साम्प्रदायिकता एक अभिशाप पर निबंध | Essay On Communalism in Hindi

नमस्कार दोस्तों आज का निबंध साम्प्रदायिकता एक अभिशाप पर निबंध Essay On Communalism in Hindi पर दिया गया हैं. 

आज के निबंध में हम सरल भाषा में सांप्रदायिकता पर निबंध में जानेगे कि यह समस्या क्या है भारत में इसका इतिहास दुष्प्रभाव आदि जानेगे. उम्मीद करते है यह निबंध पसंद आएगा.

साम्प्रदायिकता एक अभिशाप पर निबंध Essay On Communalism in Hindi

साम्प्रदायिकता एक अभिशाप पर निबंध | Essay On Communalism in Hindi

साम्प्रदायिकता सौहार्द, सद्भाव, दंगा आदि  शब्द  कई बार भिन्न भिन्न अर्थ देते हैं. भारत में साम्प्रदायिकता का अर्थ सभी लोग अपने अपने सहूलियत के हिसाब से तैयार कर  लेता हैं.

एक तरफ भारत के संविधान में सभी को अपने अपने पथ मजहब को मानने तथा प्रचार की छुट दी गई. फिर कोई हिन्दू यदि कहता है कि मुझे हिन्दू होने पर गर्व हैं तो उसे कम्युनल का तमगा दे दिया जाता हैं

वही दूसरी तरफ देश में सैकड़ों संगठन तथा राजनीतिक पार्टिया जाति और मजहब विशेष के हितों की बात करता हैं तो उन्हें साम्प्रदायिक न कहा  जाए यही  दोगलापन  हैं.

मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
भारत माता का मंदिर यह समता का संवाद यहाँ
सबका शिव कल्याण यहाँ हैं पावें सभी प्रसाद यहाँ

शायरों और कवियों की ये वाणियाँ भारतभूमि पर उदारता और सहिष्णुता की उद्घोषणाए हैं. जाति और सम्प्रदाय के नाम पर मनुष्यों को टुकड़ों में बांटना और उनके ह्रदय में द्वेष के बीज बोना हमारी संस्कृति को कभी स्वीकार नहीं हुआ.

हमारे पूर्वजों ने आचार विचार चिंतन भाषा वेशभूषा और परम्पराओं की विविधताओं को एक राष्ट्रीयता के सूत्र में पिरोकर सारे विश्व के सामने मानवीय एकता का आदर्श प्रस्तुत किया हैं. मानव मात्र के लिए मंगल कामना भारतीय जीवन दर्शन का आदर्श रहा हैं.

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद दुखभग्भवेत

साम्प्रदायिकता क्या है (what is Communalism in hindi)

भारतीय मान्यता के अनुसार धैर्य क्षमता आत्मसंयम, चोरी न करना, पवित्र भावना, इन्द्रियों पर नियंत्रण, बुद्धिमत्ता, विद्या, सत्य और क्रोध न करना ये धर्म के दस लक्षण हैं.

सभी धर्म इनको अपना आदर्श अंग मानते हैं. सारे संसार का एक ही धर्म हैं. हाँ, उस धर्म की अपने अपने ढंग से व्याख्या करने वाले सम्प्रदाय अनेक हैं.  हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, जैन, बौद्ध, ईसाई आदि.

महाभारत में कहा गया हैं कि जो सब धर्मों को सम्मान नहीं देता वह धर्म नहीं अधर्म हैं. साम्प्रदायिक दुराग्रह ही साम्प्रदायिकता हैं.

धर्म के नाम पर मनुष्य को मनुष्य का गला काटने का दुष्प्रेरणा , साम्प्रदायिक कटुता के नाम पर दूसरो का घर जलाने की और नारियों के अपमान की कुशिक्षा दिया जाना शैतानियत हैं.

दानवता हैं. इसे धर्म कहना धर्म और ईश्वर का घोर अपमान हैं. इसी प्रकार समाज को उच्च और नीच जातियों में बांटना मानवता का अपमान हैं.

साम्प्रदायिकता का परिणाम (Consequence of communalism In Hindi)

साम्प्रदायिक द्वेष के जहर को इस देश ने शताब्दियों से झेला हैं. वर्ष 1947 में देश के विभाजन के समय खून की जो होली खेली गई थी वह आज कोढ़ के रूप में जब चाहे फूट निकलती हैं.

इसका परिणाम होता हैं हत्या, आगजनी, लूट, बलात्कार अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में देश की बदनामी, करोड़ो रुपयों की सम्पति का विनाश होता हैं और द्वेष की खाइयाँ और गहरी होती जाती हैं.

और इस साम्प्रदायिक दुराग्रह ने ही सुकरात को जहर परोसा, ईसा को सूली पर चढ़ाया, गांधी के जिगर में गोली उतारी थी.

साम्प्रदायिकता के कारण

भारत में साम्प्रदायिक द्वेष का जहर बेचने वाले अनेक प्रकार के मुखोटे लगाए जन मन को विषैला बनाते रहते हैं. इनमें धार्मिक नेता, स्वार्थी राजनीतिज्ञ और कुछ कट्टर मानसिकता वाले अविवेकी लोग भी शामिल हैं.

हमारा एक पड़ोसी देश भी अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए साम्प्रदायिक उन्माद को हवा देता रहता हैं. जातिवाद को हवा देने वाले भी राजनीतिक लोग हैं.

साम्प्रदायिक सद्भाव आवश्यक

आज देश को साम्प्रदायिक सद्भाव की अत्यंत आवश्यकता हैं. अंतर्राष्ट्रीय शक्तियाँ और द्वेषी पड़ोसी हमें कमजोर बनाने और विखंडित करने पर तुले हुए हैं. ऐसे समय में देशवासियों को परस्पर मिलजुलकर रहने की परम आवश्यकता हैं.

मन्दिर मस्जिद के नाम पर लड़ते रहने का परिणाम देश के लिए बड़ा घातक हो सकता हैं. अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में बदनामी होती हैं. अर्थतन्त्र पर भारी बोझ पड़ता हैं. अतः हम प्रेम और सद्भाव से रहे तो कितना अच्छा हैं.

उपसंहार

देश का दुर्भाग्य हैं कि साम्प्रदायिक सद्भाव क्षीण होता जा रहा हैं. सत्ताकेंद्रीत जोड़ तोड़ ने धर्म निरपेक्षता या साम्प्रदायिक सद्भाव को एक खोखला नारा बना कर रख दिया हैं.

इसके लिए जनता को ही आगे आना होगा. सभी धर्मावलम्बियों को मिल बैठ कर इसका हल निकालना होगा.

साम्प्रदायिकता पर निबंध | Sampradayikta Essay in Hindi

साम्प्रदायिकता की बढ़ती प्रवृति और उसके साथ जुडी हिंसा धार्मिक रूप से अल्पसंख्यकों समुदाय में असुरक्षा की भावना को जगाती हैं. हर देश में खासकर भारत में अल्पसंख्यक समुदाय कुल आबादी का पांचवा भाग हैं.

अतः सरकार किसी भी सूरत में अपने मुल्क की इतनी बड़ी आबादी को डर, संदेह व हिंसा का शिकार नही होने देगा. देश की एकता व आंतरिक शांति के लिए साम्प्रदायिकता पर लगाम कसना जरुरी हैं.

यदि एक हिन्दू कहता हैं, कि मुझे हिन्दू होने पर गर्व हैं तथा एक मुस्लिम अपने मुस्लिम होने पर गर्व की बात कहता हैं तथा अच्छा मुसलमान बनने के लिए अपनी जान दे देने की बात कहता हैं,

तो क्या वह साम्प्रदायिकता होगी. भारत में मुसलमानों को कई दशकों से लगता हैं, कि वे सुरक्षित नही हैं, और यदि वे किसी शोषण के विषय पर आवाज उठाते हैं तो क्या उन्हें साम्प्रदायिकता की संज्ञा दी जाएगी.

यदि ईसाई, बौद्ध और पारसी अपना व्यक्तिगत और निजी जीवन अपने विश्वासों और धार्मिक विश्वास के अनुसार जीवन जीते हैं तो क्या वे साम्प्रदायिक हैं.

साम्प्रदायिकता से जुड़े ऐसे कई सवाल हैं, जिसके कारण साम्प्रदायिकता की सटीक परिभाषा की आवश्यकता पड़ती हैं.

साम्प्रदायिकता की परिभाषा व अर्थ (Definition and meaning of communalism)

एक भारतीय इतिहास वेत्ता विपिन चन्द्र ने साम्प्रदायिकता की समस्या की परिभाषा देने की कोशिश की हैं. उन्होंने साम्प्रदायिकता को चार चरणों में विभाजित कर परिभाषित किया हैं. विपिन चन्द्र के अनुसार साम्प्रदायिकता-

  1. किसी समुदाय या समूह विशेष के सदस्य अपने समूह से सम्बन्धित हितों की पहचान करते हैं, इसे साम्प्रदायिकता नही कहा जा सकता लेकिन साम्प्रदायिकता की शुरुआत यही से होती हैं.
  2. वह न केवल अपने सदस्यों के समूह के हितों की पहचान करता हैं, बल्कि उसे अन्य समूह के हितों से अलग मानता हैं.
  3. लेकिन यह भिन्नता तब उग्र रूप धारण कर लेती हैं जब किसी समूह या समुदाय विशेष के सदस्यों को समाज के अन्य सदस्यों की तुलना में न केवल भिन्न लगते हैं, बल्कि विपरीत भी लगने लगते हैं. इस तीसरे चरण में साम्प्रदायिकता अपने उग्र स्वरूप में आ जाती हैं. समूह या समुदाय विशेष के सदस्यों को समाज के अन्य सदस्यों के हित विरोधी लगने लगते हैं. यहीं हितों का संघर्ष प्रारम्भ हो जाता हैं, जो समूहों या समुदायों के आपसी संघर्ष में परिवर्तित हो जाता हैं.

साम्प्रदायिकता की समस्या

वास्तव में साम्प्रदायिकता एक विचारधारा हैं, बताती हैं, कि समाज धार्मिक समुदायों में विभाजित हैं, जिनके हित एक दूसरे से भिन्न हैं और कभी कभी उनमे पारस्परिक उग्र विरोध भी हो जाता हैं.

साम्प्रदायिकता अपने मूल शब्द commune कम्यून से उत्पन्न हुआ हैं, जिसका सामान्य अर्थ भाईचारे के साथ मिल जुल कर रहना हैं.

लेकिन इतिहास की कुछ विशिष्ट अवधारणाओं में साम्प्रदायिकता भी शामिल हैं, जो अपना वास्तविक अर्थ अपने मूल अर्थ से भिन्न रखती हैं.

साम्प्रदायिकता की विचारधारा मूल रूप से धार्मिकता से जुडी हुई हैं. धर्मं के साथ मेल करके ही साम्प्रदायिकता की विचारधारा पल्लवित होती हैं. साम्प्रदायिक वे व्यक्ति होते हैं, जो राजनीति को धर्म के माध्यम से चलाते हैं.

साम्प्रदायिक व्यक्ति एक धार्मिक व्यक्ति नही होता, बल्कि एक ऐसा व्यक्ति होता हैं, जो राजनीति को धर्म से जोड़कर राजनीति रूपी शतरंज खेलता हैं.

उसके लिए धर्म व ईश्वर सिर्फ उपकरण मात्र हैं, जिनका उपयोग वह समाज में विलासितापूर्ण जीवन जीने एवं व्यक्तिगत लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए करता हैं.

भारत में साम्प्रदायिकता का इतिहास

भारत में हिन्दू मुस्लिम साम्प्रदायिकता के सन्दर्भ में हम देखते हैं, कि भारत में मुसलमानों के आक्रमण के लगभग दसवीं शताब्दी में प्रारम्भ हुए थे,

परन्तु महमूद गजनवी और मुहम्मद गौरी जैसे मुस्लिम आक्रमणकारी धार्मिक आधिपत्य स्थापित करने की बजाय आर्थिक संसाधनो को लूटने में अधिक रूचि रखते थे.

किन्तु कुतुबुद्दीन ऐबक के आगमन एवं इसके दिल्ली का पहला शासक बनने के बाद इस्लाम धर्म ने भारत में अपने पैर जमाए.

इसके पश्चात मुगलों ने अपने सम्राज्य को संगठित करने की प्रक्रिया में इस्लाम को मुख्य हथियार बनाते हुए, धर्म परिवर्तन के प्रयत्न किए तथा हिन्दू और मुस्लिम समुदायों के बिच साम्प्रदायिक झगड़ो को भड़काने का प्रयास किया.

सांप्रदायिकता एक अभिशाप पर निबंध

जब अंग्रेजों ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी के माध्यम से भारत पर अपना आधिपत्य जमाया, तो प्रारम्भ में उन्होंने हिन्दुओं को संरक्षण देने की निति अपनाई,

परन्तु 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के पश्चात अंग्रेजों ने भारतीय जनमानस को खंडित करने के लिए फूट डालो और राज करो की निति अपनाई.

इस निति के कारण झगड़ो को अत्यधिक प्रोत्साहन मिला. हिन्दुओं और मुसलमानों के बिच संबंध तब और अधिक तनाव पूर्ण हो गये, जब स्वतंत्रता संग्राम के दौरान शक्ति राजनीति का प्रयोग होने लगा.

यह कहा जा सकता हैं, कि हिन्दुओं और मुसलमानों के बिच पारस्परिक विरोध बहुत पुराना मुद्दा हैं, लेकिन हिन्दू मुस्लिम साम्प्रदायिकता स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ब्रिटिश सरकार की विरासत हैं.

भारत में कांग्रेस ने प्रारम्भ से ही चोटी से एकता की निति अपनाई, जिसके अंतर्गत मध्यम वर्ग और उच्च वर्ग के मुसलमानों को अपनी ओर करने का प्रयत्न किया गया.

हिन्दू और मुसलमान दोनों जनता की सम्राज्य विरोधी भावना से सीधी अपील करने की बजाय उन नेताओं पर छोड़ दिया गया, कि वे मुसलमानों को आंदोलन में सम्मिलित करे.

यह छोटी से एकता उपागम सम्राज्यवाद से लड़ने के लिए हिन्दू मुस्लिम एकता को प्रोत्साहित नही कर पाया.

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