मेरा प्रिय कवि तुलसीदास पर निबंध | Essay On My Favourite Poet Tulsidas In Hindi

नमस्कार आज का निबंध, मेरा प्रिय कवि तुलसीदास पर निबंध Essay On My Favourite Poet Tulsidas In Hindi पर दिया गया हैं.

सरल भाषा में प्रिय कवि गोस्वामी तुलसीदास जी पर निबंध दिया गया हैं. स्कूल स्टूडेंट्स class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 Students के लिए यह निबंध मददगार होगा.

मेरा प्रिय कवि तुलसीदास पर निबंध Essay On My Favourite Poet Tulsidas In Hindi

मेरा प्रिय कवि तुलसीदास पर निबंध Essay On My Favourite Poet Tulsidas In Hindi

प्रस्तावना– हिन्दी में जिन महान कवियों ने अपनी वाणी को समाज की मंगल साधना का लक्ष्य बनाया उनमें महाकवि तुलसी दास का स्थान विशिष्ट हैं.

जिस कवि ने घोर संकट, संताप और तिरस्कार से हताशा भारतीय समाज को   आशा  और  आत्म विश्वास के उद्घोष से जनजीवन प्रदान किया, उसके प्रति मेरी विशेष आस्था होना स्वाभाविक हैं उनकी यह घोषणा युगों युगों तक आस्थावान धार्मिकों को आश्वस्त करती रहेगी.

जब जब होई धरम के हानि बाढही असुर अधम अभिमानी
तब तब धरि प्रभु मनुज सरीरा हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा.

जीवन और कृतियाँ– गोस्वामी तुलसीदास जी के जन्म स्थान के विषय में विवाद हैं. वह सोरों के थे कि राजापुर के यह चिन्तन का विषय रहा हैं. पिता और माता दोनों के स्नेह की छाया से वंचित तुलसी का शैशव गाथा बड़ी करुनापूर्ण हैं. मात पिता जग जाहि तज्यो विधिहू न लिखी कछु भाग भलाई.

यह पंक्ति तुलसी के कष्टमय बालपन की साक्षी हैं. उनको एक अनाथ के समान जीवनयापन करना पड़ा. परन्तु गुरु नरहरि ने बाह पकडकर तुलसी को तुलसीदास बनाया. गोस्वामी जी का कवि रूप बड़ा भव्य और विशाल हैं.

आपकी प्रसिद्ध कृतियाँ इस प्रकार हैं. दोहावली, गीतावली, रामचरितमानस, रामाज्ञा प्रश्नावली, विनय पत्रिका, हनुमान बाहुक, रामलला नहछू, पार्वती मंगल बिरवे रामायण आदि.

तुलसी की समन्वय साधना– तुलसी का काव्य समन्वय की प्रशंसनीय चेष्टा हैं. उन्होंने लोक और शास्त्र का गृहस्थ और वैराग्य का निर्गुण और सगुण का, भाषा और संस्कृति का, पांडित्य और अपांडित्य का अपूर्व से समन्वय किया हैं.

निर्गुण और सगुण का समन्वय– परमात्मा के निराकार और साकार स्वरूप को लेकर चलने वाली विरोधी भावनाओं को तुलसी ने सहज ही समन्वित कर दिया, वह कहते हैं.

सनुनाहि अगुनहि नहि कछु भेदा गावहि मुनि पुरान बुध वेदा.

इसी प्रकार ज्ञान और भक्ति को भी समान पद प्रदान करके उन्होंने सामान्यजन के लिए सुलभ साधना का मार्ग खोल दिया.

भगततिहि ज्ञानही नहिं कछु भेदा, उभय हरहिं भव सम्भव खेदा

धर्म और राजनीति का समन्वय– तुलसी का धर्म और राजनीति सम्बन्धी सिद्धांत हैं कि धर्म के नियंत्रण के बिना राजनीति अपने नीति तत्व को खो बैठती हैं. वस्तुतः धर्म राजनीति का अपरिहार्य अंग हैं. तुलसीदास स्पष्ट घोषणा करते हैं.

जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी, सो नृप अवसि नरक अधिकारी

सामाजिक समन्वय– भगवान राम का भक्त उनके लिए शुद्र होते हुए भी ब्राह्मण से अधिक प्रिय और सम्मानीय हैं. चित्रकूट जाते हुए महर्षि वसिष्ठ रामसखा निषाद को दूर से दंडवत प्रणाम करते देखते हैं तो उसे बरबस ह्रदय से लगा लेते हैं.

रामसखा मुनि बरबस भेंटा, जनु महि लुठत सनेह समेटा

तुलसी का काव्य वैभव– तुलसीदास रससिद्ध कवि हैं. उनके काव्य के भाव पक्ष और कला पक्ष पूर्ण सम्रद्ध हैं. उनके काव्यनायक मानवीय मूल्यों के प्रहरी हैं. रस, छंद, अलंकार आदि का स्वाभाविक सौन्दर्य उनके काव्य में विद्यमान हैं. तुलसी का काव्य समाज के हर वर्ग के लिए आदर्श और अनुकरणीय उदहारण प्रस्तुत करता हैं. ब्रजभाषा, अवधि और संस्कृत तीनों पर उनका अधिकार हैं.

उपसंहार– तुलसीदास लोक मंगल के साधक, सत्य, शिव और सुंदर के महान शिल्पी तथा मानव प्रेमी संत हैं. उनका काव्य स्वान्तः सुखाय रचा गया काव्य हैं. उनमें समाज की सारी समस्याओं और जिज्ञासाओं का समाधान उपस्थित हैं.

इसी कारण तुलसीदास मेरे प्रिय कवि हैं. तुलसीदास को महत्ता को दृष्टिगत करते हुए कवि सोहनलाल द्वेदी ने लिखा था.

तुलसी यदि तुम आते न यहाँ हम ढोया करते धराधाम
वैभव विलास में मर मिटते सूझता हमें कब सत्य काम

मेरा प्रिय कवि हिंदी निबंध Mera Priya Kavi Tulsidas Essay In Hindi

प्रिय विद्यार्थियों आपका स्वागत हैं आज हम मेरा प्रिय कवि हिंदी निबंध बता रहे हैं. परीक्षाओं में कई बार Essay on My Favorite Poet in Hindi के बारे में हिंदी निबंध लिखने को कहा जाता हैं.

यहाँ आपकों 100, 200, 250, 300, 400 और 500 शब्दों में Mera Priya Kavi Tulsidas का निबंध बता रहे हैं.

हर व्यक्ति की रुचियाँ अपनी अपनी होती है. किसी को कोई वस्तु या व्यक्ति प्रिय लगता है, तो दूसरा कोई अन्य अच्छा लगता है. हिंदी में अनेक महान कवी हुए है.

सबकी अपनी अपनी विशेषताएं है, अतः जिसे जो विशेषता भाति है उसी आधार पर वह किसी विशेष कवि या लेखक से प्रभावित हो जाता है.

मेरा प्रिय कवि- हिंदी कवियों में मुझे गोस्वामी तुलसीदास जी ने प्रभावित किया है. उनका व्यक्तित्व और उनकी रचनाओं में अनेक ऐसी विशेषताएं है, जिनके कारण तुलसी मुझे बहुत प्रिय लगते है.

तुलसीदासजी का जीवन परिचय-तुलसीदास जी के जन्मस्थल और जीवन के विषय में विद्वान एकमत नही है.  कुछ राजापुर को कुछ सोरों को और कुछ सूकर क्षेत्र (आजमगढ़) को उनकी जन्मस्थली मानते है.

तुलसी बचपन में ही माता-पिता के स्नेह से वंचित हो गये, उनका बचपन बड़े कष्टों में बीता. संत नरहरिदास ने उन्हें अपना शिष्य बनाया, इनका विवाह रत्नावती से हुआ. पत्नी के ताना देने पर उनका मन संसार से उचट और उन्होंने सारा जीवन भगवान् राम की भक्ति में लगा दिया.

तुलसीदासजी की प्रमुख रचनाएँ रामचरितमानस, विनयपत्रिका, कवितावली, गीतावली, दोहावली, बरवै रामायण आदि है. इनमे रामचरितमानस ही वह महान ग्रंथ है जिसने तुलसी को अमर बना दिया. आज भी यह ग्रन्थ करोड़ो भारतीयों का पवित्र धर्म ग्रंथ है.

प्रिय लगने का कारण- तुलसीदासजी ने घोर संकटो हिन्दू धर्म को आशा और विश्वास का दृढ आधार प्रदान किया. भगवान राम के लोक रक्षक चरित्र का गान करके उन्होंने समाज को बिखरने से बचाया.

तुलसीदासजी ने अपनी रचनाओं में सभी के लिए आदर्श प्रस्तुत किये है. पिता कैसा हो, राजा, प्रजा, भाई, मित्र सभी के आदर्श रूप सामने रख दिए है, कुछ उदहारण देखने योग्य है.

आदर्श राजा –जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी ,सो नृप अवसि नरक अधिकारी .

मित्र –जे न मित्र दू;ख होई दुखारी ,तिन्ही विलोकत पावक भारी .. काव्य –कला की द्ष्टि से भी उनकी रचनाएँ अत्यत उच्च कोटि की है यही कारण है कि मुझे तुलसी प्रिय लगते है उपसहार —तुलसी का कहना हैं. कि – कीरति, भनिति, भूति, भल सोई
सुर सरी सम सब कह हित होई

अर्थात वही कीर्ति ,कविता ,वैभव श्रेष्ट है जिससे गंगा के सबका हित हो .इसी आदर्श को सामने रखकर तुलसी चले है.यही कारण कि वह केवल मेरे ही नहीं अपितु विश्व में कोटि -कोटि लोगों के प्रिय बने हुए है.

Mera Priya Kavi Tulsidas Essay In Hindi In 500 words With Headings

जीवनी- हिंदी साहित्यकाश के प्रभावशाली सूर्य, लोकनायक गोस्वामी तुलसीदास का हमारे हिंदी साहित्य में एक विशिष्ट एवं महत्वपूर्ण स्थान हैं. इस महाकवि का जन्म वि संवत् 1554 में हुआ था. इनके पिता श्री आत्माराम व माता हुलसी थी. जन्म लेते ही माता का देहांत हो गया.

अशुभ मूल नक्षत्र में जन्म लेने से पिता ने इन्हें त्याग दिया. पहले मुनिया सेविका, फिर एक महात्मा की कृपा दृष्टि से उनकी छत्रछाया में इनका लालन पोषण हुआ. शिक्षा दीक्षा सपन्न होने पर इनका विवाह रत्नावली नामक गुणवती कन्या के साथ सम्पन्न हुआ.

ये अपनी पत्नी में अति अनुरक्त थे. एक बार पत्नी ने आसक्ति को लक्ष्य कर इन्हें ताना मार दिया. इससे इनका ह्रदय परिवर्तित हो गया और उसके बाद तुलसीदास से निखरे लोकनायक तुलसीदास जो समस्त हिन्दीभाषी समाज के समक्ष एक मिसाल कायम कर गये.

साहित्यिक प्रतिभा– गोस्वामी तुलसीदास भावुकता के साथ ही मर्यादा के भक्त कवि थे. गोस्वामीजी मध्ययुगीन काव्य के जादुई उपवन के विशाल वृक्ष थे. समस्त संसार के किसी भी कवि ने अपनी कविता में संत तुलसीदास जैसी प्रखर प्रतिभा का परिचय नहीं दिया हैं.

भाषा का मादुर्य और ओज तुलसी के काव्य में खूब मिलता हैं. इनकी शैली अपूर्व, अनुपम व मादकता का सागर हैं. रामचरित मानस इनकी अनुपम कृति हैं जिसमे केवल राम की ही कथा आदि से अंत तक अखंडत नहीं हैं. अपितु बीच बीच में उनके चरित्र सम्बन्धी अनेक उपकथाएँ भी हैं.

यह तुलसी की असाधारण प्रतिभा का प्रमाण है कि पाठक को इसे पढकर थकान का अनुभव नहीं होता, अपितु वह एक स्फूर्ति ही अनुभव करता हैं

अपने आदर्श कथानायक एवं मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के उदात्त चरित्र का अंकन करने से गोस्वामी तुलसीदास का रामचरितमानस समग्र हिन्दू समाज के लिए श्रेष्ठ धर्मग्रंथ रूप में पूज्य पठनीय बन गया हैं.

तुलसीदास एक अप्रितम, अनुपम प्रतिभा के स्वामी थे. तुलसीदासजी ने चाहे लम्बे समय तक छंदशास्त्र पढ़ा हो, किन्तु रामचरितमानस और विनयपत्रिका आदि अन्य रचनाओं में कहीं ऐसा आभास नहीं मिलता कि उन्होंने कहीं श्रम अथवा चेष्टा की हैं.

भावों की सुमधुर अभिव्यक्ति के लिए इनकी शैली सरल प्रवाहमही है. इन्होने प्रसंगानुसार हास्य, करुण, वीर, भयानक आदि सभी रसों का सुंदर चित्रण किया हैं. इनकी रचनाएं व्यंग्य विनोद एवं उपदेशात्मक से युक्त और सामाजिक आदर्शों से मंडित हैं.

समाज सुधारक व लोकनायक– गोस्वामी तुलसीदास का प्रादुर्भाव ऐसी परिस्थतियों में हुआ, जब भारत अत्यंत संकटापन्न स्थिति से गुजर रहा था. मुगलों का अत्याचार सहन करती हुई जनता सुव्यवस्थित भविष्य के प्रति लगभग निराश हो चुकी थी. शैवों वैष्णवों में भयंकर मतभेद का जहर फैला हुआ था.

किन्तु ऐसे समय ईश्वर ने सह्रदय लोकनायक को हमारे बीच भेजा. तुलसी ने ऐसी विषम परिस्थतियों में कष्ट सहकर अपने साहित्य स्रजन द्वारा हमारे पथभ्रष्ट समाज को ऊँगली पकड़कर सही रास्ता दिखाया, उसे पतन के गर्त से निकालने की चेष्टा की और उनमें एक हद तक वे सफल भी रहे.

उपसंहार- यों तो और भी कवि और साहित्यकार ऐसे हुए हैं, जिन्होंने अपनी असाधारण योग्यता तथा काव्य कुशलता से साहित्य रचना की हैं. परन्तु वे हमारे लिए उतनी श्रद्धा के पात्र नहीं हैं.

क्योकि उनका व्यक्तित्व गोस्वामी तुलसीदास की तरह पावन नहीं हैं. गोस्वामी तुलसीदास की प्रतिभा लोकमंगल और विविध आदर्शों के समन्वय से मंडित थी. वे सच्चे लोकनायक थे. यही कारण है कि उनकी अनूठी कलात्मक योग्यता का बखान असम्भव सा प्रतीत होता हैं.

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