गौ गिरिराज व्रत कथा पूजन विधि एवं महत्व | Gau Giriraj Vrat Katha Puja Vidhi
Gau Giriraj Vrat 2018 सितम्बर माह में पड़ रहा हैं. इस दिन गौ गिरिराज व्रत रखा जाएगा. भादों शुक्ल त्रयोदशी को यह व्रत किया जाता हैं. इस दिन गौ (गाय) माता की पूजा के साथ साथ लक्ष्मी नारायण की पूजा किये जाने का भी विधान हैं. गौ गिरिराज व्रत रखने वाले स्त्री पुरुष को सवेरे जल्दी उठकर नित्य कर्मों से मुक्त होकर विष्णु जी की प्रतिमा को स्नान कर घर में स्वच्छ स्थान पर स्थापित करना चाहिए.
गौ गिरिराज व्रत के दिन सोलह श्रृंगार कर गौ माता की आरती उतारे तथा निम्न मंत्र के साथ उनका पूजन करने से प्राणिमात्र की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं.
पंचगाव समुत्पन्ना: मथ्यमाने महोदधौ।
तेषां मध्ये तु या नन्दा तस्मै धेन्वे नमो नम:।।
इसका आशय यह हैं, कि समुद्र मंथन के समय पांच गायें उत्पन्न हुई थी, जिनमें से एक का नाम नंदा है इस नंदा गाय को हमारा बारम्बार नमस्कार. इस दिन नीचे दिया गया मंत्र बोलकर ब्राह्मण को दान में गाय दी जाती हैं.
गावो ममाग्रत: सन्तु गावो में सन्तु पृष्ठत:।
गावो में पार्श्वत: सन्तु गवां मध्ये वसाम्यहम।।
इस मंत्र का अर्थ यह है कि हे भगवान अगले जन्म में मुझे गायों के बिच ही जन्म देना. मेरे आगे गाय हो, पीछे गाय हो, अगल-बगल में गाय हो तथा मैं दिन रात गौ के बिच ही रमण करू.
गौ गिरिराज व्रत रखने वाले ब्राह्मण को गाय देकर आदर सम्मान के साथ उन्हें विदा करे एवं उनसें आशीर्वाद लेवें. जो प्राणी गौ गिरिराज का व्रत धारण करता हैं वह सैकड़ों अश्वमेध तथा राजसूय जैसे यज्ञ के समान फल पाता हैं.
श्री गिरिराज जी महाराज की आरती
ब्रजभूमि ब्रजांगना बृजवासी बृजराज
यह चारों के मुकुट है जय जय श्री गिरिराज।
श्री कृष्ण चरण रज मस्तक धरि बैठो है गिरिराज
जो गिरिराज कृपा करे सफल करे सब काज।
कबीर कबीर क्या कहे, जा यमुना के तीर
एक एक गोपी प्रेम में, बह गये कोटि कबीर।
दीनन को हितकारी है भक्तन को रखवारो
सब देवन को देव कहावे सात कोस वारो।
एक रूप से पूजत है दूजो रहयो पूजाय
सहस्त्र भुजा फैलाय के माँग माँग के खाय।
वैष्णव से वैष्णव मिले, यह पूरब की पहचान
और लागे टांकी प्रेम की, तो निकले हीरा खान।
कोई तन दुःखी कोई मन दुःखी, कोई धन बिन रहे उदार
थोड़े थोड़े सब दुःखी, सुखी श्री गिरिराज को दास।
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