बढ़ई पर निबंध | Essay On Carpenter In Hindi

Essay On Carpenter In Hindi: नमस्कार दोस्तों आज हम बढ़ई पर निबंध लेकर आए हैं. खाती, काष्ठकार या कारपेंटर, सुथार  के रूप में हम इन्हें जानते है जो लकड़ी की वस्तुएं व सामान तैयार करता हैं.

समाजोपयोगी वस्तुएं तैयार करने में बढ़ई की पूरी उम्रः बीत जाती हैं. आज के निबंध, भाषण, स्पीच, अनुच्छेद, लेख व आर्टिकल में हम बढ़ई उसके कार्य, योगदान व इतिहास के बारें में इस हिंदी निबंध में शोर्ट में जानेगे.

Essay On Carpenter In Hindi

बढ़ई पर निबंध | Essay On Carpenter In Hindi

बढ़ई हिंदुओं की एक जाति है और जो व्यक्ति बढ़ई का काम करता है उसे बढ़ई कहा जाता है और अंग्रेजी में बढ़ई को कार पेंटर कहा जाता है। इनके द्वारा अधिकतर लकड़ी से संबंधित कामों को किया जाता है। यह लकड़ी के दरवाजे बनाते हैं, लकड़ी की खिड़कियां बनाते हैं। 

इसके अलावा भारत के ग्रामीण क्षेत्र में इस्तेमाल होने वाली चारपाई भी बढ़ई के द्वारा बनाई जाती है। यही नहीं बढ़ई कुर्सी और टेबल का भी निर्माण करते हैं, साथ ही यह लकड़ी की अलमारी भी बनाते हैं।

अगर लकड़ी की कोई चीज खराब हो जाती है तो बढ़ई के द्वारा ही उसे फिर से ठीक किया जाता है और उसे उसकी मूल अवस्था में लाया जाता है।

बढ़ई का काम काफी लंबे समय से हमारे भारत देश में किया जा रहा है क्योंकि पहले के समय में जब लोहे के दरवाजे और खिड़कियां नहीं होती थी तब लोग अपने घरों में लकड़ी के दरवाजे और खिड़कियां ही लगाते थे।

आज भी अधिकतर लोग अपने घरों में लकड़ी के दरवाजे और खिड़कियां लगवाते हैं। ऐसे में बढ़ई की आवश्यकता तब भी अधिक थी और आज के जमाने में भी अधिक ही है।

लकड़ी से संबंधित कामों को करने के लिए बढ़ई अपने पास कुछ आवश्यक साधन रखता है। जैसे कि छेनी, हथौड़ी, इंची टेप इत्यादि और इन्हीं आवश्यक साधनों के द्वारा वह लकड़ी से संबंधित कामों को करता है।

भारत के शहरों में तो बढ़ई का काम करने वाले कम ही लोग दिखाई देते हैं क्योंकि शहरों में रोजगार के अन्य कई साधन मौजूद है। ऐसे में लोग इस काम को कम ही करना पसंद करते हैं परंतु वर्तमान के समय में भारत के ग्रामीण इलाके में बढ़ई अधिक मात्रा में होते हैं जो लोगों के घर घर जाकर के उनके लकड़ी से संबंधित कामो को करते हैं और उनके लिए खिड़की और दरवाजे का निर्माण करते हैं।

जो काम हम खुद नहीं कर सकते उन्हें बढ़ई के द्वारा पूरा करवाया जाता है। कुछ बढ़ई तो काम करने में इतने माहिर होते हैं कि वह थोड़ी ही देर के अंदर लकड़ी से संबंधित कामों को पूरा कर देते हैं।

बढ़ई बहुत मेहनती होते हैं, यह चाहे सर्दी हो चाहे धूप हो चाहे बरसात हो अपने काम के प्रति समर्पित होते हैं और इनका यही प्रयास रहता है कि यह जिस किसी भी व्यक्ति का काम करें उसे काम की पूर्ण संतुष्टि दी जाए।

500 शब्दों में बढ़ई पर निबंध

हमारे समाज में लकड़ी की आवश्यक वस्तुएं यथा मेज, पलंग, कुर्सी, दरवाजे, हल, फर्नीचर आदि को बनाने का काम बढ़ई करता हैं. यह सदियों से उसका पुश्तैनी काम है. पूर्व में दादा परदादा इसे करते थे.

आज की तरह उस समय मुद्रा विनिमय नहीं था. बढ़ई अपने मोहल्ले या गाँव के सभी घरों में जाकर लकड़ी का काम करता था, जो उसके हिस्से में आते थे.

काम के बदले उन्हें वर्ष में एक बार कपड़े एवं अनाज दिया जाता था. इसके अतिरिक्त विवाह एवं त्योहारों के प्रसंगों पर भी उन्हें विविध तरफ के उपहार मिलते हैं.

सृष्टि के निर्माता विश्वकर्मा को बढ़ई जाति अपनी आराध्य मानती हैं. आज लकड़ी कर्म में न केवल बढ़ई काम करते है, बल्कि अन्य जातियों से सम्बन्धित लोगों ने भी इसे व्यवसाय के रूप में अपनाया हैं.

एक बढ़ई के बिना हम सुंदर एवं सुसज्जित घर की कल्पना नहीं कर सकते हैं अथवा यूँ कह लिजिएँ हमारे घर में जितनी भी वस्तुएं लकड़ी से बनती है उन्हें केवल कारपेंटर ही बनाता हैं. इन्हें खाती भी कहा जाता हैं तथा जहाँ पर इनकी बहुल आबादी होती है उन्हें खातीपुरा भी कहते हैं, आपने ऐसे कई गाँवों या शहरी कोलोनियों के नाम अवश्य ही सुने होंगे.

अनुपयोगी व लकड़ी के छोटे छोटे टुकड़ों को तराशकर खाती उन्हें एक सुंदर आकृति का रूप देता हैं. हिन्दू धर्म के विवाह एवं मृत्यु संस्कार में भी बढ़ई के कार्य माने गये हैं.

यदि बढ़ई न होते तो हम चारपाई की बजाय जमीन पर सोते, पढ़ने के लिए मेज कुर्सी नही होती, घरों के दरवाजे खिड़कियाँ न होती, इस तरह हमारा घर व जीवन दोनों में खालीपन सा महसूस होता.

परम्परागत व्यवसायों में खाती कर्म को सबसे कठिन एवं श्रमसाध्य माना गया हैं. लकड़ी को काटने, चीरने, जोड़ने, तोड़ने तथा छेद करने में शारीरिक बल के साथ साथ बौद्धिक क्षमता की आवश्यकता पड़ती हैं.

आज कारपेंटर के कार्य को सिखाने के लिए कई तरह के संस्थान खुले हुए हैं. जहाँ नौसिखए विद्यार्थियों को एक अवधि तक बढ़ई कर्म का प्रशिक्षण देकर उन्हें लकड़ी के काम करने योग्य बनाया जाता हैं.

बढ़ईगीरी की शिक्षा देने के लिए आज भारत में बरेली और प्रयागराज में बड़े बड़े संस्थान है जहाँ काष्ठ शिल्प से जुड़ा ज्ञान प्रदान किया जाता हैं. उन्हें लकड़ी से जुड़े नवीनतम वैज्ञानिक यंत्रों एवं उपकरणों से अवगत कराया जाता है जिससे वे अपने कार्य को अधिकाधिक सरल एवं सुगम बना सके.

भारत में लकड़ी के बने प्रसिद्ध वस्तुओं के निर्माण केंद्र की बात करे तो घरेलू उपयोग की वस्तुएं बरेली में, मेज कुर्सी अलमारी सहारनपुर में, चित्रकारी की लकड़ी वस्तुएं मेरठ में, खेल सामग्री देहरादून में तथा क्रिक्रेट के उत्कृष्ट बल्ले श्रीनगर में बनते हैं.

बढ़ई जाति के लोग भगवान विश्वकर्मा की पूजा करते हैं. कहते है जब ब्रह्माजी सृष्टि निर्मित कर रहे थे तो ये शिल्पी थे. इस लिए आज भी विश्वकर्मा जयंती के अवसर पर बढ़ई समुदाय के लोग अपने यंत्र, उपकरण, औजार व मशीनों की साफ़ सफाई कर उनका पूजन करते हैं.

प्राचीन समय में लकड़ी की मुख्य वस्तुओं में उड़न खटोला, पुष्पक विमान, उड़ने वाला अश्व, बाण, तरकस, रथ, पालकी आदि बढ़ई निर्मित वस्तुएं हुआ करती थी. आज भी कई स्थानों पर प्राचीन समय की लकड़ी की निर्मित सुंदर नक्काशीदार वस्तुएं मिलती हैं.

आज लकड़ी उद्योग बेहद विस्तृत एवं रोजगार देने वाला क्षेत्र बन चूका हैं, फिर भी गाँव में बसने वाले काष्ठकार आज भी निर्धनता में जीवन गुजारते हैं. ये आज भी घरों में जाकर काम करते हैं, इन्हें बेहद कम मजदूरी मिलती हैं.

वही शहरों में रहने वाले बढ़ई के काम की बात करे तो यह बड़ी बड़ी दुकाने रखते है जहाँ एक साथ दर्जनों कारीगर काम करते है इनके पास समस्त आधुनिक साधन होते हैं.

इनके पास नित्य लाखों के प्रोजेक्ट आते हैं, इस तरह नगर में बसनें वाले लकड़ी के कारीगर उच्च वेतन पर मजदूरी करते है तथा उनका जीवन आसान से गुजर जाता हैं. उदाहरण के लिए इन्हें एक घर के फर्नीचर का काम 10 लाख से एक करोड़ रूपये तक मिलता है जिसे कुछ ही महीनों में पूरा कर लेते हैं.

इस प्रकार कह सकते है काष्ठ शिल्प के बिना हमारा जीवन अधूरा हैं. बढ़ई बेहद मेहनती इन्सान होता है जो अपने हुनर और मेहनत के दम पर अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वहन कर हमारे घर, समाज को आकर्षक बनाने का कार्य करता हैं. हमें उनकी निष्ठां, कला और हुनर को सम्मान देना चाहिए.

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