गुरु नानक देव का जीवन परिचय इतिहास | Guru Nanak Biography History In Hindi

गुरु नानक देव का जीवन परिचय इतिहास | Guru Nanak Biography History In Hindi: भारत में भक्ति आंदोलन के कबीर के बाद सबसे बड़े निर्गुण भक्ति विचारधारा के समर्थक गुरु नानक देव जी रहे हैं.

इन्होने सिख सम्प्रदाय की स्थापना की, गुरु नानक देव का जीवन परिचय में जानेगे उनकी जीवनी शिक्षाएं उनके दोहे तथा नानक देव जी की जीवनी बायोग्राफी से जुड़ी समस्त जानकारी.

गुरु नानक देव का जीवन परिचय इतिहास | Guru Nanak Biography History In Hindi

गुरु नानक देव का जीवन परिचय इतिहास | Guru Nanak Biography History In Hindi

आजकल यह स्थान पाकिस्तान में हैं, और यह आज ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता हैं. ये सिक्ख पन्थ के संस्थापक थे तथा निर्गुण उपासना के समर्थक थे. 

कई जगहों पर घूमने के बाद उन्होंने करतारपुर में रावी नदी के तट पर अपना डेरा बसाया, जहाँ उनके अनुयायी जात पात त्याग कर इकट्ठे होकर खाना खाते है. इसे लंगर कहते हैं.

कबीर के समान मध्यकालीन समाज को प्रभावित करने वाले संतों में गुरु नानक का नाम महत्वपूर्ण हैं. कबीर की तुलना में गुरु नानक के बारे में अधिक ऐतिहासिक जानकारी मिलती हैं. गुरु नानक देव जी का जन्म 1469 ई में तलवंडी में हुआ था.

नानक ने उपासना और कार्य के लिए जो जगह नियुक्त की उसे धर्मसाल कहते हैं. आजकल इसे गुरुद्वारा कहते हैं, गुरु नानक के अनुयायी सभी जातियों से थे. नानक ने अंधविश्वासों और गलत मान्यताओं को दुर करने का प्रयास किया. वे हिन्दू मुसलमानों को समान दृष्टि से देखते थे.

गुरु नानक ने अपनी बाते सीधी व सरल भाषा में कही. मुस्लिम संतों का सत्संग भी उन्होंने किया. गुरुनानक के मत में सच्चा समन्वय वही हैं, जो ईश्वर की मौलिक एकता और उसके असर से मानव की एकता को पहचानने में सहायता दे. नानक के प्रभाव से देश को नई दिशा मिली.

तथा समानता, बन्धुता, ईमानदारी तथा सृजनात्मक श्रम के द्वारा जीविकोपार्जन पर आधारित नई समाज व्यवस्था स्थापित हुई. गुरुनानक तथा उनके बाद आने वाले गुरुओं के उपदेशों से आगे चलकर एक नया मत ‘सिख मत’ का भारत में उदय हुआ.

इनका जन्म तलवंडी ननकाना साहिब में मेहता कालुचन्द एवं तृप्ता देवी के यहाँ, अल्पायु में ही इनका विवाह सुलक्षणी से हुआ. इनके एक पुत्र श्रीचंद ने उदासी सम्प्रदाय की स्थापना की.

नानक ने मूर्तिपूजा एवं धार्मिक आडम्बरों का विरोध किया एवं निर्गुण निराकार ईश्वर की आराधना पर बल दिया, ऐसे ईश्वर को इन्होने अकाल पुरुष कहा. इनका मानना था कि श्रद्धा एवं भक्ति द्वारा ईश्वर का नाम जपकर मोक्ष पाया जा सकता हैं.

गुरु नानक साहब कर्मवाद एवं पुनर्जन्म सिद्धांत के समर्थक थे. उन्होंने आचरण की शुद्धता, मानव समानता एवं भाईचारे पर बल दिया.

इन्होने हिन्दू मुस्लिम एकता पर बल दिया, जाति भेद छुआछूत आदि का विरोध किया एवं नारी मुक्ति की दिशा में कार्य करते हुए सती प्रथा का विरोध किया.

गुरु नानक जी ने तत्कालीन शासकों को अत्याचारी बताते हुए ऐसे आदर्श राज्य की कल्पना की जहाँ का शासक दार्शनिक प्रवृति का होगा एवं न्याय, समानता तथा नैतिकता के आदर्शों का पालन करेगा.

इन्होने भेदभाव को दूर करने के लिए सामूहिक भोज लंगर प्रारम्भ किया, ये प्रायः भजनों का गायन करते तथा इनका शिष्य मरदाना रबाब बजाता था.

नानक ने न सिर्फ भारत में दुर दुर तक यात्रा की बल्कि वे भारत से बाहर श्रीलंका तथा मक्का और मदीना भी पहुचे.

इनके शिष्य सिख कहलाए, नानक ने अपने उपदेश छोटी छोटी कविताओं के रूप में दिए थे, जिन्हें सिक्खों के पांचवें गुरु अर्जुनदेव ने आदि ग्रथ, गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित किया था.

गुरु नानक देव जी का इतिहास | Guru Nanak Dev Ji History In Hindi

श्री नानक देव जी का जन्म 15अप्रैल,1469 में गाँव तलवंडी आज के ननकाना साहिब में हुआ था जो वर्तमान में पाकिस्तान में स्थित है. गुरुनानक जी के जन्म दिन को नानक जयंती के रूप में देशभर में मनाया जाता है.

22 सितम्बर, 1539 के दिन करतार पुर में इनका देहांत हो गया था, यह भी वर्तमान पाकिस्तान में स्थित है. आपसी प्रेम सोहार्द को बढ़ावे देने के लिए नानक देव जी ने आजीवन कार्य किया, हिन्दू धर्म से पृथक एक अलग सम्प्रदाय की नीव इन्होने रखी जिसे हम सिख समुदाय कहते है.

आज से तकरीबन साढ़े पांच सौ वर्ष पहले पंजाब से गुरु नानक देव जी द्वारा एक नयें पंथ की नीव रखी गई थी. जो सिख धर्म के रूप में जाना जाता है.

एक हिन्दू परिवार में जन्म लेने वाले नानक जी धर्म के आडम्बरों रीती रिवाजों और विभिन्न कुर्थाओं के प्रबल विरोधी थे. वे जाति बंधन के सख्त खिलाफ थे.

वे बचपन से ही धर्म से जुड़ी इस तरह की बातों में विश्वास नही करते थे. वे सच्ची लग्न से अपने प्रभु को याद करते और अपने व्यवसाय के जरिये परिवार का पालन पोषण करते थे.

गुरु नानक देव जी का बचपन और शिक्षा Childhood and education of Guru Nanak Dev Ji In Hindi

इनकी माताजी का नाम तृप्ता तथा पिताजी का नाम कालू मेहता था. इनका नाम बड़ी बहिन नानकी के नाम पर रखा गया था. इन्होने बचपन में ही पंजाबी उर्दू तथा फ़ारसी भाषा का भी ज्ञान प्राप्त कर लिया था.

इनके पिताजी गाँव के पटवारी थे, नानक जी ने बचपन में पशुचारण का कार्य लम्बे समय तक किया. इसी कार्य में उन्होंने गाँव की जनता को पहला चमत्कार दर्शाया था.

एक दिन जब वे अपने मवेशियों को चरा रहे थे तो भक्ति में चित लग जाने से पशुओं द्वारा पूरे खेत को चर लिया था. एक किसान की शिकायत पर पंचायत बुलाई गई. जब लोगों ने खेत के नुकसान का जायजा लेने गये तो दंग रह गये, उस खेत में फसल यूँ ही खड़ी थी.

गुरु नानक देव जी के चमत्कार (stories Of guru nanak Ji Hindi)

उनका इस संसार से वैराग्य बचपन में ही हो गया था, सांसारिक सुख दुःख से कोसो दूर इनकी लग्न तो बस भगवान् में बसी थी.

जब भी ये स्कूल गये शिक्षक से भगवान की सच्चाई की कोई सवाल दागते जिसका सवाल उनके पास नही था, रोज रोज की इसी बात से अध्यापक जी खिन्न हुए और नानक को घर छोड़ आए.

इसके बाद इन्होने शिक्षा और सांसारिक जीवन के मोह का त्याग कर ईश्वर भक्ति जागरण सत्संग एवं यात्राओं में अपना जीवन व्यतीत करना शुरू कर दिया.

बचपन में ही इन्होने कई ऐसे चमत्कार दिखाए जिससे गाँव के मुखिया एवं बड़ी बहिन की उनके प्रति श्रद्धा बढ़ गई.

गुरु नानक देव जी का विवाह, संताने व यात्राएं (उदासियाँ) [Marriage, sages and trips to Guru Nanak Dev Ji Hindi]

मात्र सोलह वर्ष की आयु में ही गुरु नानक जी का विवाह सुलक्खनी नामक कन्या के साथ सम्पन्न हो गया. जब वे ३२ साल के हुए तो इनके पहला पुत्र हुआ जिसका नाम श्रीचंद रखा गया था.

इसके चार वर्ष बाद दूसरे पुत्र का जन्म हुआ जिसे लिखमिदास का नाम दिया गया. दो पुत्रों के जन्म के पश्चात गुरु नानक जी मरदाना, लहना, बाला और रामदास के साथ घर को त्याग दिया.

गुरु नानकदेव जी ने जो यात्राएं की उन्हें सिख धर्म में उदासियाँ के नाम से जाना जाता है. उन्होंने कई वर्षों तक भारतीय उपमहाद्वीप खासकर अफगान एवं अरब देशों की यात्रा की.

गुरु नानक देव जी की शिक्षाएं (teachings Guru Nanak Dev Ji Hindi)

नानक देव जी न तो पूर्ण रूप से आस्तिक थे ना ही नास्तिक. वे हिन्दू परिवार में जन्म मुस्लिम संस्कृति के बीच लम्बे समय तक रहे.

दोनों संस्कृतियों धर्मों की अच्छी बातों का उन पर बड़ा प्रभाव पड़ा, उनकी जीवन शैली सूफी संतों जैसी हो गई थी. वे हमेशा अंधविश्वासों आडम्बरों तथा मूर्ति पूजा के विरोधी रहे.

सर्वेश्वरवादी के रूप में इन्होने अपना जीवन जीया लोगों को अच्छी बाते अपने उपदेशों के रूप में बताई, वैचारिक परिवर्तन के समर्थक के रूप में इन्होने एक नव समाज की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो बहुदेववाद, आडम्बर से मुक्त एवं एक ईश्वर में विश्वास रखती थी.

गुरु नानक देव जी की मृत्यु (Death of Guru Nanak Dev Ji Hindi)

संसार से विरक्त सन्यासी जीवन जीने वाले नानक देव जी के अंतिम दिन बेहद चर्चित रहे, उनके विचारों से प्रभावित होकर लोग उन्हें अवतार का दर्जा देते थे.

एक बार फिर इन्होने सन्यास का मार्ग छोड़ अपनों के बिच जीवन जीते हुए मानव धर्म के लिए कार्य किया. इन्ही समय इन्होने करतारपुर नगर बसाया इसी नगर में आश्वन कृष्ण १०, संवत् १५९७ (22 सितंबर 1539 ईस्वी) को नानकदेव जी की मृत्यु हो गई थी.

अपनी मृत्यु से ठीक पहले इन्होने अपने शिष्य लहना को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था जो आगे जाकर  गुरु अंगद देव जी कहलाएं.

गुरु नानक देव जी की पुस्तकें रचनाएं कविताएँ (Books by Guru Nanak Dev Ji Hindi)

नानकदेव जी एक अच्छे कवि व लेखक भी थे. उनकी भाषा कई भाषाओं का संगम थी जिसे बहता नीर का नाम दिया गया है. फारसी, मुल्तानी, पंजाबी, सिंधी, खड़ी बोली, अरबी इन समस्त भाषाओ का मिश्रण इनकी रचनाओं में देखने को मिलता हैं.

गुरु ग्रन्थ साहिब में सम्मिलित 974 शब्द (19 रागों में), गुरबाणी में शामिल है- जपजी, Sidh Gohst, सोहिला, दखनी ओंकार, आसा दी वार, Patti, बारह माह इन पुस्तकों की रचना की थी.

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