भारतीय मुद्रा पर निबंध | Essay On Indian Currency In Hindi

नमस्कार दोस्तों आज के निबंध भारतीय मुद्रा पर निबंध Essay On Indian Currency In Hindi में आपका स्वागत हैं.

भारत की मुद्रा रुपया के बारे में इस निबंध में हम पढ़ेगे. भारतीय मुद्रा क्या है, इतिहास, महत्व, चिह्न आदि के बारे में इस सरल निबंध में चर्चा करेंगे.

भारतीय मुद्रा पर निबंध Essay On Indian Currency In Hindi

भारतीय मुद्रा पर निबंध | essay on indian currency in hindi

मुद्रा को मनुष्य जाति द्वारा किये गये महान आविष्कारों में से एक माना जाता है. वस्तुओं और सेवाओं के लिए हम जो  कुछ भी भुगतान करते हैं, उसे मुद्रा ही कहा जाता हैं.

मुद्रा  मुख्य रूप से विनिमय के माध्यम,  मूल्य के मापक,  मूल्य के संग्रह  एवं विलिम्बित भुगतानों के आधार पर कार्य करती हैं. 

वस्तु  या सेवा का मुद्रा या अन्य किसी वस्तु अथवा सेवा के बदले आदान प्रदान विनिमय कहलाता हैं. मुद्रा क्या है (what is currency) मुद्रा का अर्थ इतिहास उत्पत्ति विकास व कार्य आपकों यहाँ बता रहे हैं.

भारत की मुद्रा को भारतीय रुपया कहा जाता है. एक रुपया 100 पैसे के बराबर होता है, भारतीय मुद्रा का प्रतीक रु हैं.

इस नयें संकेत को डी उदय कुमार ने तैयार किया हैं. संयुक्त राज्य अमेरिका की मुद्रा डॉलर, ब्रिटेन की मुद्रा पौण्ड स्टर्लिंग तथा यूरोपीय समूह की मुद्रा यूरो तथा जापान की मुद्रा येन हैं.

भारतीय मुद्रा पर निबंध- indian currency essay in hindi

मुद्रा की उत्पत्ति- अंग्रेजी भाषा में मुद्रा को MONEY कहा जाता हैं. मनी शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द मोनेटा (MONETA) से हुई हैं.

रोम में पहली टकसाल देवी मोनेटा के मन्दिर मे स्थापित की गई थी. इस टकसाल से उत्पादित सिक्कों का नाम देवी मोनेटा के नाम पर मनी पड़ गया जो धीरे धीरे मुद्रा के रूप में प्रयुक्त किया जाने लगा.

चीन के साथ भारत भी विश्व में प्रथम सिक्के जारी करने वाले देशों में से एक हैं. मौर्यकाल के चाँदी के सिक्के इस बात को सत्य सिद्ध करते हैं.

भारत में पहला रुपया शेरशाह सूरी द्वारा जारी किया गया था. वर्तमान में भारत में 1 रूपये, 2 रूपये, 5 रूपये तथा 10 रूपये के सिक्के जारी किये जा रहे हैं.

भारत के केन्द्रीय बैंक भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा 10,20, 50,100, 200, 2000 मूल्यवर्ग के बैंक नोट जारी करता हैं. 1,2,5 रूपये के सिक्कों का उत्पादन अब बंद कर दिया गया है लेकिन ये अब प्रचलन में हैं. 8 नवम्बर 2016 को 500 और 1000 के नोटों को विमुद्रीकरण / नोटबंदी की घोषणा की गई.

प्रचलित मुद्रा की कानूनी वैधता समाप्त करके उसे प्रचलन से हटाना ही विमुद्रीकरण कहलाता हैं. वित्तीय शिक्षा प्रदान करने हेतु भारतीय रिजर्व बैंक ने प्रोजेक्ट वित्तीय साक्षरता प्रारम्भ किया हैं.

मुद्रा का विकास (development of money from ancient to modern period)

मुद्रा का आविष्कार एक संयोग हैं. इससे पूर्व वस्तु विनिमय पद्धति प्रारम्भ हुई और फिर मुद्रा का विकास हुआ. वस्तु विनिमय की कठिनाइयों के कारण मनुष्य जाति द्वारा विनिमय को सुगम बनाने के लिए मुद्रा का विकास किया गया था.

वस्तुओं व सेवाओं के बदले में वस्तुओं व सेवाओं का आदान प्रदान वस्तु विनिमय कहलाता हैं. वस्तु विनिमय प्रणाली में मूल्य के एक समान मापक का अभाव था. इस प्रणाली में वस्तुओं के रूप में धन या मूल्य का हस्तांतरण बहुत जोखिम भरा था.

इसी कारण इसे त्याग कर मौद्रिक विनिमय को अपनाया गया. वस्तु मुद्रा का स्थान धातु मुद्रा ने ले लिया. जिसमें धातु निर्मित वस्तुओं तथा वस्तुओं के टुकड़ों ने मुद्रा का कार्य किया.

धातु के सिक्कों का प्रयोग चीन, भारत व मिस्र में प्रारम्भ हुआ था. धातु मुद्रा की सीमाओं के कारण पत्र मुद्रा का विकास हुआ. पत्र मुद्रा आगे चलकर साख मुद्रा मर बदल गई जो अंततः मुद्रा के अस्तित्व में आई.

मुद्रा के कार्य (function of money in hindi)

मुद्रा के विभिन्न कार्य हैं. विनिमय का माध्यम, खाते की इकाई या मूल्य का मापक, विलम्बित भुगतानों का मानक, मूल्य का भंडार, मूल्य का हस्तान्तरण, साख का आधार प्रदान करना, बचतों को निवेशों में परिवर्तित करना आदि.

मुद्रा की सहायता से ही बचतों को निवेशों में परिवर्तित करना संभव हो पाया हैं. मुद्रा से निवेश व अर्थव्यवस्था की उत्पादन क्षमता में वृद्धि होती हैं. निवेश का तात्पर्य उस व्यय से हैं. जो अर्थव्यवस्था में वास्तविक उत्पादन संपदा के स्टॉक में वृद्धि करता हैं.

मुद्रा के द्वारा श्रम विभाजन व विशिष्टीकरण को अपनाने से बड़े पैमाने पर उत्पादन संभव हो पाया हैं. मुद्रा के कारण ही राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के क्षेत्र में तीव्र वृद्धि हुई हैं. ,मानव का विकास भी मुद्रा के आविष्कार के कारण ही संभव हो पाया हैं.

Short essay on indian currency in hindi – रुपये की नई पहचान

रुपये का परिचय– भारतीय मुद्रा का नाम रुपया संस्कृत के रूप्यकम शब्द से बना हैं. और इसका प्रचलन ईसा पूर्व छठी शताब्दी से प्रारम्भ हुआ था.

रुपी अथवा रूपैया को टकसाल में ढालने का काम शेरशाह सूरी ने शुरू किया था. वर्ष 1935 में रिजर्व बैंक की स्थापना होने तथा उसके बाद स्वतंत्रता मिलने पर नोटों का प्रचलन होने लगा.

यदपि पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, मालदीव, मारीशस, सेशल्स और इंडोनेशिया आदि देशों में रुपया नामधारी मुद्रा का प्रयोग होता हैं. परन्तु यह स्वतंत्र भारत की आधिकारिक मुद्रा हैं.

अमरीका, यूरोपीय देश, जापान व ब्रिटेन जैसे विकसित देशों की मुद्राए के जो प्रतीक चिह्न अपनाएं गये हैं, उसी के अनुसार रुपये की पहचान के लिए नया चिह्न अपनाकर मुद्रा जगत में उसकी प्रतिष्ठा को बढ़ाने का प्रयास किया गया हैं.

नया प्रतीक व चिह्न निर्धारण– भारतीय उपमहाद्वीप में मुद्रा के रूप में रुपये का विशिष्ठ महत्व हैं. और आर्थिक दृष्टि से इसका गौरवशाली इतिहास रहा हैं.

डॉलर, यूरो, येन एवं पौंड स्टर्लिंग की तरह रुपये का भी कोई प्रतीक चिह्न हो इस दृष्टि से विश्व के डिजायनरों से प्रविष्टियाँ मांगी गई.

इस प्रतियोगिता में आइआइटी मुंबई के पोस्ट ग्रेजुएट डी उदयकुमार ने जो प्रतीक चिह्न प्रस्तुत किया, उसे सर्वश्रेष्ठ मानकर स्वीकार किया गया.

यह भारतीय सांस्कृतिक एवं नैतिक मानदंडों के अनुरूप तथा भारतीयता की पहचान समन्वित हैं. इस प्रकार 2010 में डी उदयकुमार द्वारा डिजायन किया गया प्रतीक चिह्न रुपये की नई पहचान के रूप में अपनाया गया. जो कि आर्थिक जगत में इसके वैश्विक स्वरूप को स्थापित करेगा.

रुपये का अपना नया चेहरा-रुपये के नयें चेहरे के रूप में जो प्रतीक चिह्न अपनाया गया हैं, वह संस्कृत के र तथा अंग्रेजी के आर के सुंदर समन्वय से निर्मित हैं.

यह देवनागरी लिपि में होने से सुघड़, सुंदर, सरल और सटीक प्रतीक चिह्न हैं. वस्तुतः यह एक प्रतीक मात्र नहीं हैं अपितु राष्ट्र की आर्थिक शक्ति व आत्मविश्वास का प्रतीक हैं. इससे अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार में रुपये की मज बूती बन सकेगी.

डॉलर, येन, यूरों एवं पौंड की तरह रुपया अभी तक विश्व में पूर्ण परिवर्तनीय नहीं हैं. भविष्य में रुपया भी अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में पूर्ण परिवर्तनीय हो सकेगा. और भारतीय अर्थव्यवस्था को तेज गति देने में सहायक होगा.

रुपये की गरिमा वृद्धि– भारतीय अर्थव्यवस्था में तमाम अवरोधों के बावजूद जीडीपी वृद्धि की जो रफ्तार बनी हुई हैं, वह आगामी कुछ वर्षों में बनी रहेगी. ऐसा सभी अर्थशास्त्रियों का मत हैं. इस दशा में विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ता रहेगा.

मुद्रा स्फीति नियंत्रित रहेगी और मंदी की मार का भी कोई असर नहीं रहेगा. उस दशा में रुपये की गरिमा वृद्धि निश्चित ही होगी.

और उसकी गणना विश्व की अग्रणी अर्थव्यवस्थाओं में होने लगेगी. इस दृष्टि से रुपये की नई पहचान का प्रतीक चिह्न रू इसे मुद्रा बाजार में वैश्विक स्थान देकर देश का गौरव बढ़ाने में सक्षम होगा.

उपसंहार– भारतीय मुद्रा अर्थात रुपये का आधिकारिक चिह्न इसकी नई पहचान बन गया हैं. इस प्रतीक चिह्न का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रयोग होने लगा हैं.

तथा निकट भविष्य में यह भारतीय अर्थव्यवस्था को नई दिशा और आत्मविश्वास प्रदान करेगा.

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