भारतीय अर्थव्यवस्था पर निबंध । Essay on Indian Economy in Hindi

नमस्कार दोस्तों, आज हम भारतीय अर्थव्यवस्था पर निबंध । Essay on Indian Economy in Hindi लेकर आए हैं।

प्रत्येक देश का आर्थिक तंत्र कुछ विशिष्ट स्तम्भों पर खड़ा होता है भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि आधारीत है विकासशील स्वरूप में है।

इंडियन इकोनॉमी हिस्ट्री प्रकार स्वरूप विशेषताएं कृषि योगदान व अन्य देशों के प्रभाव को पढ़ेगे। भारतीय अर्थव्यवस्था निबंध भाषण स्पीच अनुच्छेद पैराग्राफ यहाँ दिया गया हैं।

भारतीय अर्थव्यवस्था पर निबंध । Essay on Indian Economy in Hindi

भारतीय अर्थव्यवस्था पर निबंध । Essay on Indian Economy in Hindi

इंडियन इकोनॉमी एस्से हिस्ट्री इतिहास इन हिंदी : आपने भारत के संबंध में एक उपमा सोने की चिड़िया अवश्य सुनी होगी। यह प्राचीन भारतीय अर्थव्यवस्था की समृद्धि को अभिव्यंजित करने वाली उक्ति हैं।

प्रसिद्ध अर्थशास्त्री मेडिसिन ने भी भारत के बारे में कहा था कि प्रथम सदी से दसवीं सदी तक भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी।

यह दौर भारतीय अर्थव्यवस्था का स्वर्णिम काल था, जब समूची वैश्विक इकोनॉमी में भारतीय वर्चस्व था। एक अनुमान के मुताबिक पहली सदी में भारतीय अर्थव्यवस्था का विश्व की इकोनॉमी के कुल सकल घरेलू उत्पाद जीडीपी में 33 प्रतिशत हिस्सेदारी थी।

जो दसवीं सदी के उतर्राद्ध में 30 फीसदी व सत्रहवीं सदी आते आते 25 प्रतिशत तक रह गईं थी। भारतीय अर्थव्यवस्था का सबसे बुरा कालखण्ड अंग्रेजी हुकूमत का समय रहा।

अंग्रेजी उपनिवेश वादी नीतियों के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था का जमकर शोषण हुआ। देश की लगभग समस्त पूंजी ब्रिटेन में स्थानांतरित होती रही।

वर्ष 1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ तब भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति उस खण्डहर की अवस्था में थी, जो पूर्व में एक समृद्ध राजमहल हुआ करता था।

भारत ने स्वतंत्रता के बाद मिश्रित समाजवादी प्रणाली की ओर कदम बढ़ाए। परम्परागत आधार कृषि पर अधिक ध्यान देने की बजाय उद्योग और सेवा क्षेत्र को अधिक प्रोत्साहित किया गया।

चूंकि उस समय विश्व अमेरिका और सोवियत रूस इन दो महाशक्तियों में बंटा था, भारत की नजदीकियां सोवियत रूस से अपेक्षाकृत अधिक थी। मगर 1991 में सोवियत संघ के विघटन के साथ ही भारत में समाजवादी प्रणाली का अंत हो गया।

हम भारतीय अर्थव्यवस्था के आधुनिक इतिहास को आजादी से लेकर 1991 और 1991 से लेकर वर्तमान तक इन दो भागों में विभक्त कर सकते है।

स्वतन्त्रता के बाद वर्ष 1991 भारत की अर्थव्यवस्था के लिए महामन्दी एवं नवीन दिशा का वर्ष साबित हुआ। भारत ने अपनी आर्थिक नीतियों में मूलभूत बदलाव किए और बन्द अर्थव्यवस्था को छोड़कर उदारवार को अपनाया।

भारतीय अर्थव्यवस्था के इतिहास पर निबंध । Essay on History Of Indian Economy in Hindi

तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव के नेतृत्व में वित्त मंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने भारत की नवीन नीतियों का निर्धारण किया।

राव की सरकार की मंदी की मार से बचने के लिए राजकोष में जमा सोना तक गिरवी रखना पड़ा था। धीरे धीरे भारत ने खुले वैश्विक बाजार में अपना स्थान बनाना शुरू किया।

अब भारतीय अर्थव्यवस्था सोवियत संघ के सहयोग का त्याग कर अमेरिका की तरफ रुख किया। यह फायदे का सौदा साबित हुआ और भारत अमेरिका का एक बड़ा व्यापारिक मित्र बन गया।

वर्ष 2000 के बाद भारत की अर्थव्यवस्था की गिनती दुनिया की सबसे तेज विकास करने वाली अर्थव्यवस्था रही।

2003 में देश की विकास दर 8.3 प्रतिशत थी जो 2005 से 2008 के समय मे लगभग 9 प्रतिशत की विकास दर से आगे बढ़ी।

2004 से 2011 इन 7 वर्षों की अवधि में भारत की ग्रोथ रेट औसतन 8.3 थी जो समकालीन अन्य देशों की तुलना में काफी बेहतर थी।

वर्ष 2012-13 की वैश्विक महामन्दी के चलते विकास दर गिरकर 4.5 प्रतिशत रह गयी, जो पिछले 25 वर्षों के इतिहास में अपने आप न्यूनतम स्तर था।

आकार व क्रय शक्ति के नजरिये से भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व की तीसरी बड़ी इकॉनोमी है। वर्ष 2020 में भारत का कुल सकल घरेलू उत्पाद 3.202 ट्रिलियन डॉलर हो गया है।

वही जीडीपी पैमाने के अनुसार अमेरिका, चीन, जापान, जर्मनी व ब्रिटेन के बाद भारत का छठा स्थान है। जो फ्रांस को पीछे छोड़कर प्राप्त किया था।

भारतीय अर्थव्यवस्था की विशेषताएं Features of Indian Economy in Hindi

यदि हम भारतीय अर्थव्यवस्था की विशेषताओं का अध्ययन करें तो मालूम पड़ता है कि विश्व की अन्य अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में यह अधिक टिकाऊ तथा भविष्य में असीम संभावनाओं को लिए हुए है।

चलिए हम भारत की अर्थव्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं को एक एक कर जानने का प्रयास करते है।

मिश्रित भारतीय अर्थव्यवस्था Mixed Indian economy

देश में व्यापक स्तर पर निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र है, जो परस्पर सहयोग एवं समन्वय के साथ काम करते है। मिश्रित अर्थव्यवस्था के इस स्वरूप में कृषि, उद्योग व सेवा क्षेत्र में विशेष तौर पर दोनों क्षेत्रों की संयुक्त भागीदारी देखने को मिलती है।

आजादी के बाद से निजी क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए सरकारों का रुख सकारात्मक रहा है। निजी उपक्रमों के संचालन कठिनाइयां आने पर उन्हें सार्वजनिक क्षेत्र में शामिल किया जाता रहा है।

1991 में भारत मे उदारीकरण की शुरुआत के साथ ही अन्य देशों की निजी कंपनियों को भी भारत में काम करने उद्योग आदि विकसित करने का अवसर मिला। वहीं कई महत्वपूर्ण क्षेत्र जैसे रेलवे, हवाई जहाज एवं रक्षा व सैन्य पर सरकारी एकाधिकार है।

भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान Role of Agriculture in Indian Economy

भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि एवं प्राथमिक क्षेत्र का बड़ा योगदान है। देश की 65 फीसदी आबादी जो गांवों में निवास करती है। उनका मुख्य व्यवसाय कृषि व सम्बद्ध क्षेत्र ही है।

देश की अर्थव्यवस्था को कृषि आधारीत माना गया है। आजादी के समय कृषि का कुल सकल घरेलू उत्पाद में योगदान आधे से अधिक था, अब इस क्षेत्र का योगदान महज 30 प्रतिशत के आस पास रह गया है।

कृषि तथा पशुपालन को भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी कहा जाता है। कृषि उत्पाद यथा अनाज , साक सब्जियां, फल दालें और तिलहन हमारे निर्यात में बड़ा योगदान देते है।

साथ ही इस क्षेत्र द्वारा देश की 1.3 अरब आबादी का पेट भरने का कार्य भी किया जाता है, जिससे हम आयात को कम कर आत्म निर्भर बनने की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं।

अंतरराष्ट्रीय बाजार में कृषि उत्पादों की मांग सदैव बनी रहती है, इस कारण मंदी के समय भी भारतीय इकोनॉमी अन्य देशों की तुलना में कम प्रभावित होती है। भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि उद्योग तथा सेवा क्षेत्र में अद्भुत समन्वय है जो इसकी अनूठी विशेषता है।

कृषि और औद्योगिक क्षेत्र Agricultural and Industrial Area

19 वीं आदि तक अधिकांश अर्थव्यवस्थाएं प्राथमिक क्षेत्रों तक केंद्रित थी। मगर इस दौर में हुए तीव्र औद्योगिक विकास के कारण उद्योग कृषि की तुलना में अधिक विकसित होते चले गए।

भारत ने इन दोनों क्षेत्रों को परस्पर सहयोगी बनाते हुए दोनों को प्रोत्साहित किया। इससे नवीन सेवा क्षेत्र का उद्भव हुआ।

उद्योगों को लगभग सम्पूर्ण कच्चे माल की प्राप्ति कृषि से ही होती है। जो कच्चे माल अथवा उपयोग हेतु पदार्थो को परिष्कृत कर बाजार में पहुंचाते हैं।

सेवा क्षेत्र का जन्म

पिछले कुछ वर्षों से देश के अर्थतन्त्र में सेवा क्षेत्र की सलग्नता बढ़ी है। सूचना प्रद्योगिकी एवं तकनीकी क्षेत्रों के विकास ने इस क्षेत्र को अधिक उन्नत बनाया है।

हाल ही के वर्षों में सबसे अधिक लोगों के लिए रोजगार की संभावनाओं को भी इसने पैदा किया हैं। सेवा क्षेत्र के विकास का सर्वाधिक लाभ व्यापार को मिला हैं, इसकी मदद से भारत वैश्विक बाजार में अपनी जड़ें मजबूती से जमा पाया हैं।

इंटरनेट इकोनॉमी

भारत विश्व की सबसे बड़ी इंटरनेट इकोनोमी बन चुकी हैं, ई कॉमर्स, सोशल मिडिया और डिजिटल मार्केटिंग में भारत का डंका दुनिया भर में गूंज रहा हैं,

साल 2020 की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत की कुल अर्थव्यवस्था में इंटरनेट का 16 प्रतिशत जीडीपी में योगदान हैं.

रिपोर्ट के अनुसार इस सालाना वर्ष में इंटरनेट इकोनॉमी से 537 बिलियन डॉलर का योगदान था. आगे वाले कुछ वर्षों में भारतीय इंटरनेट इकोनॉमी का आकार एक ट्रिलियन डॉलर तक पहुच जाने की सम्भावना हैं. भारत के कई बड़े स्टार्टअप आज इन्टरनेट की दुनियां में छाए हुए हैं.

भारतीय अर्थव्यवस्था की अन्य विशेषताएं

भारत विश्व का सबसे बड़ा बाजार बनता जा रहा है, साथ ही अर्थव्यवस्था भी तेजगति से आगे बढ़ रही है। कई नए सेक्टर और स्टार्ट अप खुल रहे है।

बड़ी बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत में निवेश के लिए तत्पर है। भारत मानवीय संसाधनों की दृष्टि से संपन्न है इस तरह यहाँ विश्व का सबसे तेजी से उभरता बड़ा बाजार है।

Essay On Indian Economy In Hindi Pdf भारत की अर्थव्यवस्था का अविकसित स्वरूप पर निबंध

भारत की अर्थव्यवस्था के अविकसित स्वरूप को दर्शाने वाले घटकों में निम्न प्रति व्यक्ति आय, कृषि पर अत्यधिक निर्भरता, उत्पादन की पुरानी तकनीक, छिपी हुई तथा सरंचनात्मक बेरोजगारी की अधिकता, उच्च जनसंख्या वृद्धि दर, जीवन की निम्न गुणवत्ता, गरीबी की समस्या, बेरोजगारी की समस्या आदि शामिल हैं. ये भारत की अर्थव्यवस्था में प्रगति के बाधक कारण रहे हैं. जिन्हें हम यहाँ विस्तार से जानेगे.

प्रति व्यक्ति आय

भारत में प्रति व्यक्ति आय का स्तर बहुत नीचे हैं. जो इसके अविकसित अर्थव्यवस्था होने का प्रतीक हैं. विश्व बैंक के अनुसार 2015 में भारत की प्रति व्यक्ति सकल घरेलू आय 1590 अमेरिकी डॉलर थी. प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय में भारत का स्थान विश्व में 170 वां रहा हैं.

भारत की प्रति व्यक्ति सकल आय न केवल संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड, फ़्रांस, जर्मनी जैसे विकसित देशों से कम है, बल्कि चीन तथा श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों की तुलना में भी कम हैं. प्रति व्यक्ति आय के निम्न स्तर के फलस्वरूप लोगों का जीवन स्तर भी निम्न बना रहता हैं.

 जीवन की निम्न गुणवत्ता

शिक्षा और स्वास्थ्य जीवन की गुणवत्ता के दो प्रभावी निर्धारक और संकेतक हैं. ये मानव कल्याण के अभिन्न अंग हैं. इनके अभाव में आय अर्थहीन हो जाती है

जब लोगों में ज्ञान प्राप्ति की इच्छा तथा स्वस्थ जीवन जीने की क्षमता होती है तभी वह आय का उपयोग करने में सक्षम हो पाते हैं.

भारत में शिक्षा का स्तर बहुत कमजोर हैं. जो निम्न साक्षरता दर से प्रतिबिम्बित होता हैं. वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में साक्षरता दर 74.04 प्रतिशत थी. जनसंख्या का लगभग एक चौथाई भाग आज भी निरक्षर हैं.

गरीबी की समस्या-

सभी अविकसित राष्ट्रों की तरह भारत भी गरीबी की समस्या का सामना कर रहा हैं. सुरेश तेंदुलकर नामक अर्थशास्त्री के अनुमानों के अनुसार वर्ष 2011-12 में भारत में 21.92 प्रतिशत लोग गरीब थे.

गरीबी वह स्थिति हैं जिसमें व्यक्ति अपनी बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने में भी असफल रहता है. स्वतंत्रता के पश्चात अभी तक गरीबी का निवारण नही हो पाया हैं.

कृषि पर अत्यधिक निर्भरता

जैसे जैसे अर्थव्यवस्था का विकास होता है, कृषि क्षेत्र पर इसकी निर्भरता में कमी आती हैं. तथा उद्योग एवं सेवा क्षेत्र पर निर्भरता में वृद्धि होती हैं.

यदपि भारत में भी कृषि क्षेत्र पर निर्भरता में कमी आई है, लेकिन यह कमी धीमी रही हैं. स्वतंत्रता के समय लगभग 72 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर आश्रित थी.

आज भी कुल रोजगार का लगभग 49 प्रतिशत एवं सहायक क्षेत्रों में कार्यरत हैं. कृषि क्षेत्र गैर कृषि क्षेत्र की ओर श्रम का पलायन तो हुआ लेकिन यह बहुत धीमा रहा हैं. कृषि पर अत्यधिक निर्भरता भारतीय अर्थव्यवस्था के अविकसित स्वरूप का प्रतीक हैं.

जनसांख्यिकी कारक

अनेक जनांकिकीय कारक भारतीय अर्थव्यवस्था के पिछड़ेपन को व्यक्त करते हैं. भारत में जन्मदर बहुत ऊँची हैं. मातृ मृत्यु दर, बाल मृत्युदर, शिशु मृत्यु दर का स्तर भी ऊँचा बना हुआ हैं.

भारतीय जनसंख्या की वृद्धि दर बहुत अधिक हैं. 2001 से 2011 के दशक में भारत की जनसंख्या की वृद्धि दर 17.64 प्रतिशत रही है. भारतीय जनसंख्या का आकार बहुत बड़ा है तथा यह निरंतर तेजी से बढ़ता जा रहा हैं.

बेरोजगारी की समस्या

भारतीय अर्थव्यवस्था की कृषि पर अत्यधिक निर्भरता तथा उद्योगों एवं सेवा क्षेत्र के मंद विकास के कारण देश को छिपी हुई बेरोजगारी का सामना करना पड़ता हैं.

यदपि भारत में बेरोजगारी के सभी प्रकार पाए जाते हैं लेकिन यहाँ संरचनात्मक तथा छिपी हुई बेरोजगारी की समस्या सर्वाधिक गम्भीर हैं.

उत्पादन की तकनीक का पिछड़ा होना

अर्थव्यवस्था के पिछड़ेपन का एक बड़ा कारण उत्पादन की तकनीक का पिछड़ा होना हैं. आधुनिक तकनीक के अभाव में उत्पादकता का स्तर निम्न बना रहता हैं.

लम्बे समय तक यह माना जाता रहा है कि प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता ही विकास का प्रभावशाली कारक हैं लेकिन जापान के तीव्र विकास ने तकनीकी के योगदान को सिद्ध कर दिया हैं. भारत में धीमे आर्थिक विकास का एक कारण नवीन तकनीक का अभाव हैं.

FAQ

आकार के लिहाज से भारतीय अर्थव्यवस्था किस पायदान पर हैं?

भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं.

भारतीय अर्थव्यवस्था कितनी वृद्धि दर से आगे बढ़ रही हैं?

भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार इस वित्तीय वर्ष में भारत की ग्रोथ रेट 9.5 प्रतिशत रहने का अनुमान हैं.

भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार क्या हैं?

कृषि

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