महिला शिक्षा पर निबंध | Essay On Women Education In Hindi

Essay On Women Education In Hindi प्रिय विद्यार्थियों आज हम महिला शिक्षा पर निबंध आपके साथ साझा कर रहे हैं. कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10 के स्टूडेंट्स तथा बच्चों के लिए सरल भाषा में Essay On Women Education In Hindi लिखा गया हैं.

इस निबंध को आप 5, 10 लाइन, 100, 200, 250, 300, 400 और 500 शब्दों में Nari Shiksha ka mahatva essay in hindi के रूप में भी पढ़ सकते हैं. चलिए नारी शिक्षा महत्व एस्से आरम्भ करते हैं.

महिला शिक्षा पर निबंध | Essay On Women Education In Hindi

Essay On Women Education In Hindi

नमस्कार दोस्तों आज नारी शिक्षा पर निबंध लेकर आए हैं. कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10 के स्टूडेंट्स के लिए भारत में नारी शिक्षा महत्व, आवश्यकता, इतिहास पर शोर्ट निबंध, भाषण अनुच्छेद यहाँ 400 और 500 वर्ड्स में दिया गया हैं.

चलिए Woman Education Essay in Hindi पढ़ना आरम्भ करते है.

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नारी शिक्षा के महत्व पर निबंध

भारतीय समाज में नारी शिक्षा की स्थिति- आधुनिक पुरुष प्रधान समाज में नारी को पुरुष के मुकाबले कमतर आँका जाता हैं. इस मानसिकता के चलते नारी शिक्षा के मामले में भी समाज में उदासीनता रहती है जबकि पुरुषों को शिक्षा में सुअवसर मिलते रहे हैं.

नारी को पुरुष प्रधान समाज में पहले बेटी फिर बहू और माँ के रूप में जीवन की इन भूमिकाओं का निर्वहन करना पड़ता हैं. उनका स्थान इतना महत्वपूर्ण होने के उपरान्त भी वह शिक्षा की दायरे से अभी भी बाहर ही स्वयं को पाती हैं.

प्राचीन काल से लेकर मध्यकाल तक महिला शिक्षा के कोई विशेष प्रबंध व सुविधाएं नहीं थी, मगर आजादी के बाद से केंद्र सरकार, राज्य सरकारे तथा समाज नारी शिक्षा में उन्नति की ओर बढ़ा है फिर भी औसतन नारी आज भी साक्षरता से वंचित हैं. आज भी पुरुषों की तुलना में नारी साक्षरता बेहद कम हैं.

शिक्षित नारी का समाज में स्थान– एक साक्षर इन्सान स्वयं के भौतिक एवं बौद्धिक विकास में सबल होता हैं. इस लिहाज से यदि नारी शिक्षित हो तो वह एक गृहणी, माँ अथवा पत्नी के रूप में बेहतर परिवार का संचालन, बच्चों की देखभाल कर सकती हैं. वह अपनी सन्तान में उत्तम संस्कार तथा अच्छे गुणों को जन्म दे सकती हैं.

सदाचार, अनुशासन तथा ईमानदारी जैसे गुण तभी समाज पैदा किये जा सकते है जब प्रत्येक नारी साक्षर हो. एक पढ़ी लिखी नारी विविध भूमिकाओं में यथा माँ के रूप में उत्तम शिक्षिका, पत्नी के रूप में श्रेष्ठ भागीदार, बहिन के रूप में अच्छी मित्र और पथप्रदर्शक हो सकती है.

एक शिक्षित नारी समाज सेवा में अपनी उत्कृष्ट सेवाएं दे सकती हैं. वकील, चिकित्सक, प्रशासनिक अधिकारी, सलाहकार के रूप में अपने दायित्वों को पूरा कर पाएगी.

महिला अपनी दोहरी भूमिकाओं को लेखिका, कवयित्री, अभिनेत्री, प्रशासिका तथा कुशल गृहणी के रूप में अपनी सेवाएं परिवार तथा समाज को दे सकती हैं. नारी शिक्षा से समाज और देश के विकास को दुगुनी गति मिल सकेगी तथा उनका सकारात्मक योगदान तरक्की में सहायक हो सकेगा.

शिक्षित नारी आदर्श गृहणी- ज्ञान अर्थात शिक्षा ही मनुष्य के ज्ञान चक्षु खोलती हैं. अतः एक गृहणी नारी का शिक्षित होना अति आवश्यक हैं. वह अपने घर, परिवार, बच्चों के हित अहित सही गलत के फैसले सही तरीके से कर सकेगी तथा परिवार के विकास में एक स्तम्भ बनकर साबित होगी.

गृहस्थी के भार का वहन शिक्षित पति पत्नी उतना आसानी से कर सकते है जिससे परिवार में सुख शान्ति व सम्रद्धि का वातावरण रहता है जो बच्चों के संतुलित विकास के लिए भी जरुरी हैं.

एक अशिक्षित नारी की तुलना में शिक्षित नारी परिवार के आय व्यय का लेखा जोखा अच्छी तरह से रख सकती है अपव्यय से बचा सकती हैं.

वह परिवार की प्रतिष्ठा को बनाएं रखने में सहयोग कर सकती है तथा हस्त उद्योग यथा सिलाई, बुनाई जैसे कार्य में भी अपना योगदान दे सकती हैं. घर की स्वच्छता तथा सजावट में रूचि रखने वाली शिक्षित नारी घर को स्वर्ग का रूप दे सकती हैं.

वह अन्धविश्वास तथा आडम्बरों से मुक्त रहने के साथ ही परिवार में इस तरह के विचारों को रोकने में प्रभावी होती हैं. वह विभिन्न तरीको से अपने परिवार को सुखी एवं सम्पन्न बनाने में पति के अर्द्धांगिनी बन सकती हैं.

नारी शिक्षा का महत्व– भारतीय संस्कृति में नारी को हमेशा से सम्मानित स्थान प्राप्त था. प्राचीन काल में नारियो को देवी का स्वरूप मानकर उन्हें पूजनीय कहा गया था.

उस दौर में भी नारियां परम्परागत शिक्षा प्राप्त कर पुरुष के समान जिम्मेदारियों को पूरा कर समाज कल्याण में सहयोगिनी हुआ करती थी. आज भी बिना नारी के सहयोग के पुरुष के समस्त कार्य अप्रभावी हैं यही वजह है कि नारी का एक अन्य नाम अर्द्धांगिनी है दोनों से मिलकर समाज बनता है

एक गाड़ी के चलने के लिए जिस प्रकार दोनों पहियों का सम्वत चलना जरुरी है उसी भांति गृहस्थी को चलाने के लिए भी स्त्री पुरुष को समान भागीदारी से आगे बढना जरुरी हैं. परिवार में आत्मीयता तथा एकता की स्थापना में शिक्षित नारी अधिक कारगर साबित हो सकती हैं.

वह अपने निजी व्यवहार में सभी सदस्यों के साथ संतुलन बनाए रखती हैं. इससे परिवार का वातावरण हल्का रहता है तथा सुख सम्रद्धि से पूर्ण रहता हैं, जिसका सीधा असर समाज व देश पर पड़ता हैं.

उपसंहार- अंत में यही कहा जा सकता है कि एक नारी अच्छी एवं गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा पाकर न केवल अपने सुचरित्र का निर्माण करती है बल्कि वह अपने परिवार तथा समाज में भी अपने विचारों की छाप छोड़ती हैं.

एक शिक्षित नारी आदर्श पत्नी, कुशल गृहिणी, आदर्श माँ, बहिन किसी भी रूप में देश व समाज की अशिक्षित नारी की तुलना में बेहतर एवं कुशल रूप में अपनी सेवाएं दे सकती हैं.

जिस समाज व देश की नारियां सुसंस्कृत होती है वह हमेशा तरक्की के शिखर पर आरूढ़ होता है इसकी कारण कहा गया है शिक्षित नारी सुख सम्रद्धिकारी.

Short Essay On Women Education In Hindi 400 Words

भारतीय समाज में महिलाओं के प्रति आदर का भाव प्राचीन काल से ही रहा है| शिक्षा की भूमिका स्त्रियों को समाज में सम्मानजनक स्थान दिलाने में महत्वपूर्ण रही है|

आजादी के बाद से,विशेष रूप से पिछले दो -ढाई दशको से केंद्र सरकार तथा विभिन्न राज्य सरकारों द्धारा चलाए जा रहे सतत साक्षरता अभियान तथा 6 से 14 वर्ष सभी बालक -बालिकाओं (importance of girl education) को प्राथमिक शिक्षा दिलाने की अनिवार्यता ने इसे और भी महत्वपूर्ण बना दिया है. साथ ही प्रोढ़ शिक्षा कार्यक्रम में भी इसमे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं.

यदि हम देखे तो पायेगे कि भारत के अतीत में विशेष रूप से वैदिक काल उत्तर वैदिक काल में स्त्रियों को पुरुषो के समान ही शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार प्राप्त था. गार्गी, मैत्रेयी, लोपमुद्रा आदि कतिपय विदुषी नारियां स्त्री शिक्षा के सर्वोतम उदहारण हैं, जिनका उल्लेख प्राचीनतम साक्ष्यो में मिलता हैं.

इसी क्रम में बौधकाल में भी स्त्रियों को संघ में प्रवेश लेने व शिक्षा प्राप्ति का अधिकार था. कालान्तर में अनेक विदेशी आक्रंताओ के आने से स्त्री सुरक्षा का प्रश्न स्त्री शिक्षा की तुलना में ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया. तथा स्त्रियों पर बहुत से सामाजिक बंधन बढ़ने लगे.

परिणाम स्वरूप समाज में स्त्रियाँ हर क्षेत्र में पिछड़ गईं तथा समाज पुरुष प्रधान हो गया जिससे शिक्षा की द्रष्टि से स्त्रियों और पुरुषो में विषमता फ़ैल गईं. पर्दा प्रथा, सती प्रथा, दास प्रथा आदि कुरीतियों ने स्त्रियों की स्थति में गिरावट लाने का ही काम किया.

आधुनिक काल में भारत में आए सामाजिक नवजागरण के साथ ही स्त्रियों की शिक्षा व्यवस्था का नया सूत्रपात हुआ. तथा राजा राममोहन राय, स्वामी द्यान्न्त सरस्वती जैसे समाज सुधारको की प्रेरणा से तथा साथ ही कुछ मशीनरियो द्वारा बालिका शिक्षा के लिए कुछ विद्यालय स्थापित किये.

1904 में श्रीमती एनीबेसेंट ने बनारस में केन्द्रीय हिन्दू बालिका विद्यालय की स्थापना की. आजादी के बाद भारतीय सविधान में सभी जाति धर्म सम्प्रदाय के स्त्री-पुरुषो को समान रूप से शिक्षा प्रदान करने का अधिकार सभी नागरिको को दिया गया.

तथा स्त्री शिक्षा के प्रचार के लिए राष्ट्रिय महिला शिक्षा समिति राष्ट्रिय महिला शिक्षा परिषद हंसा मेहता समिति आदि का गठन कर स्त्री शिक्षा के क्षेत्र महत्वपूर्ण कार्य हुआ.

आज ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रो में समान रूप से बालिका शिक्षा का प्रतिशत उल्लेखनीय रूप से बढ़ रहा हैं. सार्वजनिक जीवन के विभिन्न क्षेत्रो जैसे चिकित्सा, अभियांत्रिकी, तकनिकी, विज्ञान, खेल, प्रबंध, भूगर्भ, विज्ञान, अन्तरिक्ष विज्ञान, राजनीति तथा समाज सेवा के क्षेत्रो में अनेक शिक्षित महिलाओं ने महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल करते हुए,

राष्ट्र के निर्माण में योगदान दिया हैं. कहते हैं, एक पुरुष के शिक्षित होने केवल एक व्यक्ति शिक्षित होता हैं. जबकि एक महिला के शिक्षित होने पर पूरा परिवार शिक्षित होता हैं. हमारी वर्तमान भारत सरकार ने भी बालिका शिक्षा को लेकर कई उपक्रम चलाए हैं

तथा अनेक शिक्षण संस्थान स्त्रियों के लिए विशेष रूप से स्थापित किये गये हैं. आज शिक्षा के हर क्षेत्र में स्त्रिया पुरुषो से आगे निकल रही हैं.

Long Essay On Women Education In Hindi In 500 Words

हमारे समाज में पुरुष की अपेक्षा नारी को कम महत्व दिया जाता हैं. इस कारण पुरुष को शिक्षा प्राप्त करने का सुअवसर मिलता हैं. परन्तु महिला को परिवार की परिधि में कभी कन्या, कभी नववधू या पत्नी तो कभी माता के रूप में जकड़ी रहती हैं. और उसकी शिक्षा पर इतना ध्यान नहीं दिया जाता हैं.

प्राचीन काल एवं मध्य काल में महिला शिक्षा की पर्याप्त सुविधाएं नहीं थी. परन्तु स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सरकार नारी शिक्षा पर ध्यान दे रही हैं. फिर भी अभी शिक्षित महिलाओं का प्रतिशत बहुत ही कम हैं.

शिक्षित महिला का समाज में स्थान- शिक्षित महिला अपने बौद्धिक विकास और भौतिक व्यक्तित्व का निर्माण करने में सक्षम होती हैं.

गृहणी के रूप में वह अपने घर परिवार का संचालन कुशलता से कर सकती हैं. वह अपनी सन्तान को वीरता, त्याग, उदारता, कर्मठता, सदाचार, अनुशासन आदि के ढाँचे में आसानी से ढाल सकती हैं.

सुशिक्षित नारी माँ के रूप में श्रेष्ठ गुरु, पत्नी के रूप में आदर्श गृहणी, बहिन के रूप में स्नेही मित्र और मार्गदर्शिका होती है. यदि महिला शिक्षित है तो वह समाज सेविका, वकील, डॉक्टर, प्रशासनिक अधिकारी, सलाहकार और उद्यमी आदि किसी भी रूप में सामाजिक दायित्व का निर्वाह कर सकती हैं.

वह कवयित्री, लेखिका, अभिनेत्री, प्रशासिका और साथ ही श्रेष्ठ गृहणी भी हो सकती हैं तथा अपने समाज व देश का अभ्युदय करने में अतीव कल्याणकारी और सहयोगिनी बन सकती हैं.

शिक्षित महिला आदर्श गृहिणी- प्रत्येक आदर्श गृहिणी के लिए सुशिक्षित होना परम आवश्यक हैं. शिक्षा के द्वारा ही व्यक्ति को कर्तव्य- अकर्तव्य एवं अच्छे बुरे का ज्ञान होता हैं. गुणों और अवगुणों की पहचान इसी से ही होती है. गृहस्थी का भार वहन करने के लिए सुशिक्षित गृहिणी अधिक सक्षम रहती हैं.

वह परिवार की प्रतिष्ठा का ध्यान रखती है सिलाई बुनाई कढाई आदि कार्यों में दक्ष होती है. स्वच्छता सजावट में रूचि रखती है. अंधविश्वासों और ढोंगों से मुक्त रहती है तथा हर प्रकार से और हर उपाय से अपनी गृहस्थी को सुख सम्रद्धशाली बनाने की चेष्टा करती हैं.

शिक्षा और महिला सशक्तिकरण- शिक्षित नारियों से समाज और देश का गौरव बढ़ता हैं. परन्तु वर्तमान में महिलाओं के अधिकार का हनन हो रहा है. उनके साथ समानता का व्यवहार नहीं किया जाता है. तथा अनेक तरह से शोषण उत्पीड़न किया जाता हैं. ऐसे में शिक्षित नारी अपने अधिकारों की रक्षा कर सकती है.

समाज का हित भी स्त्री सशक्तिकरण से ही हो सकता है. इसके लिए स्त्री शिक्षा की तथा जन जागरण की जरूरत है. वस्तुतः शिक्षित एवं सशक्त नारी ही घर परिवार में संतुलन बनाए रख सकती है. देश की प्रगति के लिए नारी सशक्तिकरण जरुरी हैं.

उपसंहार- संक्षेप में कहा जा सकता कि उचित व अनुकूल शिक्षा प्राप्त करके महिला अपने व्यक्तित्व का निर्माण तो करती ही है, वह अपने समाज, घर परिवार में सुख का संचार करती है.

शिक्षित नारी आदर्श गृहिणी, आदर्श माता, आदर्श बहिन और आदर्श सेविका बनकर देश के कल्याण के लिए श्रेष्ठ नागरिकों का निर्माण करती है. इसी कारण शिक्षित नारी सुख सम्रद्धिकारी कहा गया हैं.

Essay on Women Education in India in Hindi Language- भारत में महिला शिक्षा पर निबंध

प्राचीन काल में महिला शिक्षा- भारत के अतीत में ऐसा लम्बा दौर रहा जिनमें पुरुषों को तो शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार था मगर नारियों को इस अधिकार से वंचित रखा जाता था.

इन सबके बावजूद अपने मानसिक कौशल के दम पर विश्वतारा, घोष, लोपामुद्रा, गार्गी, मैत्रेयी जैसी विदुषी महिलाओं ने अपनी पहचान बनाई.

भारत में बौद्ध धर्म के उद्भव के समय नारी शिक्षा के द्वार कुछ समय के लिए अवश्य खुले जिनमें स्त्रियों की शिक्षा के लिए अलग से बौद्ध संघ बनाए गये थे. मगर मध्यकाल आते आते नारी शिक्षा बिलकुल चौपट सी हो गई.

मुस्लिम आक्रान्ताओं के इस दौर में कुछ बड़े परिवार की लड़कियों को छोड़कर किसी को शिक्षा पाने का न कोई अधिकार था न उस समय इस तरह की कोई पुख्ता शिक्षा व्यवस्था थी.

इस अन्धकार भरे दौर में भी कुछ महिलाओं ने इतिहास पर अपनी छाप छोड़ी जिनमें रजिया बेगम, नूरजहाँ, जहांआरा, जेबुनिस्सा, मुक्ताबाई, जीजाबाई, गुलबदन मुमताज महल आदि का नाम लिया जाता हैं.

मुगलों का दौर खत्म होने के बाद भारत में अंग्रेजों के शासन की स्थापना में भी महिलाओं की शिक्षा के लिए कोई ख़ास व्यवस्थाएं नहीं थी. हाँ कुछ ईसाई मशिनिरिज अवश्य थी जो धर्म बदल चुकी महिलाओं के लिए खोली गई थी.

मगर सार्वजनिक तौर पर सभी महिलाओं के लिए शिक्षा के द्वार खुलने की शुरुआत बाकी थी. भारत में पहली बार डेविड हेयर ने पहला बालिका स्कूल खोला.

इसके बाद 1882 आते आते अंग्रेजी सरकार की ओर से भी इस दिशा में कुछ अहम कदम उठाएं गये. श्रीमती एनी बेसेंट ने वाराणसी में केन्द्रीय हिन्दू बालिका विद्यालय खोला.

इसके बाद महात्मा गांधी ने भी बालिका शिक्षा के लिए लोगों में जन जागरण की अहम भूमिका निभाई. उन्ही के प्रयासों की बदौलत 1927 में अखिल भारतीय स्त्री शिक्षा सम्मेलन आयोजित हुए जिसमें नारी शिक्षा की मांग प्रबल स्वर में उठाई गई थी.

भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद सभी स्कूलों में बालक बालिकाओं के लिए समावेशी शिक्षा के प्रावधान किये गये.

essay on women education in hindi language महिला शिक्षा निबंध

essay on importance of women education in hindi: कहा जाता हैं यदि एक पुरुष शिक्षित होता हैं तो केवल वहीँ शिक्षित होता हैं किन्तु एक स्त्री शिक्षित होती है तो पूरा परिवार शिक्षित होता हैं.

इससे स्त्री शिक्षा के महत्व का अनुमान लगाया जा सकता हैं यूँ भी समाज में जो परिवर्तन की लहर बह रही हैं, उसे देखते हुए यह जरुरी हो गया हैं कि हर क्षेत्र में स्त्री को समान अधिकार मिले.

यह स्त्री शिक्षा के बल पर ही संभव हैं.   हालांकि सामाजिक विधानों ने महिलाओं को राजनीतिक,  आर्थिक, सामाजिक  और धार्मिक अधिकार दिये हैं. लेकिन मात्र अधिकार प्राप्त होना,  उन्हें इन अधिकारों के लाभ प्राप्त करने के लिए प्रेरित नहीं कर सकता.

कानून उन्हें चुनाव में वोट देने का अधिकार,  चुनाव लड़ने और  राजनीतिक पद  ग्रहण करने का अधिकार भले ही दे, लेकिन यह उन्हें ऐसा करने के लिए बाध्य नहीं कर सकता.

पर कितनी स्त्रियाँ इन अधिकारों के प्रयोग करने के लिए जोर डालती है. इसका कारण हैं अशिक्षा. वे जागरूक नहीं. परम्परागत मूल्यों से चिपकी हुई हैं. साहस की कमी उन्हें साहसिक कदम उठाने से रोकती हैं.

इसलिए शिक्षा ही उन्हें उदार व व्यापक दृष्टि कोण से सम्पन्न व्यक्तित्व की स्वामिनी बनाएगी तथा उनकी अभिरुचियों, मूल्यों एवं भूमिका विषयक विचारों को बदलेगी.

भारत में वुमेन एड्यूकेशन (women education in india essay): सामान्य अनुभव यह बताता है कि शैक्षिक अवसरों में भेदभाव लिंग के आधार पर सर्वाधिक था.

लेकिन अब स्त्री शिक्षा ने बड़े लम्बे डग भरे हैं आज विश्वविद्यालयों में कई विभागों और संभागों में युवकों की अपेक्षा युवतियां अधिक दिखाई देती हैं.

लेकिन  शिक्षा व्यवस्था में प्रवेश करने वाली अधिकतर शहरी युवतियाँ सफेदपोश परिवारों की हैं. ग्रामीण आवास, निम्न जाति और निम्न आर्थिक स्तर निश्चित रूप से लड़कियों को शिक्षा के अवसरों से वंचित कर देते हैं. स्त्रियों की शिक्षा में भागीदारी सुनिश्चित करने और उसमें सुधार के लिए निम्नलिखित विशिष्ट कदम उठाएं गये हैं.

स्त्री शिक्षा के उपाय (hindi essays on women education)

  • ओपरेशन ब्लेक बोर्ड के अंतर्गत सरकार ने प्राथमिक स्कूल अध्यापकों का पद स्रजन किया हैं, जिनमें अधिकांश महिला शिक्षिकाएं ही होगी.
  • लड़कियों के लिए गैर औपचारिक शिक्षा केन्द्रों की संख्या में वृद्धि.
  • महिला समाख्या परियोजना प्रारम्भ की गई, जिसका उद्देश्य है प्रत्येक सम्बन्धित गाँव में महिला संघ के माध्यम से शिक्षा प्राप्त करने के लिए महिलाओं को तैयार करना.
  • सजग कार्यवाही द्वारा नवोदय विद्यालयों में लड़कियों का प्रवेश 28 प्रतिशत तक सुनिश्चित किया गया हैं.
  • प्रौढ़ शिक्षा केन्द्रों में स्त्रियों के प्रवेश पर विशेष ध्यान दिया गया हैं.
  • ग्रामीण प्रकार्यात्मक साक्षरता कार्यक्रम के अंतर्गत प्रौढ़ शिक्षा में नामांकित लोगों में अधिकांश महिलाएं शामिल करना.

स्त्री शिक्षा क्यों आवश्यक है (essay on stri shiksha in hindi language): शिक्षा के बिना स्त्री पुरुष समानता के लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता. लेकिन कानून किसी स्त्री को स्वयं को शिक्षित करने के लिए बाध्य नहीं कर सकता.

न ही माता पिता को अपनी पुत्रियों को स्कूल भेजने के लिए बाध्य किया जा सकता हैं इसलिए समाज के सभी सदस्यों को स्त्रियों की शिक्षा के प्रति दृष्टिकोण बदलने की आवश्यकता हैं.

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 भी स्त्री पुरुष समानता के लिए शिक्षा पर बल दियाजो नवीन मूल्यों को विकसित करेगी प्रस्तावित नीति में स्त्रियों के विकास के लिए सक्रिय कार्यक्रम बनाने हेतु शैक्षिक संस्थाओं को प्रोत्साहन देने, स्त्रियों की निरक्षरता खत्म करने, प्रारम्भिक शिक्षा तक स्त्रियों की पहुच सम्बन्धी बाधाओं को हटाने तथा व्यावसायिक, प्राविधिक एवं पेशेवर शिक्षा पाठ्य क्रम में लिंग रुढियों के स्थिर रूपों को समाप्त करने के लिए गैर भेदभाव नीति अपनाने आदि पर जोर दिया गया हैं.

नारी शिक्षा का भारत में इतिहास (nari shiksha essay in hindi language) : यदि हम भारतीय समाज के इतिहास पर दृष्टि डाले तो देखते हैं कि कुछ अंधकारमयकालखंड को छोड़कर सामान्यतया स्त्री की शिक्षा एवं संस्कार को महत्व दिया गया. ऋग्वैदिक काल तथा उपनिषद काल में नारी शिक्षा का पर्याप्त विकास था.

उच्च शिक्षा के लिए पुरुषों की भांति स्त्रियाँ भी शैक्षिक अनुशासन के अनुसार ब्रह्मचर्य व्रत का पालन कर शिक्षा ग्रहण करती थी. शास्त्रों की रचना करने वाली नारियों को ब्रह्मावादिनी कहा गया हैं.

इनमें कोमशा, लोपामुद्रा, घोषा, इंद्राणी आदि के नाम प्रसिद्ध हैं. पुस्तक रचना, शास्तार्थ तथा अध्ययन कार्य के द्वारा नारी उच्च शिक्षा का उपयोग करती थी. शास्त्रार्थ प्रवीण गार्गी का नाम जगत प्रसिद्ध हैं.

पतंजली ने जिस शाक्तकी शब्द का प्रयोग किया हैं. वह भाला धारण करने वाली अर्थ का बोधक हैं. इससे प्रतीत होता हैं कि नारियों को सैनिक शिक्षा भी दी जाती थी. इसके अतिरिक्त स्त्रियों को विशेष रूप से ललित कला, नृत्य, संगीत आदि विधाओं की शिक्षा दी जाती थी.

स्त्री शिक्षा वाद विवाद (debate on nari shiksha in hindi): मध्यकाल में मुस्लिम सभ्यता एवं संस्कृति में व्याप्त पर्दे की प्रथा के कारण स्त्री शिक्षा लगभग लुप्तप्राय हो गई थी. केवल अपवाद के रूप में सम्रद्ध मुसलमान परिवार की महिलाएं ही घर पर शिक्षा ग्रहण करती थी.

इनमें नूरजहाँ, जहाँआरा, जेबुन्निसां आदि के नाम प्रसिद्ध हैं. लेकिन सामान्यतया महिलाओं की स्थिति मध्यकाल में सबसे दयनीय थी. हिन्दू समाज में भी बाल विवाह, सती प्रथा जैसी अनेक कुरीतियों के कारण बहुसंख्यक नारियां शिक्षा से वंचित रहीं.

19 वीं शताब्दी ने नवजागरण चेतना ने भारतीय समाज में व्याप्त अनेक कुरीतियों को समाप्त करने की कोशिश की. भारत में तेजी से हुए सामाजिक धार्मिक सुधार आंदोलन ने कुप्रथाओं को दूर करके स्त्री शिक्षा को प्रोत्साहन दिया.

ईश्वर चन्द्र विद्या सागर ने बंगाल में कई विद्यालय लड़कियों की शिक्षा के लिए खुलवाएं. सन 1882 के भारतीय शिक्षा आयोग के द्वारा भारत सरकार की ओर से शिक्षण प्रशिक्षण का प्रबंध हुआ.

आयोग ने स्त्री शिक्षा के सम्बन्ध में अनेक उत्साहवर्धक सुझाव प्रस्तुत किये, लेकिन रूढ़िवादिता के कारण वे अधिक प्रभावी तरीके से कार्यान्वित नहीं हो सके.

नवजागरण की चेतना या लहर चूँकि समूचे विश्व में व्याप्त थी, इसीलिए वैश्विक स्तर पर स्त्री शिक्षा के सन्दर्भ में उल्लेखनीय प्रगति हुई, भारत भी इससे अछूता नहीं रहा.

उच्च शिक्षा की दृष्टि से 1916 महत्वपूर्ण हैं. क्योंकि इस समय दिल्ली मर लेडी होर्डिंग कॉलेज एवं समाजसुधारक डी के कर्वे द्वारा बम्बई में लड़कियों के लिए विश्वविद्यालय खोला गया.

इस समय भारतीय मुसलमान स्त्रियों ने भी उच्च शिक्षा के क्षेत्र में पर्दापण किया. स्त्रियों की प्राविधिक शिक्षा में कला, कृषि, वाणिज्य आदि विषयों का समावेश हुआ और नारी सहशिक्षा की ओर अग्रसर हुई.

तब से लेकर आजतक स्त्री शिक्षा के स्तर एवं आयाम में निरंतर वृद्धि होती जा रही हैं. स्त्रियाँ अपने अधिकारों से परिचित होकर पुरुषों के समकक्ष स्वयं को सिद्ध करने के लिए शिक्षा के महत्व की अपरिहार्यता को समझने लगी हैं.

उन्हें एहसास हो गया हैं कि प्रगतिशील एवं शिक्षित समुदाय बनने से स्त्री पुरुष का भेद स्वतः ही मिट जाएगा.

Short essay on importance of women’s education in hindi Language

female education essay in hindi: भारतीय समाज में महिलाओं के प्रति आदर का भाव प्राचीन काल से ही रहा हैं. शिक्षा की भूमिका स्त्रियों को समाज में सम्मानजनक स्थान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका रही हैं.

आजादी के बाद से पिछले दो ढाई दशकों से केंद्र सरकार तथा विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा चलाए जा रहे सतत साक्षरता अभियान तथा 6 से 14 वर्ष के सभी बालक बालिकाओं को प्राथमिक शिक्षा दिलाने की अनिवार्यता ने इसे और भी महत्वपूर्ण बना दिया हैं.

साथ ही प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम ने भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं. यदि हम देखे तो पाएगे कि भारत के अतीत में विशेष रूप से वैदिक काल तथा उत्तर वैदिक काल में स्त्रियों को पुरुषों के समान ही शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार प्राप्त था, गार्गी मैत्रेयी, लोपमुद्रा कतिपय विदुषी नारियाँ स्त्री शिक्षा के सर्वोत्तम उदाहरण हैं.

जिनका उल्लेख प्राचीनतम साक्ष्यों में मिलता हैं. इसी क्रम में बौद्धकाल में भी अनेक स्त्रियों को संघ में प्रवेश लेने व शिक्षा प्राप्ति का अधिकार था.

कालान्तर में अनेक विदेशी आक्रान्ताओं के आने से स्त्री सुरक्षा का प्रश्न स्त्री शिक्षा की तुलना में ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया तथा स्त्रियों पर बहुत से सामाजिक बंधन बढ़ने लगे.

परिणामतः समाज में स्त्रियाँ हर क्षेत्र में पिछड़ गई तथा समाज पुरुष प्रधान हो गया, जिससे शिक्षा की दृष्टि से स्त्रियों और पुरुषों में विषमता फ़ैल गई. पर्दा प्रथा, सती प्रथा, दास प्रथा आदि कुरीतियों ने स्त्रियों की स्थिति में गिरावट लाने का काम किया.

आधुनिक काल में भारत में आये सामाजिक नवजागरण के साथ ही स्त्रियों की शिक्षा व्यवस्था का नया सूत्रपात हुआ. तथा राजा राममोहन राय, स्वामी दयानंद सरस्वती जैसे समाज सुधारकों की प्रेरणा से तथा साथ ही कुछ मिशनरियों द्वारा बालिका शिक्षा के लिए कुछ विद्यालय स्थापित किये. 1904 में श्रीमती एनीबेसेण्ट ने बनारस में केंद्रीय हिन्दू बालिका विद्यालय की स्थापना की.

आजादी के बाद भारतीय संविधान में सभी जाति, धर्म, सम्प्रदाय के स्त्री पुरुषों को समान रूप से शिक्षा प्रदान करने का अधिकार सभी नागरिकों को दिया गया तथा स्त्री शिक्षा के प्रसार के लिए राष्ट्रीय महिला शिक्षा समिति, राष्ट्रीय महिला शिक्षा परिषद्, हंसा मेहता समिति आदि का गठन कर स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य हुआ.

आज ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में समान रूप से बालिका शिक्षा का प्रतिशत उल्लेखनीय रूप से बढ़ रहा हैं. सार्वजनिक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों जैसे चिकित्सा, अभियांत्रिकी, तकनीक, विज्ञान, खेल, प्रबंधन, भूगर्भ विज्ञान, अन्तरिक्ष विज्ञान, राजनीति तथा समाज सेवा के क्षेत्रों में अनेक शिक्षित महिलाओं ने महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल करते हुए राष्ट्र के निर्माण में योगदान किया हैं.

कहते है एक पुरुष के शिक्षित होने पर केवल एक व्यक्ति ही शिक्षित होता है, जबकि एक महिला के शिक्षित होने पर पूरा परिवार शिक्षित होता है.

हमारी वर्तमान भारत सरकार ने भी बालिका शिक्षा को लेकर कई उपक्रम चलाए है तथा अनेक शिक्षण संस्थान स्त्रियों के लिए विशेष रूप से स्थापित किये गये हैं. आज शिक्षा के क्षेत्र में हर क्षेत्र में स्त्रियाँ पुरुषों से आगे निकल रही हैं.

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