मेरे सपनों का जीवन निबंध | Essay on My Dream in Hindi

Essay on My Dream in Hindi प्रिय विद्यार्थियों आज के लेख मेरे सपनों का जीवन निबंध अथवा मेरे सपनों का जीवन, मेरे जीवन का उद्देश्य और मेरा जीवन स्वप्न के इस निबंध में कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10 के बच्चों के लिए Essay on My Dream in Hindi का लेख 100, 200, 250, 300, 400 और 500 शब्द सीमा में आपके साथ प्रस्तुत कर रहे हैं.

मेरे सपनों का जीवन निबंध | Essay on My Dream in Hindi

मेरे सपनों का जीवन निबंध | Essay on My Dream in Hindi

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छात्र जीवन और सपने-

छात्र जीवन तो सपने सजाने की उम्रः होती हैं. सपने देखने का अर्थ जीवन की वास्तविकता से पलायन करना नहीं हैं. भावी जीवन को व्यवस्थित ढंग से चलाने का विचार करना ही सपने देखना हैं. वैसे भी मनुष्य स्वप्न द्रष्टा प्राणी हैं.

वह अपने जीवन को सफल बनाने के लिए नाना प्रकार की कल्पनाएँ करता हैं. कोई वकील तो कोई व्यवसायी बनना चाहता हैं.

कोई वैज्ञानिक तो कोई सैनिक बनकर देश की सेवा करना चाहता हैं. कोई खिलाड़ी, कोई अध्यापक और कोई डॉक्टर बनकर मान सम्मान और धन अर्जित करने के सपने देखता हैं.

सोद्देश्य जीवन ही जीवन हैं-

जीवन में उद्देश्य का होना आवश्यक होता हैं. उद्देश्य, लक्ष्य या मंजिल ही मनुष्य को आगे बढने के लिए प्रेरित करते हैं. छात्र भी अपने उद्देश्य को ध्यान में रखकर विषयों का चयन करता हैं. कोई साहित्य और कला सम्बन्धी विषय चुनते हैं और कोई विज्ञान वाणिज्य सम्बन्धी विषय चुनते हैं.

छात्र जीवन में ही हमारे भावी जीवन की दिशा निश्चित होती हैं. अतः हमें अपनी रूचि, योग्यता और आने वाली चुनौतियों को ध्यान में रखकर अपने लक्ष्य का चुनाव करना चाहिए. केवल दूसरों की देखा देखि आँख बंद करके जीवन का लक्ष्य बना लेना बुद्धिमानी नहीं होती हैं.

मेरे जीवन का लक्ष्य और मेरी योजना-

मेरे जीवन का लक्ष्य है एक कुशल चिकित्सक बनना. इस पेशे को मैं धन कमाने के लिए नहीं बल्कि मानव सेवा के लिए अपनाना चाहता हूँ. रोगियों की बढ़ती भीड़, डॉक्टरों का घोर पेशेवर रवैया, महंगी चिकित्सा ये सभी मुझे विचलित कर देते हैं.

मेरा सपना हैं कि मैं एक एक कुशल चिकित्सक बनू. प्रत्येक चिकित्सा की श्रेष्ठतम बातों का उपयोग करके रोगी को स्वस्थ बनाऊ. उचित शुल्क, सही निर्देश और सेवाभाव से काम करू.

एक ऐसी निशुल्क सेवा व्यवस्था संचालित करू जो जनता को स्वास्थ्य रक्षा की शिक्षा दे. महिलाओं और बच्चों के लिए चिकित्सा की विशेष व्यवस्था करूँ.

मेरा संकल्प-

मेरा यह दृढ संकल्प रहेगा कि मैं अपने पेशे की पवित्रता और गरिमा को लांछित न होने दूँ. मैं चाहूगा कि अन्य सेवाभावी चिकित्सक मेरे साथ आएं और मानव सेवा में हाथ बंटकर यश और आत्म संतोष प्राप्त करे.

मैं एक ऐसा चिकित्सा केंद्र चलाना चाहता हूँ जहाँ नाम मात्र की धनराशि पर रोगी का परीक्षण और उपचार किया जाएगा. मैं इससे उन चिकित्सकों की सेवाएं आमंत्रित करुगा, जो पीड़ित मानवता की सेवा करके उसे स्वस्थ और प्रसन्नता देने के लक्ष्य के प्रति समर्पित रहेगे.

राजा रंतिदेव का यह आदर्श मेरी प्रेरणा रहेगा. न तो मुझे राज्य की कामना है न स्वर्ग की इच्छा है. मैं पुनर्जन्म भी नहीं चाहता कि मैं तो दुखी प्राणियों के दुखों को मिटाने की ही कामना करता हूँ मेरा प्रयास होगा-

सर्व भवन्तु सुखिन सर्वे सन्तु निरामया
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कशिचद दुःख मा भवेत

सपनों का जीवन निबंध 1000 शब्द

बदलते सपनों का जीवन या जीवन के स्व निर्धारित बेहतर भविष्य की कल्पना हर कोई करता है जिनकी सफलता या असफलता निजी संघर्ष पर टिकी होती है। सपना कहे तो एक ऐसा स्वाद, जो सबका अपना, खास और निजी होता है। डॉक्टर, इंजीनियर से लेकर सामाजिक सरोकारों और राजनीतिक 

आकांक्षाओं तक या फिर प्रकृति से प्रेम की पराकाष्ठा से लेकर उस किसी भी क्षेत्र की तरफ मन का खींचा चला जाना और लगना, जैसे कि इसकी प्राप्ति ही जीवन का उद्देश्य बनेगी, ही सही मायनो में सपने होते है। और इन सबके साथ अगर शिद्दत से की गई मेहनत भी हो तो इन सपनों की सीढ़ियों पर जीवन चढ़ता ही चलता जाता है।

निजी जीवन का सपना

शुरुआती दौर में शायद हर कोई, बहुत सी चीजों के प्रति लगाव महसूस करते है लेकिन उनको संज्ञा नहीं दे पाते। ऐसा ही हमारे साथ भी होता है जहां दिल की इच्छाएं कहीं न कहीं जरूर टिकने लगती है.

हम किसी न किसी वस्तु, इंसान, कार्य या क्षेत्र के प्रति स्वयं को आकर्षित महसूस करने लगते है, इस आकर्षण की दिशा में ही आकर्षित होते चले जाने का नाम ही सपना होता है।

घुटनों और हाथों के बल चलते जीवन की अवस्था से ही कुछ चीजें मन में घर करने लगती है। जो ताउम्र हमारे केंद्र में रहने लग जाती है।

निजी रूप से मेरा सपना था डॉक्टर बनना और अपनी सेवाएं समाज और देश के उन क्षेत्रों तक पहुंचना, जहां के लिए ये सब अभी संभव नहीं था, और था, तो बस नाममात्र।

हाई स्कूल तक पूरे दृढ़ संकल्प के साथ मैं इस सपने के भविष्य को जीता चला गया। लेकिन जब निर्णायक मोड़ आया तो पता चला की कागजी पेचीदगियों (age criteria) की वजह से मैं अगले दो साल तक डॉक्टरी की पढ़ाई नहीं कर पाऊंगा।

एक ऐसा समय, जहां सपना बिखरने सा लगा। टीस डॉक्टर न बन पाने की कम थी, मन इस बात से दुखी रहता था कि स्वचेतना के बल पर, जहां डॉक्टर बनकर मानवता की सेवा की जा सकती है, जिस कार्य हेतु जो निर्णय लिया गया, उसका ध्येय अब अधूरा रह जायेगा।

अब स्नातक भी इसी विषय की पढ़ाई के साथ उत्तीर्ण करने का फैसला किया। जहां पल पल ये लगता रहा कि शायद यह सब बेकार में व्यर्थ किया जा रहा है। शुरुआती दिनों में मन में सिवाय दुविधाओं के, कुछ नहीं था। 

बदलते राजनीतिक माहौल और समाज में बढ़ती द्वेष की भावनाएं अब मन को विचलित करने लगी थी। हर दिन कोई न कोई ऐसी घटना होती जिसके बारे में बाद में सोचने बैठे तो बुरा लगता था,

लगता था कि मानो समाज की मानसिक चेतना धृष्टता की ओर जा रही है और इन सब चीजों ने मन की दिशा को बदल दिया। जहां से अब राजनीति, इतिहास, सामाजिक मुद्दे और लोगों की न्यूनतम जरूरतें पूरी करने वाली आवश्यकताओं की ओर ध्यान जाने लगा।

जीवन में कई बार ऐसे मोड़ आते हैं जहां से स्वयं की चेतना को एक नई दिशा मिलती है, मन को नए विचार मिलते हैं और दिमाग उन्हीं सब में रहने लगता है। तब से यह जीवन भले धीमी गति के साथ ही सही लेकिन समाज को समर्पित होने लगा।

मन में जो ख्यालात आने लगे वह समाज के लिए, दिल की दुखी होने के कारणो में समाज में, आसपास घटित हो रही घटनाओं का भी अब हिस्सा तय होने लगा था। आखिर इन सब ने मिलकर एक अधूरे सपने की टीस को जरूर कम कर दिया।

हालांकि भारतीय समाज में एक जीवित मन और मस्तिष्क के लिए और अमन पसंद चित के लिए अप्रिय घटनाएं दैनिक जीवन का हिस्सा बनती जा रही है, लेकिन प्रयास था कि कहीं ना कहीं से कुछ न कुछ इनमें कमी की जाए।

संक्षिप्त में बोलूं तो अब सामाजिक और आर्थिक अव्यवस्थाओं को समझने का वक्त आ रहा था। इनको सुलझाने की समझ में अब इनको समझने की जरूरत महसूस होने लगी थी। लिहाजा अर्थशास्त्र के क्षेत्र में अब रुचि बनने लगी।

उद्देश्य बस यही कि कैसे आस आसपास के परिवेश में व्याप्त व्याधियों को खत्म किया जा सकता है। एक तरह से यह सपना किसी चुनौती से कम नहीं था क्योंकि डॉक्टर ने बन पाने की मन में कसक और एक विज्ञान के विद्यार्थी के लिए, विज्ञान की थोड़ी बहुत समझ रखने वाले व्यक्ति के लिए, सामाजिक और आर्थिक रूप से समाज को समझना मुश्किल होता है

विशेषकर तब, जब हम नाबालिग से महज बालिक बनते ही है। ऊपर से एक अपरिपक्व चित्त के लिए इन सारी दुविधाओं में स्थिर रह पाना भी एक बड़ी मुश्किल होती है लेकिन ध्येय की कसौटी अब भी वही थी। 

विज्ञान के बाद अर्थशास्त्र और अर्थशास्त्र के साथ साहित्य

निजी अनुभव के आधार पर, विज्ञान सोचने और समझने की शक्ति को मजबूती देता है, हर पहलू को तार्किकता की कसौटी पर परखने की समझ पैदा करता है, अर्थशास्त्र बदलते समाज में जीवन की दिशा और दशा की परख देता है और कविताएं न सिर्फ भौतिकता की समझ पैदा करती है, बल्कि सवचेतना को अडिग रखती है।

किसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु हमें जितनी समझ किसी क्षेत्र विशेष की होनी चाहिए शायद उतनी ही रुचि कविता, शायरी और साहित्य के प्रति भी होनी चाहिए। क्योंकि यह एक ऐसी विषय वस्तु है जिससे कम पढ़कर भी हम एक गहरी समझ पैदा कर सकते हैं

और हमारे चित्त मन को मजबूती मिलती है। चेतना पैदा करने के लिए मेरे अनुभव में, साहित्य का कोई जोड़ नहीं है क्योंकि साहित्य समाज का दर्पण होता है और इस दर्पण में खुद को परखने की आवश्यकता तब और बढ़ जाती है जब आपका चित्त मन भी परिवेश, समाज और समाज की अव्यवस्थाओं की तरफ झुकाव रखता हो।

इसमें कोई दो राय नहीं कि सपने निजी होते हैं, लेकिन अगर हमारे सपनों में कहीं ना कहीं समाज कल्याण भी अगर अपनी जगह रखता है तो शायद हमारे सपने वास्तविक मूल्यों में मानवता का सपना हो जाते हैं। 

एक अच्छे जीवन के लिए, एक अच्छा समाज जरूरी होता है जो आने वाली पीढ़ियों के बेहतर भविष्य का आधार बनता है और एक आदर्श समाज, एक आदर्श देश की नींव का पत्थर होता है। और समाज कल्याण के निजी सपने, उन्हीं अहम पत्थरों का अहम हिस्सा होते है।

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