ऊर्जा संकट पर निबंध | Essay On Energy Crisis And Its Possible Solutions In Hindi

ऊर्जा संकट पर निबंध Essay On Energy Crisis And Its Possible Solutions In Hindi ऊर्जा के स्रोत निरंतर सिमटते जा रहे हैं. वह दिन दूर नहीं जब संसार ऊर्जा संकट से घिर जाएगा.

Essay on energy crisis in hindi में इस ऊर्जा संकट के निबंध में जानेगे कि ऊर्जा संकट क्या हैं अर्थ तात्पर्य, प्रभाव तथा इससे  निपटने   के उपायों पर भी चर्चा करेगे.

Essay On Energy Crisis Solutions In Hindi ऊर्जा संकट पर निबंध

Essay On Energy Crisis Solutions In Hindi ऊर्जा संकट पर निबंध

ऊर्जा संकट पर निबंध

विश्व के सभी देश आज विकास के पथ पर सबसे आगे निकल जाने को बेताब हैं. इसके लिए वे औद्योगिकीकरण से लेकर प्राकृतिक संसाधनों के दोहन तक के हर संभव असम्भव उपाय कर रहे हैं.

हम जानते हैं कि विकास के लिए ऊर्जा के प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग करना पड़ता हैं. पिछ्ली शताब्दी में ऊर्जा के प्राकृतिक संसाधनों का बहुत दोहन हुआ हैं. जिस तरह इसका वर्तमान में दोहन हो रहा हैं.

इसी तरह आगे भी होता रहा तो 2050 ई के बाद पृथ्वी पर इन संसाधनो का अभाव हो जाएगा. ऊर्जा के संसाधनों के अभाव की यह स्थिति ऊर्जा संकट कहलाती हैं.

ऊर्जा संकट को ठीक से समझने के लिए हमें सबसे पहले यह जानना होगा की ऊर्जा क्या हैं? ऊर्जा वह शक्ति हैं जिसकी सहायता से कोई क्रिया सम्पन्न की जाती हैं.

मनुष्य को कार्य करने के लिए ऊर्जा भोजन से मिलती हैं हम अपने दैनिक जीवन  वैज्ञानिक यंत्रों का प्रयोग करते हैं. इन वैज्ञानिक यंत्रों को चलाने के लिए हमें खनिज तेल और विद्युत् की आवश्यकता होती हैं.

इस तरह वैज्ञानिक यंत्रों के ऊर्जा का स्रोत खनिज तेल या विद्युत् होता हैं. जिन संसाधनों से हमें ऊर्जा प्राप्त होती हैं उन्हें हम ऊर्जा के स्रोत कहते हैं.

कोयला, खनिज तेल, प्राकृतिक गैस, सूर्य, पवन, जल इत्यादि ऊर्जा के विभिन्न स्रोत हैं. कोयला, खनिज तेल, प्राकृतिक गैस इत्यादि का प्रयोग सदियों से हो रहा हैं.

इन्हें ऊर्जा के परम्परागत स्रोत कहा जाता हैं. ऊर्जा के ये परम्परागत स्रोत सिमित हैं. इन्हें जीवाश्म इंधन भी कहा जाता हैं. इन्हें प्राकृतिक रूप से निर्मित होने में लाखों वर्ष का समय लग जाता हैं.

जिस अनुपात में औद्योगिकीकरण में वृद्धि हो रही हैं. उससे यह अनुमान लगाया जाता हैं कि अगले ४०-५० वर्षों के भीतर इन संसाधनों के समाप्त हो जाने के आसार हैं.

पूरा विश्व मुख्य रूप से इन्ही ऊर्जा संसाधनों पर निर्भर हैं. कोई भी देश अपने आर्थिक विकास को मंद करने की कीमत पर ऊर्जा संरक्षण नहीं करना चाहता, इसलिए भी ऊर्जा संकट की स्थिति गम्भीर होती जा रही हैं.

ऊर्जा संकट के समाधान के लिए इसके गैर परम्परागत स्रोतों का भी विकास करना आवश्यक हो गया हैं. सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, बायो गैस, भूतापीय ऊर्जा इत्यादि ऊर्जा के गैर परम्परागत स्रोत हैं.

केवल गैर परम्परागत स्रोतों के विकास से ही ऊर्जा संकट का समाधान नहीं हैं. हमें पारम्परिक ऊर्जा संसाधनों का भी संरक्षण करना होगा. सभी प्राकृतिक संसाधन पृथ्वी पर सिमित मात्रा में है.

जिस तरह से विश्व की जनसंख्या बढ़ रही हैं उससे यह अनु मान लगाया जा रहा हैं कि २०३० तक यह बढकर आठ अरब से अधिक हो जाएगी.

तथा जिस तरह से प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग किया जा रहा हैं उसका दुष्परिणाम यह होगा कि आने वाली पीढियों के लिए आवश्यक प्राकृतिक संसाधन पृथ्वी पर उपलब्ध नहीं होंगे. किन्तु मानव को जीने के लिए प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करना ही होगा.

क्योंकि इसके अलावा जीवन सम्भव नहीं हैं. इस लिए अर्थशास्त्रियों, पर्यावरणविदों एवं वैज्ञानिकों ने इस समस्या का हल यह बताया हैं कि हमें अपने विकास के लिए उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनो का उपयोग करते समय इस बात का ख्याल रखे कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी ये बचे रहें. इस तरह सतत विकास (सस्टेनेबल डेवलपमेंट) की अवधारणा का विकास हुआ.

ऊर्जा संकट का कारण और प्रभाव

सतत विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें वर्तमान आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करते समय इस बात का ध्यान रखा जाता हैं. कि भावी पीढ़ी की आवश्यकताओं में भी कटौती न हो.

सतत विकास में सामाजिक एवं आर्थिक विकास के साथ साथ इस बात का भी ध्यान रखा जाता है की पर्यावरण सुरक्षित रहे. विकास एवं पर्यावरण एक दूसरे के विरोधी नहीं हैं.

अपितु एक दूसरे के पूरक हैं. संतुलित एव शुद्ध पर्यावरण के बिना मानव का जीवन कष्टमय हो जाएगा. हमारा अस्तित्व एवं जीवन की गुणवत्ता एक स्वस्थ प्राकृतिक पर्यावरण पर निर्भर हैं.

विकास हमारे लिए आवश्यक हैं और इसके लिए प्राकृतिक संसाधनों का दोहन भी आवश्यक हैं, किन्तु ऐसा करते समय हमें सतत विकास की अवधारणा को अपनाने पर जोर देना चाहिए.

परमाणु ऊर्जा का प्रयोग कर कोयला एवं खनिज तेल जैसे प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण किया जा सकता हैं नाभिकीय विखंडन के दौरान उत्पन्न ऊर्जा को नाभिकीय या परमाणु ऊर्जा कहा जाता हैं.

जब यूरेनियम पर न्यूट्रान की बमबारी की जाती हैं तो एक यूरेनियम नाभिकीय विखंडन के फलस्वरूप बहुत अधिक ऊर्जा व तीन नये न्यूट्रान उत्सर्जित होते हैं.

ये नव उत्सर्जित न्यूट्रान यूरेनियम के अन्य नाभिकों को विखंडित करते हैं. इस प्रकार यूरेनियम नाभिकों के विखंडन की एक श्रंखला बन जाती हैं.

इसी श्रंखला अभिक्रिया को नियंत्रित कर परमाणु रिएक्टरों में परमाणु ऊर्जा का उत्पादन किया जाता   हैं. जहाँ 1000 वाट के थर्मल पॉवर संयंत्र को चलाने के लिए 300 टन कोयले की आवश्यकता होती हैं.

वहीँ  इतना ही  विद्युत उत्पादन नाभिकीय रिएक्टर में मात्र 30 टन यूरेनियम से संभव हैं. रिएक्टर से प्राप्त विद्युत् ऊर्जा का उपयोग विभिन्न उद्यो गों में किया जाता हैं.

ऊर्जा संकट की समस्या का समाधान

ऊर्जा संकट की समस्या के समाधान के लिए आधुनिक ऊर्जा स्रोतों में जल विद्युत् को विशेष महत्व दिए जाने की आवश्यकता हैं. जीवाश्म इंधन के विपरीत एक बार प्रयोग के बाद नष्ट नहीं होता हैं.

इसे नविकरनीय ऊर्जा स्रोत कहा जाता हैं. इसके अति रिक्त बायोडीजल का व्यापक प्रयोग भी ऊर्जा संकट का एक अच्छा समाधान हो सकता हैं. बायो डीजल बनाने के लिए सोया बीन, अलसी, महुआ, अरंडी जैसे कृषि जन्य उत्पादों से प्राप्त वसा या वनस्पति तेल का प्रयोग किया जाता हैं.

बायो डीजल एक वैकल्पिक इंधन हैं. जो पूरी तरह से जलकर ऊर्जा देता हैं. बढ़ती जनसंख्या हेतु ऊर्जा की आपूर्ति करना विश्व के लिए एक समस्या बनता जा रहा हैं. आने वाले समय में ऊर्जा की मांग पूरे विश्व में काफी वृद्धि होने का अनुमान हैं.

बढ़ती जनसंख्या फलती फूलती अर्थव्यवस्था और अच्छे जीवन स्तर की चाह केकारण प्राथमिक ऊर्जा खपत में भी वृद्धि हुई हैं. ऐसी स्थिति में पूरे विश्व के लिए ऊर्जा संरक्षण को विशेष महत्व देना अनिवार्य हो गया हैं.

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