महंगाई पर निबंध | Essay On Inflation In Hindi

Essay On Inflation In Hindi प्रिय विद्यार्थियों आपका स्वागत हैं आज हम महंगाई पर निबंध आपके लिए यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं. तेजी से बढ़ती महंगाई आज वैश्विक समस्या का रूप धारण कर चुकी हैं.

महंगाई की समस्या पर निबंध में हम कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10 के बच्चों के लिए 5,10 लाइन, 100, 200, 250, 300, 400 और 500 शब्दों बढ़ती महंगाई की समस्या पर निबंध बता रहे हैं.

महंगाई पर निबंध Essay On Inflation In Hindi

महंगाई पर निबंध Essay On Inflation In Hindi

सखी सैया खूब कमात हैं महंगाई डायन खाय जात हैं” ये कुछ बोल आज की परिस्थति को स्पष्ट बया करते हैं. आज का मध्यवर्गीय परिवार सबसे अधिक महंगाई की मार झेल रहा हैं. 

महंगाई की समस्या धीरे-धीरे दानवी रूप ले रही हैं. जो इसानों को जीते जी मार डालने में कोई कसर नही छोड़ रही हैं.

आज के समय में एक साधारण इंसान के लिए मेहनत कर अपने परिवार का गुजारा करना मुश्किल सा हो गया हैं. यहाँ तक की रोटी कपड़ा और मकान जैसी बुनियादी चीजो की पूर्ति करना बड़ा मुश्किल हैं.

महंगाई का अर्थ वस्तुओ की कीमत में वृद्धि से हैं. यह समस्या सिर्फ भारत में ही नही बल्कि दुनिया के अधिकतर देश भी महंगाई की मार झेल रहे हैं.

जीवन के लिए जरूरतमंद कीमतों में बढ़ोतरी के कारण आज आलम यह हैं, कि साधारण व्यक्ति जी तोड़ मेहनत के बावजूद अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ नही कर पाता हैं.

वैश्विक परिद्रश्य में आर्थिक समस्याओं पर गौर करे, तो ये महंगाई पहले स्थान पर काबिज हैं. क्युकि इसकी वजह से ही अधिकतर समस्याओँ का जन्म हुआ हैं.

महंगाई का सम्बन्ध वस्तुओं की सम्पूर्ण मांग और आपूर्ति से होता हैं. जनसंख्या बढ़ोतरी से प्रत्येक वस्तु की मांग पहले से कई गुना बढ़ने लगी, पर्याप्त मात्रा में उत्पादन ना होने के कारण उनकी कीमतों में वृद्धि स्वाभाविक हैं.

इसके अलावा एक वस्तु के उत्पादन से ग्राहक तक पहुचने तक कई चरणों से गुजरना पड़ता हैं. जिसमे कुछ ऐसे असामाजिक संस्थाएँ एवं तत्व होते हैं, जो प्रत्यक्ष रूप से इनकी आपूर्ति को प्रभावित करते हैं.

वर्तमान समय में हमारे देश में दो विभिन्न मापको द्वारा महंगाई का आकलन किया जाता हैं, जिनमे पहला कंज्यूमर वैल्यू इंडिकेटर और दूसरा स्टॉक वैल्यू इंडिकेटर.

प्रति 7 दिनों में इन मापको द्वारा मुद्रा स्फीति की दर वस्तु के वास्तविक मूल्य और महंगाई का आकलन किया जाता हैं. महंगाई का वास्तविक आधार कंज्यूमर वैल्यू इंडिकेटर ही होता हैं.

महंगाई के कारण

महंगाई के लिए मुख्य तौर पर आर्थिक कारणों को ही जिम्मेदार ठहराया जाता हैं, जबकि इसके पीछे कई सामाजिक और राजनितिक कारण जुड़े होते हैं.

जिनमे मुद्रास्फीति, जनसंख्या विस्फोट, मुनाफाखोरी, जमाखोरी, गरीबी-अमीरी का अंतर, भ्रष्टाचार. जिनमे सबसे मुख्य मुद्रास्फीति माना जाता हैं,

इसके कारण न सिर्फ वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोतरी होती हैं, बल्कि मुद्रा की वैल्यू में भी गिरावट आती हैं. दूसरी तरफ आज जिस गति से लोगों की संख्या बढ़ रही हैं, उनकी बनिस्पद संसाधन नही बढ़ रहे हैं.

अधिक मांग और कम आपूर्ति के कारण स्वाभाविक रूप से महंगाई में बढ़ोतरी होती हैं. हाल ही के कुछ वर्षो में प्याज, टमाटर और दालों के भावों में अनियंत्रित वृद्धि हुई हैं.

जिसके कारण कृषि के लिए आवश्यक सामान और बीज, उर्वरक आदि में बढ़ोतरी दर्ज हुई हैं. इस सम्बन्ध में सरकार द्वारा सार्वजनिक वितरण प्रणाली को अपनाते हुए मध्यमवर्गीय परिवारों तक सभी आवश्यक वस्तुओं के पहचानें का सार्थक प्रयास किया हैं.

फिर भी हमारे सिस्टम में व्याप्त भ्रष्टाचार और सरकारी तन्त्र के ढीले रवैये के कारण इस प्रकार के कार्यक्रम प्रभावी रूप से क्रियान्वित नही किये जा सके हैं. कई बार देखा गया हैं.

कृषि उत्पाद जैसे दाल और प्याज टमाटर की बंफर उत्पादन के बावजूद भी उनकी कीमतों में गिरावट नही आ पाती हैं. जिनकी मुख्य वजह कालाबजारी, जमाखोरी और हमारे तन्त्र में व्याप्त भ्रष्टाचार अहम कारण हैं.

जमाखोरी का समूह इस प्रकार की स्थतियो को पैदा करने का अवसर हमेशा ढूढ़ ही लेता हैं. अधिक मात्रा में उत्पादन के तदोपरांत वे उन उत्पादों को क्रय कर संग्रहित कर लेते हैं.

तथा बाजार में स्वनिर्मित कमी का माहौल बना दिया जाता हैं. इसी का नतीजा अधिक मांग और उत्पादन की वस्तुओ की कमी के कारण महंगाई में बढ़ोतरी हो जाती हैं.

इस अवसर का फायदा उठाकर कम कीमत में खरीदी गईं वस्तुओं को अधिक दाम में बेचकर जमाखोर अधिक लाभ कमाते हैं. सामान्यता महंगाई के कारन तेजी से आर्थिक विकास और अर्थव्यवस्था सूचकांक में वृद्धि से अधिक नुक्सान ही वास्तविक रूप से देखने को मिलता हैं.

महंगाई का ही नतीजा हैं. एक समय दाल और अन्य हरी सब्जियों की कीमत 15-20 रूपये के आस-पास थी. जो अब अनियंत्रित वृद्दि के साथ 200 रूपये प्रति किलों से अधिक हो चुकी हैं.

आम आदमी की पहुच से आवश्यक वस्तुओ की दुरी बढ़ने के कारण उनके जीवन स्तर और औसत गरीबी प्रतिशत में इजाफा हुआ हैं.

भ्रष्ट-आचार को बंद कर दों, 

थोड़ी कंम कर दों महंगाई कों।।
 घोटाले पे घोटाले कब तक होंगे,

कब तक भुख मरते रहेंगे आमलोग। 

कंब तक आब्रू लूटती रहेगी। 

कब तक रहेगा क़ुरिया में शोक।।

लोगों द्वारा नाजायज तरीके से धन कमाने की इस बदनीयत के कारण समाज में गरीब-अमीर की अस्मानता का ग्राफ निरंतर बढ़ रहा हैं. धन सम्पन्न लोगों पर इसका कोई बड़ा फर्क नही पड़ रहा हैं.

तेजी से बढती इस महंगाई के कारण आम जन का जीना दूभर हो गया हैं, फिर भविष्य निधि, किसी व्यवसाय के लिए अथवा धन की बचत करने का सवाल ही खत्म हो जाता हैं.

वे रोजमर्रा की वस्तुओं की पूर्ति भी ठीक ढंग से नही कर पाते हैं. और गरीबी का स्तर निरंतर बढ़ता ही जाता हैं.

पॉकेट में पीड़ा भरी कौन सुने फ़रियाद
यह महंगाई देखकर वह दिन आते याद
वह दिन आते याद, जेब में पैसे रखकर
सौदा लाते थे बाजार से थैला भरकर
धक्का मारा युग ने मुद्रा की क्रेडिट में,
थैले में रूपये हैं, सौदा हैं पॉकेट में |

आज हमारे देश में जिस तरह महंगाई में निरंतर बढ़ोतरी हो रही हैं, उनके दुष्परिणाम हर दिन देखने को मिल रहे हैं.

इसके परिणामो के रूप में देश की आर्थिक तरक्की में रूकावट, गरीबी का ग्राफ बढ़ना, गरीब अमीर के बिच के अंतर का बढ़ना, शिक्षित बेरोजगारी जैसे कई बड़े भयकर परिणाम सामने आ रहे हैं.

महंगाई कम करने के उपाय

आज के समय में निरंतर बढ़ रही महंगाई पर लगाम कसने की सख्त आवश्यकता हैं. मुख्य रूप से सभी को अन्न उपजाकर देने वाले कृषक के लिए बीज, उवरक, खेती के उपकरण, बिजली जैसे साधन सस्ते उपलब्ध होने पर उत्पादन पर लगने वाली लागत में कमी आएगी,

इससे वस्तुओ की वास्तविक कीमत में कमी हो सकती हैं. जो महंगाई को कम करने में मददगार साबित हो सकती हैं.

दूसरी तरफ सरकारी द्वारा चलाई जा रही सार्वजनिक वितरण प्रणाली में कमी करके, भ्रष्टाचार करने वाले लोगों पर लगाम कसकर, मुद्रास्फीति के स्तर को कम करने के साथ ही जमाखोरी, कालाबाजारी और मिलावट खोरी पर कड़े नियम बनाकर महंगाई को नियंत्रित किया जा सकता हैं.

सारांश

किसी भी देश की आर्थिक तरक्की की के लिए बेलगाम बढती महंगाई सबसे खतरनाक संकेत हैं. हमारे देश में यदि सरकार और अन्य गैर सरकारी संस्थाओ के सहयोग से महंगाई को कम करने के लिए समय रहते आवश्यक कदम नही उठाएं गये तो निश्चित तौर पर आने वाले समय में कई खतरनाक विकृतियों को बढ़ावा मिलेगा.

देश की तरक्की ठप हो सकती हैं. महंगाई की मार से सबसे अधिक प्रभावित आम आदमी के जीवन स्तर पर सबसे अधिक बुरा प्रभाव पड़ सकता हैं. इसलिए समय रहते महंगाई की बढ़ती इस रफ़्तार को रोकने हेतु कारगर उपाय करने की आवश्यकता हैं.

बढ़ती महंगाई घटता जीवन स्तर- Mehangai Par Nibandh- Essay On Inflation In Hindi 

प्रस्तावना- वर्तमान काल में हमारे देश में महंगाई एक विकराल समस्या की तरह निरंतर बढ़ती जा रही हैं. पिछले कुछ वर्षों में इसका रूप और भयानक हो गया हैं.

मूल्य वृद्धि ने जनता की कमर तोड़ दी है. वस्तुओं के भाव आसमान छूने लगे हैं. इस कारण आम जनता आर्थिक तंगी से परेशान हैं.

महंगाई के कारण – यह महंगाई कई कारणों से बढ़ी है. गलत अर्थनीति व प्रशासन की कमजोरी के कारण व्यपारियो ने मनमाने भाव बढ़ा दिए हैं. मुनाफे के लोभ में व्यापारी माल को दबाकर रख लेते हैं.

जिससे बाजार में माल की कमी पड़ जाती हैं. और उसके भाव बढ़ जाते हैं. उत्पादन की कमी होने से वस्तुओं के भाव बढ़ जाते हैं.

माल के वितरण की व्यवस्था ठीक न होने या माल की पूर्ति न होने से भी व्यापारी मूल्य बढ़ा देते हैं. जनसंख्या की तीव्र वृद्धि भी एक कारण है. पेट्रोलियम पदार्थों की मूल्य वृद्धि से मालभाड़े में वृद्धि होने से भी महंगाई आसमान को छू रही हैं.

कर्मचारियों की वेतन वृद्धि का भी मूल्यों पर अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता हैं. रूपये की क्रय शक्ति कम होने तथा बार बार आम चुनाव होने से भी महंगाई बढ़ी हैं.

महंगाई का कुप्रभाव- बढ़ती हुई महंगाई से समाज में असंतोष फ़ैल रहा हैं. युवकों में तोड़फोड़ की प्रवृति पनप रही हैं. अपराधों को बढ़ावा मिल रहा हैं.

इसके फलस्वरूप आर्थिक विषमता के कारण समाज में इर्ष्या, द्वेष, कुंठा आदि विकार अशांति बढ़ा रहे हैं. रोटी, कपड़ा, मकान से सब परेशान हैं. सरकारी तंत्र महंगाई पर कारगर नियंत्रण नहीं रख पा रहा हैं.

सामान्य रूप से निम्न मध्यम वर्ग को महंगाई के कारण अनेक परेशानियां झेलनी पड़ रही हैं. क्रय शक्ति कमजोर होने से इस वर्ग के सामाजिक जीवन में भुखमरी फ़ैल रही हैं. संतुलित आहार न मिलने से अनेक रोग फ़ैल रहे हैं.

समस्या का समाधान- मूल्यवृद्धि की समस्या के समाधान का प्रथम उपाय यह है कि व्यापारियों, उद्योगपतियों तथा भ्रष्ट कर्मचारियों का नैतिक उत्थान किया जाए. कालाबजारी, मुनाफाखोरी पर पुर्णतः अंकुश लगाया जाए.

सरकार आवश्यक वस्तुओं के उचित मूल्य पर वितरण की व्यवस्था स्वयं करे. साथ ही जनसंख्या वृद्धि पर अंकुश लगाकर उत्पादन दर बढाई जाए. जनता में प्रदर्शन की प्रवृति पर अंकुश लगाया जाए और इसके लिए जन जागरण भी आवश्यक हैं.

उपसंहार- महंगाई पर नियंत्रण पाना जरुरी हैं. बढती हुई महंगाई से निम्न वर्ग की क्रय शक्ति ही कम नही नही हो रही, चोरी, लूट मार की दुष्प्रवृत्तियों को बढ़ावा मिल रहा हैं. परिणामस्वरूप सामाजिक जीवन में अशांति और असहयोग व्याप्त हैं.

Essay On Inflation In Hindi Language For Kids In 400 Words

प्रस्तावना– मुक्त बाजार, भूमंडलीकरण का दुष्प्रचार, विनिवेश का बुखार, छलांगे मारता शेयर बाजार, विदेशी निवेश के लिए पलक पावड़े बिछाती हमारी सरकार, उधार बांटने को बैंकों के मुक्त द्वार, इतने पर भी गरीब और निम्न मध्यम वर्ग पर महंगाई की मार, यह विकास की कैसी विचित्र अवधारणा हैं.

हमारे करमंत्री नए नए करों की जुगाड़ में तो जुटे रहते हैं, किन्तु महंगाई पर अंकुश लगाने में उनके सारे हाईटेक हथियार कुंद हो चुके हैं.

महंगाई का तांडव- जीवन यापन की वस्तुओं के मूल्य असाधारण रूप से बढ़ जाना महंगाई हैं. हमारे देश में महंगाई एक निरंतर चलने वाली समस्या बन चुकी हैं. इसकी सबसे अधिक मार सीमित आय वाले परिवार पर पड़ती हैं.

आज आम आदमी बाजार में कदम रखते हुए हडबडाता है. दैनिक उपभोग की वस्तुओं के भाव बढ़ते ही जा रहे हैं. आज वही वस्तुएं सबसे अधिक महंगी हो रही हैं. जिनके बिना गरीब आदमी का काम नहीं चल सकता.

महंगाई के कारण- महंगाई बढने के प्रमुख कारण इस प्रकार हैं.

  • उत्पादन कम और मांग अधिक
  • जमाखोरी की प्रवृत्ति
  • सरकार की अदूरदर्शी नीतियाँ तथा भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों और भ्रष्ट व्यवसायियों की सांठ गाँठ
  • जनता में वस्तु संग्रह की प्रवृत्ति
  • अंध परम्परा और दिखावे के कारण अपव्यय
  • जनसंख्या में निरंतर हो रही वृद्धि
  • सरकारी वितरण व्यवस्था की असफलता
  • अगाऊ सौदे और सट्टेबाजी

फिजूलखर्ची और प्रदर्शनप्रियता भी महंगाई बढने का एक कारण हैं. ऐसे लोग शादी विवाह में अनाप शनाप खर्च करते हैं और रहने को राजाओं जैसे महल बनाते हैं. आज राजतंत्र तो नहीं है किन्तु ये लोग लोकतंत्र में भी राजाओं की तरह जीते हैं उनको कबीर का यह दोहा याद नहीं रहा हैं.

कहा चिनावै मेडिया लांबी भीती उसारि
घर तो साडे तीन हथ घणा त पौने च्यारि

महंगाई का प्रभाव- महंगाई ने भारतीय समाज को आर्थिक रूप से जर्जर कर दिया है, पेट तो भरना ही होगा, कपड़े मोटे झोटे तो पहनने ही होंगे, सिर पर एक छत का इंतजाम तो करना ही होगा. मगर शुद्ध और मर्यादित आमदनी से तो यह संभव नहीं हैं.

परिणामस्वरूप अनैतिकता और भ्रष्टाचार के चरणों में समर्पण करना पड़ता हैं. निम्न वर्ग और मध्यम वर्ग का तो जीवन ही दुष्कर हो गया हैं. महंगाई के कारण ही अर्थव्यवस्था में स्थिरता नहीं आ पा रही हैं.

महंगाई रोकने के उपाय- महंगाई रोकने के लिए आवश्यक हैं कि बैंक अति उदारता से ऋण देने पर नियंत्रण करे, इससे बाजार में मुद्रा प्रवाह बढ़ता हैं. जीवन स्तर और प्रदर्शन के नाम पर धन का अपव्यय रोका जाना चाहिए, जमाखोरी और आवश्यक वस्तुओं के वायदा कारोबार पर रोक लगनी चाहिए,

आयात और निर्यात में संतुलन रखा जाना चाहिए. अंतिम उपाय है कि जनता महंगाई के विरुद्ध सीधी कार्यवाही करे. भ्रष्ट अधिकारियों तथा बेईमान व्यापारियों का घिराव, सामाजिक बहिष्कार तथा तिरस्कार किया जाय.

उपसंहार- महंगाई विश्वव्यापी समस्या हैं अंतर्राष्ट्रीय परिस्थतियां भी देश में महंगाई के लिए उत्तरदायी हैं. उदारीकरण के नाम पर विदेशी पूंजीनिवेशकों को शुल्कों में छूट तथा करों से मुक्ति प्रदान करना भी महंगाई को बढाता हैं.

यह विचार करने योग्य बात हैं. कि महंगाई खाने पीने की चीजों पर ही क्यों बढ़ती है, मोटरकारों, एसी तथा विलासिता की अन्य वस्तुओं पर क्यों नही?

महंगाई की समस्या पर निबंध Essay On Problem Of Inflation In Hindi

आज विश्व भर में मध्यम वर्ग महंगाई और तेजी से बढ़ते मूल्य वृद्धि की समस्या सामने आ रही हैं. भारत भी मूल्य वृद्धि की समस्या से अछूता नहीं हैं. महंगाई डायन खाये जात हैं कहावत से सभी परिचित हैं.

किस तरह एक आदमी का गुजारा करना कितना मुश्किल हो चुका हैं  भले ही  आवाम को अंग्रेजों से स्वतंत्र हो गई मगर आज वह मूल्य वृद्धि की प्रताड़ना झेल   रही हैं. मूल्य वृद्धि की समस्या और समाधान का निबंध यहाँ जानेगे.

बढ़ रहे हैं मूल्य तो क्या बढ़ रहा है देश
गिर रहे अधिकांश तो क्या उठ रहे हैं शेष

मुक्त बाजार, भूमंडलीकरण का दुष्प्रचार, विनिवेश का बुखार, छलांगे लगाता शेयर, बाजार, विदेशी निवेश के लिए पलक पावड़े बिछाती हमारी सरकार, उधार बांटने को बैंकों के मुक्त द्वार इतने पर भी गरीब और निम्न मध्यम वर्ग पर महंगाई की मार,यह विकास की कैसी विचित्र अवधारणा हैं.

हमारे कर मंत्री नए नए करों की जुगाड़ में तो जुटे रहते हैंकिन्तु महंगाई पर अंकुश लगाने में उनके सारे हाईटेक कुंद हो रहे हैं.

महंगाई की विनाश लीला– हमारे देश में महंगाई एक निरंतर चलने वाली समस्या बन चुकी हैं. इसकी सबसे अधिक मार सिमित आय वाले परिवार पर पड़ती हैं. लोगों की आय बाजार के अनुरूप नहीं बढ़ रही हैं.

अनाज, चीनी, तेल, ईधन, दाल, सब्जी, पेट्रोल, डीजल सभी के भाव आसमान को छू रहे हैं. पारिवारिक बजट गडबडा रहे हैं. निम्न वर्ग और निम्न मध्यम वर्ग का जीना दूभर होता जा रहा हैं.

महंगाई के कारण– महंगाई बढ़ने के प्रमुख कारण इस प्रकार हैं.

  • उत्पादन कम और मांग अधिक
  • जमाखोरी की प्रवृति
  • सरकार की अदूरदर्शी नीतियाँ तथा भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों और भ्रष्ट व्यवसायियों की सांठ गाँठ
  • जनता में वस्तुओं के संग्रह की प्रवृति
  • अंध परम्परा और दिखावे के कारण अपव्यय
  • जनसंख्या में निरंतर हो रही वृद्धि
  • सरकारी वितरण व्यवस्था की असफलता

महंगाई का स्वरूप– महंगाई सुरसा के मुख की तेजी से बढ़ रही हैं. सर्वाधिक मूल्य वृद्धि खाने पीने की वस्तुओं पर हो रही हैं. इससे गरीब लोग बुरी तरह त्रस्त हैं.

उनका स्वास्थ्य गिर रहा है तथा शरीर निर्बल हो रहा हैं. गेहूँ भंडारण के अभाव में भीगकर सड़ जाता हैं परन्तु सरकार उसे जरूरतमंदों में बाँट नहीं पाती.

महंगाई के प्रभाव– महंगाई ने भारतीय समाज को आर्थिक रूप से जर्जर किया है. आवश्यक जरूरतों की पूर्ति भी साफ़ और सर्वविदित आमदनी से तो सम्भव नहीं हैं. परिणामस्वरूप समाज में अनैतिकता और भ्रष्टाचार पनप रहा हैं.

महंगाई के कारण ही अर्थव्यवस्था में स्थिरता नहीं आ पा रही हैं. समाज में चोरी, छीना झपटी, डकैती आदि अपराध पनप रहे हैं. मूल्य वृद्धि सामाजिक अशांति का कारण भी बन सकती हैं.

महंगाई रोकने के उपाय– महंगाई को रोकने के लिए आवश्यक है कि बैंक अति उदारता से ऋण देने पर नियंत्रित करें. इससे बाजार में मुद्रा प्रवाह बढ़ता हैं. जीवन स्तर  और  प्रदर्शन के नाम पर  धन का अपव्यय रोका जाना  चाहिए.

जमाखोरी और आवश्यक वस्तुओं के  वायदा कारोबार पर रोक लगनी चाहिए. आयात  और  निर्यात व्यापार में संतुलन बनाया जाना चाहिए. उच्च पदाधिकारियों द्वारा गैर जिम्मेदारीपूर्ण बयानबाजी नहीं की जानी चाहिए.

इस दिशा में अंतिम उपाय जनता द्वारा सीधी कार्यवाही हैं. जमाखोर व्यापारियों और भ्रष्ट अधिकारियों का घेराव और सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए.

उपसंहार– अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियाँ भी एक सीमा पर महंगाई के लिए जिम्मेदार हैं लेकिन इनकी आड़ लेकर सरकार अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकती.

रिजर्व बैंक और सरकार के तकनीकी जादू टोनों से अगर महंगाई रूकनी होती तो कब की रूक जाती. मगर यहाँ तो हालत ये हैं मर्ज बढ़ता ही गया ज्यों ज्यों दवा की, जब तक मुक्त व्यापार के पाखंड की दुहाई देना छोड़ कर सरकार की बड़ी कार्यवाही नहीं करेगी, महंगाई नहीं रूकेगी.

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उम्मीद करता हूँ दोस्तों Essay On Inflation In Hindi & महंगाई पर निबंध का यह लेख आपकों पसंद आया होगा.

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