भगत सिंह पर निबंध Essay On Bhagat Singh In Hindi

भगत सिंह पर निबंध Essay On Bhagat Singh In Hindi: भारत के महान क्रांतिकारी एवं स्वतंत्रता सेनानी शहीद भगत सिंह का नाम कौन नहीं जानता, जिनकें शौर्य, साहस एवं राष्ट्र प्रेम को आज हम नमन करते हैं.

शहीद भगतसिंह पर यहाँ निबंध दिया गया हैं. कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10 के बच्चे इस निबंध को याद कर सकते हैं.

भगत सिंह पर निबंध Essay On Bhagat Singh In Hindi

भगत सिंह पर निबंध Essay On Bhagat Singh In Hindi

भारत को वीर पुरुषों का देश कहा जाता हैं. भारत भूमि पर अनगिनत जाबाजों ने जन्म लिया तथा वे अपनी मातरभूमी की रक्षार्थ अपना जीवन दांव पर लगा गये. ऐसे ही एक अमर स्वतंत्रता सेनानी थे शहीद भगत सिंह.

शहीद ए आजम ने अल्पायु में ही भारत की स्वतंत्रता की खातिर अपने प्राणोत्सर्ग कर दिया. हंसते हंसते फांसी का फंदा चूमने वाले भगत सिंह भारतीय सेनानियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गये.

२८ सितम्बर, १९०७ के दिन संयुक्त पंजाब प्रान्त के लायलपुर जिले के बंगा गाँव में भगत सिंह का जन्म हुआ था, इनका पूरा परिवार भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा था चाचा व पिताजी जेल में थे. पिताजी का नाम सरदार किशन सिंह व माँ का नाम विद्यामती कौर था.

एक सिख परिवार में जन्में भगत सिंह के परिवार पर आर्य परिवार का प्रभाव था. इनके जन्म के समय पिता सरदार किशन सिंह चाचा अजित सिंह और स्वर्ण सिंह दोनों जेल में थे मगर भगत सिंह के जन्म के दिन ही उनके चाचा व पिता की जेल से रिहाई हो गई इस कारण भगतसिंह को बालपन ‘भागो वाला’कहा जाता था जिसका अर्थ होता है भाग्य वाला.

शहीद भगतसिंह ने अपनी स्कूली शिक्षा को गाँव से ही प्राप्त किया, इसके बाद इन्होने 1917 में DAV कॉलेज से नौवी तक की शिक्षा प्राप्त की. वर्ष 1923 में इन्होने ऍफ़ ए की परीक्षा पास कर ली. मात्र 15 वर्ष की आयु में ही भगत सिंह स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारियों के संगठन से जुड़कर सक्रिय कार्य करने लगे.

भगत सिंह की शुरूआती शिक्षा उनके बंगा गाँव की एक शाळा से ही हुई. 1916-17 में आरम्भिक शिक्षा पूरी करने के बाद इन्होने आगे की पढाई के लिए लाहौर (वर्तमान में पाकिस्तान में) के डी ए वी कॉलेज में एडमिशन लिया. यहाँ उनकी मुलाकात सुखदेव, भगवती चरन व कुछ अन्य उग्र क्रन्तिकारी युवाओं से गहरी मित्रता हो गईं.

वे अक्सर कॉलेज में आयोजित नाटक और विभिन्न समारोहों के द्वारा विद्यार्थियो में देशभक्ति का भाव पैदा करने का कार्य किया. जब उनके परिवार वालों ने शादी के बारे में उनके विचार जानना चाहा तो स्पष्ट मना करते हुए, भारत की स्वतंत्रता से पूर्व यदि मैंने शादी की तो दुल्हन की मौत हो जाएगी.

उसी समय पंजाब में लागू नए अंग्रेजी कानून रोलेट एक्ट के विरोध में जगह-जगह पर विरोध प्रदर्शन होने लगे. जिनमे भगत सिंह ने भी सक्रिय रूप से भाग लिया.

13 अप्रैल 1919 के दिन जब जनरल डायर के आदेश पर पंजाब के जलियावाला बाग़ नामक स्थान पर शांतिपूर्ण विरोध सभा कर रहे हजारों निहत्थे लोगों को मौत के घाट उतार दिया. इस घटना से क्रुद्ध होकर भगत सिंह और उनकी मित्र मंडली अंग्रेजी शासन की दुश्मन हो गई. इन्होने अंग्रेजो से इस हत्याकांड का प्रतिशोध लेने का निर्णय ले लिया.

देशभक्ति का पोषण उन्हें अपने परिवार के लोगों से ही मिला, जिसके चलते वे बचपन से ही बड़े निर्भीक एवं साहसी थे. वे भारत माता की स्वतंत्रता के लिए कुछ न कुछ करने की ललक जगाए हुए थे.

एक बार सिंह ने अवसर पाकर पिताजी सरदार सिंह की पिस्तौल को खेत में गाड़ दिया था, जब उनसे इसका कारण पूछा गया तो वे कहते है एक पिस्तौल से कई पिस्तौले होगी जिससे मैं अपने साथियो के साथ अंग्रेजों से लड़कर भारत माता को स्वतंत्र करवा दूंगा.

1919 के जनरल डायर के जलियांवाला बाग़ हत्याकांड ने सिंह के भीतर धधक रही अंग्रेज विरोधी ज्वाला और धधकाया, इस नर संहार में हजारों बेगुनाह स्त्री पुरुष मारे गये थे. भगत सिंह जलियांवाला बाग़ गये तथा माँ धरती को प्रणाम कर अंग्रेजों को भारत से भगाने का प्रण लेकर वे एक शीशी में वहां की मिटटी को अपने संग ले आए.

उधर लाहौर में पुलिस की लाठी से लाला लाजपत राय की हत्या कर दी गई जो भगतसिंह के लिए बड़ी व्यक्तिगत क्षति थी, क्योंकि वे लालाजी को अपनी प्रेरणा का स्रोत मानते थे. अंग्रेजों की इस कार्यवाही से बहुत धक्का लगा और अपने साथियों के साथ मिलकर इसका बदला लेने की योजना बनाई.

भगत सिंह लालाजी की मौत का कारण सॉन्डर्स को मानते थे जो पुलिस अधिकारी था, अतः उन्होंने सबसे पहले उसे उड़ाया तथा बाद में उन्होंने संसद की चलती कार्यवाही में बम फेककर गिरफ्तारी दे दी. यह घटना लाहौर षड्यंत्र के नाम से जानी गई.

जिसके बाद भगतसिंह और उनके दो साथियों सुखदेव और राजगुरु पर मुकदमा चलाया गया तथा राजद्रोह के आरोप में 23 मार्च 1931 को इन तीनों को फांसी दे दी गई. भगत सिंह और उनके साथियों को अंग्रेजों द्वारा भय के कारण फांसी दी गई, साथ ही वे क्रांतिकारियों को राजद्रोह का अंजाम दिखाना चाहते थे.

मगर हुआ ठीक इसका उल्टा, सिंह भारत के लोकप्रिय नेता बन चुके थे उनकी हर एक कार्यवाही की खबर पुरे देश में जाती थी, अतः उनकी फांसी की खबर सुनकर देश के युवा वर्ग के खून में बदले का भाव जग आया और अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने के लिए लाखों युवकों ने अपने घर छोड़ दिए.

असहयोग आंदोलन में भगत सिंह (Bhagat Singh in non-cooperation movement)

बेकसूर हजारों लोगों की जलियांवाला बाग़ हत्याकांड में मौत के बाद भगतसिंह उस स्थान पर पहुचे. उन्होंने उस बाग़ की मिटटी को एक बोतल में भरकर इसका बदला लेने का सकल्प ले लिया.

इस घटना के बाद राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ असहयोग आंदोलन छेड़ दिया था. 1920 में उन्होंने लाहौर में आरम्भ हुए नेशनल कॉलेज में प्रवेश लिया. यहाँ इनकी मुलाक़ात कई देशभक्त क्रांतिकारियों से हुई.

कॉलेज को अपनी अंग्रेज विरोधी गतिविधियों का केंद्र बनाकर नवयुवकों में देशभक्ति की भावना को विकसित करने का जिम्मा उठा लिया. जब वर्ष 1928 में साइमन कमीशन भारत आया तो सबसे पहले यह लाहौर पंहुचा.

यहाँ के लोकप्रिय जननेता लाला लाजपत राय जी के नेतृत्व में साइमन गो बेक नारा लेकर पूरा शहर बाधित कर दिया. स्थति को हाथ से निकलते देख पुलिस अधिकारी सोल्डर्स ने सभी आंदोलकारियो पर लाठीचार्ज करने का आदेश दे दिया था.

हजारों लोगों की इस भीड़ में लाला लाजपत राय भी थे, जिन पर सुरक्षा कर्मियों ने बेरहमी से लाठियों से वार किया.

सिर पर गंभीर वार से लाला लाजपत राय खून से लथपथ होकर गिर पड़े. भगत सिंह तथा उनके साथियो ने तैसे वैसे उन्हें अस्पताल पहुचाया मगर 17 नवम्बर 1928 को लाला लाजपत राय जी की मृत्यु हो गई.

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