, जिसने उन्हें विश्व प्रसिद्ध कर दिया. इससे संख्या का विस्तार सीमित हो गया.

आर्यभट्ट उपग्रह पर संक्षिप्त निबंध

15 फरवरी 2017 आंध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा के सतीशधवन अन्तरिक्ष प्रक्षेपण सेंटर से इसरो ने 104 सेटेलाइट एक साथ सफलता पूर्वक लोंच करके एक विश्व कीर्तिमान बनाया था. इस अभियान में शामिल अधिकतर सेटेलाइट दूसरे देशों के थे.

इन देशों ने इसरो की कार्यप्रणाली से प्रभावित होकर कम खर्च में विश्वसनीय कार्य के लिए इसे सौपा था. भारत की इस सफलता के बाद विश्व भर ने इसरो की क्षमता का लोहा माना था. भारतीय अन्तरिक्ष अभियानों का इतिहास महान खगोलविद आर्यभट्ट से जुड़ा हुआ हैं.

आर्यभट्ट देश का पहला स्वदेशी उपग्रह है इसका नाम भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिक आर्यभट के नाम पर रखा गया था. 19 अप्रैल 1975 को सोवियत संघ ने कॉसमॉस ३एम प्रक्षेपण वाहन द्वारा रोकेट लोंचिन साईट कोपुस्तिनयार से इसे प्रक्षेपित किया गया.

इसरो और सरकार की तरफ से अन्तरिक्ष के क्षेत्र में अनुभव, खोज और शोध को बढ़ावा देने के लिए मकसद से इसका निर्माण किया गया था. जिससे एक्सरे, खगोल विज्ञान और सौर भौतिकी में प्रयोगों के संचालन को और बेहतर बनाया जा सके.

उपग्रह आर्यभट्ट का व्यास 1.4 मीटर था तथा यह आकार में 26 तरफा बहुभुज था. यह चारो तरफ ऊपर से नीचे तक सौर कोशिकाओं से ढका था. जिससे कि इसकी सुरक्षा प्रणाली को किसी प्रकार का नुक्सान न पहुचे.

भारत पहली बार सोवियत संघ की मदद से अन्तरिक्ष में कोई उपग्रह की स्थापना करने जा रहा था. इसलिए उपग्रह की अन्तरिक्ष में स्थापित करने के सभी मापदंड़ो का सतर्कता से पालन किया गया था. जिससे कि सफलतापूर्वक इसे स्थापित किया जा सके.

पर अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक प्रक्षेपण के बाद उपग्रह की प्रणाली में आंतरिक गडबडी और बिजली आपूर्ति में बाधा पहुचने की वजह से चार दिनों के बाद ही अन्तरिक्ष की कक्षा में इस पर चल रहे सारे प्रयोगों को रोकना पड़ गया था.

दुर्भाग्यवश महज 4 दिनों के बाद ही यान से आने वाले सभी संकेत और संदेश आने भी बंद हो गये और यह प्रयोग पूरी तरह से सफल नहीं हो सका.

आर्यभट्ट ने 11 फरवरी 1992 को पृथ्वी के वायुमंडल में पुनः प्रवेश किया. इसके अलावा 1976 से 1997 तक दो रु के नोट के पीछे इसकी छवि छापी गई थी.

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