प्रिय साथियो आपका स्वागत है Essay on Malnutrition in Hindi में हम आपके साथ कुपोषण पर निबंध साझा कर रहे हैं. कक्षा 1,2,3, 4, 5, 6,7, 8,9,10 तक के बच्चों को भारत में कुपोषण की समस्या पर निबंध सरल भाषा में लिखे गये हिन्दी निबंध को परीक्षा के लिहाज से याद कर लिख सकते हैं.
Essay on Malnutrition in Hindi
एक बच्चा कि जो बिन दूध न सोया अब तक
उसकी आँखों की कोई नींद बना दे मुझकों
जाने माने शायर जफर गोरखपूरी के उक्त शेर में उन बदनसीब भारतीय बच्चों के लिए गहरी हमदर्दी हैं, जिन्हें दूध तक मयस्सर नहीं हैं. जमीनी हकीकत तो और ही भयावह है. दूध की तो बात छोड़िये देश में बच्चों को पर्याप्त भोजन तक नसीब नहीं हो रहा हैं.
कुपोषण की समस्या दिन पर दिन भयावह और विकराल होती जा रही हैं. कुपोषण से जुडी स्थितियों को यदि शर्मनाक कहा जाए तो बेजा न होगा. यह एक विडम्बना नहीं तो और क्या हैं कि एक कृषि प्रधान देश के असंख्य बच्चे भूखे पेट सोते हैं.
गणतन्त्र के सात दशकों से ज्यादा समय में हम पोषण के स्तर को सामान्य स्तर तक नहीं ला पाए और समानांतर कुपोषण की समस्या थमने के बजाय बढ़ती ही गयी.
आज कुपोषण की समस्या एक बड़ी चुनौती के रूप में हमारे सामने हैं. कैसी विसंगति हैं कि एक तरफ हम उभरती हुई अर्थव्यवस्था के दावे करते नहीं थकते तो दूसरी तरफ कुपोषण जैसी समस्या हमें मुह चिढ़ा रही हैं.
ऐसे में सकल घरेलू उत्पाद की तीव्र वृद्धि के भी कोई मायने नहीं रह जाते क्योंकि हमारे देश में पोषण का स्तर सामान्य से अत्यंत कम हैं. कुछ समय पूर्व जारी की गयी हंगर एंड मालनुट्रिशन रिपोर्ट ने सभी को स्तब्ध कर रख दिया.
यह सरकारी तौर तरीको से तैयार की गयी रिपोर्ट नहीं हैं. इसे हैदराबाद के एक एनजीओ नंदी फाउंडेशन एवं महिंद्रा एंड महिंद्रा कोर्पोरेट समूह ने मिलकर तैयार किया.
एक सौ चालीस पन्नों की यह रिपोर्ट बताती हैं कि देश में पांच वर्ष से कम के लगभग 42 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं. यह आंकड़ा साधारण नहीं हैं.
जिस देश के 42 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हो उस देश के भविष्य का अनुमान आप स्वयं लगा सकते हैं. क्योंकि बच्चे ही भविष्य के कर्णधार होते हैं. खुद प्रधानमंत्री को यह कहना पड़ा हैं कि यह स्थिति शर्मनाक हैं.
इस रिपोर्ट ने निसंदेह गणतन्त्र के सात दशकों से भी ज्यादा के सफर पर एक बड़ा सवालिया निशान लगा दिया हैं. आखिर हम इतने समय करते क्या रहे. कभी हमने शाइनिग इण्डिया का ढोल पीटा तो कभी बुलंद और महान भारत की तस्वीरें पेश की.
जमीनी हकीकत यह हैं कि हम देश के बच्चों को पोषण आहार तक मुहैया नहीं करा पाए. इन हालात पर कितना मौजूं हैं मशहूर शायर दुष्यंत कुमार का यह शेर
रोज अखबारों में पढ़कर ये ख्याल आया हमें
इस तरह क्यों आती तो हम भी देखते q सल ए बहार
भारत में कुपोषण की भयावह समस्या के कारण अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी हमारी छवि खराब हो रही हैं. हंगर एंड मालन्यूट्रीशन रिपोर्ट से पता चलता हैं. कि भारत के आठ राज्यों में जितना कुपोषण हैं, उनका अफ्रीका और सहारा उपमहाद्वीप के गरीब देशों में भी नहीं हैं.
दुनिया भर में कुपोषण से पांच वर्ष की अवस्था के जितने बच्चों की मौत होती हैं उनमें 21 प्रतिशत भारतीय बच्चे होते हैं. यकीनन एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था वाले भारत देश में कुपोषित बच्चों की अत्यधिक संख्या होना तथा बच्चों का कुपोषण के शिकार मरना गम्भीर चिंता का विषय हैं.
यह चिंता तब और बढ़ जाती हैं जब यह आंकड़ा इस तरह से व्याख्यित किया जाता हैं. कि दुनिया के हर तीन कुपोषित बच्चों में एक भारतीय हैं. विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार भारत के कुछ इलाकों में कुपोषण की समस्या बहुत ज्यादा हैं. यही वजह हैं कि विश्व में कुपोषण से जितनी मौतें होती हैं. उनमें भारत का दूसरा स्थान हैं.
संयुक्त राष्ट्र की मानव विकास सूचकांक रिपोर्ट भी यह बताती हैं कि भारत में कुपोषण की स्थिति अनेक निर्धन अफ़्रीकी देशों से भी गयी गुजरी हैं. सिर्फ बच्चे ही नहीं माएं भी कुपोषण की शिकार हैं. गर्भवती महिलाएं, बच्चे और नवजात शिशु कुपोषण की चपेट में जल्द आते हैं.
स्थिति यह हैं कि भारत में 51 प्रतिशत माएं अपने नवजात शिशु को अपना पहला दूध नहीं पिलाती और 56 प्रतिशत माएं छः माह से पहले नवजात को पानी देना शुरू कर देती हैं. यही कारण हैं कि यह समस्या और विकराल हुई हैं. यह स्थिति भारत को खराब स्वास्थ्य सूचकांक को भी दर्शाती हैं.
भारत में कुपोषण की समस्या के परिपेक्ष्य में यह जान लेना जरुरी होगा कि कुपोषण क्या हैं. वस्तुतः आहार की कमी, अधिकता या असंतुलन के कारण उत्पन्न शारीरिक कमियां व खराबी कुपोषण कहलाती हैं. हमारे शरीर में जीवन संचार के लिए पर्याप्त मात्रा में ऊर्जा जल एवं लगभग 40 प्रकार के पोषक तत्वों की उचित मात्रा की आवश्यकता होती हैं.
यदि इनमें से एक या अधिक पदार्थों की कमी या अधिकता होती हैं. तो कुपोषण प्रारम्भ हो जाता हैं. भारत में पोषक तत्वों की कमी से होने वाले कुपोषण का आधिक्य हैं. यहाँ भुखमरी एवं कैलोरीयुक्त भोजन के अभाव में होने वाले कुपोषण की जड़े गहरी हैं.
गम्भीर कुपोषण शरीर के प्रतिरोधी तंत्र को प्रभावित करने लगता हैं. इससे व्यक्ति बीमारियों की चपेट में जल्दी आता हैं. नयें प्रकार के संकमण उसकी पाचक क्षमता को और कम करते जाते हैं. कुपोषण के कारण मरने वालों में बच्चों, महिलाओं एवं वृद्धों की संख्या अधिक होती हैं.
दूषित जल, स्वास्थ्य सम्बन्धी खराब दशाएं अस्वच्छता एवं अशिक्षा जैसे कारणों से कुपोषण की समस्या बढ़ती हैं. विकासशील देशों के लोग इन परिस्थतियों में बुरी तरह से घिर जाते हैं. भारत भी विकासशील देश है और कमोवेश ऐसी ही परिस्थतियों से घिरा हैं.
खाद्यान्न वितरण की कमजोर प्रणाली के कारण भी विकासशील देशों में कुपोषण की समस्या परवान चढती हैं. जबकि वहां खाद्यन्न उत्पादन पर्याप्त मात्रा में होता हैं. यह स्थिति भारत में भी हैं. एक तरफ तो हमारे नीति नियंता खाद्य सुरक्षा को कानूनी जामा पहनाने की कोशिशों में लगे हैं तो दूसरी तरफ देश की खाद्य वितरण प्रणाली को आज तक दुरुस्त नहीं कर पाए हैं.
ऐसा नहीं हैं कि देश में कुपोषण की समस्या से उबरने के प्रयास ही न किये गये हो, प्रयास तो किये गये. लेकिन न तो ये दिली प्रयास थे न ही पर्याप्त ही थे. इनमें पारदर्शिता का अभाव था. और भ्रष्ट तंत्र की गिरफ्त भी इन पर जबर्दस्त बनी रही.
ये परिवेश के अनुरूप भी नहीं थी. अतएव वांछित सफलता से दूर रही. देश में कुपोषण की भयावहता को देखते हुए आवश्यकता इस बात की थी कि भूख व गरीबी को राष्ट्रीय एजेंडे में शामिल किया जाता, किन्तु ऐसा नहीं किया गया. नतीजतन पानी सिर से ऊपर निकल गया देश में कुपोषण और दुर्बलता से बचाने के लिए केंद्र सरकार ने एकीकृत बाल विकास की योजना शुरू की, किन्तु यह कारगर साबित नहीं हुई.
मिड डे मील योजना भ्रष्टतंत्र का शिकार हो गयी. लगातार हर पंचवर्षीय योजना में कुपोषण के लिए कुछ न कुछ प्रावधान तो किया गया, किन्तु नतीजा ढाक के तीन पात जैसा ही रहा.
पिछले सात वर्षों में कुपोषित बच्चों में मात्र 11 प्रतिशत की कमी यह दर्शाती हैं कि इस समस्या पर हम अगम्भीर रहे और जितना ध्यान देना चाहिए था उतना नहीं दिया गया. योजनाओं को भ्रष्टाचार से मुक्त भी नहीं रख पाए, यही वजह हैं कि इनके शत प्रतिशत लाभ से लोग वंचित रहे.
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