हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी पर निबंध | Essay On Hindi Our National Language

नमस्कार दोस्तों आज का निबंध हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी पर निबंध Essay On Hindi Our National Language लेकर आए हैं.

class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 Students. के लिए आसान भाषा में भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी के बारे में शोर्ट लॉन्ग एस्से दिया गया हैं.

हमारी राष्ट्रभाषा पर निबंध Essay On Hindi Our National Language

हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी पर निबंध | Essay On Hindi Our National Language

प्रस्तावना– भाषा मनुष्य को इश्वर द्वारा दिया गया महान वरदान हैं. पहले मनुष्य संकेतों से,  कुछ ध्वनियों से अपना मन्तव्य प्रकट करता था. 

धीरे धीरे ध्वनि चित्र बने व लिपि का निर्माण होने से बोली को भाषा होने का गौरव प्राप्त हुआ,  भाषा के कारण ही साहित्य, कला, धर्म, संस्कृति और विज्ञान आदि क्षेत्रों की मानवीय उपलब्धियाँ आज सुरक्षित रह सकी हैं.

भारत की भाषायें– भारत एक विशाल देश हैं. उसमें अनेक भाषाएँ प्रयोग की जाती हैं. भारत में बोली जाने वाली अनेक भाषाओं में से पन्द्रह मुख्य भाषाओं को भारतीय संविधान में मान्यता दी गयी हैं.

ये भाषाए तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम, उड़िया, बंग्ला, असमिया, मराठी, गुजराती, पंजाबी, सिन्धी, कश्मीरी, उर्दू, संस्कृत तथा हिंदी हैं. इनमें हिन्दी को संविधान द्वारा भारत की राष्ट्रभाषा के रूप में माना गया हैं.

राष्ट्रभाषा के लिए उपयोगी हिन्दी– राष्ट्रभाषा बनने के लिए किसी भी भाषा में कुछ विशेषताओं का होना आवश्यक हैं. वह सरल हो, जिससे अन्य भाषा भाषी उन्हें सरलता से सीख सके. वह देश की सभ्यता और संस्कृति को व्यंजित करने वाली हो.

उसका विस्तार देश के दूरस्थ विभिन्न प्रदेशों तक हो. उसका साहित्य सम्रद्ध हो. देश के राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक वैज्ञानिक तथा शैक्षिक कार्यों के संचालन में उसका उपयोग सफलता के साथ हो सके.

निसंदेह हिन्दी इन सभी विशेषताओं से युक्त हैं. और भारत की राष्ट्रभाषा होने के लिए सर्वाधिक उपयोगी हैं.

राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी का विकास– राष्ट्रभाषा की मान्यता प्राप्त होने पर केंद्र तथा राज्य सरकारों हिन्दी सेवी संस्थाओं तथा हिन्दी प्रेमीजनों ने उसके विकास का पूरा प्रयास किया हैं.

केंद्र में हिन्दी निदेशालय खोला गया हैं. विभिन्न प्रकार शब्दावलियों का निर्माण हुआ हैं. वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दकोष तैयार हुआ हैं. उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश आदि में हिन्दी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त हुआ हैं.

सरकार ने अहिन्दी भाषी कर्मचारियों को हिन्दी सीखने के लिए प्रोत्साहित किया हैं. हिन्दी में टंकण तथा आशुलिपि का विकास भी हुआ हैं.

हिन्दी के विकास में गैर सरकारी संस्थाओं का योगदान– किसी भी भाषा का विकास अपनी स्वाभाविक गति से होता हैं. सरकारी प्रयास उसे कृत्रिम रूप से बढ़ावा देते हैं किन्तु उससे विशेष लाभ नहीं होता.

हिन्दी की प्रगति में सरकारी प्रयासों की अपेक्षा अन्य व्यक्तियों तथा संस्थाओं का योगदान महत्वपूर्ण हैं. विभिन्न संस्थाएं अहिन्दी भाषी क्षेत्रों में हिन्दी के विकास का कार्य सफलता के साथ कर रही हैं.

सिनेमा तथा दूरदर्शन का योगदान हिन्दी के प्रसार प्रचार में बहुत महत्वपूर्ण हैं. हिन्दी फिल्मों तथा दूर दर्शन के कार्यक्रमों ने देश विदेश में हिन्दी को लोकप्रिय बनाया हैं.

हिन्दी विरोध की राजनीति– राष्ट्रभाषा घोषित होने पर हिन्दी का विरोध होने लगा. चक्रवर्ती राजगोपालाचारी तथा सुनीति कूमार चटर्जी ने यह कहकर हिन्दी का विरोध किया कि उसमें अंग्रेजी का स्थान लेने की क्षमता नहीं हैं.

देश की एकता के लिए अंग्रेजी का होना जरुरी हैं. हिन्दी में वैज्ञानिक तथा तकनीकी शिक्षा देने के लिए शब्दावली ही नहीं हैं. इसी आधार पर अहिन्दी भाषी क्षेत्रों में हिन्दी विरोध के आंदोलन चले.

लेकिन इन सबके पीछे राजनीति ही कारण रही अन्यथा उपर्युक्त समस्त तर्क निराधार तथा महत्वहीन ही हैं. हिन्दी तो अहिन्दी भाषी जनों में अपना स्थान निरंतर बनाती जा रही हैं.

विकास के लिए सुझाव– हिन्दी के विकास के लिए सबसे महत्वपूर्ण सुझाव हैं कि उसको अपने नैसर्गिक प्रवाह के साथ बढने दिया जाए. आवश्यकता यह हैं कि हिन्दी को नवीन ज्ञान विज्ञान के अनुरूप विकसित किया जाये.

राजकीय कार्यों में हिन्दी के प्रयोग को प्रोत्साहित किया जावे. हिन्दी में उच्च कोटि के वैज्ञानिक, तकनीकी तथा शास्त्रीय ज्ञान से सम्बन्धित साहित्य की रचना हो. विश्वविद्यालयों तथा प्रतियोगी परीक्षाओं में हिन्दी माध्यम के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाए.

उपसंहार– अपनी भाषा की उन्नति से ही देश की सच्ची उन्नति होगी. भारतेंदु हरिश्चन्द्र ने लिखा हैं.

निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल
बिन निज भाषा ज्ञान के मिटै न हिय को शूल

अतः हमारा कर्तव्य है कि हम राष्ट्रभाषा हिन्दी की उन्नति में अपना योगदान सुनिश्चित करें.

राष्ट्रभाषा हिंदी पर निबंध Essay on Hindi Language in Hindi

देश की आजादी से पूर्व ही गांधीजी ने कहा था,यदि कोई भाषा भारत की राष्ट्रभाषा बन सकती है तो वह हिंदी ही होगी. बिना राष्ट्र भाषा के कोई भी देश गूंगा ही कहा जाएगा.

हिंदी, बंगला, उर्दू, पंजाबी, तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम, उड़िया सहित कुल 22 भाषाओं को संविधान द्वारा राजभाषा का दर्जा दिया गया हैं, हिंदी के अलावा अन्य सभी स्थानीय भाषाएँ हैं, जिन्हें बोलने वालो की संख्या एक ही राज्य में सिमटकर रह जाती हैं.

जबकि हिंदी भारत की एक मात्र भाषा ही होगी, जिन्हें दर्जन भर राज्यों में बोला एवं समझा जाता हैं. यही वजह है कि इन्हें राजभाषा का दर्जा प्राप्त हैं. 14 सितंबर, 1949 के दिन ही भारतीय संविधान में हिंदी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया था.

मगर बड़े दुःख का विषय है जिस भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा मिलना चाहिए वह अपने ही राज्यों एवं देश में शोषित व् अपमानित हो रही हैं. हिंदी भाषी राज्यों में भी अंग्रेजी का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा हैं.

गांधीजी भारत की स्वाधीनता के साथ साथ राजभाषा, राष्ट्रभाषा अथवा सम्पर्क भाषा के रूप में किसी भारतीय भाषा को प्रतिष्ठित देखना चाहते थे.

उन्होंने पूरे देश का दौरा करके यह निष्कर्ष निकाला कि हिंदी ही एक ऐसी भाषा हो सकती हैं जिसे राजभाषा के पद पर प्रतिष्ठापित करने में कोई परेशानी नही होगी.

वे चाहते थे कि आजादी मिलने के बाद देश में राष्ट्रीय सरकार का काम किसी भारतीय भाषा में होना चाहिए. उन्होंने अपने संकल्प को पूरा करने के लिए भारत में हिंदी प्रचार सभा की स्थापना की, ताकि लोग हिंदी पढ़े और हिंदी बोलने समझने, लिखने में उन्हें कोई कठिनाई ना हो.

वे चाहते थे कि देश का नया संविधान जब बना तब गांधीजी की कही बातों को लोगों ने याद किया और संविधान के अनुच्छेद 343(1) में लिखा गया कि ”संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी’

संविधान में यह भी कहा गया कि 26 जनवरी 1950 को नया संविधान लागू होने के 15 वर्ष बाद हिंदी समग्र रूप से राष्ट्रभाषा का पद मिल जाएगा और जिन कामों के लिए अंग्रेजी का प्रयोग होता रहा हैं.

उन सभी के लिए हिंदी का प्रयोग शुरू कर दिया जाएगा. संविधान में उक्त पंक्तियाँ लिखे जाने से पूर्व राजर्षि टंडन, सेठ गोविन्ददास जैसे हिंदी भक्तों ने इसका विरोध किया था और कहा था

यदि हिंदी को अभी से लागू नही किया गया तो कालान्तर में कई परेशानियां आएगी और हिंदी कभी भी पूरी तरह राष्ट्रभाषा नही बन पाएगी, उस समय नेहरू जैसे कुछ नेताओं ने इसका विरोध किया था और हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के प्रश्न पर 15 वर्षों के लिए टाल दिया था.

नेहरू जी नही रहे, किन्तु उनके बाद प्रधानमंत्री बने लाल बहादुर शास्त्री ने संसद में नेहरू के आश्वासन को कार्यरूप में बदलने के लिए एक बिल पेश किया, जो पास होकर कालान्तर में राजभाषा अधिनियम 1963 के रूप में जाना जाता हैं.

यह अधिनियम इतना खतरनाक सिद्ध हुआ कि आजादी के ७३ वर्ष बीत जाने के बाद भी हिंदी पूरी तरह से भारत की राष्ट्रभाषा नही बन पाई हैं. इस अधिनियम में उल्लेख किया गया हैं कि अंग्रेजी तब तक राजभाषा बनी रहेगी, जब तक दक्षिण भारत के लोग उसे हटाने की मांग नही करेगे.

हिंदी के व्यापक प्रयोग के लिए सरकारी प्रयत्न जारी हैं. जिसकी वजह से सन 1976 में सरकार ने बारह राजभाषा नियम तैयार किये. इन नियमों के अनुसार कुछ कामों के लिए हिंदी का प्रयोग अनिवार्य कर दिया गया हैं.

भारत सरकार द्वारा गठित संसदीय समितियों के सदस्य समय समय पर केंद्र सरकार के कार्यालयों का निरीक्षण करते हैं. इस प्रकार के निरीक्षणों से उन लोगों को काफी प्रोत्साहन मिला हैं, जो हिंदी का प्रयोग करने के लिए प्रयत्नरत हैं.

Essay on Hindi Language in Hindi In 400 Words

राष्ट्रीय एकता एवं प्रगति में हिंदी भाषा का महत्व- प्राचीनकाल से ही मनुष्य जंगलों में निवास करता था. धीरे धीरे उसने समाज में रहना आरम्भ किया और सुरक्षा की दृष्टि से समूह में रहना उपयुक्त समझा जाने लगा. कालान्तर में इन्ही समूहों कबीलों का और फिर नगर राज्यों का विकास हुआ.

राष्ट्रवाद की अवधारणा का विकास मध्यकाल से माना गया हैं. पश्चिमी विद्वान भारत में राष्ट्रवाद के उदय के कारण अंग्रेजी शासन को मानते हैं, किन्तु यह तथ्य स्वीकार्य नही हैं.

वस्तुतः भारत में राष्ट्रवाद की भावना उतनी ही प्राचीन है जितना कि यहाँ का इतिहास. चक्रवर्ती सम्राट बनकर सम्पूर्ण भारत पर शासन करना हमारे देश के प्राचीनकालीन राजाओं का सपना हुआ करता था.

प्राचीन काल में संचार के साधनों का अभाव होने के कारण यदपि लम्बे समय तक भारत कभी एक सत्ता के अधीन न रह सका किन्तु यह भावना कभी मरी नही अशोक समुद्रगुप्त जैसे शासकों ने लगभग सम्पूर्ण भारत को एक शासन के अधीन ला दिया था.

एक पश्चिमी विचारक का कथन है कि किसी स्वतंत्र राष्ट्र के लिऐ राजकाज की कोई विदेशी भाषा होना वहां की सांस्कृतिक गुलामी को दर्शाता हैं. ठीक भारत में यही स्थिति हैं.

यहाँ के आमजन की भाषा हिंदी को अपमानित कर अंग्रेजी को आज राष्ट्रभाषा के सिंहासन पर स्थापित किया हुआ प्रतीत होता हैं. इस समय भारतीय संवैधानिक स्थिति में हिंदी को देखा जाए तो अनुच्छेद 343 के खंड-1 में भारत के राजकार्यों की भाषा के रूप में हिंदी को स्वीकार किया हैं.

जिनमें देवनागरी लिपि मान्य रहेगी. अंक गणित में भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीयीकरण होगा. लेकिन इसी अनुच्छेद का अगला भाग यह कहता हैं.

अगले 15 साल यानि 26 जनवरी 1965 तक सरकारी कामकाज के लिए अंग्रेजी का प्रयोग भी स्वतंत्र रूप से होता रहेगा. ऐसा प्रवधान करने की एक वजह यह भी थी कि अब तक के सभी कानून तथा व्यवस्थाएं अंग्रेजो द्वारा अंग्रेजी भाषा में बनाई गई थी, अतः यकायक इतनी चीजों को हिंदी में बदलना और इसे धरातलीय रूप देना संभव भी नही था

Essay on Hindi Language in Hindi In 500 Words

1965 तक हिंदी के साथ साथ अंग्रेजी का भी राजभाषा के रूप में उपयोग करने का निर्णय उस समय की परिस्थितियों के मुताबिक काफी हद तक सही भी था.

मगर जब 15 साल खत्म हो गये तथा अंग्रेजी को भारत से पूरी तरह समाप्त कर हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित करने का समय आया, तो दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में स्वार्थी राजनीतिज्ञों ने एक हिंसक जाल बुना और आमजन को इसकी भावनाओं के साथ जोड़कर राजनितिक रूप दे दिया गया.

क्षेत्रीय भाषा के दमन के विषय पर इस उग्र हिंदी विरोधी आंदोलन के चलते समस्त हिंदीभाषियों का सपना चूर चूर हो गया.

भारतीय संविधान में 22 भाषाओं को राजभाषा का दर्जा दिया गया हैं, यह भारत के भाषाभाषी होने की वजह हैं. यदि विभिन्न भाषाओं को बोलने वाली संख्या पर गौर करे तो भारत में सबसे अधिक लोग हिंदी बोलते हैं.

इसके पश्चात दूसरा स्थान बांगला का हैं इसके बाद मराठी, पंजाबी, गुजराती, तेलगु आदि भाषाएँ आती हैं. हिंदी राष्ट्रभाषा बनने के सभी मापदंडों को पूर्ण करती हैं. यह भारत में सबसे अधिक बोले जाने वाली भाषा हैं. 

उत्तर से दक्षिण तथा पूर्व से पश्चिम सभी भागों को एक सम्पर्क माध्यम प्रदान करने वाली भाषा हैं. दूसरा तथ्य यह भी है कि हिंदी को छोड़कर अन्य कोई ऐसी भाषा नही हैं जिन्हें दो राज्यों के लोग आपस में विचार विनिमय के लिए उपयोग कर सकते हैं. महज कुछ दक्षिणी राज्यों को छोड़कर हिंदी समस्त देश में बोली और समझी जाती हैं.

वर्तमान समय में हिंदी भारत की मातृभाषा, सम्पर्क भाषा तथा राजभाषा तो हैं ही मगर सम्पूर्ण देश को एक कड़ी में बाँधने वाली हिंदी को राष्ट्रभाषा का सम्मान भी दिया जाना चाहिए.

इस सम्बन्ध में हमारे प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद का कथन उल्लेखनीय हैं उन्होंने कहा था जिस देश को अपनी मातृभाषा तथा साहित्य का गौरव नही हैं वो राष्ट्र कभी भी उन्नति नही कर पायेगा.

न केवल सरकारी प्रयासों से हिंदी को सम्मानजनक स्थान दिलाया जा सकता हैं बल्कि हम सभी क्षेत्रों में हिंदी के उपयोग तथा इसको बढ़ावा देकर भी हिंदी को राष्ट्रभाषा का गौरव दिलाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं.

हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है एस्से इन हिंदी विकिपीडिया

राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा माना जाता हैं, हम सभी सौभाग्यशाली हैं कि हिंदी को हमारे देश में राष्ट्रभाषा होने का सम्मान प्राप्त हैं.

भाषा को व्यक्ति द्वारा अपने विचारों एवं भावों को व्यक्त करने का मुख्य माध्यम माना जाता हैं. प्रत्येक जीव जन्तु जाति की अपनी भाषा होती हैं. उसी तरह प्रत्येक व्यक्ति की अपनी एक भाषा हैं.

व्यक्ति भाषा के द्वारा ही अन्य व्यक्तियों से सम्पर्क स्थापित कर सकता हैं. व्यक्ति से समाज बनता है तथा समाज से राष्ट्र का निर्माण होता हैं. हर एक राष्ट्र अथवा देश में भिन्न भिन्न भाषाएँ होती है,

परन्तु हर देश की अपनी एक राष्ट्रभाषा होती है, जिसेसे उस देश की पहचान होती है, साथ ही राष्ट्र भाषा ही अमुक देश की भाषा, संस्कृति, विचारों एवं परम्पराओं की पहचान को बनाती हैं. इस तरह हिंदी भारत की राष्ट्र भाषा हैं.

वर्ष 1947 में भारत को आजादी मिलने के बाद ही भारत की राष्ट्र भाषा हिंदी को घोषित कर दिया गया. हमारे भारत देश में संविधान में हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया गया हैं.

उस वक्त विद्वानों व बुद्धिजीवियों द्वारा दिया गया यह सम्मान विवाद का विषय न होकर इस देश के संविधान की विरासत ही हैं. हमारे देश के विशेयज्ञों द्वारा गहन सोच विचार के बाद ही हिंदी को राष्ट्र भाषा का यह दर्जा दिया गया था.

उस समय के अधिकतर विद्वानों की यही राय थी, कि चूंकि भारत के अधिकतर क्षेत्र एवं बहुत बड़ी आबादी द्वारा बोली जाने वाली भाषा होने के कारण राष्ट्रभाषा का सम्मान प्राप्त करने की हकदार हिन्दी ही हो सकती हैं. आज के परिद्रश्य में भी हिंदी भारत के जन जन की भाषा हैं.

दूसरी तरफ आज के समय में हमारी मातृभाषा हिंदी को पग पग पर अपमानित होना पड़ रहा हैं. उसे अभी तक वों सम्मान नही मिल पाया हैं, जिसकी वों हकदार हैं तथा उसे मिलना चाहिए.

यह कटु सत्य है कि भारत को सैकड़ों वर्षों तक अंग्रेजों की गुलामी करनी पड़ी थी तथा इस दास्ता से निकलने के लिए एक लम्बी लड़ाई भी लडनी पड़ी थी. उस काल में प्रशासन की भाषा होने का दर्जा अंग्रेजी को प्राप्त था.

भले ही आज हम अंग्रेजों से आजाद हो गये है लेकिन बड़े दुःख के साथ कहना पड़ता है आज भी हम अंग्रेजी के गुलाम हैं. हमारे सिस्टम की भाषा अंग्रेजी ही हैं, आप भारत के किसी न्यायलय में जाकर इसका प्रमाण देख सकते हैं.

वहां सम्पूर्ण वार्तालाप अंग्रेजी में ही होते हैं. देश का दुर्भाग्य हैं कि न केवल हमारे राजनेता भी अंग्रेजी को वरीयता देते हैं बल्कि इस देश के पढ़े लिखे युवक व नौजवान भी अंग्रेजी बोलने पर स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते हैं.

इस बात में कोई दोराय नही हैं, कि आधुनिक विश्व की सभी भाषाएँ अपने आप में समर्द्ध एवं वैज्ञानिक हैं, व्यक्ति को अधिक से अधिक भाषाओं का ज्ञान होना चाहिए,

मगर किसी विदेशी भाषा का टुटा फुटा ज्ञान होने पर अपनी ही राष्ट्रभाषा हिंदी को अपमानित करना या उसका तिरस्कार करना सही नही हैं.

आज के समय में अंग्रेजी पढ़े लिखे लोगों को विद्वान समझा जाता हैं. मानते है कि जिसे अंग्रेजी आती है वो अच्छी नौकरी प्राप्त कर सकता हैं. इसी विचारधारा को पालने वाले लोग हिंदी बोलने वाले को हिन तथा पिछड़ा हुआ मानते हैं.

उन्हें इस बात का इल्म नही हैं कि हिंदी भाषा विश्व की सबसे समर्द्ध भाषा हैं, जितना बड़ा अंग्रेजी का शब्दकोश हैं उससे कही गुना बड़ी हिंदी शब्दावली हैं. अंग्रेजी भाषा आप बेहद अल्प अवधि में सीखकर पारंगत हो सकते है मगर हिंदी को सीखते कई साल लग सकते हैं.

हमने अपने इतिहास में कई बार विदेशी नेताओं को अपनी ही राष्ट्रभाषा में बोलते हुए सुना होगा. क्या हमें कभी ताज्जुब हुआ, क्या हमने कभी सोचा ये अपने मातृभाषा से प्रेम करते है फिर हम क्यों एक विदेशी भाषा के तोते बने हुए हैं.

जब नरेंद्र मोदी ने कई बड़े देशों में लाखों की भीड़ को हिंदी में संबोधित किया था, तो यह हिंदी भाषा के इतिहास का अब तक सबसे स्वर्णिम पल था. मोदी सरकार के नेताओं ने न सिर्फ संयुक्त राष्ट्र संघ में बल्कि अन्य देशों में भी हिंदी भाषा में अपनी बात कहकर हिंदी भाषियों का दिल जीता हैं.

अटल बिहारी वाजपेयी जी भारत के पहले प्रधानमंत्री थे, जो हिंदी प्रेमी थे. सच्चे मायनों में वे स्वदेशी प्रधानमंत्री थे. आज की भारतीय सरकार विश्व में हिंदी का प्रसार प्रचार कर रही हैं यह हमारी मातृभाषा के सम्मान का विषय हैं,

हम समस्त हिंदी प्रेमी राजनेताओं का तहे दिल से धन्यवाद करते हैं. आज की आवश्यकता है हम जन जन में हिंदी के प्रति प्रेम जगाए, माँ (मातृभाषा) के प्रति प्यार तो सभी को होता हैं मगर उसे बस जगाने की आवश्यकता हैं.

वो आप और हम सभी मिलकर कर सकते हैं. हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी हमारे देश की संस्कृति की जड़ हैं. आज हमारी संस्कृति को बचाने के लिए राष्ट्रभाषा हिंदी को जीवित रखना अत्यंत आवश्यक हैं.

इसके लिए सरकारी एवं गैर सरकारी दोनों स्तरों पर हिंदी भाषा का उपयोग किया जाना चाहिए. आज हमें फिर से अपनी माँ हिंदी को माँ कहने में शर्म महसूस नही होनी चाहिए.

Rashtrabhasha Hindi Essay In Hindi | राष्ट्र भाषा हिंदी पर निबंध

किसी राष्ट्र की सर्वाधिक प्रचलित एवं स्वेच्छा से आत्मसात की गई भाषा को राष्ट्र भाषा- Rashtrabhasha कहा जाता हैं. हिंदी, बांग्ला, उर्दू, पंजाबी, तेलगू, तमिल, कन्नड़, मलयालम, उड़िया इत्यादि भी भारत के संविधान द्वारा मान्य राष्ट्र की भाषाएँ हैं.

इन सभी भाषाओं में Hindi का स्थान सर्वोपरी हैं क्योंकि यह भारत की राजभाषा भी हैं. राजभाषा वह भाषा होती हैं, जिसका प्रयोग किसी देश में राज-काज चलाने के लिए उपयोग किया जाता हैं.

वैसे तो हिंदी को संवेधानिक रूप से Rajbhasha का दर्जा दिया गया हैं. किन्तु उन्हें यह सम्मान सैद्धांतिक रूप में प्राप्त हैं. वास्तविक रूप में राज भाषा का सम्मान प्राप्त करने के लिए इसे अंग्रेजी से संघर्ष करना पड़ रहा हैं.

एक विदेशी भाषा होने के बावजूद अंग्रेजी में राज-काज को विशेष महत्व दिए जाने और राजभाषा के रूप में अपने सम्मान को प्राप्त करने के लिए Rashtrabhasha Hindi के संघर्ष का कारण जानने के लिए सबसे पहले हमें हिन्दी की संवैधानिक स्थिति जानना होगा.

संविधान के अनुच्छेद के अनुच्छेद 343 के खंड 1 में कहा गया हैं कि भारत संघ की राज भाषा हिंदी एवं लिपि देवनागरी होगी. संघ के राजकीय प्रयोजन के लिए प्रयुक्त होने वाले अंकों रूप भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा.

खंड 2 में यह अनुबंध किया गया था कि संविधान के प्रारम्भ से पन्द्रह वर्ष की अवधि अर्थात् 26 जनवरी 1965 तक संघ के सभी सरकारी प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी का प्रयोग होता रहेगा, जैसा कि पूर्व में होता था.

वर्ष 1965 तक राजकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी का प्रयोग किये जाने का प्रयोजन का कारण यह था कि भारत 1947 ईस्वी से पूर्व अंग्रेजों के अधीन था.

और तत्कालीन ब्रिटिश शासन में यहाँ इसी भाषा का प्रयोग राजकीय प्रयोजन के लिए होता था. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अचानक हिंदी का प्रयोग राजकीय प्रयोजनों के लिए कर पाना व्यवहारिक रूप से संभव नही था.

इसलिए 1950 में संविधान लागू होने के बाद से अंग्रेजी के प्रयोग के लिए 15 वर्षों का समय दिया गया और यह तय किया गया कि इन पन्द्रह वर्षों में हिंदी का विकास कर इसे राजकीय प्रयोजनों के लिए उपयुक्त कर दिया जाएगा.

किन्तु ये 15 पन्द्रह वर्ष पूरे होने से पूर्व ही हिंदी को राजभाषा बनाए जाने का दक्षिण भारत के कुछ स्वार्थी राजनीतिज्ञों ने व्यापक विरोध करना प्रारम्भ कर दिया. देश की सर्वमान्य भाषा हिंदी को क्षेत्रीय लाभ उठाने के ध्येय से विवादों में घसीट लेने को किसी भी दृष्टि से उचित नही कहा जा सकता हैं.

भारत में अनेक भाषा भाषी लोग रहते हैं. भाषाओं की बहुलता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता हैं कि भारत के संविधान में ही 22 भाषाओं को मान्यता प्राप्त हैं. हिंदी भारत की सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा हैं. इसके बाद बांग्ला सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा हैं.

इसी तरह तमिल, तेलगू, कन्नड़, मलयालम, मराठी इत्यादि अन्य भाषाएँ बोलने वालों की संख्या भी काफी हैं. भाषाओं की बहुलता के कारण भाषाई वर्चस्व की राजनीती ने भाषावाद का रूप धारण कर लिया हैं.

इसी भाषावाद की लड़ाई को  Rashtrabhasha Hindi को नुकसान उठाना पड़ रहा हैं. और स्वार्थी राजनीतिज्ञ इसको इसका वास्तविक सम्मान दिए जाने का विरोध करते रहे हैं.

देश की अन्य भाषाओं के बदले हिंदी को राजभाषा बनाए जाने का मुख्य कारण यह हैं कि यह भारत में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा होने के साथ साथ देश की एकमात्र सम्पर्क भाषा भी हैं. ब्रिटिश काल में पूरे देश में राजकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी का प्रयोग होता था.

पूरे देश में अलग अलग क्षेत्रों में अलग अलग भाषाएँ बोली जाती हैं. किन्तु स्वतंत्रता आन्दोलन के समय राजनेताओं ने यह महसूस किया कि हिंदी एक ऐसी भारतीय भाषा हैं, जो दक्षिण के कुछ क्षेत्रों को छोड़कर पूरे देश की सम्पर्क भाषा हैं. और देश के विभिन्न भाषा-भाषी भी आपस में विचार विनिमय करने के लिए हिंदी का सहारा लेते हैं.

हिंदी की सार्वभौमिकता के कारण राजनेताओं ने हिंदी को राजभाषा बनाने का निर्णय लिया था. हिंदी राष्ट्र के बहुसंख्यक लोगों द्वारा बोली और समझी जाती हैं.

इसकी लिपि देवनागरी हैं, जो अत्यंत सरल हैं. और इसमें आवश्यकतानुसार देशी विदेशी भाषाओं के शब्दों को सरलता से आत्मसात करने की शक्ति हैं. यह भारत की एक ऐसी राष्ट्रभाषा हैं, जिसे पूरे देश में भावात्मक एकता स्थापित करने की पूर्ण क्षमता हैं.

आजकल पूरे भारत में सामान्य बोल चाल की भाषा के रूप में हिंदी एवं अंग्रेजी के मिश्रित रूप हिंगलिश का प्रयोग बढ़ा हैं. हिंगलिश के प्रयोग के कई कारण हैं. पिछले कुछ वर्षों में भर में व्यवसायिक शिक्षा में प्रगति आई हैं.

अधिकतर व्यवसायिक पाठ्यक्रम अंग्रेजी भाषा में उपलब्ध हैं. इसलिए छात्रों के अध्ययन का माध्यम अंग्रेजी ही हैं. इस कारण छात्र हिंदी से पूर्ण रूप में निपुण नही हो पाते हैं. और हिंदी भारत में आम जन की भाषा हैं.

इसलिए अंग्रेजी में शिक्षा प्राप्त युवा हिंदी में बात करते वक्त अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग करने के लिए बाध्य होते हैं. इसके अतिरिक्त आजकल समाचार पत्रों एवं टेलीविजन के कार्यक्रमों में भी ऐसी ही भाषा के उदाहरण मिलते हैं.

इन सबका प्रभाव आम आदमी पर पड़ता हैं. भले ही हिंगलिश के बहाने हिंदी बोलने वालों की संख्या बढ़ रही हैं. हिंगलिश का प्रचलन हिंदी भाषा की गरिमा की दृष्टिकोण से गंभीर चिंता का विषय हैं.

कुछ वैज्ञानिक शब्दों जैसे मोबाइल, कंप्यूटर, साईकिल, टेलीविजन एवं अन्य शब्दों जैसे स्कूल कॉलेज स्टेशन इत्यादि तक तो ठीक हैं.

किन्तु अंग्रेजी के अत्यधिक एवं अनावश्यक शब्दों का हिंदी में प्रयोग सही नही हैं. हिंदी व्याकरण के दृष्टिकोण से एक सम्रद्ध भाषा हैं. यदि इसके पास शब्दों का अभाव होता, तब तो इसकी स्वीकृति दी जा सकती थी.

शब्दों का भंडार होते हुए भी व्यक्ति यदि इस तरह की मिश्रित भाषा का प्रयोग करते हैं, तो निश्चय ही भाषाई गरिमा के दृष्टिकोण से यह एक बुरी बात हैं.

कोई भी भाषा अपने यहाँ की संस्कृति की संरक्षक एवं वाहक होती हैं. भाषा की गरिमा नष्ट होने से उस स्थान की सभ्यता संस्कृति पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हैं.

हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाए जाने के सन्दर्भ में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कहा था ”भारत की सारी प्रांतीय बोलियाँ जिनमें सुंदर साहित्य की रचना हुई हैं, अपने घर या प्रान्त की रानी बनकर रहे,

प्रान्त के जनगण के हार्दिक चिन्तन की प्रकाशभूमि स्वरूप कविता की भाषा होकर रहे और आधुनिक भाषाओं के हार की मध्यमणि हिंदी भारत भारती होकर विराजती रहे”

प्रत्येक देश की पहचान का एक मजबूत आधार उसकी भाषा होती हैं. और राष्ट्रभाषा की संज्ञा से अभिहित यह देश के अधिक से अधिक व्यक्तियों के द्वारा बोली जाने वाली व्यापक विचार विनिमय का माध्यम होने के कारण ही राष्ट्र भाषा का पद ग्रहण करती हैं.

राष्ट्र भाषा के द्वारा आपस में सम्पर्क बनाए रखकर देश की एकता एवं अखंडता को बनाए रखने के लिए ऐसा किया जाना भी अनिवार्य हैं.

हिंदी देश की सम्पर्क भाषा तो है ही इसे राजभाषा का वास्तविक सम्मान भी दिया जाना चाहिए. जिससे कि यह पूरे देश को एकता के सूत्र में बाँधने वाली भाषा बन सके.

Hindi Bhasha के राष्ट्र भाषा अथवा राजभाषा के महत्व को कभी नकारा नही जा सकता हैं. यह भारत के विकास, राष्ट्र की एकता एवं विश्व ख्याति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं. हम भी एक अच्छे नागरिक बने एवं सदा हमारे निजी जीवन में अपनी मातृभाषा हिंदी को ही वरीयता दे.

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