दुर्गा पूजा पर निबंध 2023 भाषण Essay on Durga Puja in Hindi

दुर्गा पूजा पर निबंध 2023 भाषण Essay on Durga Puja in Hindi: आपकों और आपके समस्त परिवार को Durga Puja 2023 की हार्दिक शुभकामनाएं. 20 से 24 अक्टूबर 2023 को भारत में दुर्गा पूजा का उत्सव धूम धाम के साथ मनाया जाएगा.

आज के इस दुर्गापूजा के लिए हिंदी निबंध, दुर्गा पूजा एस्से में हम हिन्दुओं के मुख्य त्योहार दुर्गा पूजा के इतिहास, मनाने का कारण इससे जुड़ी कथाएँ प्रस्तुत कर रहे हैं.

यदि आप विद्यार्थियों के लिए Durga Puja Essay की सर्च कर रहे हैं तो कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10 के स्टूडेंट्स के लिए सरल भाषा में दुर्गा पूजा निबंध 100, 200, 300, 400, 500 शब्दों में यहाँ दिया जा रहा हैं.

दुर्गा पूजा पर निबंध 2023 भाषण Essay on Durga Puja in Hindi

दुर्गा पूजा पर निबंध 2023 भाषण Essay on Durga Puja in Hindi

दुर्गा पूजा का महत्व (Importance of Durga Puja)

भारत को त्योहारों का देश कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी. यहाँ अनेक जातियों व धर्मों के लोग निवास करते हैं. और सबके अपने अपने त्योहार हैं. किन्तु दुर्गापूजा हिन्दुओं का ऐसा त्योहार हैं जिसकी धूम पुरे दस दिन तक रहती हैं.

और इन दस दिनों के दौरान भारत भक्ति रस में डूबा नजर आता हैं. हर पर्व या त्यौहार का प्रत्येक जीवन में महत्वपूर्ण स्थान हैं. क्योंकि इनसे न केवल आनन्द की प्राप्ति होती हैं.

जीवन में उत्साह व नवऊर्जा का संचार भी होता हैं. दुर्गापूजा भी एक ऐसा ही त्योहार हैं जो हमारे जीवन में उत्साह और ऊर्जा का संचार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा हैं.

दुर्गा पूजा का त्योहार कब है (When is the festival of Durga Puja)

दुर्गा पूजा त्योहार वैसे तो साल में दो बार आता हैं. एक बार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष में जिसे वासन्तिक नवरात्र कहा जाता हैं एवं दूसरी बार आश्विन माह के शुक्ल पक्ष में जिसे शारदीय नवरात्र कहा जाता हैं.

किन्तु इन दोनों में शारदीय नवरात्र का बड़ा महत्व हैं. और इसे अधिक धूमधाम के साथ मनाया जाता हैं. यह हिन्दू समाज का एक महत्वपूर्ण त्योहार हैं.

जिसका धार्मिक आध्यात्मिक नैतिक व सांसारिक महत्व हैं. भक्तजन इस अवसर पर दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करते हैं. अतः इसे नवरात्र के नाम से जाना जाता हैं.

दुर्गा पूजा की कथा कहानी (Story of Durga Puja)

दुर्गा पूजा का सम्बन्ध एक पौराणिक कथा से हैं, जिसके अनुसार देवताओं के राजा इंद्र व दैत्यों के राजा महिषासुर के बिच भयंकर युद्ध छिड़ गया था. इस युद्ध में देवराज इंद्र की पराजय हुई और महिषासुर इन्द्रलोक का स्वामी बन बैठा.

तब देवतागण ब्रह्माजी के नेतृत्व में विष्णु जी व शिवजी की शरण में गये. देवताओं की बाते सुनकर विष्णु तथा शंकर क्रोधित हो उठे. फलस्वरूप उनके शरीर से एक पुंज निकलने लगा, जिससे समस्त दिशाएं जलने लगी.

यही पुंज अंत में देवी दुर्गा के रूप में परिवर्तित हो गया. सभी देवताओं ने देवी की आराधना की और उनसे महिषासुर का नाश करने का निवेदन किया. सभी देवताओं से आयुध व शक्ति प्राप्त कर देवी दुर्गा ने महिषासुर को युद्ध में पराजित कर उसका बढ़ कर दिया. इसी कारण उन्हें महिषासुरमर्दिनी भी कहा जाता हैं.

दुर्गा पूजा पाठ पूजा विधि के बारे में  (how to do durga puja)

शारदीय नवरात्र यानी दुर्गापूजा का आरम्भ आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से ही हो जाता हैं. इस दिन कलश की स्थापना की जाति हैं. इसके बाद देवी दुर्गा की प्रतिमा पूजा स्थल के मध्य स्थापित की जाती हैं.

दुर्गा की मूर्ति के दाई और महालक्ष्मी, गणेश और विजया नामक योगिनी की और बायीं और कार्तिकेय, देवी महासरस्वती तथा जया नामक योगिनियों की प्रतिमा रहती हैं.

चूँकि भगवान शंकर की पूजा के बिना कोई भी पूजा अधूरी मानी जाती हैं. अतः उनकी पूजा भी की जाती हैं. इस तरह नौ दिनों तक देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती हैं.

किन्तु नवमी तक चलने वाले इस महापूजन की वास्तविक धूमधाम की शुरुआत षष्ठी के दिन प्राण प्रतिष्ठा के साथ शुरू होती हैं. बंगाल में षष्ठी के दिन प्राण प्रतिष्ठा के दिन इस विधान को बोधन अर्थात् आरम्भ कहा जाता हैं. इसी दिन माता के मुख से आवरण हटाया जाता हैं.

दुर्गा पूजा पर निबंध लेखन हिंदी इंग्लिश संस्कृत में (Essay on Durga Puja)

नौ दिनों तक दुर्गा पूजा के बाद दशमी तिथि के दिन शाम को प्रतिमा का विसर्जन कर दिया जाता हैं. इस दिन को विजयादशमी या दशहरा के रूप मनाया जाता हैं. दशमी को विजयादशमी के रूप में मनाने के पीछे एक पौराणिक कथा है.

भगवान् राम ने रावण पर विजय पाने के लिए देवी दुर्गा की पूजा की थी. इसलिए इस दिन को लोग शक्ति पूजा के रूप में भी मनाते हैं. एवं अस्त्र शस्त्र की पूजा करते हैं. अन्तः राम इसी दिन देवी दुर्गा के आशीर्वाद से रावण पर विजय पाने में सफल रहे थे.

तब से इस दिन को विजयादशमी के रूप में मनाया जाता हैं और बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक स्वरूप रावण, कुम्भकर्ण एवं मेघनाद के पुतलों का दहन किया जाता हैं.

कहीं कहीं इस दिन शमी वृक्ष की पूजा की जाती हैं. बंगाल की दुर्गापूजा पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं. दुर्गापूजा के दौरान बंगाल खुबसूरत पंडालों एवं दुर्गा की प्रतिमाओं से सज जाता हैं.

दुर्गा पूजा मनाने का कारण (why durga puja is celebrated)

भारत में हर त्योहार को मनाने के पीछे एक सामाजिक कारण होता हैं. दुर्गापूजा को मनाने के पीछे एक सामाजिक कारण हैं. भारत एक कृषि प्रधान देश हैं. आश्विन महीने के शुक्ल पक्ष तक किसान खरीफ की फसल काटकर उसका उचित मूल्य प्राप्त कर चुके होते हैं.

इसके बाद अगली फसल के बोने तक उनके पास पर्याप्त समय होता हैं. इस समय को त्योहार के रूप से मनाने से उनके जीवन में उत्साह एवं नवऊर्जा का संचार होता हैं. और इसकी समाप्ति तक वे पुनः परिश्रम करने के लिए उर्जावान हो जाते हैं.

दुर्गा पूजा पर निबंध 2023 भाषण 2

हमेशा से भारत को त्योहारों का देश माना गया है. यहाँ विभिन्न जातियों और धर्मो के लोग एक साथ रहते है, ऐसा दुनिया के किसी अन्य राष्ट्र में देखने को नही मिलता है.

सभी पंथो धर्मो के अपने अपने पर्व त्यौहार है. अधिकतर तीज त्यौहार एक या दो दिन चलते है. मगर दुर्गा पूजा जो पश्चिम बंगाल में सर्वाधिक लोकप्रिय है, दस दिन तक चलने वाला त्यौहार है.

माँ दुर्गा को हिन्दू धर्म में शक्ति की देवी कहा जाता है. सभी देवों में श्रेष्ट दुर्गा को समर्पित दुर्गा पूजा के ये 10 दिन प्रत्येक इंसान के जीवन में महत्वपूर्ण होते है.

व्यस्त दिनचर्या से निकलकर इंसान को दुर्गा पूजा के मौके पर अपने मित्रों रिश्तेदारों से मिलने तथा जीवन में नई उर्जा उत्पन्न करने में इसका महत्वपूर्ण स्थान है.

दुर्गा पूजा कब है (When is Durga Puja )

एक साल में दो बार नवरात्र आते है,पहले चैत्र महीने में और दुसरे आश्विन माह में. चैत्र महीने के नवरात्र को वासन्तिक नवरात्र कहा जाता है, जबकि आश्विन माह के नवरात्र को शारदीय नवरात्र कहा जाता है. इस साल वर्ष 2023 में दुर्गा पूजा का त्यौहार 20 अक्टूबर से 24 अक्टूबर तक पश्चिम बंगाल सहित पुरे देश में श्रद्धा भाव से मनाया जाता है.

नौ दिनों तक चलने वाले इन नवरात्र में माँ दुर्गा के नौ रूपों की विधिवत पूजा की जाती है. दुर्गा पूजा यानि शारदीय नवरात्र आश्विन महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होकर नवमी तक होते है. प्रतिपदा के दिन इसकी स्थापना होती है नौ दिनों के बाद इसका बड़ा आयोजन होता है.

दुर्गा पूजा का महत्व (Significance/Importance)

यह हिन्दू धर्मं का महत्वपूर्ण त्यौहार है. जिनका बड़ा धार्मिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक एवं सांसारिक महत्व है. माँ काली (दुर्गा) के भक्त इस दिन दुर्गा पूजा करते है. इस दिन भक्तजन व्रत रखते है तथा देवी के नाम अखंड ज्योति जलाते है.

जिस तरह हर त्यौहार को मनाने का धार्मिक तथा सामाजिक महत्व होता है. उसी प्रकार दुर्गा पूजा का भी अपना सांस्कृतिक महत्व है.

चूँकि हमारा देश एक कृषि प्रदान देश है, यहाँ के अधिकतर लोग खेती का व्यवसाय करते है. आश्विन महीने तक लगभग खरीफ की फसल काट ली जाती है. तथा अगली खेती की सीजन से पूर्व लोगों के पास खाली वक्त रहता है. साथ ही ख़ुशी तथा उल्लास का यह पर्व लोगों में नया उत्साह भर देता है.

दुर्गा पूजा कथा (durga puja Katha)

इस त्यौहार को मनाने के पीछे एक धार्मिक कथा जुड़ी हुई है. जिसके अनुसार महिषासुर और देवराज इंद्र के बिच युद्ध हुआ था. जिसमे देवराज को पराजित होना पड़ा था, तथा उनकी जगह महिषासुर ने इंद्र लोक पर अपना आधिपत्य जमा लिया था. ब्रह्माजी के नेतृत्व में सभी देव सहायता के लिए शिवजी के पास गये.

शिवजी देवताओं की कायरता पूर्ण बाते सुनकर क्रोधित हो गये, तथा उनके शरीर से अग्नि सभी दिशाए जलने लगी. तथा यही से शिवजी के तेज का एक पुंज माँ दुर्गा के रूप में परिवर्तित हो गया.

तब सभी देव जनों ने माँ दुर्गा की शरण ली और महिषासुर नामक दानव को समाप्त करने की याचना की. देवो की बात सुनकर देवी दुर्गा ने स्वय महिषासुर से युद्ध किया और उसे समाप्त कर डाला.

पूजा विधि (durga puja vidhi )

दुर्गा पूजा की शुरुआत शारदीय नवरात्र की प्रतिपदा तिथि से ही हो जाता है. इस दिन कलश की स्थापना के साथ ही देवी की मूर्ति मन्दिर या प्रतिष्ठान के मध्य में स्थापित की जाती है.

माँ दुर्गा के साथ जया, सरस्वती, कार्तिकेय, लक्ष्मी, शिव तथा गणेश जी की मुर्तिया भी लगाईं जाती है. अगले नौ दिनों तक दुर्गा के नौ रूपों शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी तथा सिद्धिदात्री की पूजा भी की जाती है.

इन दुर्गा पूजा के नौ दिनों में छटवां दिन यानि षष्टी का दिन बड़ा महत्वपूर्ण होता है. इस दिन दुर्गापूजा की प्राण प्रतिष्ठा की शुरुआत हो जाती है. जिन्हें बंगाली भाषा में बोधन भी कहा जाता है. अब तक दुर्गा समेत सभी देवी देवताओं की मूर्तियों पर कपड़े का आवरण रहता है जो इस दिन ही हटाया जाता है.

 दूर्गा पूजा 2023 मनाने का तरीका (durga puja in hindi)

लगातार नौ दिन के नवरात्र के बाद दशमी तिथि को दुर्गापूजा का विसर्जन किया जाता है. इस दिन को देशभर में विजयादशमी यानि दशहरे का पर्व भी मनाया जाता है.

रामायण के अनुसार भगवान् श्री राम जी ने रावण को युद्ध में परास्त करने के लिए इन्ही शारदीय नवरात्र में माँ दुर्गा की नौ दिन तक पूजा की थी. परिणामस्वरूप दशमी के दिन उन्होंने रावण को मार गिराया था.

(Essay On Durga Puja In Hindi)

इसलिए इस दिन लोग शक्ति पूजन दिवस के रूप में दशहरे के दिन अस्त्र-शस्त्र का पूजन भी करते है. बुराई पर अच्छाई, असत्य पर सत्य की विजय के प्रतीक के रूप में दशहरे के त्यौहार में रावण मेघनाद और कुम्भकर्ण के पुतले जलाए जाते है.

इन शारदीय नवरात्रों के दौरान गुजरात तथा इसके आस-पास के क्षेत्रों में गरबा नृत्य खेला जाता है.नवरात्री में दुर्गा के नव रूपों की पूजा के साथ-साथ जगह जगह पर रामलीलाओ का भी आयोजन होता है.

विजयादशमी के दिन देशभर में हर्ष और उल्लास का माहौल रहता है. बंगाल में दुर्गा पूजा का आयोजन इसी दिन होता है, जिनमे माँ दुर्गा की मूर्तियों से बाजार सजा रहता है.

संदेश

हर साल बंगाल व देशभर में दुर्गा पूजा के त्यौहार को अनीति अत्याचार और सभी प्रकार की बुरी मानवीय प्रवृतियों के नाश के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है. हमारी संस्कृति ने नारी को पूजनीय मानकर सम्मानजनक स्थान प्रदान किया है. मगर आज के परिद्रश्य में हमे आज के हालत देखकर शर्म महसूस होती है.

आज महिषासुर जैसे हजारों राक्षस है, जो नारी शक्ति की प्रगति उन्नति के राह में रोड़ा बने हुए है. दुर्गा पूजा के अवसर पर हमे यह संकल्प करना चाहिए कि हम अपने व्यावहरिक जीवन में भी नारी शक्ति को उच्च सम्मान प्रदान करेगे. तभी सही मायनों में दुर्गा पूजा जैसे पर्वो का मनाना सार्थक सिद्ध होगा.

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