महात्मा बुद्ध की जीवनी व निबंध 2023 Biography Essay on Mahatma Buddha in Hindi

महात्मा बुद्ध की जीवनी व निबंध 2023 Biography Essay on Mahatma Buddha in Hindi : भारत महापुरुषों की भूमि रही है यहाँ महावीर स्वामी, भगवान राम और गौतम बुद्ध जैसे सत्य अहिंसा एवं धर्म की राह दिखाने का कार्य किया.

महात्मा बुद्ध जीवन इतिहास मानवीय आदर्शों का मिसाल रहा. इस लेख में में हम बुद्ध पर निबंध एस्से बायोग्राफी उपदेश हिस्ट्री शिक्षाएं बौद्ध धर्म की स्थापना के बारें में जानकारी साझा कर रहे हैं.

महात्मा बुद्ध की जीवनी निबंध Biography Essay on Mahatma Buddha in Hindi

महात्मा बुद्ध की जीवनी व निबंध 2023 Biography Essay on Mahatma Buddha in Hindi

Short Fact About Lord Buddha In Hindi

मूल नाम (Real Name)सिद्धार्थ
जन्म (Birth)563 ई पू
जन्म स्थान (Birth Place)लुम्बिनी नेपाल
पिता का नाम (Father’s name)शुद्धोदन
माता का नाम (Mother’s Name)मायादेवी
पत्नी का नाम (Wife Name)यशोधरा
पुत्र/ बेटे का नाम (Son Name)राहुल
निधन (Death)ईसवी पूर्व 483
प्रवर्तकबौद्ध धर्म
उत्तराधिकारीमैत्रेय

महात्मा बुद्ध पर निबंध जीवनी 2021

महात्मा बुद्ध बौद्ध धर्म के संस्थापक  और प्रवर्तक थे.  बुद्ध का जन्म  563 ई पू में कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी नामक वन में हुआ था. इनके पिता  नाम शुद्धोधन था, जो शाक्य गणराज्य के प्रधान थे.

इनकी माता का नाम महामाया था. बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था. सिद्धार्थ के जन्म के सात दिन बाद ही उनकी माता का देहांत हो गया. अतः उनका पालन पोषण उनकी मौसी एवं विमाता प्रजापति गौमती ने किया.

जब कपिलवस्तु की महारानी महामाया देवी अपने माता पिता के घर जा रही थी, उसी वक्त देवदह के मार्ग पर भयंकर प्रसव पीड़ा हुई और वही उन्होंने बालक सिद्धार्थ को जन्म दिया.

इनका जन्म गौतम गोत्र में होने के कारण ये गौतम कहलाए. मान्यता के अनुसार गौतम बुद्ध के जन्म के महज सात दिन बाद ही उनकी माताजी का देहावसान हो गया.

महाप्रजावती गौतमी जो शुद्धोदन की दूसरी रानी थी, उन्होंने ही बालक का पालन पोषण किया और नाम सिद्धार्थ रखा, जिसका अर्थ होता हैं जो सिद्धि प्राप्ति के लिए जन्मा हो.

16 वर्ष की आयु में सिद्धार्थ का विवाह यशोधरा नामक एक सुंदर कन्या से किया गया. कुछ समय बाद उनके  यहाँ पुत्र ने जन्म लिया, जिनका नाम राहुल रखा गया. परन्तु सिद्धार्थ की संसार से विरक्ति बढ़ती गई.

महाभिनिष्क्रमण

नगर दर्शन हेतु विभिन्न अवसरों पर बाहर जाते हुए सिद्धार्थ ने एक वृद्ध व्यक्ति, रोगी, मृतक एवं सन्यासी को देखा, जिन्हें देखकर उन्हें संसार से विरक्ति हो गई.

अंत में 29 वर्ष की आयु में सिद्धार्थ अपनी पत्नी, पुत्र तथा राजकीय वैभव को छोड़कर ज्ञान की खोज में निकल पड़े. यह घटना महाभिनिष्क्रमण के नाम से प्रसिद्ध हैं.

ज्ञान की प्राप्ति

प्रारम्भ में सिद्धार्थ ने वैशाली के ब्राह्मण विद्वान आलार कालाम तथा राजगृह के विद्वान उद्रक रामपुत से ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास किया परन्तु उनकी जिज्ञासा शांत नहीं हुई.

इसके बाद वे उरुवेल के जंगल में अपने पांच ब्राह्मण साथियों के साथ कठोर तपस्या करने लगे, परन्तु यहाँ भी उनके ह्रदय को शांति नहीं मिली. उनका शरीर सूख सूख कर काँटा हो गया, परन्तु उन्हें ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई.

अतः उन्होंने भोजन आदि ग्रहण करना शुरू कर दिया जिससे नाराज होकर उनके पाँचों साथी सिद्धार्थ का साथ छोड़कर वहां चले गये.

अंत में सिद्धार्थ एक पीपल के वृक्ष के नीचे ध्यान की अवस्था में बैठ गये. सात दिन अखंड समाधि में लीन रहने के बाद वैशाखी पूर्णिमा की रात को उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ, उन्हें सत्य के दर्शन हुए और वे बुद्ध कहलाने लगे.

इस घटना को सम्बोधि कहा जाता हैं. जिस वृक्ष के नीचे सिद्धांत को ज्ञान प्राप्त हुआ, उसे बोधिवृक्ष कहा जाने लगा और गया बोधगया के नाम से प्रसिद्ध हुआ.

धर्म का प्रचार- ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात बुद्ध ने सारनाथ पहुचकर उन पांच ब्राह्मणों को उपदेश दिया, जो उन्हें छोड़कर चले आए थे. ये पाँचों ब्राह्मण बुद्ध के अनुयायी बन गये. इस घटना को धर्मचक्र प्रवर्तक कहते हैं.

इसके बाद बुद्ध ने काशी, कोशल, मगध, वज्जि प्रदेश, मल्ल, वत्स आदि में अपने धर्म की शिक्षाओं का प्रचार किया.

उनके अनुयायियों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती गई. उनके अनुयायियों में अनेक राजा, व्यापारी, ब्राह्मण, विद्वान, सामान्य जन, कर्मकार, दास, शिल्पी आदि सम्मिलित थे.

महापरिनिर्वाण

लगभग 45 वर्ष तक बुद्ध अपने धर्म का प्रचार करते रहे. अंत में 483 ई पू में 80 वर्ष की आयु में कुशीनगर में बुद्ध का देहांत हो गया. बौद्ध परम्परा के अनुसार यह घटना महापरिनिर्वाण कहलाती हैं.

बुद्ध की शिक्षाएँ (बौद्ध धर्म की सिद्धांत)

बुद्ध की शिक्षाओं को सुतपिटक में दी गई कहानियों के आधार पर पुननिर्मित किया गया हैं. यदपि कुछ कहानियों में उनकी अ लौकिक शक्तियों का वर्णन हैं.

दूसरी कथाएँ दिखाती हैं कि अलौकिक शक्तियों की बजाय बुद्ध ने लोगों को विवेक और तर्क के आधार पर समझाने का प्रयास किया, बुद्ध की प्रमुख शिक्षाएँ निम्नलिखित हैं.

  1. विश्व अनित्य हैं– बौद्ध दर्शन के अनुसार विश्व अनित्य हैं और निरंतर परिवर्तित हो रहा हैं. यह आत्माविहीन हैं क्योंकि यहाँ कुछ भी स्थायी या शाश्वत नहीं हैं. इस क्षणभंगुर संसार में दुःख मनुष्य के जीवन का अंतर्निहित तत्व हैं.
  2. मध्यम मार्ग– बुद्ध का कहना था कि न तो मनुष्य को घोर तपस्या करनी चाहिए, न ही अधिक भोग विलास में लिप्त रहना चाहिए. घोर तपस्या और विषयासक्ति के बीच मध्यम मार्ग अपनाकर मनुष्य संसार के दुखों से मुक्ति पा सकता हैं.
  3. भगवान का होना या न होना अप्रासंगिक– बौद्ध धर्म की प्रारम्भिक परम्पराओं में भगवान का होना या न होना अप्रासंगिक था.
  4. समाज का निर्माण मनुष्यों द्वारा किया जाना– बुद्ध मानते थे कि समाज का निर्माण मनुष्यों ने किया था, न कि ईश्वर ने. इसलिए उन्होंने राजाओं और गृहपतियों को दयावान और आचारवान होने की सलाह दी.
  5. व्यक्तिगत प्रयास पर बल– बुद्ध के अनुसार व्यक्तिगत प्रयास से सामाजिक परिवेश को बदला जा सकता था.
  6. व्यक्ति केन्द्रित हस्तक्षेप तथा सम्यक कर्म पर बल– बुद्ध ने जन्म मृत्यु के चक्र से मुक्ति, आत्म ज्ञान और निर्वाण के लिए आत्म केन्द्रित हस्तक्षेप और सम्यक कर्म पर बल दिया.
  7. निर्वाण– बौद्ध धर्म के अनुसार निर्वाण का अर्थ था अहं और इच्छा का समाप्त हो जाना जिससे गृह त्याग करने वालों के दुःख के चक्र का अंत हो सकता था. निर्वाण प्राप्ति के बाद मनुष्य आवागमन के बंधन से मुक्त हो जाता हैं.
  8. चार आर्य सत्य– बौद्ध धर्म के अनुसार चार आर्य सत्य निम्नलिखित हैं.
    1. दुःख- यह संसार दुखमय हैं. संसार में सर्वत्र दुःख ही दुःख हैं.
    2. दुःख समुदाय- दुखों और कष्टों का कारण तृष्णा हैं.
    3. दुःख निरोध- तृष्णा नष्ट कर देने से दुखों से मुक्ति प्राप्त हो सकती हैं.
    4. दुःख निरोध का मार्ग- तृष्णा के विनाश के लिए अष्टांगिक मार्ग का अनुसरण करना चाहिए.
  9. अष्टांगिक मार्ग– अष्टांगिक मार्ग की मुख्य आठ बातें निम्नलिखित हैं. सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प, सम्यक वाणी, सम्यक कर्मान्त, सम्यक आजीव, सम्यक व्यायाम, सम्यक स्मृति, सम्यक समाधि
  10. स्वावलम्बन पर बल- बुद्ध का कहना था कि मनुष्य स्वयं अपने भाग्य का निर्माता हैं. मनुष्य को अपने पुरुषार्थ तथा बुद्धि पर भरोसा रखना चाहिए और अपने प्रयत्नों से ही निर्वाण प्राप्त करना चाहिए. बौद्ध परम्परा के अनुसार अपने शिष्यों के लिए उनका अंतिम निर्देश था, तुम सब अपने लिए स्वयं ही ज्योति बनों क्योंकि तुम्हे स्वयं ही अपनी मुक्ति का मार्ग ढूढ़ना हैं.

महात्मा बुद्ध पर निबंध Essay on Mahatma Buddha in Hindi

भगवान गौतम बुद्ध पर दस लाइन Few Lines On Gautam Buddha In Hindi

कौन नही जानता सिद्धार्थ अथवा गौतम बुद्ध को, ईस्वी सन से ५०० साल पूर्व पृथ्वी पर अवतरित अहिंसा के पुजारी व बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध ने विश्व को मानवता व शांति का पाठ पढ़ाया. इस लेख में आज हम Gautam Buddha के जीवन  पर Few Lines साझा कर रहे हैं.

महात्मा गौतम बुद्ध दस लाइन Few Lines On Gautam Buddha In Hindi

महात्मा बुद्धबौद्ध धर्म के प्रवर्तक
 पूरा नामसिद्धार्थ
 धर्मबौद्ध
 जन्म563 ई पू में वैशाख पूर्णिमा को
 जन्म स्थानलुम्बिनी
पिताशुद्धोधन
मातामहामाया
पत्नीयशोधरा
पुत्रराहुल

Few Lines On Gautam buddha in Hindi 

सिद्धार्थ के बारे में ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि वे या तो चक्रवर्ती सम्राट बनेगे या महान साधु, चार दृश्य जिसने सिद्धार्थ का जीवन परिवर्तित किया.

  1. वृद्ध व्यक्ति
  2. व्याधिग्रस्त मनुष्य
  3. एक मृतक
  4. एक सन्यासी

सिद्धार्थ ने 29 वर्ष की आयु में गृह त्याग दिया. बौद्ध साहित्य में यह घटना महाभिनिष्क्रमण कहलाती हैं. गृहत्याग के बाद उन्होंने गोरखपुर के समीप अनोमा नदी के तट पर सन्यास धारण किया.

वैशाली के आलारकालाम उनके प्रथम गुरु बने. सिद्धार्थ को सारनाथ में निरंजना नदी के किनारे पीपल वृक्ष के नीचे 48 दिन तक समाधि धारण करने के उपरान्त वैशाख पूर्णिमा की रात को केवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई.

ज्ञान प्राप्ति पर सिद्धार्थ बुद्ध कहलाए तथा वह वृक्ष व स्थान क्रमशः बोधिवृक्ष एवं बोधगया कहलाया. ज्ञान प्राप्त होने की घटना को सम्बोधि कहा जाता हैं.

बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश सारनाथ (ऋषितपनम) के हिरण वन में उन पांच ब्राह्मणों को दिया जो पूर्व में उन्हें पथभ्रष्ट समझकर उनका छोड़कर चले गये थे इसे धर्मचक्रपरिवर्तन कहा जाता हैं.

बुद्ध ने जनसाधारण की भाषा मागधी में अपने उपदेश दिए, कौशल की राजधानी श्रावस्ती में उनहोंने सर्वाधिक उपदेश दिए. अश्वजित, उपालि, मोदगल्यायन, श्रेयपुत्र एवं आनन्द बुद्ध के प्रथम पांच शिष्य थे. बिम्बिसार, उदयन, प्रसेनजित उनके अनुया यी शासक थे. तपस्सु और कल्लिक बुद्ध के प्रथम शुद्र अनुयायी थे.

45 वर्ष तक धर्म का प्रचार करने के बाद 80 की आयु में 483 ई पू में कुशीनगर, मल्ल गणराज्य की राजधानी में वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध की मृत्यु हो गई, जिसे बौद्ध साहित्य में महापरिनिर्वाण कहा गया गया हैं.

बुद्ध ने अपना अंतिम उपदेश शुभ्च्छ कुशीनगर कस परिवारजक को दिया. बुद्ध के जीवन के जुड़े चार पशु-

  • हाथी– बुद्ध के गर्भ में आने का प्रतीक
  • सांड– यौवन का प्रतीक
  • घोड़ा– गृह त्याग का प्रतीक
  • शेर– समृद्धि का प्रतीक

बुद्ध के जीवन की घटनाएं

  • महाभिनिष्क्रमण– गृहत्याग की घटना
  • सम्बोधि– पीपल के वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्ति की घटना
  • धर्मचक्रप्रवर्तन- उपदेश देने की घटना
  • महापरिनिर्वाण– मृत्यु
  • बौद्ध धर्म में संघ का अर्थ बौद्ध भिक्षुओं का जनतांत्रिक संगठन था.
  • प्रजामति गौतमी– महात्मा बुद्ध की विमाता, ये बुद्ध संघ में प्रथम महिला के रूप में प्रविष्ट हुई.
  • वैशाख पूर्णिमा के दिन बुद्ध का जन्म, ज्ञान की प्राप्ति और मृत्यु हुई थी.

भगवान गौतम बुद्ध की शिक्षाएं (gautam buddha teachings & mahatma budh ki shiksha in hindi)

चार आर्य सत्य- बौद्ध धर्म के सिद्धांतों की आधारशिला उनके चार आर्य सत्यों में निहित हैं ये हैं.

  • दुःख- संसार दुखों का घर हैं.
  • दुःख समुदाय- दुखों का कारण तृष्णा हैं.
  • दुःख निरोध- तृष्णा का विनाश ही दुःख निरोध का मार्ग हैं.
  • दुःख निरोध मार्ग- तृष्णा का विनाश आष्टांगिक मार्ग द्वारा संभव हैं. इसे दुःख निरोध गामिनी प्रतिपदा भी कहते हैं.

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