सिन्धु घाटी सभ्यता पर निबंध | Essay On Sindhu Ghati Sabhyata In Hindi

Essay On Sindhu Ghati Sabhyata In Hindi नमस्कार दोस्तों आज हम सिन्धु घाटी सभ्यता पर निबंध पढ़ेगे. इस निबंध, अनुच्छेद, भाषण में हम प्राचीन भारत की Indus Civilization का इतिहास, विशेषताएँ, विस्तार, सामाजिक आर्थिक और आर्थिक जीवन के बारें में इस शोर्ट नोट में विस्तार से जानेंगे.

Essay On Sindhu Ghati Sabhyata In Hindi

Essay On Sindhu Ghati Sabhyata In Hindi

आधुनिक सभ्य जीवन लम्बे एवं सतत विकास का परिणाम हैं. मानव समुदाय की प्रारम्भिक उपस्थिति से लेकर आज तक विश्व में अनेक सभ्यताओं का विकास एवं पतन हुआ है. 

इन सभ्यताओं का इतिहास एक तरह से मानवता का ही इतिहास है, इसलिए विश्व में विकसित इन प्राचीन सभ्यताओं का अध्ययन उन्नत सामाजिक जीवन के लिए आवश्यक हैं. 

भारत हजारों वर्ष पूर्व से ही सभ्यता सम्पन्न राष्ट्र रहा है, भारत के साथ ही मेसोपोटामिया, मिस्र, चीन, यूनान आदि प्रमुख प्राचीन सभ्यता हैं.

सिन्धु घाटी सभ्यता (indus valley civilization in hindi)

भारत विश्व के सबसे प्राचीन देशों में से एक हैं. इसका इतिहास, इसकी सभ्यता और संस्कृति बहुत प्राचीन हैं. पुरातात्विक आधारों पर पुरातत्विदों ने यह पता लगा लिया है

कि आज से लगभग पांच सात हजार वर्ष पहले भारत की प्रमुख नदियाँ जैसे सरस्वती, सिन्धु व उसकी सहायक नदियों के किनारे विचरण करने वाले मानव समूहों ने अपनी स्थाई बस्तियां बसाकर रहना आरम्भ कर दिया था और हम इन बस्तियों में रहते हुए उन्होंने उन्नत सभ्यता व् संस्कृति का विकास कर लिया था.

सिन्धु नदी का उद्गम तिब्बत के कैलाश मानसरोवर के उत्तर में स्थित सेन्गेखबब, सिंहमुख व हिमनद से माना जाता है सरस्वती नदी का उद्गम शिवालिका की पहाड़ियों से माना जाता हैं.

यहाँ से यह आदिबद्री के पास मैदान में प्रवेश करती है तथा दक्षिण पश्चिम दिशा में बहती हुई कुरुक्षेत्र, घग्घर, हाकड़ा होती हुई हरियाणा के सिरसा स्थान से राजस्थान के नोहर में प्रवेश करती थी, यहाँ से बीकानेर व जैसलमेर होती हुई गुजरात के कच्छ के रन में प्रवेश कर प्रभासपतन के पास समुद्र में गिरती थी.

वर्तमान में सरस्वती नदी भौतिक अस्तित्व में नहीं हैं. भू संरचना मे परिवर्तन के कारण यह विलुप्त हो गई हैं. वर्तमान में अस्तित्व में नहीं होने के कारण कतिपय विद्वान् सरस्वती नदी को मात्र कल्पना मानते हैं, लेकिन भू उपग्रह द्वारा खीची गई तस्वीरों से सरस्वती नदी के बहाव क्षेत्र का अब पता लग गया हैं.

1921 में हड़प्पा भारत की कांस्यकालीन नागरिक सभ्यता के अवशेष मिले हैं. 1947 में आजादी के बाद से अब तक सिन्धु और गंगानगर जिले में शुष्क घग्घर नदी के तट पर मानव सभ्यता के अवशेष मिले हैं.

यहाँ खुदाई के लिए दो टीले चुने गये. प्रारम्भ में हड़प्पा से इस सभ्यता के अवशेष मिलने के कारण इसे हड़प्पा सभ्यता का नाम दिया गया और बाद में सिन्धु नदी के दोनों ओर इसके विस्तार को देखकर इसे सैन्धव सभ्यता कहा जाने लगा.

लेकिन अब भारत में सरस्वती नदी के तट पर सभ्यता के अधिकाँश स्थल केन्द्रित होने के कारण इसे सिन्धु सरस्वती सभ्यता का नाम देने का आग्रह किया जाता हैं. पुरातत्ववेत्ता डॉ वि श्री वाकणकर जिन्होंने उत्खनन कार्य किया जाता हैं.

उनकी मान्यता है कि दोनों सभ्यताएँ आधारभूत संस्कृति के ही दो प्रतिरूप हैं, सरस्वती का अन्वेषण जारी है, जो बाद हमें किसी निश्चित मत की ओर ले जाएगा. अतः अधिकाँश पुरातत्ववेत्ता अभी इसका उल्लेख सिन्धु सभ्यता के रूप में किया जाना ही उचित मानते हैं.

सिन्धु घाटी विकसित सभ्यता के बारे में पहले किसी को पता नहीं था कि भारत भी प्राचीन सभ्यता का केंद्र रहा हैं. यह सभ्यता मिट्टी के टीलों में दबी हुई थी. मिट्टी के टीलों में दबी हुई इस सभ्यता का काल कौन सा था.

यह कब चरमोत्कर्ष पर थी और कब इसका अवसान हुआ. इस बारे में विद्वानों में मतैक्य नहीं है, लेकिन मौटे तौर पर माना जाता है कि इस सिन्धु घाटी सभ्यता का जन्म काफी पहले हुआ था और 3250 ईसा पूर्व तक यह पूर्ण रूप से विकसित हो गई थी.

इसके बाद यह 3250 से 2750 ईसा पूर्व तक चरम विकास पर पहुँच गई थी. फिर 2750 ईसा पूर्व के बाद इस सभ्यता का अवसान आरम्भ हुआ और 1500 ई पूर्व आते आते यह विलुप्त हो गई.

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