आदर्श विद्यार्थी पर निबंध | Essay on Ideal Student in Hindi

Essay on Ideal Student in Hindi प्रिय विद्यार्थियों आज के लेख आदर्श विद्यार्थी पर निबंध में आपका स्वागत हैं. एक विद्यार्थी देश के भविष्य की धुरी होता हैं.

परीक्षा के लिहाज से आज विद्यार्थी के जीवन पर निबंध लिखने को कहा जाता हैं. यहाँ हम आपके लिए विभिन्न शब्दसीमा में आइडियल स्टूडेंट् लाइफ का निबंध प्रस्तुत कर रहे हैं. चलिए आरम्भ करते हैं.

आदर्श विद्यार्थी पर निबंध Essay on Ideal Student in Hindi

आदर्श विद्यार्थी पर निबंध | Essay on Ideal Student in Hindi

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शिक्षण संस्थानों में शिक्षा ग्रहण करने वाले व्यक्ति को विद्यार्थी कहा जाता हैं. विद्यार्थी काल को जीवन का गोल्डन पीरियड कहा जाता हैं. विद्यार्थी काल पर ही बालक का भविष्य निर्भर करता हैं.

जीवन के इस पड़ाव में यदि वह अपने कर्तव्यों का सही ढंग से पालन न करे तो उसका जीवन अंधकारमय बन जाता हैं. हरेक विद्यार्थी अपने इस दौर के हर एक पल का सही उपयोग करके जीवन को संवारने का प्रयत्न करते हैं उन्हें आदर्श विद्यार्थी कहा जाता हैं.

शिक्षा जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया हैं. शिक्षा का उद्देश्य व्यक्तित्व निर्माण होता हैं. एक विद्यार्थी का लक्ष्य सही शिक्षा प्राप्त कर चरित्र निर्माण व आत्मनिर्भर बनना होता हैं.

चरित्र निर्माण, व्यक्तित्व विकास, संस्कृति संरक्षण, सामाजिक कर्तव्यो का विकास ये हर काल में शिक्षा के मूल उद्देश्य रहे हैं आदर्श विद्यार्थी की संज्ञा उसे ही दी जा सकती हैं जो इन मानदंडों पर पूर्ण रूप से खरा उतरे.

आदर्श विद्यार्थी पर निबंध

विद्याथी जीवन का आशय- जो विद्या या ज्ञान का इच्छुक है या अर्थी है, वही विद्यार्थी है. इस विद्यारुपी धन की प्राप्ति गुरु कृपा से होती हैं. प्राचीन काल में गुरू को ईश्वर के समकक्ष स्थान प्राप्त था.

शिष्य समर्पण और श्रद्धा भाव से गुरु की शरण में जाता था. और उसे गुरू पुत्रवत स्वीकार करके उसके सर्वांगीण विकास का पूरा प्रयास करते थे.

आज विभिन्न कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में शिक्षा देने की व्यवस्था हैं. जो युवक वहां रहकर शिक्षा प्राप्त करते है, वे ही विद्यार्थी कहलाते हैं. शिक्षा प्राप्त करने में बिताया गया समय विद्यार्थी जीवन कहा जाता हैं.

विद्यार्थी जीवन का आदर्श– विद्यार्थी जीवन मनुष्य के जीवन, चरित्र और आजीविका और आधारशिला हैं. व्यक्ति को क्या बनना हैं. यह उसका विद्यार्थी जीवन ही तय करता हैं.

आज का विद्यार्थी ही कल देश का कर्णधार बनने वाला हैं. उसकी उन्नति, उसके देश की प्रगति, सभी कुछ उसके ऊपर निर्भर हैं.

देश के सामाजिक, आर्थिक राजनीतिक, साहित्यिक सभी क्षेत्रों में विद्यार्थी को ही जाना हैं. विद्यार्थी का जीवन ऐसा होना चाहिए कि वह उन सभी लक्ष्यों को प्राप्त करने में समर्थ हो सके. इसके लिए उसको परिश्रमी होना चाहिए. उसकों अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित होना चाहिए.

उसका जीवन सरल सादा और दोष रहित होना चाहिए. उसे सादा स्वास्थ्यप्रद भोजन करना चाहिए तथा स्वच्छ वस्त्र पहनने चाहिए. उसे दिखावे से बचना चाहिए. उसे शांत, सहनशील और अध्ययनशील होना चाहिए.

उसके सामने उसके उद्देश्य स्पष्ट होने चाहिए तथा उसकी प्राप्ति की लिए उसे सदा प्रयत्नशील रहना चाहिए. उसे बड़ो तथा अपने शिक्षकों के प्रति विनम्र और सत्कारभाव से पूर्ण होना चाहिए.

विद्यार्थी जीवन के विशेष गुण- प्राचीन भारत में विद्यार्थी जीवन साधना का जीवन था. अतः उस युग में विद्यार्थियों के पांच प्रधान लक्षण माने जाते थे.

काक चेष्टा वको ध्यानं, श्वान निद्रा तथैव च
स्वल्पाहरी, गृहत्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणम

कौए जैसा सतर्क, बगुले जैसा सतर्क, कुत्ते जैसी सचेत नींद सोने वाला, ठूस ठूस कर न खाने वाला, घर के झंझटों से दूर रहने वाला ये पांच लक्षण विद्यार्थी के माने गये हैं.

किन्तु समय परिवर्तन के साथ नियम व लक्षण भी बदल जाते हैं. इसी कारण आज इन पाँचों लक्षणों को इसी रूप में मान्यता देना संभव नही हैं.

आजकल के विद्यार्थियों के मुख्य गुण अध्यवसाय, आज्ञाकारिता, अनुशासन, परिश्रम तथा उदारता हैं. खेलों में रूचि, आस-पास के समाज और विश्व में घटित होने वाली प्रमुख घटनाओं से परिचय और सामान्य ज्ञान का उच्च स्तर यह सभी बातें आज के विद्यार्थी के लिए आवश्यक हैं.

विद्यार्थी जीवन के उद्देश्य- विद्यालय में रहते हुए सादा जीवन बिताना तथा शिक्षा प्राप्त करने के लिए निरंतर श्रमशील रहना विद्यार्थी जीवन का उद्देश्य हैं.

शिक्षा प्राप्ति का काम पूरा होने के बाद प्राप्त योग्यता का उपयोग देश और समाज के हितार्थ करना भी विद्यार्थी जीवन का उद्देश्य हैं. यदि विद्यार्थी अपने देश और समाज में प्रगति में सहायक नहीं बनता तो उसका जीवन उद्देश्यविहीन माना जाएगा.

विद्यार्थी से समाज व राष्ट्र की अपेक्षाएं- शिक्षा प्राप्त करने के बाद विद्यार्थी अपने समाज तथा राष्ट्र से जुड़ता हैं. वह अपने ज्ञान का लाभ देकर उनकी सेवा करता हैं.

समाज और राष्ट्र को भी यह अपेक्षा रहती हैं कि विद्यार्थी सुशिक्षित और समर्थ होकर उनकी समस्याओं का समाधान करेगे प्रत्येक राष्ट्र और समाज अपने सुशिक्षित और सुयोग्य युवकों के श्रम और सहयोग से ही प्रगति कर सकता हैं.

उपसंहार- केवल अपने बल पर कोई आदर्श विद्यार्थी नहीं बन सकता. इसके लिए विद्यालयों का वातावरण भी शिक्षामय होना चाहिए.

शिक्षकों को भी कर्तव्यनिष्ठ, व्यसनरहित और अपने विषय का पूर्ण ज्ञाता होना चाहिए. आज नकल पर आश्रित छात्रों ने शिक्षकों का महत्व तो गिराया ही हैं.

परिश्रमी तथा मेधावी छात्रों को भी हताश कर दिया हैं. नकल करने कराने पर कठोरता से रोक लगानी चाहिए. आजकल हमारे अनेक प्रसिद्ध शिक्षा संस्थान और विश्वविद्यालय राजनीति के केंद्र बने हुए हैं.

उनको राजनीतिक विचारधाराओं में बाँट दिया हैं. बोलने की स्वतंत्रता के पाखंड की आड़ में इन विद्या मन्दिरों में खुलेआम देशद्रोही हरकतों को अंजाम दिया जा रहा हैं. इस पर नियंत्रण आवश्यक हो गया हैं.

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