लोकतंत्र पर निबंध हिंदी में | Essay On Democracy In Hindi

नमस्कार आज का निबंध लोकतंत्र पर निबंध हिंदी में Essay On Democracy In Hindi पर दिया गया हैं. सरल भाषा में स्टूडेंट्स के लिए लोकतंत्र निबंध में हम जानेगे कि डेमोक्रेसी क्या हैं अर्थ परिभाषा, महत्व, चुनौतियों आदि बिन्दुओं पर दिया गया हैं. उम्मीद करते है आपको लोकतंत्र का निबंध पसंद आएगा.

लोकतंत्र पर निबंध Essay On Democracy In Hindi

लोकतंत्र पर निबंध हिंदी में | Essay On Democracy In Hindi

डेमोक्रेसी (लोकतंत्र) पर शोर्ट निबंध

प्रजातंत्र यूनानी भाषा का शब्द हैं जिसे अंग्रेजी में डेमोक्रेसी ) कहा जाता हैं. लोकतंत्र का अर्थ जनता द्वारा शासित अर्थात् वह शासन प्रणाली जिनमें प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से जनता का शासन होता हैं.

क्या है लोकतंत्र (What is democracy In Hindi)

लोकतंत्र की कई परिभाषित अलग अलग विद्वानों द्वारा दी गईं, मगर अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन द्वारा दी गईं लोकतंत्र की परिभाषा सबसे सबसे अधिक मान्य व अर्थपूर्ण हैं.

इनकी परिभाषा के अनुसार लोकतंत्र जनता का शासन, जनता का द्वारा तथा जनता के लिए शासन ही प्रजातंत्र हैं. इसमें शासन की सम्पूर्ण शक्ति जनता में निहित होती हैं, शासन का मुख्य उद्देश्य जनता की सेवा होता हैं.

प्राचीन काल में विश्व के सभी देशों में राजतन्त्र की शासन व्यवस्था प्रचलन में थी. इस पद्दति के अनुसार जो राष्ट्र मजबूत होता कमजोर राष्ट्रों अथवा राज्यों को अपने अधीन कर लेता था.

राजतंत्र की सबसे बड़ी खामी यह थी, कि इसमें जनता की भागीदारी न के बराबर थी, जनता को किसी प्रकार के अधिकार प्राप्त नही थे.

जैसे जैसे समय बीतता गया, शासन व्यवस्था की नई पद्धतियाँ सामने आती गयी, आज विश्व के अधिकांश देशों में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था को अपनाया हुआ हैं, इसे प्रजातंत्र भी कहा जाता हैं. इस व्यवस्था में सता किसी एक व्यक्ति के पास न होकर उसकी ताकत जनता में निहित होती हैं.

लोकतंत्र का विकास (Development of democracy In Hindi)

यदि हम लोकतंत्र की विकास यात्रा पर नजर डाले तो यह अचानक बनने वाली व्यवस्था न होकर, इसके आधुनिक स्वरूप तक आते आते हजारो साल लग गये. मगर आज यह सबसे लोकप्रिय शासन के रूप में सभी देशों में अपनाई जा रही हैं.

भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश हैं. भारत में लोकतंत्र के इतिहास की जड़ खोजने का प्रयास करे तो तीसरी शताब्दी के मगध सम्राज्य के 16 महाजनपदों में से वैशाली नामक जनपद में सबसे पहले लोकतंत्र के निशान मिलते हैं.

मगर लोकतंत्र की जन्मस्थली यूरोप को ही माना जाता हैं, मध्यकाल में यहाँ धार्मिक जनजागरण, सुधार आन्दोलन तथा औद्योगिक क्रांति व राजतन्त्र के प्रति गुस्से के रूप में लोकतंत्र का जन्म हुआ. कई पश्चिमी देशों में राजाओं के शासन को समाप्त कर वहां पर प्रजातंत्र की स्थापना के प्रयत्न हुए.

लोकतंत्र का जन्म (history of democracy In Hindi)

यूरोप में मध्यकाल में हुई चार महत्वपूर्ण क्रांतियों के फलस्वरूप लोकतंत्र का जन्म हुआ. 1688 इंग्लैंड की गौरवपूर्ण क्रांति, 1776 अमेरिकी स्वतन्त्रता संग्राम, 1789 फ़्रांसिसी क्रांति तथा 19 वीं सदी की औद्योगिक क्रांति.

ब्रिटेन की गौरवपूर्ण क्रांति ने एक संसदीय शासन व्यवस्था की नीव डाल दी थी. वही अमेरिकी क्रांति के फलस्वरूप वहां पहली लोकतांत्रिक सरकार का गठन हो गया था.

फ़्रांस की क्रांति ने स्वतंत्रता, समानता तथा बन्धुत्व के त्रिस्तम्भ सिद्धांत आज भी लोकतंत्र के मुख्य सिद्धांत माने जाते हैं.

लोकतंत्र का अर्थ, परिभाषा व प्रकार (Meaning, definition and type of democracy In Hindi)

लोकतंत्र के मुख्य रूप से दो प्रकार माने जाते हैं. पहला प्रत्यक्ष लोकतंत्र एवं दूसरा अप्रत्यक्ष लोकतंत्र. इस प्रकार की शासन व्यवस्था जिसमें राज्य की शासन प्रणाली में सभी नागरिक प्रत्यक्ष रूप से शामिल हो उसे प्रत्यक्ष लोकतंत्र कहा जाता हैं.

इस प्रकार की पद्धति छोटे देश में कारगर हो सकती हैं, भारत जैसे देश में प्रत्यक्ष लोकतंत्र की कल्पना करना बेमानी हैं.

अप्रत्यक्ष लोकतंत्र शासन व्यवस्था में राजकार्यों में जनता द्वारा चुने गये प्रतिनिधि भाग लेते हैं. यह प्रणाली भी दो प्रकार की होती हैं अध्यक्षात्मक और संसदात्मक. भारत में संसदीय शासन प्रणाली का रूप चलन में हैं.

जिसमें जनता द्वारा चुने गये प्रतिनिधि संसद में जाते हैं. बहुमत के आधार पर सरकार व मंत्रिमंडल का निर्माण होता हैं. सरकार का मुख्या प्रधानमंत्री तथा राष्ट्राध्यक्ष राष्ट्रपति होता हैं, मगर उसके पास नामात्र की शक्ति होती हैं.

अमेरिकी में अध्यक्षात्मक लोकतंत्र हैं, जिसमें राष्ट्रपति ही सर्वेसर्वा होता हैं. तथा अन्य पदाधिकारी गौण होते हैं. विश्व के अधिकतर देशों में अप्रत्यक्ष लोकतंत्र प्रणाली स्वीकार की गईं, इस कारण इसे प्रजातन्त्रीय युग भी कहा जाता हैं.

लोकतंत्र और चुनाव (Democracy and elections In Hindi)

प्रजातंत्र में सरकार के तीन अंग होते हैं, कार्यपालिका, न्यायपालिका तथा व्यवस्थापिका. न्यायपालिका देश में न्याय व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने का कार्य करती हैं. व्यवस्थापिका कानूनों का निर्माण करती हैं. कार्यपालिका विधायिका द्वारा निर्मित कानूनों को सुचारू रूप से चलाने का उत्तरदायित्व अदा करती हैं.

लोकतंत्र के अनेक लाभ हैं. इस प्रणाली में राज्य की अपेक्षा व्यक्ति को अधिक महत्व दिया जाता हैं. राज्य द्वारा प्रत्येक व्यक्ति को अपना समुचित विकास करने के अवसर मुहैया करवाए जाते हैं.

जिस तरह व्यक्ति एवं समाज एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, उसी तर्ज पर जनता तथा जनतंत्र का गहरा संबंध हैं, जिन्हें अलग करके नहीं देखा जा सकता हैं.

एक तरफ जहाँ लोकतंत्र के कई लाभ हैं, वही हानियाँ भी है. अशिक्षित लोगो के लिए इस शासन व्यवस्था में भी किसी तरह का हित नही हैं. पढ़े लिखे लोग ही अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहते हैं.

अशिक्षित लोगों को धर्म, भाष,क्षेत्र तथा लालच के आधार पर फुसलाकर वोट खरीद लिए जाते हैं. इस शासन व्यवस्था में कई अपराधी, भ्रष्टाचारी भी बैठे हैं.

जो पैसे के दम पर चुनाव जीत लेते हैं. जब तक जनता जागृत न होगी तथा उन्हें अपने अधिकारों का ज्ञान नहीं होगा. इस व्यवस्था में अपनी भागीदारी नही निभा पाएगे.

आलोचक लोकतंत्र को मूर्खों का शासन भी कहते हैं, इसकी वजह इसमें उम्मीदवार की योग्यता न देखकर उनकों बहुमत के आधार पर चुना जाता हैं. इसमें यह आवश्यक नहीं हैं, कि जनता द्वारा चुना गया प्रतिनिधि योग्य एवं ईमानदार हो.

दूसरी स्थति में जनता स्वयं शासन न करते अपने प्रतिनिधियों को चुनती हैं. जनप्रतिनिधियों द्वारा जनता की आकाक्षा पर खरा न उतरने की स्थति में जनता व राज्य का हित दूर की बात हो जाती हैं.

लोकतांत्रिक सरकार की विशेषताएं Features of Democratic Government in Hindi

विश्व की दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. यहाँ जनता के द्वारा चुने गये प्रतिनिधियों द्वारा सरकार का गठन होता है.

यह तब तक सता में रहती है. जब तक जनता का उन्हें समर्थन प्राप्त होता है. हर पांच साल के बाद भारत में लोकसभा व विधानसभा के लिए चुनाव करवाएं जाते है.

स्वतंत्रता के पश्चात भारत ने लोकतांत्रिक सरकार का रास्ता चुना, ताकि सरकार में जनता की भागीदारी सुनिश्चित की जा सके. अब हम लोकतांत्रिक सरकार की विशेषताओं पर चर्चा करेगे.

प्रतिनिध्यात्म्क लोकतंत्र– जनता वोट देकर अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करती है. वार्ड पंच, सरपंच, प्रधान, जिला प्रमुख, शहर के पार्षद व मेयर, विधायक और सांसद जनता के प्रतिनिधि होते है.

जो विभिन्न स्तरों पर जनता की ओर से सरकार के संचालन में भागीदारी करते है. इस प्रकार जनता सरकार के कार्यों में अपनी भागीदारी निभाती है.

समानता व न्याय– लोकतांत्रिक सरकार न्याय एवं समानता के आधार पर कार्य करती है. न्याय तभी प्राप्त हो सकता है, जब सभी लोगों के साथ बराबरी का व्यवहार हो. सरकार उन समूहों के लिए विशेष प्रावधान करती है, जो समाज में बराबर नही माने जा रहे है.

जैसे हमारे समाज में लोग लड़को के पालन पोषण पर लड़की से ज्यादा ध्यान देते है. समाज लडकियों को उतना महत्व नही देता, जितना लड़कों को देता है.

इस भेदभाव को दूर करने के लिए सरकार ने कुछ विशेष प्रावधान किये है. ताकि लड़कियाँ समाज में बराबरी पर आ सके. इसी प्रकार समाज में कुछ वंचित और पिछड़े वर्गों के समूह है. जिनकें उत्थान के लिए विशेष प्रावधान किये गये है.

सरकार का चुनाव 18 वर्ष की आयु पूरी कर चुके देश के सभी वयस्क नागरिक समानता के आधार पर वोट करते है. जनता को एक व्यक्ति, एक वोट, एक मोल के आधार पर सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार प्राप्त है.

जागरूकता व जवाबदेही– लोकतांत्रिक सर्कार की जनता के प्रति जवाबदेही होती है, क्योंकि लोकतंत्र में जनता ही सरकार को चुनती है. देश में जनता को सूचना का अधिकार दिया गया है.

इस कानून के अनुसार कोई भी व्यक्ति सरकार की नीतियों, उनके कार्यों और आय व्यय के हिसाब की सुचना मांग सकता है. इससे सरकार के कार्यों में पारदर्शिता बढ़ी है और भ्रष्टाचार पर रोक लगी है. साथ ही सरकार एवं लोगों के बिच की दूरी कम हुई है.

समाचार पत्रों, रेडियों, टेलीविजन और इंटरनेट सेवा युक्त कम्प्यूटर जैसे संचार के माध्यमों से मिली सूचनाओं के आधार पर देश के लोग विभिन्न विषयों पर आपस में विचार विमर्श कर सरकार के कार्यों के बारे में अपनी राय बनाते है.

लोककल्याण– लोकतांत्रिक सरकार जनता के लिए होती है. सरकार जनता के कल्याण के लिए कार्य करती है. वह ऐसे कार्यक्रम व योजनाएं चलाती है, जिनसें सभी लोगों का कल्याण हो.

गरीब, कमजोर और पिछड़े लोगों के लिए विशेष प्रयास किये जा रहे है. सरकारी विद्यालयों में मध्यावधि भोजन की व्यवस्था, महात्मा गांधी नरेगा योजना के जरिये रोजगार देना, निशुल्क दवा योजना आदि सरकार के लोक कल्याणकारी कार्यक्रम है

विवादों का समाधान– भारत विविधताओं का देश है. कभी कभी विविधताओं से विवाद की स्थति पैदा हो जाती है. जनता के विवादों और समस्याओं का समाधान करने की जिम्मेदारी सरकार की होती है.

सरकार शांतिपूर्ण तरीके से कानून के माध्यम से विवादों के समाधान का प्रयास करती है. लोकतंत्र में सरकार विवादों का समाधान करने में जनमत का सम्मान करती है.

समाज से ही सरकार का गठन होता है. सरकार और समाज में घनिष्ठ सम्बन्ध होता है. लोकतांत्रिक सरकार व्यक्ति के विकास और उसके जीवन को बेहतर बनाने का अवसर प्रदान करती है.

लोकतंत्र पर दीर्घ निबंध long essay on democracy For school kids & students in hindi

लोकतंत्र शब्द का उपयोग आज हम जिस राजनैतिक अवधारणा हेतु कर रहे हैं, उस अवधारणा का मूल हमे ग्रीस में मिलता हैं, ग्रीस में इसके लिए प्रयुक्त शब्द था डेमोक्रेसी जिसका आशय होता हैं डेमो यानी जनता द्वारा शासन. यहाँ जनता का अर्थ हैं किसी राष्ट्र अथवा क्षेत्र या कबीले की कुल जनसंख्या, विशेषकर वयस्क जनसंख्या.

कुल जनसंख्या एक तरह से पर्सनल यूनिट के रूप में एक संस्थागत स्वरूप धारण करती हैं यानी लोकतंत्र में हर एक प्रजा एक सिविल यूनिट की तरह स्वीकृत होती हैं.

हम जानते हैं कि कोई भी दो इन्सान कभी भी भौतिक या प्राकृतिक रूप में एक नहीं हो सकते हैं, क्योंकि दोनों की फिजिकल, मैटली बनावट के साथ ही जरूरते और इच्छाएं भी अलग अलग होती हैं.

जाहिर है उनका नजरिया, मान्यताएं, विश्वास और व्यवहार भी एक जैसे नहीं हो सकते, मगर जनता के द्वारा शासन की थ्यौरी एवं व्यवहार सभी जगह दृष्टिगत होता हैं.

व्यवहारिक रूप में जनता से हमारा अर्थ होता हैं मेजोरिटी पीपल यानी बहुसंख्यक आबादी, ऐसे में लोकतंत्र में बहुमत से जो निर्णय लिया जाता हैं उनका सभी द्वारा पालन किया जाता हैं. परन्तु इसका मतलब यह नहीं है कि मेजोरिटी जो चाहे वह मायनोरिटी पर लाद दे.

बल्कि लोकतंत्र का उद्देश्य अल्पसंख्यकों के लिए संरक्षण देना, उनको साथ लेकर राजनैतिक व्यवस्था को अधिक प्रभावी बनाना हैं. अल्पसंख्यक जनसंख्या की भावना और उनके विश्वास का सम्मान करना लोकतंत्र का मुख्य बिंदु हैं. वैसे इसके सैद्धांतिक एवं व्यवहारिक पह्लूओ में आपकी मतभेद की गुंजाइश बनी रहती हैं.

विरोध को सदैव नेगेटिव रूप में नहीं लेना चाहिए बल्कि यह आज की व्यवस्था, संस्था और प्रणाली के बेहतर विकल्प को सुझाने या उपलब्ध करवाने में अहम भूमिका अदा करता हैं.

सोवियत रूस के पूर्व राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन ने कहा था एक समय सोवियत के प्रभावी और सुद्रढ़ समाजवादी ढाँचे से निकले विरोध और मतभेद सामने आए और उन्ही की बदौलत एक बेहतर विकल्प के रूप में मान्य भी हुए.

किसी भी हेल्दी और प्रोग्रेसिव डेमोक्रेसी में अल्पसंख्यक वर्ग की भावना का पूरा पूरा ख्याल रखा जाता हैं, भले ही निर्णय बहुसंख्यक तबके द्वारा लिए जाते हो. बहस और विवाद इनवायरमेंट में ताजगी लाते हैं, और दोनों पक्षों को समान बिन्दुओं पर लाने में भी सक्षम होते हैं.

अगर असहमति के पोजिटिव पहलुओं को भी दबा भी लिया जाए तो उसका परिणाम असंतोष एवं क्रोध के रूप में सामने आता हैं और ये कभी कभी वर्तमान राजनैतिक व्यवस्था के प्रति विद्रोह की शुरुआत कर देता हैं.

इसके परिणाम बड़ी क्रांति, खून खराबे, हिंसा या विध्वंस किसी भी रूप में सामने आ सकता हैं. यही वजह है कि असहमतियों के प्रति सहानुभूति के भाव की आवश्यकता हैं जो कि लोकतंत्र के मूल्यों में निहित हैं.

वैसे किसी भी चीज की अति का नतीजा भी बुरा ही होता हैं यह बात प्रतिरोध पर भी लागू होती हैं जो चाहे लोकतंत्र के प्रति हो या अन्य किसी व्यवस्था के प्रति. ऐसे में सदैव विरोध का दायरा निश्चित किये जाने की बात भी की जाती हैं. जो कुछ हद तक ठीक भी हैं.

लोकतंत्र में नागरिकों को कई प्रकार की स्वतंत्रताए मिलती हैं जिनमें धन कमाने, राजनैतिक, धार्मिक, किसी तरह की आस्था, अभिव्यक्ति, समूह आदि बनाने की फ्रीडम शामिल हैं. इस तरह की व्यक्तिगत और सामूहिक फ्रीडम का आशय यह भी नहीं है कि दूसरे व्यक्ति या समूह के हितों का हनन किया जाएं.

जैसे फासीवाद की विरोधी नीति या वैकल्पिक व्यवस्था के रूप में स्थापित करने के प्रयत्न के नाम पर छुट दे देना भी कही से भी ठीक नहीं हैं. भले ही ऐसी मांग करने वाले लोगों की तादाद ज्यादा हो और अच्छे रसूक रखने वाले लोग भी उनके साथ क्यों न खड़े हो.

क्योंकि इस तरह की असहमतियां अपना मानवीय धरातल भी खो चुकी होती हैं. क्योंकि लोकतंत्र जनता के लिए हैं अगर कोई चीज जनता के हितों के खिलाफ जाती हैं तो उसकी लोकतांत्रिक धरातल स्वतः खत्म हो जाएगी.

लोकतंत्र के दुखद पहलूओं में एक यह भी है कि जो लोकतांत्रिक सुविधाओं का सर्वाधिक उपभोग करते हैं वे ही अपने हित के खिलाफ कुछ भी होने पर सिस्टम के खिलाफ सबसे अधिक मुखर होकर विरोध करते हैं.

राजनीति के क्षेत्र में प्रतिरोध के दो स्तर देखे जाते हैं एक अंतर्दलीय और दूसरा अतः दलीय. अंतद्रलीय असहमतियों में ख़ास बात यह होती है यद्यपि पार्टी अथवा दल के सभी सदस्य दलीय सिद्धांतों एवं अनुशासन के प्रति पूरी आस्था रखते हैं तथापि दल के प्रति आपत्ति होती हैं. इस विरोध का यथोचित समाधान या सम्मान टॉप लीडरशिप को ही करना पड़ता हैं, अन्यथा जनता में उनकी इमेज डिक्टेटर की हो जाती हैं.

इसके साथ ही यहाँ असहमती रखने वाले से यह भी उम्मीद की जाती हैं वे अपनी शिकायतें केवल दल के मंच या भीतरी खाने तक ही रखे, बाहर नहीं. अन्यथा पार्टी की इमेज पर गलत प्रभाव पड़ता हैं और पार्टी के अनुशासन पर भी नकारात्मक असर पड़ता हैं.

इस प्रकार लोकतंत्र में विभिन्न एवं विरोधी विचारों वाले दलों को बनाने और गतिविधियों के लिए आजादी होती हैं. अगर एक मजबूत पार्टी कमजोर का दमन करने लग जाए तो एक समय ऐसा आएगा जब बहुदलीय व्यवस्था समाप्त हो जाएगी और फिर से तानशाही का दौर आ जाएगा.

भारत में जब जब किसी राजनैतिक पार्टी ने असहमति की भावना को नजरअंदाज किया हैं चाहे वो आवाज पार्टी के भीतर से उठी हो या बाहर से, परिणाम के रूप में उस दल का विभाजन ही हुआ हैं अथवा जनता ने उन्हें सत्ता से बेदखल ही किया हैं.

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अब तक चार बार विभाजन हो चूका हैं ऐसा पार्टी के नेतृत्व के स्वेच्छाकारी हो जाने की स्थिति में तथा पार्टी के भीतर की असहमतियों की आवाज पर ध्यान न देने का नतीजा था.

भारतीय जनता पार्टी, कम्युनिस्ट पार्टियाँ एवं अन्य दल विरोधी लक्ष्यों एवं विचारों के बावजूद अपना अस्तित्व बचा सके हैं यह इस बात का प्रमाण हैं कि भारतीय लोकतंत्र में प्रतिरोधों के प्रति स्वस्थ और सम्मानजनक दृष्टिकोण पर्याप्त मात्रा में हैं.

लोकतंत्र में नागरिकों को जीविकापार्जन के लिए कारोबार करने की स्वतंत्रता हैं इसके फलस्वरूप कई तरह के बिजनैस यहाँ प्रचलित हैं. यहाँ भी ढाचागत आर्थिक निति को लेकर कई तरह के मत मतान्तर हो सकते हैं.

उदाहरण के लिए, कुछ उदारीकरण का समर्थन कर सकते हैं कुछ पूंजीवाद का तो कुछ अन्य विचारधारा का. जबकि अन्य राष्टीयकरण समाजवादी नजरिये का समर्थन कर सकते हैं.

कम से कम सभी तरह की सलाह और धुर विरोधी अपेक्षाओं को सुनना और उन पर विचार करना लोकतांत्रिक सरकार से अपेक्षित होता हैं. भले ही उन्हें लागू करने की स्थिति में हो अथवा नहीं.

यह विरोधी मतवादों के प्रति सम्मान व्यक्त करना ही होता हैं, जब कोई मंत्री या किसी ऑफिस का प्रवक्ता नीतिगत स्पष्टीकरण देता है या सुझावों के मद्देनजर कोई भरोसा देता हैं या नीतिगत परिवर्तन की घोषणा करता हैं.

लोकतांत्रिक समाज में कोई वर्ग अथवा समूह की संरचना और उसके स्वरूप में बहुसंख्यक से भिन्न हो सकता हैं. मगर इस कारण बहुसंख्यक को अल्पसंख्यक की उस स्थिति में परिवर्तन के लिए दखल देने का कोई अधिकार प्राप्त नहीं हो जाता हैं.

जैसा कि मानव स्वभाव हैं अलग अलग बैकग्राउंड के समूह के लोग अपने तरीके और मूल्यों के साथ रहना पसंद करते हैं और वे उसी में ही स्वयं को सुखदायी समझते हैं.

ऐसे में किसी तथाकथित समतामूलक समाज की व्यवस्था के प्रयास के तहत उन लोगों की लाइफ स्टाइल में दखल विधिक नहीं होगा, क्या केरल और पूर्वोत्तर के कुछ मातृसत्तात्मक समूहों पर पितृसत्तात्मक बनाने के लिए प्रेशर डालना सही होगा.

सिर्फ इस आधार पर कि उनकी मान्यता मुख्य धारा के अनुरूप नहीं हैं. फिर लोकतंत्र का महत्व ही क्या रह जाएगा, जब कोई सोशियल ग्रुप अपनी मान्यताएं किसी दूसरे समूह पर आरोपित करने के प्रयत्न करेगा. हमारी संस्कृति भी तो जीयो और जीने दो के आधारभूत सिद्धांत की बात करती हैं.

संसार के लगभग प्रत्येक हिस्से में कल्चरल डायवर्सिटी की स्थिति है भारत इसका अपवाद नहीं हैं. भारत में धार्मिक मान्यता, रीती रिवाज, पहनावा, खान पान भाषा नृत्य समेत अनेक चीजों में विभिन्नताएं हैं.

कुछ विशेष क्षेत्रों की संस्कृति अन्य क्षेत्रों के लिए विचित्र या हास्यास्पद भी हो सकती हैं. मगर इस कारण उसका उपहास लोकतांत्रिक मूल्यों का अपमान हैं.

नागालैंड और मेघालय के नागाओं और जैयनतियों को अपनी संस्कृति से सम्भवत शेष भारत की तुलना में अधिक लगाव हैं. इसी तरह मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरूद्वारे से जुड़े धर्मों के लिए भी समान महत्व रखते हैं. एक की कीमत पर दूसरे का ध्वंस कही से भी उचित नहीं ठहराया जा सकता हैं.

इस प्रकार, लोकतंत्र में सकारात्मक प्रतिरोधों का सदैव सम्मान किया जाना चाहिए, परन्तु प्रतिरोधी विचारों पर भी अपने विचार थोपने का प्रयास नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि ऐसा प्रयास भी एक तरह की वैचारिक हिंसा हैं जिससे लोकतांत्रिक मूल्यों को हानि पहुचती हैं.

चूँकि लोकतंत्र में जनता अपनी भावनाओं और अपेक्षाओं को तर्कों के आधार पर स्थापित करती हैं इसलिए स्थापित मानदंड के साथ ही साथ विरोधी मानदडो के प्रति भी सहानुभूतिपूर्वक व्यवहार करना अपेक्षित हैं ताकि व्यवस्था स्वेच्छाकारी या अप्रगतिशील प्रवृत्तियों घर न कर जाएं.

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