जीवन में धर्म का महत्व पर निबंध Essay on The Importance of Religion in Life in Hindi language

जीवन में धर्म का महत्व पर निबंध Essay on The Importance of Religion in Life in Hindi language: नमस्कार मित्रों आपका हार्दिक अभिनन्दन है, मानव जीवन में धर्म का क्या स्थान है इस विषय पर आधारित यह निबंध, भाषण, स्पीच, अनुच्छेद, पैराग्राफ यहाँ दिया गया हैं.

धर्म की स्थापना का मूल उद्देश्य व्यक्ति के जीवन का उत्थान अर्थात उनके चरित्र का परिष्कार करना होता हैं, जीवन और धर्म के सम्बन्धों को इस निबंध में बताने की कोशिश की गई हैं.

Essay on The Importance of Religion in Life in Hindi

Essay on The Importance of Religion in Life in Hindi language

300 शब्द, जीवन में धर्म निबंध

दुनिया में विभिन्न प्रकार के धर्म, मत, मजहब और संप्रदाय हैं जिनमें से प्रमुख धर्म सनातन हिंदू धर्म है जिसका न आदि है न अंत है। हिंदू धर्म से ही दुनिया के अन्य धर्म निकले हुए हैं, जिनकी अपनी अपनी विचारधारा है और अपने अपने भगवान है।

दुनिया में जितने भी धर्म वर्तमान के समय में मौजूद हैं वह सभी धर्म सभी इंसानों को नेक इंसान बनने की सीख देते हैं और सभी को इंसानियत के रास्ते पर चलने का पैगाम देते हैं।

हालांकि कुछ ऐसे भी भटके हुए नौजवान हैं जो धर्म के नाम पर दूसरे धर्म के लोगों को गाली देते हैं और आतंकवाद फैलाते हैं जो कि किसी भी धर्म के द्वारा नहीं सिखाया जाता है।

सभी धर्म लोगों को इंसानियत सिखाते हैं और सर्वधर्म समभाव की भावना सिखाते हैं। धर्म के द्वारा हमें पहचान मिलती है। धर्म हर व्यक्ति को एक दूसरे के दुखों को बांटने की सीख देता है ना कि दूसरों से जलन रखने के बारे में बताता है।

चाहे कोई भी धर्म क्यों ना हो, हमें सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए। हमारे देश में विभिन्न धर्म के लोग रहते हैं जो आपस में अत्याधिक प्रेम करते हैं और इसीलिए हमें यह गर्व करना चाहिए कि इतने धर्म होने के बावजूद भी हमारे देश में सभी धर्मों को सम्मान दिया जाता है।

हमें कभी भी किसी भी धर्म की बुराई नहीं करनी चाहिए। धर्म के द्वारा हमें मानवता की और इमानदारी की सीख मिलती है।

हमें हमारे जीवन में धर्म की उतनी ही आवश्यकता होती है जितना कि एक अनाथ बच्चे को अभिभावकों की। धर्म से ही हमारी पहचान इस सृष्टि पर होती है।

धर्म का पालन करके हम मोक्ष के रास्ते को अपने लिए आसान कर सकते हैं साथ ही अपने ईश्वर के और भी करीब जा सकते हैं।

अपने धर्म का प्रचार करके हम वास्तव में अपने धर्म के सेनानायक बन सकते हैं। धर्म से ही इंसानों का नैतिक मूल्य तय होता है और उसी नैतिक मूल्यों पर चलकर के इंसान अपने जीवन में सम्मान प्राप्त करता है और अपने धर्म का अगुआ बनता है।

जीवन में धर्म का महत्व पर निबंध 600 शब्द

हमारी दुनिया विविधता से भरी है जहाँ अलग अलग मतों को मानने वाले लोग निवास करते हैं. एक मोहल्ले में रहने वाले बीस सदस्यों के धर्म, मत, मजहब एवं विचार भिन्न होते हैं. इस आधार पर कह सकते है कि प्रत्येक व्यक्ति का अपना एक धर्म है.

संसार के अधिकतर धर्मों का प्रादुर्भाव एशियाई भागों में हुआ था. सभी की स्थापना के मूल में मानवता, भाईचारे दया करुणा और सभी के मूल में निहित है.

अब तक के ज्ञात धर्मों में हिन्दू सनातन धर्म को विश्व का सबसे प्राचीन एवं वैज्ञानिक धर्म माना जाता हैं. जो मानव मानव से ही नहीं प्रकृति सम्पूर्ण जीव जगत के अस्तित्व को स्वीकार करने के साथ ही उन्हें सम्मान से स्वीकार करता हैं.

हिन्दू धर्म की शिक्षाओं का केंद्र मानव को आदर्श जीवन जीने की प्रेरणा देता हैं. जीवन में प्रत्येक क्षण चाहे वो सुख अथवा विपदा के हो मनुष्य को किस तरह व्यवहार करना चाहिए.

व्यक्ति को दूसरों के साथ किस तरह के सम्बन्ध स्थापित करने चाहिए. दूसरों का सम्मान, मर्यादा, ईमानदारी, सत्यनिष्ठा, दया, करुणा, अहिंसा, मानवता आदि के भावों को मनुष्य में जन्म देने वाला धर्म ही हैं.

धर्म न केवल लोगों को जोड़ने वाला होता हैं बल्कि इंसान के लिए करने योग्य क्या है तथा त्यजित क्या है इन्हें न केवल सिधांत के रूप में बताता हैं बल्कि क्यों अमुक व्यवहार या वस्तु का प्रयोग नहीं करना चाहिए

इसके क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं क्या अच्छी बातें व्यक्ति के उत्थान में सहायक हो सकती है आदि का वैज्ञानिक मार्गदर्शन धर्म अपने ग्रंथों के जरिये मानव के पास पहुंचाता हैं.

विश्व के विभिन्न भागों में हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध, जैन, सिख, ज्यूस, क्न्फ्युसियस धर्म को मानने वाले लोग रहते हैं. जिन्के मानने वालों की संख्या कही अल्प तो कहि बहुल हैं. सांख्यिकी के आधार पर किसी धर्म को छोटा या बड़ा इसलिए नहीं कहा जा सकता क्योंकि सभी धर्मों का सार मानव कल्याण हैं.

धर्म एक व्यापक एवं जटिल अवधारणा हैं जो गहन अध्ययन का विषय हैं. कई वर्षों की मेहनत के बाद लोग धर्म को समझ पाते हैं जबकि आज के युग में हम धर्म के नाम पर दुनियां में जो आतंकवाद और मानव सभ्यता के नाश का चित्र देख रहे हैं.

वह धर्म की संकीर्ण मानसिकता वाले लोगों का उत्पाद भर हैं. एक सच्चा धर्म कभी दूसरे व्यक्ति से बैर रखना नहीं सिखाता चाहे वह आपसे अलग दीखता हो उनके विचार आपसे मेल न खाते हो या उसकी पूजा पद्धति भिन्न हो.

मार्क्स ने धर्म को अफीम की तरह एक नशा माना हैं जबकि यदि हम विवेकशील होकर धर्म जैसे हिंदुत्व आदि का अध्ययन करे तो मार्क्स का कथन गलत सिद्ध होता हैं.

धर्म कभी इंसान को सकीर्ण या अंध भक्ति नहीं सिखाता बल्कि व्यक्ति के नजरिये को स्व से हटकर पर पर केन्द्रित करता हैं.  अपने सुख दुःख से ऊपर उठाकर मानव मात्र सम्पूर्ण संसार को अपना परिवार मानते हुए उनके हित के लिए कार्य करने की प्रेरणा देता हैं.

जीवन में हम ऐसी पद्धति को चुनते है जिसमें न केवल हमारा हित है बल्कि हमसे सम्बन्धित प्रत्येक व्यक्ति का हित निहित हैं धर्म का अर्थ नियम सम्मत आचरण हैं जिसमें नैतिकता हो. झूठ न बोलना धर्म की एक शिक्षा है जो प्रत्येक मानव के लिए सुख कारी हो सकती हैं.

किसी जीव के प्रति हिंसक व्यवहार न करना एक धर्म की शिक्षा हो सकती हैं मगर यह अनिवार्य नहीं है कि सभी धर्म भी यही सीख दे, ऐसे में धार्मिक मतभेदों का जन्म होता हैं

ये छोटे छोटे विचार आगे बढ़कर धर्मयुद्ध जैसे जटिल प्रकार्यों को जन्म देते हैं जिसकी विभीषिका मानव इतिहास में समय समय पर दोहराई गई हैं.

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