गौरीशंकर हीराचंद ओझा का इतिहास | Gaurishankar Hirachand Ojha In Hindi

गौरीशंकर हीराचंद ओझा का इतिहास | Gaurishankar Hirachand Ojha In Hindi : डॉ ओझा का जन्म 15 सितम्बर 1863 को सिरोही राज्य के रोहेड़ा ग्राम में हुआ था. इनकी उच्च शिक्षा बम्बई में हुई.

टॉड के ग्रंथों से ओझा काफी प्रभावित थे. कविराज श्यामलदास उससे इतना प्रभावित हुआ कि ओझा को अपने इतिहास कार्यालय में सहायक मंत्री बना दिया.

जिससे उन्हें मेवाड़ के भिन्न भिन्न ऐतिहासिक स्थलों को देखने और ऐतिहासिक सामग्री संकलित करने का अवसर मिला.

गौरीशंकर हीराचंद ओझा का इतिहास | Gaurishankar Hirachand Ojha In Hindi

गौरीशंकर हीराचंद ओझा का इतिहास | Gaurishankar Hirachand Ojha In Hindi
पूरा नामगौरीशंकर हीराचंद ओझा
जन्म15 सितम्बर, 1863
जन्म भूमिरोहिड़ा ग्राम, राजस्थान
अभिभावकहीराचन्द ओझा
मुख्य रचनाएँभारतीय प्राचीन लिपि माला
भाषाराजस्थानी, हिन्दी, संस्कृत
विद्यालयएलफिंस्टन हाईस्कूल’, मुम्बई
‘प्रसिद्धिइतिहासकार
उपाधिडी.लिट

बाद में ओझा को उदयपुर के विक्टोरिया हॉल के पुस्तकालय और म्यूजियम का अध्यक्ष बनाया गया. वहां पुरातत्व विभाग के लिए उन्हें शिलालेख, सिक्कों, मूर्तियों आदि ऐतिहासिक सामग्री को संग्रह करने का अवसर मिला.

यहाँ रहते हुए ओझा ने प्राचीन लिपिमाला नामक ग्रंथ लिखकर पुरातत्व जगत में विशिष्ठ ख्याति अर्जित की.

गौरीशंकर हीराचंद ओझा कौन थे (Who was Gaurishankar Hirachand Ojha)

कर्जन ने ओझा की विद्वता से प्रभावित होकर उन्हें अजमेर म्यूजियम का अध्यक्ष बना दिया. उस समय अनेक राजपूत राज्यों में भ्रमण करने का अवसर ओझा को मिला. वहीँ रहते हुए उन्होंने 1911 में सिरोही राज्य का इतिहास लिखा. उन्हें 1914 ई में रायबहादुर का खिताब मिला.

1933 ई में ओरिएण्टल कांफ्रेस बडौदा में इतिहास विभाग के अध्यक्ष बने. 1937 ई में साहित्य वाचस्पति की पदवी और काशी विश्वविद्यालय से डी लिट् की उपाधि मिली. 17 अप्रैल 1947 को रोहेड़ा में ओझा का देहावसान हो गया.

ओझा ने प्रत्येक घटना के वर्णन में प्राप्त सभी आधार स्रोतों का उपयोग करते हुए उनकी सत्यता को प्रमाणित करने का हरसंभव प्रयास किया और सन्दर्भ सामग्री का सुस्पष्ट उल्लेख पाद टिप्पणी में दिया. आधार स्रोतों का पाद टिप्पणी में उल्लेख करने की परम्परा ओझा ने ही डाली थी.

प्रत्येक राज्य के इतिहास में सबसे पहले राज्य का नामकरण क्षेत्रफल, नदी नाले पक्षी दुर्ग सड़के जनसंख्या, धर्म, जाति, त्यौहार आदि का संक्षिप्त विवरण दिया गया हैं.

उसके बाद प्राचीन व प्रसिद्ध स्थलों का वर्णन हैं. फिर राजवंश की स्थापना के बाद उस राज्य का क्रमबद्ध राजनीतिक इतिहास दिया गया हैं. यह ओझा के लेखन की विशेषता थी.

गोरीशंकर हीराचंद ओझा ने भारतीय प्राचीन लिपिमाला, सोलंकियों का प्राचीन इतिहास, सिरोही राज्य का इतिहास, राजपूताने का प्राचीन इतिहास, उदयपुर राज्य का इतिहास, डूंगरपुर राज्य का इतिहास, बाँसवाड़ा राज्य का इतिहास, बीकानेर राज्य का इतिहास, जोधपुर राज्य का इतिहास, प्रतापगढ़ राज्य का इतिहास इत्यादि इतिहास ग्रंथों का लेखन किया.

ओझा ने साहित्य, इतिहास व पुरातत्व पर निबंध लिखे एवं कर्नल जेम्स टॉड का जीवन चरित्र, भारतवर्ष के प्राचीन इतिहास की सामग्री, बापा रावल का सोने का सिक्का, वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप, मध्यकालीन भारतीय संस्कृति नाम से छोटे ग्रंथ भी लिखे.

इतिहास में रुचि

ओझा जी की राजस्थान के इतिहास को जानने की गहरी रूचि थी अतः उन्होंने कर्नल टॉड की पुस्तकों का अध्ययन करना शुरू किया. टॉड एक ब्रिटिश इतिहास वेत्ता थे जिन्होंने राजस्थान के इतिहास को एक्सप्लोर किया था.

गौरीशंकर ओझा जी ने भारतीय प्राचीन लिपि माला नामक ग्रन्थ 1894 में प्रकाशित करवाया, उनके इस ग्रन्थ ने भारतीय लिपि के हिब्रू से विकास के सिद्धांत रद्द करवा दिया.

उन्होंने अपनी रिसर्च से यह स्थापित करने में सफलता अर्जित की कि ब्राह्मी लिपि को समझने के पश्चात ही अन्य लिपियों को समझा जा सकता हैं.

राजस्थानी इतिहास पर शोध व संकलन

राजस्थान के इतिहास को नये सिरे से सोचने समझने और संकलित करने का जिम्मा ओझा जी ने साल 1894 में अपने कंधों पर ले लिया. एक जर्मन विद्वान् ने उनके बारे में लिखा था, ओझा से बेहतर अपने देश के इतिहास को कौन जानता हैं. साल 1902 में इनकी मुलाक़ात लार्ड कर्जन से भी हुए.

कर्जन ओझा जी की लग्न और विद्वता से बहुत प्रभावित हैं. कर्जन ने इन्हें भारतीय पुरातत्व विभाग में उच्च पद की पेशकश भी की, मगर वे अपने राज्य की सेवा करना चाहते थे अतः उन्होंने वह प्रस्ताव भी ठुकरा दिया.

साल 1908 जब लार्ड मिन्टों ने अजमेर में राजपूताना पुरातत्व संग्रहालय खोला तो हीराचंद जी ओझा को इसका प्रबन्धक बनाया.

वे अपनी मेवाड़ धरा को छोड़ना नहीं चाहते थे मगर तत्कालीन शासक फतेहसिंह द्वारा उन्हें यथोचित सम्मान नहीं दिया, जिसके चलते वे 1908 में अजमेर आकर बस गये.

रचनाएँ

  • ‘उदयपुर राज्य का इतिहास’
  • ‘डूंगरपुर राज्य का इतिहास’
  • ‘बांसवाड़ा राज्य का इतिहास’
  • ‘बीकानेर राज्य का इतिहास’
  • ‘जोधपुर राज्य का इतिहास’
  • ‘प्रतापगढ़ राज्य का इतिहास’
  • मध्यकालीन भारतीय संस्कृति
  • सोलंकियों का इतिहास
  • पृथ्वीराज विजय’
  • ‘कर्मचंद वंश
  • राजपूताना का इतिहास

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